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धान-गेहूँ प्रणाली को सफल बनाने के लिए कौन-से प्रमुख कारक उत्तरदायी हैं? इस सफलता के बावजूद यह प्रणाली भारत में अभिशाप कैसे बन गई है? (250 words) [UPSC 2020]
धान-गेहूँ प्रणाली की सफलता के प्रमुख कारक धान-गेहूँ प्रणाली भारत की कृषि में अत्यधिक सफल रही है, विशेष रूप से हरित क्रांति के बाद। इसके प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं: उन्नत बीज और उर्वरक: हरित क्रांति के दौरान उन्नत किस्म के बीजों और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग ने धान-गेहूँ उत्पादन में क्रांतिकारी वृद्धRead more
धान-गेहूँ प्रणाली की सफलता के प्रमुख कारक
धान-गेहूँ प्रणाली भारत की कृषि में अत्यधिक सफल रही है, विशेष रूप से हरित क्रांति के बाद। इसके प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
धान-गेहूँ प्रणाली: एक अभिशाप कैसे बनी?
इस प्रणाली की सफलता के बावजूद, इसके दीर्घकालिक प्रभाव नकारात्मक रहे हैं:
निष्कर्ष: धान-गेहूँ प्रणाली ने भारत की खाद्यान्न सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों ने पर्यावरण, मृदा स्वास्थ्य और जल संसाधनों पर गंभीर दबाव डाला है। अब आवश्यकता है कि इस प्रणाली को टिकाऊ बनाने के लिए वैकल्पिक फसल प्रणाली, जल-संरक्षण तकनीकों, और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए।
See lessसहायिकियां सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं ? लघु और सीमांत कृषकों के लिए, फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है ? (250 words) [UPSC 2017]
सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव **1. सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप पर प्रभाव: **1. विशिष्ट फसलों की ओर झुकाव: सहायिकाओं की प्राथमिकता: खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के कारण कुछ फसलों जैसे धान और गेहूँ को प्राथमिकता दी जाती है। उदाहरण के लिए, धान के लिए सब्सिडीRead more
सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
**1. सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप पर प्रभाव:
**1. विशिष्ट फसलों की ओर झुकाव:
**2. संसाधन विषमताएँ:
**3. आर्थिक प्रभाव:
**2. सस्य विविधता पर प्रभाव:
**1. सस्य विविधता में कमी:
**2. पर्यावरणीय समस्याएँ:
**3. आर्थिक अस्थिरता:
**3. लघु और सीमांत कृषकों के लिए महत्त्वपूर्ण तत्व:
**1. फसल बीमा:
**2. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):
**3. खाद्य प्रसंस्करण:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष:
सस्यन तंत्र में धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के लिए क्या-क्या मुख्य कारण हैं ? तंत्र में फसलों की उपज के स्थिरीकरण में, सस्य विविधीकरण किस प्रकार मददगार होता है ? (250 words) [UPSC 2017]
धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के मुख्य कारण और सस्य विविधीकरण का योगदान **1. धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के मुख्य कारण: **1. मृदा अवसाद: पोषण की कमी: लगातार धान और गेहूँ की खेती से मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अध्ययन के अनुसार, रासायनिक उर्वरकों पर अत्Read more
धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के मुख्य कारण और सस्य विविधीकरण का योगदान
**1. धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के मुख्य कारण:
**1. मृदा अवसाद:
**2. जल संकट:
**3. जलवायु परिवर्तन:
**4. कीट और रोगों का दबाव:
**5. सिंगल फसल पद्धति:
**2. सस्य विविधीकरण का उपज स्थिरीकरण में योगदान:
**1. मृदा स्वास्थ्य में सुधार:
**2. जल उपयोग की दक्षता:
**3. कीट और रोग प्रबंधन:
**4. जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता:
**5. आर्थिक लाभ:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष:
गत वर्षों में कुछ विशेष फसलों पर जोर ने सस्पन पैटनों में किस प्रकार परिवर्तन ला दिए हैं? मोटे अनाजों (मिलटों) के उत्पादन और उपभोग पर बल को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए। (250 words) [UPSC 2018]
विशेष फसलों पर जोर और सस्पन पैटनों में परिवर्तन 1. विशेष फसलों पर जोर: सरकार की नीतियाँ: हाल के वर्षों में, सरकार ने विशेष फसलों जैसे धान और गेंहू पर जोर देने के साथ-साथ मोटे अनाज (मिलट्स) जैसे बाजरा, रागी, और कोदो की ओर भी ध्यान केंद्रित किया है। यह बदलाव सार्वजनिक वितरण प्रणाली और फसल विविधता के सRead more
विशेष फसलों पर जोर और सस्पन पैटनों में परिवर्तन
1. विशेष फसलों पर जोर:
2. मोटे अनाजों (मिलट्स) का महत्व:
3. हालिया पहलें:
4. सस्पन पैटनों में बदलाव:
5. निष्कर्ष: विशेष फसलों पर जोर ने सस्पन पैटनों में परिवर्तन लाया है। सरकार की नीतियों के तहत मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के प्रयास ने न केवल किसानों के लिए फसल विविधता बढ़ाई है, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता में भी योगदान दिया है। यह बदलाव भारत के कृषि क्षेत्र की सततता और विकास के लिए सकारात्मक संकेत है।
See lessफ़सल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं ? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फ़सल विविधता के लिए किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं ? (250 words) [UPSC 2021]
फ़सल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ 1. एकल फसल पर निर्भरता: भारत के कई क्षेत्रों में एकल फसल की निर्भरता, जैसे धान या गेंहू, पारंपरिक प्रथाओं और बाज़ार प्रोत्साहनों के कारण है। इस पर निर्भरता विविध फसलों को अपनाने में बाधक है। 2. अवसंरचना की कमी: सभी क्षेत्रों में पर्याप्त सिंचाई सुविधाओं, बाज़ारRead more
फ़सल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ
1. एकल फसल पर निर्भरता: भारत के कई क्षेत्रों में एकल फसल की निर्भरता, जैसे धान या गेंहू, पारंपरिक प्रथाओं और बाज़ार प्रोत्साहनों के कारण है। इस पर निर्भरता विविध फसलों को अपनाने में बाधक है।
2. अवसंरचना की कमी: सभी क्षेत्रों में पर्याप्त सिंचाई सुविधाओं, बाज़ार पहुँच और भंडारण सुविधाओं की कमी से किसानों को नई या विविध फसलों की खेती में कठिनाई होती है। उदाहरण के लिए, पानी की कमी वाले क्षेत्रों में किसान पानी की अधिक माँग वाली फसलों पर ध्यान देते हैं।
3. आर्थिक जोखिम: नई फसलों की आर्थिक जोखिम जैसे मूल्य अनिश्चितता और उत्पादकता की समस्याएँ किसान को विविधता अपनाने से रोकती हैं। जैसे, फलों और सब्जियों की खेती में अधिक निवेश और जोखिम होता है।
4. ज्ञान और विस्तार सेवाओं की कमी: फसल विविधता के लाभ और तकनीकों के बारे में अक्सर ज्ञान की कमी होती है। कृषि विस्तार सेवाएँ नई फसलों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और समर्थन प्रदान करने में असमर्थ हो सकती हैं।
उभरती प्रौद्योगिकियाँ फ़सल विविधता के लिए अवसर
1. सटीक कृषि: ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी और मिट सेंसर जैसी प्रौद्योगिकियाँ मिट्टी की स्थिति का मूल्यांकन करने में मदद करती हैं और उचित फसलों का चयन करती हैं। उदाहरण के लिए, सटीक कृषि किसानों को बेहतर फसल चयन में सहायता करती है।
2. आनुवंशिक सुधार: फसल आनुवंशिकी में उन्नति से सूखा सहनशील और उच्च उत्पादकता वाली प्रजातियाँ विकसित हुई हैं। Bt कपास और बायोफोर्टिफाइड फसलों की शुरुआत विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के लिए अनुकूलन में मदद करती है।
3. जलवायु-स्मार्ट कृषि: जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रथाएँ, जैसे ड्रिप सिंचाई और वृष्टि जल संचयन, किसानों को प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों के बावजूद विविध फसलों की खेती में मदद करती हैं।
4. डिजिटल प्लेटफॉर्म: कृषि-टेक प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप्स जैसे किसान सुविधा वास्तविक समय की बाज़ार जानकारी, मौसम पूर्वानुमान, और विशेषज्ञ सलाह प्रदान करते हैं, जिससे किसानों को फसल विविधता के निर्णय में सहायता मिलती है।
5. आपूर्ति श्रृंखला नवाचार: कोल्ड स्टोरेज समाधान और प्रभावी लॉजिस्टिक्स उच्च मूल्य वाली फसलों जैसे फलों और सब्जियों की बाज़ार में पहुँच और शेल्फ-लाइफ को सुधारते हैं, जिससे किसानों को विविध फसलों की खेती के लिए प्रेरणा मिलती है।
निष्कर्ष: फ़सल विविधता को अपनाने में चुनौतियाँ जैसे एकल फसल पर निर्भरता और अवसंरचना की कमी मौजूद हैं, लेकिन उभरती प्रौद्योगिकियाँ जैसे सटीक कृषि, आनुवंशिक सुधार, जलवायु-स्मार्ट प्रथाएँ, और डिजिटल प्लेटफॉर्म इन बाधाओं को पार करने में महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती हैं। इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग किसानों को अधिक लचीले और सतत कृषि प्रणालियों की ओर बढ़ने में मदद कर सकता है।
See lessसमेकित कृषि प्रणाली क्या है ? भारत में छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह कैसे लाभदायक हो सकती है ? (250 words) [UPSC 2022]
समेकित कृषि प्रणाली: परिभाषा और लाभ **1. समेकित कृषि प्रणाली क्या है?: समेकित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System, IFS) एक बहुआयामी दृष्टिकोण है जिसमें विभिन्न प्रकार की कृषि गतिविधियाँ जैसे कि फसल उत्पादन, पशुपालन, मछली पालन, और वृक्षारोपण एक ही प्रणाली में एकीकृत की जाती हैं। इसका उद्देश्य कृषRead more
समेकित कृषि प्रणाली: परिभाषा और लाभ
**1. समेकित कृषि प्रणाली क्या है?:
**2. भारत में छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाभ:
**a. आय विविधीकरण:
**b. संसाधनों का प्रभावी उपयोग:
**c. विपणन और भंडारण में सुधार:
**d. पर्यावरणीय स्थिरता:
**3. हाल के उदाहरण:
**a. किसान उत्पादक संगठनों: कई राज्यों में किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) ने समेकित कृषि प्रणाली को अपनाया है। उत्तर प्रदेश में, किसान समूहों ने कृषि-लाइवस्टॉक समेकन के माध्यम से अपनी आय को दोगुना किया है और फसलों की जोखिम को कम किया है।
**b. डिजिटल प्लेटफॉर्म्स: आधुनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे eNAM और किसान मित्र ने किसानों को समेकित कृषि प्रणाली के लाभ और जानकारी प्रदान की है, जिससे वे बेहतर निर्णय ले पा रहे हैं और संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर रहे हैं।
निष्कर्ष: समेकित कृषि प्रणाली छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक प्रभावी तरीका है जिससे वे आय विविधीकरण, संसाधनों के कुशल उपयोग, और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं। भारत में इसे लागू करने से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और स्थायी कृषि प्रथाएँ प्रोत्साहित होंगी।
See lessखपत पैटर्न एवं विपणन दशाओं में परिवर्तन के संदर्भ में, भारत में फसल प्रारूप (क्रॉपिंग पैटर्न) में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए। (250 words) [UPSC 2023]
भारत में फसल प्रारूप (क्रॉपिंग पैटर्न) में परिवर्तन: 1. खपत पैटर्न में परिवर्तन: उदाहरण: भारतीय उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकताएं, जैसे कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और अधिक प्रोटीन युक्त आहार की मांग, ने फसल प्रारूप में बदलाव को प्रेरित किया है। उदाहरण के लिए, दलहन और ताजे फल-सब्जियों की मांग में वRead more
भारत में फसल प्रारूप (क्रॉपिंग पैटर्न) में परिवर्तन:
1. खपत पैटर्न में परिवर्तन:
2. विपणन दशाओं में परिवर्तन:
3. सरकारी नीतियों का प्रभाव:
4. जलवायु परिवर्तन:
इन कारकों के कारण, भारत में फसल प्रारूप में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, जो खपत पैटर्न और विपणन दशाओं में बदलाव के अनुरूप हैं।
See lessशहरी कृषि से आप क्या समझते हैं और इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए। साथ ही, भारत के संदर्भ में इसके महत्व पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
शहरी कृषि से तात्पर्य शहरों और नगरों में कृषि गतिविधियों से है, जहां खेत, बागान या अन्य उत्पादन क्षेत्र शहरी या उपनगरीय क्षेत्रों में स्थित होते हैं। इसके विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं: वर्टिकल फार्मिंग: ऊँची इमारतों में विभिन्न स्तरों पर फसलें उगाई जाती हैं। हाइड्रोपोनिक्स: मिट्टी के बिना पौधों कोRead more
शहरी कृषि से तात्पर्य शहरों और नगरों में कृषि गतिविधियों से है, जहां खेत, बागान या अन्य उत्पादन क्षेत्र शहरी या उपनगरीय क्षेत्रों में स्थित होते हैं। इसके विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं:
वर्टिकल फार्मिंग: ऊँची इमारतों में विभिन्न स्तरों पर फसलें उगाई जाती हैं।
See lessहाइड्रोपोनिक्स: मिट्टी के बिना पौधों को पोषक तत्वयुक्त जल में उगाया जाता है।
एरोपोनिक्स: पौधों की जड़ों को हवा में निलंबित कर पोषक तत्वों का छिड़काव किया जाता है।
रूफ गार्डनिंग: इमारतों की छतों पर बागवानी की जाती है।
भारत में शहरी कृषि का महत्व बढ़ रहा है क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करता है, शहरी क्षेत्रों में ताजे और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराता है, और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करता है। इससे शहरों में भोजन की पहुंच आसान होती है और यह स्थानीय रोजगार भी सृजित करता है। शहरी कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और खाद्य संसाधनों की स्थिरता को बढ़ाने में भी सहायक है।
जलवायु परिवर्तन में वृद्धि से मोटे अनाज की खेती का पुनरुद्धार हो रहा है। चर्चा कीजिए। साथ ही, भारत में मोटे अनाज के उत्पादन को गति देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि और मौसम की अनिश्चितता ने मोटे अनाज की खेती को फिर से महत्वपूर्ण बना दिया है। मोटे अनाज जैसे कि बाजरा, ज्वार, और रागी, जलवायु के प्रति अधिक सहनशील होते हैं और कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे वे सूखा-प्रवण क्षेत्रों में उपयुक्त होते हैं। भारत में, सरकार नेRead more
जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि और मौसम की अनिश्चितता ने मोटे अनाज की खेती को फिर से महत्वपूर्ण बना दिया है। मोटे अनाज जैसे कि बाजरा, ज्वार, और रागी, जलवायु के प्रति अधिक सहनशील होते हैं और कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे वे सूखा-प्रवण क्षेत्रों में उपयुक्त होते हैं।
भारत में, सरकार ने मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। ‘प्रेरण’ योजना के तहत मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और कृषि अवसंरचना निधि जैसी योजनाओं के माध्यम से किसानों को वित्तीय सहायता दी जा रही है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में भी मोटे अनाज को शामिल किया गया है, जिससे अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन मिला है। इन प्रयासों से मोटे अनाज की खेती को पुनर्जीवित करने में मदद मिल रही है।
See lessफसल पद्धति और फसल प्रणाली के बीच अंतर को स्पष्ट कीजिए। साथ ही, भारत में प्रचलित विभिन्न प्रकार की फसल प्रणालियों पर चर्चा कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
फसल पद्धति और फसल प्रणाली में अंतर यह है कि फसल पद्धति एक विशिष्ट फसल की उगाने की विधि को दर्शाती है, जबकि फसल प्रणाली एक साथ उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों का एक व्यवस्थित समूह है। फसल पद्धति: यह एक विशिष्ट फसल के उत्पादन की विधि को संदर्भित करती है, जैसे कि सिंचित, वर्षा आधारित, या जैविक खेती। उदाहरRead more
फसल पद्धति और फसल प्रणाली में अंतर यह है कि फसल पद्धति एक विशिष्ट फसल की उगाने की विधि को दर्शाती है, जबकि फसल प्रणाली एक साथ उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों का एक व्यवस्थित समूह है।
फसल पद्धति: यह एक विशिष्ट फसल के उत्पादन की विधि को संदर्भित करती है, जैसे कि सिंचित, वर्षा आधारित, या जैविक खेती। उदाहरण के लिए, चावल की खेती में हवाई खेत की विधि एक फसल पद्धति है।
फसल प्रणाली: यह एक कृषि प्रबंधन प्रणाली है जिसमें एक साथ या अनुक्रमिक रूप से उगाई जाने वाली फसलों का संयोजन होता है। यह फसलें विभिन्न उद्देश्यों, जैसे खाद्य सुरक्षा, भूमि उपयोग या आर्थिक लाभ के लिए चुनी जाती हैं।
भारत में प्रमुख फसल प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं:
मल्टी-क्रॉपिंग (Multi-Cropping): एक ही खेत में विभिन्न फसलों की बारी-बारी से खेती, जैसे कि गेंहू के बाद चने की फसल।
इंटर-क्रॉपिंग (Inter-Cropping): एक ही समय में विभिन्न फसलों की खेती, जैसे मक्का और दालें एक साथ।
सिल्वो-अग्रीकल्चर (Silvo-Agriculture): कृषि और वानिकी के संयोजन में फसलें, जैसे पेड़ और फसलें एक ही खेत में उगाना।
रोटेशनल क्रॉपिंग (Rotational Cropping): एक ही क्षेत्र में समय-समय पर विभिन्न फसलों का अनुक्रम, जैसे गेंहू और चावल का परिवर्तन।
ये प्रणालियाँ भूमि उपयोग को बेहतर बनाती हैं और संसाधनों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करती हैं।
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