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भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच फलता-फूलता संबंध भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण भाग बन गया है। परीक्षण कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच फलता-फूलता संबंध: एक परीक्षण भारत और लैटिन अमेरिका के बीच संबंध हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण रूप से मजबूत हुए हैं, जो भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं: आर्थिक और व्यापारिक सहयोग: भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच व्यापारिक संबंध बढ़ रहे हैं।Read more
भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच फलता-फूलता संबंध: एक परीक्षण
भारत और लैटिन अमेरिका के बीच संबंध हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण रूप से मजबूत हुए हैं, जो भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं:
इन पहलुओं से स्पष्ट है कि भारत और लैटिन अमेरिका के देशों के बीच बढ़ते संबंध भारत की विदेश नीति के लिए एक महत्वपूर्ण और लाभकारी रणनीति बन गए हैं।
See less"भारत के इज़राइल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।" विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
भारत-इज़राइल संबंधों की गहराई और विविधता संबंधों की गहराई: भारत और इज़राइल के संबंध हाल के वर्षों में एक नई गहराई और विविधता प्राप्त कर चुके हैं। दोनों देशों ने 1992 में आधिकारिक राजनैतिक संबंध स्थापित किए, और तब से उनके सहयोग का दायरा व्यापक हुआ है। रक्षा सहयोग: भारत और इज़राइल के बीच रक्षा और सुरकRead more
भारत-इज़राइल संबंधों की गहराई और विविधता
संबंधों की गहराई: भारत और इज़राइल के संबंध हाल के वर्षों में एक नई गहराई और विविधता प्राप्त कर चुके हैं। दोनों देशों ने 1992 में आधिकारिक राजनैतिक संबंध स्थापित किए, और तब से उनके सहयोग का दायरा व्यापक हुआ है।
उपसंहार: भारत और इज़राइल के बीच बढ़ते संबंधों ने दोनों देशों के लिए रणनीतिक, आर्थिक, और तकनीकी सहयोग को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। इन संबंधों की गहराई और विविधता ने इसे एक मजबूत और स्थायी साझेदारी बना दिया है, जिसकी पुनर्वापसी मुश्किल है।
See less'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिए किसी ऐसे स्थान की खोज करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
भारत और यूनाइटेड स्टेट्स (अमेरिका) के बीच संबंधों में खटास का एक मुख्य कारण यह है कि वाशिंगटन अपनी वैश्विक रणनीति में भारत को ऐसा स्थान प्रदान करने में विफल रहा है जो भारत के आत्म-सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से संतुष्ट कर सके। इस विषय पर विचार करते हुए, निम्नलिखित बिंदुओं और उदाहरणों के माRead more
भारत और यूनाइटेड स्टेट्स (अमेरिका) के बीच संबंधों में खटास का एक मुख्य कारण यह है कि वाशिंगटन अपनी वैश्विक रणनीति में भारत को ऐसा स्थान प्रदान करने में विफल रहा है जो भारत के आत्म-सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से संतुष्ट कर सके। इस विषय पर विचार करते हुए, निम्नलिखित बिंदुओं और उदाहरणों के माध्यम से इसे स्पष्ट किया जा सकता है:
1. अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताएँ:
अमेरिका ने अपनी वैश्विक रणनीति में कई बार चीन को एक प्रमुख प्रतिस्पर्धी के रूप में देखा है। इसके परिणामस्वरूप, भारत को अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं में अपेक्षित स्थान नहीं मिल सका। डिफेंस और सुरक्षा सहयोग के बावजूद, अमेरिका ने भारत के साथ एक व्यापक स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप स्थापित करने में धीमी गति दिखाई है, जिससे भारत की महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से साकार नहीं किया जा सका।
2. व्यापारिक विवाद:
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक विवादों ने भी संबंधों में खटास का योगदान किया है। उदाहरण के लिए, ट्रेड पॉलिसी और शुल्क के मुद्दों पर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद रहे हैं। अमेरिका ने भारत के व्यापारिक नीतियों और संरक्षणवादी दृष्टिकोण पर आलोचना की है, जिससे व्यापारिक रिश्तों में तनाव उत्पन्न हुआ है।
3. आंतरराष्ट्रीय मंच पर भिन्न दृष्टिकोण:
भारत और अमेरिका के बीच अंतरराष्ट्रीय मंच पर भिन्न दृष्टिकोण भी खटास का कारण बने हैं। परमाणु संधि, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विभिन्न दृष्टिकोणों के कारण भारत को अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत की सदस्यता के लिए अमेरिका का समर्थन ठोस नहीं रहा है, जिससे भारत की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में बाधा आई है।
4. अमेरिकी रणनीति की सीमाएँ:
अमेरिका की वैश्विक रणनीति में भारत के लिए विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान की कमी ने भारत को नाराज किया है। अमेरिका ने साल 2021 में अफगानिस्तान से अपनी वापसी के दौरान भारत की चिंताओं और प्राथमिकताओं को पूरी तरह से नहीं समझा, जिससे भारत की सुरक्षा चिंताओं की अनदेखी हुई।
5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में असंतोष:
क्लाइमेट चेंज और इंटेलिजेंस शेरिंग जैसे महत्वपूर्ण मामलों में भी भारत को पर्याप्त सहयोग नहीं मिला। इसने भारत को असंतुष्ट किया है और अमेरिका के साथ उसके संबंधों में खटास को बढ़ाया है।
इस प्रकार, अमेरिका की वैश्विक रणनीति में भारत को उचित स्थान प्रदान करने में विफलता के कारण भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में खटास आई है। भारत की आत्म-सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, अमेरिका को अपनी नीति और सहयोग में बदलाव करना होगा।
See less'भारत और जापान के लिए लिए समय आ गया है कि एक ऐसे मजबूत समसामयिक संबंध का निर्माण करें, जिसका वैश्विक एवं रणनीतिक साझेदारी को आवेष्टित करते हुए एशिया एवं सम्पूर्ण विश्व के लिए बड़ा महत्व होगा।' टिप्पणी कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
भारत और जापान के लिए एक मजबूत समसामयिक संबंध निर्माण का समय आ गया है, जो वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को सशक्त करेगा। इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं: 1. भूराजनीतिक सामंजस्य: भारत और जापान की भूराजनीतिक स्थिति और साझा रणनीतिक हितों के कारण, दोनों देशों के बीच सहयोग एशिया के स्थायित्व और सुरक्षा को बढ़ावाRead more
भारत और जापान के लिए एक मजबूत समसामयिक संबंध निर्माण का समय आ गया है, जो वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को सशक्त करेगा। इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
1. भूराजनीतिक सामंजस्य:
भारत और जापान की भूराजनीतिक स्थिति और साझा रणनीतिक हितों के कारण, दोनों देशों के बीच सहयोग एशिया के स्थायित्व और सुरक्षा को बढ़ावा देगा। चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में, दोनों देशों की साझेदारी क्षेत्रीय और वैश्विक रणनीतिक संतुलन में सहायक हो सकती है।
2. आर्थिक और तकनीकी सहयोग:
भारत और जापान के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग, जैसे कि इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और डिजिटल प्रौद्योगिकी में साझेदारी, दोनों देशों की आर्थिक वृद्धि और समृद्धि में योगदान देगी। जापान के तकनीकी कौशल और भारत के बाजार की आवश्यकता को पूरा करना द्विपक्षीय संबंध को मजबूत करेगा।
3. वैश्विक चुनौतियाँ:
जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, और वैश्विक स्वास्थ्य संकट जैसी समस्याओं पर संयुक्त प्रयास से दोनों देश मिलकर प्रभावी समाधान प्रदान कर सकते हैं।
इस प्रकार, भारत और जापान के लिए एक मजबूत और समसामयिक साझेदारी का निर्माण न केवल द्विपक्षीय संबंधों को सशक्त करेगा बल्कि एशिया और वैश्विक स्थायित्व के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।
See lessभारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है ? हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2020]
भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की तुलना करते समय, यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के साथ भारत के समझौतों की रणनीतिक महत्वता विभिन्न दृष्टिकोण से भिन्न है। खासकर, हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में इन समझौतों की प्रभावशीलता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता हRead more
भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की तुलना करते समय, यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के साथ भारत के समझौतों की रणनीतिक महत्वता विभिन्न दृष्टिकोण से भिन्न है। खासकर, हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में इन समझौतों की प्रभावशीलता को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:
1. भारत-रूस रक्षा समझौतों की विशेषताएँ:
दीर्घकालिक सहयोग: भारत और रूस के बीच रक्षा संबंध लंबे समय से मजबूत हैं। दोनों देशों के बीच कई ऐतिहासिक रक्षा समझौते और सहयोग कार्यक्रम रहे हैं, जैसे कि सस्ते सैन्य उपकरण, तकनीकी हस्तांतरण, और सैन्य प्रशिक्षण।
तकनीकी और सामरिक समर्थन: रूस ने भारत को कई प्रमुख सैन्य उपकरण प्रदान किए हैं, जैसे कि सुखोई-30 विमान और ब्रह्मोस मिसाइल। रूस के साथ रक्षा संबंध भारतीय सेना के लिए प्रौद्योगिकी और सामरिक उपकरणों का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
2. भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की विशेषताएँ:
स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप: भारत और अमेरिका के रक्षा समझौतों में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है। “लौजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA)”, “Communications Compatibility and Security Agreement (COMCASA)”, और “Basic Exchange and Cooperation Agreement (BECA)” जैसे समझौते भारतीय सेना को अमेरिकी सैन्य प्रौद्योगिकी और खुफिया जानकारियों तक पहुँच प्रदान करते हैं।
हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में स्थायित्व: अमेरिका के साथ भारत का रक्षा सहयोग हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में रणनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायक है। अमेरिका और भारत दोनों ही क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। अमेरिका की सशस्त्र बलों की आधुनिक तकनीक और सामरिक सहयोग भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा में महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करता है।
3. तुलना और निष्कर्ष:
रक्षा और सामरिक सहयोग: जबकि भारत-रूस समझौते ऐतिहासिक और तकनीकी सहयोग पर आधारित हैं, भारत-अमेरिका समझौतों ने हाल ही में आधुनिक सैन्य प्रौद्योगिकी, खुफिया सहयोग, और सामरिक गहरी साझेदारी को मजबूत किया है। अमेरिका के साथ समझौतों की रणनीतिक महत्वता इस बात में है कि ये भारत को हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में अपनी स्थिति को सशक्त करने में मदद करते हैं, विशेषकर चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में।
विस्तारित साझेदारी: भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी ने क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जबकि भारत-रूस समझौतों ने दीर्घकालिक सैन्य सहयोग और उपकरणों की आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संक्षेप में, भारत-रूस और भारत-अमेरिका के रक्षा समझौतों की अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ हैं, लेकिन हिन्द-प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में भारत-अमेरिका की साझेदारी का अधिक सामरिक महत्व है।
See lessहाल के घटनाक्रमों से ज्ञात होता है कि कुछ बाधाओं के बावजूद, भारत-भूटान संबंधों में अभी भी निरंतरता बनी हुई हैं। चचों कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
हाल के घटनाक्रमों में भारत-भूटान संबंधों में निरंतरता के कुछ प्रमुख कारण हैं: सुरक्षा और रणनीतिक सहयोग: भूटान की सुरक्षा में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। दोनों देशों के बीच साझा रणनीतिक हित और रक्षा सहयोग मजबूत हैं, विशेषकर चीन के प्रति। आर्थिक सहायता और विकास परियोजनाएं: भारत भूटान को आर्थिक सहायतRead more
हाल के घटनाक्रमों में भारत-भूटान संबंधों में निरंतरता के कुछ प्रमुख कारण हैं:
सुरक्षा और रणनीतिक सहयोग: भूटान की सुरक्षा में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। दोनों देशों के बीच साझा रणनीतिक हित और रक्षा सहयोग मजबूत हैं, विशेषकर चीन के प्रति।
आर्थिक सहायता और विकास परियोजनाएं: भारत भूटान को आर्थिक सहायता प्रदान करता है और विभिन्न विकास परियोजनाओं, जैसे जल विद्युत परियोजनाओं, में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध: भूटान और भारत के बीच गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाते हैं।
राजनीतिक सहयोग: भूटान में भारतीय राजनीतिक प्रभाव और समर्थन लगातार जारी है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता बनी रहती है।
हालांकि, कुछ बाधाओं जैसे कि भूटान की स्वतंत्रता की चिंता और भारत-चीन संबंधों में तनाव मौजूद हैं, लेकिन इन कारणों से संबंधों में निरंतरता बनी रहती है।
See lessदक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में सुरक्षा खतरों के स्वरूप और उनकी बारंबारता में वृद्धि के मद्देनजर, इस क्षेत्र में लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) के संबंध में भारत द्वारा निभाई गई भूमिका पर चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर क्षेत्र, जिसमें लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) शामिल हैं जैसे मालदीव, सेशेल्स, और मॉरीशस, सुरक्षा और पर्यावरणीय खतरों का सामना कर रहा है। इन द्वीपीय देशों को समुद्री अपराध, जलवायु परिवर्तन, और समुद्री संसाधनों के प्रबंधन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारत, एक प्Read more
दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर क्षेत्र, जिसमें लघु द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) शामिल हैं जैसे मालदीव, सेशेल्स, और मॉरीशस, सुरक्षा और पर्यावरणीय खतरों का सामना कर रहा है। इन द्वीपीय देशों को समुद्री अपराध, जलवायु परिवर्तन, और समुद्री संसाधनों के प्रबंधन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारत, एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में, इन देशों के साथ सुरक्षा और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
भारत की भूमिका:
इन प्रयासों के माध्यम से, भारत ने दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा और विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा मिला है।
See lessभारत को पड़ोस प्रथम" नीति को मजबूती प्रदान करने के लिए नेपाल के साथ एक संवेदनशील और उदार भागीदार बनने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में, भारत-नेपाल संबंधों में हालिया बाधाओं का उल्लेख कीजिए और आगे की राह सुझाइए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत-नेपाल संबंधों में हालिया बाधाएँ और भविष्य की दिशा: हालिया बाधाएँ: सीमा विवाद: भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद ने द्विपक्षीय संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है। नेपाल द्वारा 2019 में अपने नए राजनीतिक मानचित्र में भारतीय क्षेत्र कालापानी, लिंपियाधुरा, और लिंपियाधुरा को शामिल करने की घोषणा के बाद सेRead more
भारत-नेपाल संबंधों में हालिया बाधाएँ और भविष्य की दिशा:
हालिया बाधाएँ:
आगे की राह:
निष्कर्ष:
भारत को “पड़ोस प्रथम” नीति के तहत नेपाल के साथ एक संवेदनशील और उदार भागीदार बनने के लिए अपने दृष्टिकोण में सुसंगतता और सावधानी बरतनी चाहिए। सीमा विवाद, राजनीतिक मतभेद और परियोजना की देरी जैसी बाधाओं को पार करने के लिए स्थिरता और सहयोग की ओर कदम बढ़ाना आवश्यक है। यह न केवल द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करेगा, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी बढ़ावा देगा।
See less1962 का भारत-चीन युद्ध अनेक कारकों का परिणाम था जिनके कारण युद्ध हुआ। सविस्तार वर्णन कीजिए। इसके अतिरिक्त, भारत के लिए इस युद्ध के महत्व की विवेचना कीजिए।(250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
**1962 का भारत-चीन युद्ध** कई जटिल कारकों का परिणाम था। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं: 1. **सार्वभौम सीमा विवाद**: भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर ऐतिहासिक मतभेद थे। चीन ने अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश (तिब्बत क्षेत्र में भारतीय हिस्से) को अपने क्षेत्र के रूप में दावा किया, जबकि भारत ने इन क्षेत्रोRead more
**1962 का भारत-चीन युद्ध** कई जटिल कारकों का परिणाम था। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
1. **सार्वभौम सीमा विवाद**: भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर ऐतिहासिक मतभेद थे। चीन ने अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश (तिब्बत क्षेत्र में भारतीय हिस्से) को अपने क्षेत्र के रूप में दावा किया, जबकि भारत ने इन क्षेत्रों को अपनी संप्रभुता का हिस्सा माना।
2. **तिब्बत पर चीनी नियंत्रण**: 1950 में तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद, भारत ने तिब्बती शरणार्थियों को आश्रय दिया और तिब्बत के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया, जिससे चीन असंतुष्ट था।
3. **कश्मीर मुद्दा**: भारत ने कश्मीर पर चीन के दावे को स्वीकार नहीं किया और इसका समर्थन किया कि यह भारत का हिस्सा है, जिससे चीन ने नाराजगी व्यक्त की।
4. **सीमावर्ती सड़क निर्माण**: चीन ने अक्साई चिन में सड़क निर्माण शुरू किया, जो भारत के लिए सुरक्षा खतरा था। भारत ने इसका विरोध किया, जिससे तनाव बढ़ा।
5. **अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य**: युद्ध के समय में, चीन ने भारत को पश्चिमी समर्थन की उम्मीद के चलते अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की।
**भारत के लिए युद्ध के महत्व**:
1. **सुरक्षा और रणनीतिक सीख**: युद्ध ने भारत को सीमा सुरक्षा और सैन्य रणनीति में सुधार की आवश्यकता का एहसास कराया। इसे देखते हुए, भारत ने अपने सैन्य बलों की ताकत और सीमा बुनियादी ढांचे में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया।
2. **राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव**: युद्ध ने भारत की विदेश नीति को पुनः परिभाषित किया और नेहरू की कूटनीतिक दृष्टिकोण में बदलाव लाया। भारत ने चीन के साथ संबंधों को संतुलित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सक्रिय भागीदारी की।
3. **सार्वभौम मुद्दों का समाधान**: इस युद्ध के परिणामस्वरूप, भारत ने सीमा मुद्दों के समाधान के लिए चीन के साथ बातचीत और समझौतों की प्रक्रिया को महत्व देना शुरू किया।
4. **सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव**: युद्ध ने भारतीय जनता में राष्ट्रवाद और सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाई, और इसे भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक अनुभव के रूप में देखा गया।
इस प्रकार, 1962 का भारत-चीन युद्ध केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि यह भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और सामरिक सोच के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
See less'भारत श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है।' पूर्ववर्ती कथन के आलोक में श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत की भूमिका की विवेचना कीजिए । (150 words)[UPSC 2022]
"भारत श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है" इस कथन के आलोक में, भारत ने श्रीलंका के वर्तमान संकट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। श्रीलंका की गंभीर आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता के दौरान, भारत ने अपनी दोस्ती को साकार करते हुए मानवीय सहायता प्रदान की है। इसमें खाद्य सामग्री, दवाइयाँ और वित्तीय मदद शामिल हैRead more
“भारत श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है” इस कथन के आलोक में, भारत ने श्रीलंका के वर्तमान संकट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। श्रीलंका की गंभीर आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता के दौरान, भारत ने अपनी दोस्ती को साकार करते हुए मानवीय सहायता प्रदान की है। इसमें खाद्य सामग्री, दवाइयाँ और वित्तीय मदद शामिल हैं।
भारत ने न केवल तात्कालिक राहत दी बल्कि आर्थिक सुधार और ऋण पुनरसंरचना के लिए भी समर्थन किया। इसके अतिरिक्त, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर श्रीलंका की स्थिति को उजागर करने और वैश्विक समर्थन प्राप्त करने के प्रयास किए।
इस प्रकार, भारत की भूमिका श्रीलंका के संकट को समझने और हल करने में महत्वपूर्ण रही है, जो दोनों देशों के बीच गहरी मित्रता और क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में एक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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