सार्वजनिक ऋण से आप क्या समझते हैं? उच्च सार्वजनिक ऋण को चिंता का विषय क्यों माना जाता है? भारत के संदर्भ में विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
पूंजी बजट और राजस्व बजट के मध्य अंतर **1. मुख्य अंतर: पूंजी बजट: यह दीर्घकालिक पूंजीगत खर्चों और निवेश को दर्शाता है, जैसे विकास परियोजनाएँ और इन्फ्रास्ट्रक्चर। इसका उद्देश्य स्थायी संपत्तियों का निर्माण और मौजूदा संपत्तियों का नवीनीकरण करना है। राजस्व बजट: यह बजट रोज़मर्रा के संचालन और नियमित खर्चोRead more
पूंजी बजट और राजस्व बजट के मध्य अंतर
**1. मुख्य अंतर:
- पूंजी बजट: यह दीर्घकालिक पूंजीगत खर्चों और निवेश को दर्शाता है, जैसे विकास परियोजनाएँ और इन्फ्रास्ट्रक्चर। इसका उद्देश्य स्थायी संपत्तियों का निर्माण और मौजूदा संपत्तियों का नवीनीकरण करना है।
- राजस्व बजट: यह बजट रोज़मर्रा के संचालन और नियमित खर्चों को कवर करता है, जैसे वेतन, पेंशन, और सामाजिक कल्याण योजनाएँ। इसका उद्देश्य सरकारी सेवाओं और प्रशासनिक कार्यों का समर्थन करना है।
**2. पूंजी बजट के घटक:
- पूंजीगत व्यय: जैसे कि सड़क निर्माण, सिंचाई परियोजनाएँ, और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास। उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत सड़क निर्माण कार्य।
- लंबी अवधि के ऋण: सरकारी द्वारा लिया गया लंबी अवधि का ऋण जो पूंजीगत निवेश को फंड करता है।
**3. राजस्व बजट के घटक:
- राजस्व व्यय: दैनिक संचालन के खर्च, जैसे वेतन, पेंशन, और सामाजिक कल्याण योजनाएँ। उदाहरण के लिए, मंरेगा के तहत मजदूरी भुगतान।
- राजस्व प्राप्तियाँ: कर राजस्व (जैसे GST, आयकर) और गैर-कर राजस्व (जैसे सरकारी संपत्तियों से आय)।
निष्कर्ष: पूंजी बजट दीर्घकालिक विकास और स्थायी परियोजनाओं के लिए आवंटित होता है, जबकि राजस्व बजट रोजमर्रा के प्रशासनिक खर्चों और सेवाओं को संचालित करने के लिए होता है।
See less
सार्वजनिक ऋण वह कर्ज है जिसे सरकार अपने विभिन्न खर्चों को पूरा करने के लिए लेती है। इसमें घरेलू और विदेशी उधारी शामिल होती है, जो बांड्स, सरकारी सिक्योरिटीज और अन्य वित्तीय उपकरणों के रूप में होती है। उच्च सार्वजनिक ऋण को चिंता का विषय इसलिए माना जाता है क्योंकि यह कई नकारात्मक आर्थिक प्रभाव डाल सकतRead more
सार्वजनिक ऋण वह कर्ज है जिसे सरकार अपने विभिन्न खर्चों को पूरा करने के लिए लेती है। इसमें घरेलू और विदेशी उधारी शामिल होती है, जो बांड्स, सरकारी सिक्योरिटीज और अन्य वित्तीय उपकरणों के रूप में होती है।
उच्च सार्वजनिक ऋण को चिंता का विषय इसलिए माना जाता है क्योंकि यह कई नकारात्मक आर्थिक प्रभाव डाल सकता है। पहले, अत्यधिक ऋण चुकाने के लिए सरकार को उच्च ब्याज दरों का भुगतान करना पड़ता है, जिससे बजट पर दबाव बढ़ता है और विकासात्मक खर्चों की कमी हो सकती है। दूसरे, ऋण का बोझ देश की मौद्रिक नीति और वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है, जिससे महंगाई और ब्याज दरों में अस्थिरता आ सकती है। तीसरे, उच्च सार्वजनिक ऋण विदेशी निवेशकों की विश्वास को प्रभावित कर सकता है, जिससे विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ सकता है।
भारत के संदर्भ में, उच्च सार्वजनिक ऋण एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि यह सामाजिक कल्याण योजनाओं और विकासात्मक परियोजनाओं के लिए संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करता है। इसके अलावा, भारत को अंतर्राष्ट्रीय ऋण एजेंसियों से निगरानी और निर्देश मिलते हैं, जो ऋण प्रबंधन को और चुनौतीपूर्ण बना सकते हैं। इसलिए, सार्वजनिक ऋण को नियंत्रित करना और उसके प्रभावी प्रबंधन की दिशा में कदम उठाना महत्वपूर्ण है।
See less