संसदीय संप्रभुता के प्रति ब्रिटिश एवं भारतीय दृष्टिकोणों की तुलना करें और अंतर बताएं । (150 words)[UPSC 2023]
भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता का उपागम फ्रांस के लिए कई महत्वपूर्ण सीखें प्रदान कर सकता है: 1. धर्मनिरपेक्षता का व्यावहारिक दृष्टिकोण: भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता को सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण के रूप में लागू करता है। इसमें धर्म को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हिस्सRead more
भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता का उपागम फ्रांस के लिए कई महत्वपूर्ण सीखें प्रदान कर सकता है:
1. धर्मनिरपेक्षता का व्यावहारिक दृष्टिकोण:
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता को सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण के रूप में लागू करता है। इसमें धर्म को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में मान्यता दी जाती है, जबकि सरकार का धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप सीमित होता है। फ्रांस भी धर्मनिरपेक्षता को संप्रभुता के हिस्से के रूप में मान्यता देता है, लेकिन कभी-कभी इसे अधिक सख्ती से लागू किया जाता है।
2. धर्म और राज्य के बीच संतुलन:
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता के तहत धर्म और राज्य के बीच संतुलन बनाए रखता है, जहां राज्य सभी धर्मों के प्रति निष्पक्ष रहता है, लेकिन धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा भी करता है। फ्रांस को इस संतुलन को समझने और लागू करने में मदद मिल सकती है, ताकि धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक व्यवस्था के बीच बेहतर संतुलन बनाया जा सके।
3. धार्मिक विविधता का सम्मान:
भारत का संविधान धार्मिक विविधता और बहुलता को स्वीकार करता है और उसे प्रोत्साहित करता है। यह फ्रांस को धार्मिक विविधता का सम्मान और इसे समाज में समावेशिता का हिस्सा बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है।
इस प्रकार, भारत का धर्मनिरपेक्षता का उपागम फ्रांस के लिए धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समरसता के निर्माण में उपयोगी सबक हो सकता है।
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संसदीय संप्रभुता: ब्रिटिश और भारतीय दृष्टिकोणों की तुलना ब्रिटिश दृष्टिकोण: "संसदीय संप्रभुता की परिभाषा": ब्रिटिश संविधान में संसदीय संप्रभुता (Parliamentary Sovereignty) का सिद्धांत मान्यता प्राप्त है, जिसका अर्थ है कि ब्रिटिश संसद की विधायी शक्ति सर्वोच्च होती है। संसद द्वारा पारित कोई भी कानून सRead more
संसदीय संप्रभुता: ब्रिटिश और भारतीय दृष्टिकोणों की तुलना
ब्रिटिश दृष्टिकोण:
भारतीय दृष्टिकोण:
निष्कर्ष: ब्रिटिश दृष्टिकोण में संसदीय संप्रभुता सर्वोच्च होती है, जबकि भारतीय दृष्टिकोण में संसदीय संप्रभुता संविधान के भीतर सीमित होती है, जहाँ संविधान और अदालतें भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
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