Home/upsc: dvipakshiy sambandh
- Recent Questions
- Most Answered
- Answers
- No Answers
- Most Visited
- Most Voted
- Random
- Bump Question
- New Questions
- Sticky Questions
- Polls
- Followed Questions
- Favorite Questions
- Recent Questions With Time
- Most Answered With Time
- Answers With Time
- No Answers With Time
- Most Visited With Time
- Most Voted With Time
- Random With Time
- Bump Question With Time
- New Questions With Time
- Sticky Questions With Time
- Polls With Time
- Followed Questions With Time
- Favorite Questions With Time
भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पश्चिम एशियाई देशों के साथ सहयोग परिचय भारत की ऊर्जा सुरक्षा उसकी आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता और विविधता भारत के औद्योगिक विकास और समग्र आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग में महत्वपूRead more
भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पश्चिम एशियाई देशों के साथ सहयोग
परिचय भारत की ऊर्जा सुरक्षा उसकी आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता और विविधता भारत के औद्योगिक विकास और समग्र आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पश्चिम एशिया की रणनीतिक महत्वता पश्चिम एशिया, विशेषकर सऊदी अरब, यूएई, और ईरान, ऊर्जा संसाधनों से भरपूर क्षेत्र है। भारत की तेल की 80% से अधिक आवश्यकता इन देशों से पूरी होती है। इस पर निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा की रणनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
द्विपक्षीय समझौते और निवेश भारत ने ऊर्जा सुरक्षा के लिए कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं:
हालिया विकास 2023 में भारत और ईरान ने चाबहार पोर्ट परियोजना पर चर्चा फिर से शुरू की, जो ऊर्जा व्यापार के लिए बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, भारत-यूएई स्ट्रैटेजिक ऑइल रिजर्व्स एग्रीमेंट भारत को आपातकालीन परिस्थितियों में तेल भंडार बनाए रखने में मदद करता है।
चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ हालांकि सहयोग मजबूत है, ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंध जैसी भौगोलिक तनावों से चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। भविष्य में, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के अवसरों की खोज की जाएगी।
निष्कर्ष पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत का ऊर्जा नीति सहयोग ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आर्थिक विकास को समर्थन प्रदान करता है। रणनीतिक समझौते और निवेश इस सहयोग को और अधिक प्रभावी बनाते हैं, जबकि क्षेत्रीय चुनौतियों को भी ध्यान में रखते हैं।
See lessदक्षिण चीन सागर के मामले में, समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ता हुआ तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करतें हैं। इस सन्दर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है जहाँ समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ते तनाव ने नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता की सुरक्षा की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट किया है। इस संदर्भ में, भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं। दक्षिण चीन सागर के विवाद दक्षिण चीन सागरRead more
परिचय
दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है जहाँ समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ते तनाव ने नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता की सुरक्षा की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट किया है। इस संदर्भ में, भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं।
दक्षिण चीन सागर के विवाद
दक्षिण चीन सागर में चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स, मलेशिया और ब्रुनेई के बीच भूभागीय दावे हैं। चीन की नाइन-डैश लाइन के आधार पर सम्पूर्ण सागर पर दावा, क्षेत्र में मिलिटरीकरण और संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है। यह स्थिति समुद्री सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों की स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करती है।
भारत और चीन के द्विपक्षीय मुद्दे
हालांकि भारत सीधे दक्षिण चीन सागर विवाद में शामिल नहीं है, लेकिन द्विपक्षीय मुद्दे महत्वपूर्ण हैं:
सहयोग और संवाद
दोनों देशों ने तनाव प्रबंधन के लिए BRICS शिखर सम्मेलन और अनौपचारिक शिखर बैठकों जैसी पहल की हैं। भारत और चीन ने समुद्री सुरक्षा और नौपरिवहन की स्वतंत्रता की पुष्टि की है, जो उनके अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप है।
निष्कर्ष
दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता को स्पष्ट करते हैं। भारत और चीन के द्विपक्षीय मुद्दों के बावजूद, सहयोग और संवाद इन विवादों को प्रबंधित करने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं।
See lessआतंकवादी गतिविधियों और परस्पर अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल बना दिया है। खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदानों जैसी मृदु शक्ति किस सीमा तक दोनों देशों के बीच सद्भाव उत्पन्न करने में सहायक हो सकती है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
भारत-पाकिस्तान के बीच आतंकवादी गतिविधियाँ और परस्पर अविश्वास ने संबंधों को जटिल बना दिया है। हालांकि, खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी मृदु शक्ति इस तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। खेलों के माध्यम से आपसी समझ और दोस्ती को बढ़ावा देने की कई उदाहरण हैं। 1986 के विश्व कप क्रिकेटRead more
भारत-पाकिस्तान के बीच आतंकवादी गतिविधियाँ और परस्पर अविश्वास ने संबंधों को जटिल बना दिया है। हालांकि, खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी मृदु शक्ति इस तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
खेलों के माध्यम से आपसी समझ और दोस्ती को बढ़ावा देने की कई उदाहरण हैं। 1986 के विश्व कप क्रिकेट के दौरान, भारत और पाकिस्तान के बीच खेला गया मैच केवल खेल नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी माध्यम था। दोनों देशों के प्रशंसक मैच देखने के लिए उत्साहित थे, और यह घटना दो देशों के बीच सकारात्मक संवाद का एक संकेत बनी।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी महत्वपूर्ण है। 2006 में, भारत और पाकिस्तान के बीच लाहौर और दिल्ली में आयोजित कला और संगीत महोत्सवों ने दोनों देशों के कलाकारों को एक मंच पर लाकर सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किया।
इन गतिविधियों से लोगों के बीच सामाजिक और भावनात्मक संबंधों को प्रोत्साहन मिलता है, जो कि सरकारी नीतियों से परे एक सामान्य जनसमर्थन उत्पन्न कर सकते हैं। इस प्रकार, मृदु शक्ति के माध्यम से दोनों देशों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना संभव है।
See lessपरियोजना 'मौसम' को भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
परियोजना 'मौसम': एक रणनीतिक आयाम परिचय: परियोजना 'मौसम' 2014 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है, जिसका उद्देश्य समुद्री सहयोग को बढ़ाना और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना है। यह परियोजना भारत की रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो ऐतिहासिक समुद्री संबंधों का लाभ उठाकर क्षेत्रीय कूRead more
परियोजना ‘मौसम’: एक रणनीतिक आयाम
परिचय: परियोजना ‘मौसम’ 2014 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है, जिसका उद्देश्य समुद्री सहयोग को बढ़ाना और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना है। यह परियोजना भारत की रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो ऐतिहासिक समुद्री संबंधों का लाभ उठाकर क्षेत्रीय कूटनीति और सुरक्षा को मजबूत करना चाहती है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कूटनीति: परियोजना ‘मौसम’ का ध्यान प्राचीन समुद्री मार्गों को पुनर्जीवित करने और भारतीय महासागर क्षेत्र (IOR) के देशों के साथ सांस्कृतिक संबंधों को प्रोत्साहित करने पर है। उदाहरण के लिए, श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ हालिया सांस्कृतिक आदान-प्रदान इस परियोजना की ऐतिहासिक बंधनों को मजबूत करने की भूमिका को दर्शाते हैं।
रणनीतिक और आर्थिक आयाम: रणनीतिक आयाम: इस परियोजना में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक आयाम है, क्योंकि इसका उद्देश्य भारत की समुद्री हितों को सुरक्षित करना और चीन की बढ़ती प्रभाव को संतुलित करना है। सेशेल्स और मॉरीशस के साथ भारत की भागीदारी इसका एक उदाहरण है, जो समुद्री सुरक्षा साझेदारी और महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की पहुंच को मजबूत करने की दिशा में है।
आर्थिक सहयोग: परियोजना आर्थिक कनेक्टिविटी को बढ़ावा देती है, जैसे म्यांमार और थाईलैंड के साथ पोर्ट विकास और व्यापार को बढ़ावा देने के प्रयास। यह क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष: परियोजना ‘मौसम’ ऐतिहासिक और रणनीतिक आयामों को प्रभावी ढंग से जोड़ती है, जिससे भारत को क्षेत्रीय समुद्री मामलों में एक सक्रिय खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह पहल न केवल कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करती है, बल्कि समकालीन रणनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का समाधान भी प्रस्तुत करती है।
See lessअफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि: सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष सकारात्मक पक्ष: आर्थिक अवसर: भारत की अफ्रीका में बढ़ती रुचि ने कई आर्थिक अवसर प्रदान किए हैं। उदाहरण के लिए, भारत ने 2023 में नाइजीरिया और केन्या के ऊर्जा क्षेत्र में बड़े निवेश किए हैं। भारत-अफ्रीका व्यापार मंच और द्विपक्षीय व्यापार मेRead more
अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रुचि: सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष
सकारात्मक पक्ष:
नकारात्मक पक्ष:
निष्कर्ष: अफ्रीका में भारत की बढ़ती रुचि के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं। आर्थिक, रणनीतिक और शैक्षिक लाभ के साथ-साथ भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, संसाधन निर्भरता और स्थानीय विरोध के जोखिम भी जुड़े हैं। इन पहलुओं को संतुलित करना भारत की अफ्रीका के साथ बढ़ती हुई साझेदारी की सफलता के लिए आवश्यक है।
See lessपाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का अनावरण भारत के लिए, विशेष रूप से हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से, महत्वपूर्ण प्रश्न प्रस्तुत करता है। चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
पाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का अनावरण भारत के लिए कई महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रश्न प्रस्तुत करता है: आतंकवाद की नीति: पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में आतंकवाद के प्रति अपनाए गए दृष्टिकोण का प्रभाव भारत पर सीधा पड़ता है। यदि पाकिस्तान ने आतंकवादी समूहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का आश्वासन नहीं दिया, तो भारतRead more
पाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति का अनावरण भारत के लिए कई महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रश्न प्रस्तुत करता है:
आतंकवाद की नीति: पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में आतंकवाद के प्रति अपनाए गए दृष्टिकोण का प्रभाव भारत पर सीधा पड़ता है। यदि पाकिस्तान ने आतंकवादी समूहों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का आश्वासन नहीं दिया, तो भारत के लिए सीमा पर और आतंकवादी गतिविधियों की बढ़ती चुनौतियाँ हो सकती हैं।
क्षेत्रीय असंतुलन: पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में भारतीय सीमा के साथ संघर्ष प्रबंधन या कश्मीर पर दृष्टिकोण भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा सकता है। नीति में भारत के प्रति संभावित आक्रामक या सामरिक रणनीतियाँ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।
सैन्य क्षमता और सहयोग: पाकिस्तान की नई नीति में सैन्य क्षमता में वृद्धि या अंतरराष्ट्रीय सहयोग की संभावनाएँ भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, विशेषकर यदि इससे पाकिस्तान की सेना की आक्रामक क्षमता में वृद्धि होती है।
इन पहलुओं के कारण, भारत को पाकिस्तान की सुरक्षा नीति पर करीबी निगरानी रखनी होगी और अपनी रणनीतियों को सुसंगत रूप से अनुकूलित करना होगा।
See lessयू.एस.ए. और रूस के बीच स्पष्ट तनाव के बावजूद, भारत अब तक अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए दोनों देशों के साथ अपने अनुकूल द्विपक्षीय संबंधों को सफलतापूर्वक बनाए रखने में सक्षम रहा है। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
यू.एस.ए. और रूस के बीच स्पष्ट तनाव के बावजूद, भारत ने अपनी रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों के साथ मजबूत और संतुलित द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। भारत की यह कूटनीतिक सफलताएँ उसके बहुपरकारी विदेश नीति और रणनीतिक संतुलन की क्षमताओं को दर्शाती हैं।Read more
यू.एस.ए. और रूस के बीच स्पष्ट तनाव के बावजूद, भारत ने अपनी रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों के साथ मजबूत और संतुलित द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। भारत की यह कूटनीतिक सफलताएँ उसके बहुपरकारी विदेश नीति और रणनीतिक संतुलन की क्षमताओं को दर्शाती हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध: भारत और अमेरिका के बीच संबंध पिछले दो दशकों में काफी मजबूत हुए हैं, विशेषकर व्यापार, रक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग में। भारत और अमेरिका ने कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जैसे कि नागरिक परमाणु समझौता और रक्षा साझेदारी। इन समझौतों ने व्यापार और निवेश के क्षेत्र में वृद्धि की है और भारत को अमेरिका के रक्षा प्रौद्योगिकी और सुरक्षा सहयोग का लाभ मिला है। अमेरिका की “प्रो-इंडिया” नीति भी भारत के वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ करती है, खासकर Indo-Pacific क्षेत्र में।
रूस के साथ संबंध: भारत और रूस के बीच भी ऐतिहासिक और मजबूत रिश्ते हैं, विशेषकर रक्षा क्षेत्र में। रूस ने भारत को सैन्य उपकरण और प्रौद्योगिकी की आपूर्ति की है, जो भारतीय सुरक्षा नीति के लिए महत्वपूर्ण है। दोनों देशों ने कई प्रमुख रक्षा सौदे किए हैं, और रूस भारत का प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। इसके अलावा, भारत और रूस की साझेदारी संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी महत्वपूर्ण रही है, जहां दोनों देशों ने अक्सर एक दूसरे का समर्थन किया है।
भारत की कूटनीति: भारत ने इन दोनों शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा की है। भारत की विदेश नीति की बहुपरकारी दृष्टि ने उसे अमेरिका और रूस दोनों के साथ अनुकूल संबंध बनाए रखने में सक्षम बनाया है, जिससे भारत ने वैश्विक कूटनीतिक खेल में अपनी भूमिका को मजबूती प्रदान की है।
इस तरह, भारत ने यू.एस.ए. और रूस के बीच बढ़ते तनाव के बावजूद अपने कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन करते हुए दोनों देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती से बनाए रखा है।
See lessचीन-रूस के बीच गहरे होते रणनीतिक संबंधों को कुछ लोगों ने 'विश्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अघोषित गठबंधन' के रूप में वर्णित किया है। यह गठबंधन भारत के राष्ट्रीय हित को कैसे प्रभावित कर सकता है? भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए क्या रणनीति अपनानी चाहिए? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
चीन और रूस के बीच गहरे होते रणनीतिक संबंध, जिन्हें 'विश्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अघोषित गठबंधन' कहा जाता है, भारत के राष्ट्रीय हितों पर कई तरह से प्रभाव डाल सकते हैं। भारत पर प्रभाव: सुरक्षा और सैन्य दबाव: चीन और रूस के रणनीतिक साझेदारी के कारण, भारत को द्वीपक्षीय या बहुपक्षीय सैन्य दबाव का सामना कRead more
चीन और रूस के बीच गहरे होते रणनीतिक संबंध, जिन्हें ‘विश्व में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अघोषित गठबंधन’ कहा जाता है, भारत के राष्ट्रीय हितों पर कई तरह से प्रभाव डाल सकते हैं।
भारत पर प्रभाव:
सुरक्षा और सैन्य दबाव: चीन और रूस के रणनीतिक साझेदारी के कारण, भारत को द्वीपक्षीय या बहुपक्षीय सैन्य दबाव का सामना करना पड़ सकता है। विशेष रूप से, चीन के साथ भारत की सीमा पर तनाव और रूस की सैन्य सहायता से चीनी सैन्य क्षमताओं में वृद्धि हो सकती है।
भूराजनीतिक परिदृश्य: रूस का समर्थन प्राप्त करने के कारण, चीन को भूराजनीतिक मोर्चे पर अधिक प्रभावी बनने का अवसर मिल सकता है। इससे भारत की वैश्विक स्थिति और क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है, विशेषकर दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में।
आर्थिक और रणनीतिक सहयोग: चीन और रूस के बीच गहरे आर्थिक और रणनीतिक सहयोग से भारत की व्यापारिक और आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विशेषकर ऊर्जा, रक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
भारत की रणनीति:
मजबूत रणनीतिक साझेदारी: भारत को अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी विकसित करनी चाहिए। इससे क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों को संतुलित किया जा सकेगा और चीन के प्रभाव को कम किया जा सकेगा।
सैन्य और सुरक्षा वृद्धि: भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं को सुधारना और आधुनिक उपकरणों के साथ अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाना चाहिए, ताकि वह संभावित सुरक्षा खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सके।
आर्थिक विविधता: भारत को अपनी आर्थिक नीतियों में विविधता लानी चाहिए और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के उपायों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे भारत को वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा में मजबूत स्थिति मिल सकेगी।
राजनयिक प्रयास: भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर सक्रिय रहकर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी चाहिए। रणनीतिक संवाद और कूटनीति के माध्यम से वैश्विक समर्थन जुटाना भी महत्वपूर्ण है।
इन रणनीतियों को अपनाकर भारत चीन-रूस के रणनीतिक गठबंधन के संभावित प्रभावों का प्रभावी ढंग से सामना कर सकता है और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है।
See lessभारत और उसके पड़ोसियों के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थल के रूप में स्थापित होने से पहले, भारत को अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र की आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थल के रूप में स्थापित करने से पहले, भारत को इस क्षेत्र की आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। यह क्षेत्र, जो भारत के सात राज्यों को शामिल करता है, रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है लेकिन विभिन्न समस्याओं काRead more
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थल के रूप में स्थापित करने से पहले, भारत को इस क्षेत्र की आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की अंतर्निहित चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। यह क्षेत्र, जो भारत के सात राज्यों को शामिल करता है, रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है लेकिन विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहा है।
आंतरिक चुनौतियाँ:
बाहरी चुनौतियाँ:
उपसंहार:
पूर्वोत्तर क्षेत्र की आंतरिक और बाहरी चुनौतियों को सुलझाना भारत के लिए महत्वपूर्ण है ताकि इसे एक प्रभावशाली संपर्क स्थल के रूप में स्थापित किया जा सके। यह न केवल क्षेत्रीय विकास और सुरक्षा में सुधार लाएगा, बल्कि भारत की रणनीतिक और आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करेगा। सही नीतियों और रणनीतियों के साथ, भारत पूर्वोत्तर क्षेत्र की पूर्ण संभावनाओं को साकार कर सकता है।
See lessऋण-जाल कूटनीति क्या है? चीन की ऋण-जाल कूटनीति भारत के पड़ोस में भारतीय हितों को कैसे प्रभावित करती है? (150 शब्दों में उत्तर दें)
ऋण-जाल कूटनीति (Debt-Trap Diplomacy) एक रणनीति है जिसका उपयोग देश ऋण देने वाले देश करते हैं ताकि उधार लेने वाले देश को आर्थिक रूप से निर्भर और कमजोर किया जा सके। इसमें, देश बड़े पैमाने पर ऋण प्रदान करते हैं, लेकिन जब उधारकर्ता ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाता है, तो वह अपनी संसाधन या सम्पत्ति के बदले ऋणRead more
ऋण-जाल कूटनीति (Debt-Trap Diplomacy) एक रणनीति है जिसका उपयोग देश ऋण देने वाले देश करते हैं ताकि उधार लेने वाले देश को आर्थिक रूप से निर्भर और कमजोर किया जा सके। इसमें, देश बड़े पैमाने पर ऋण प्रदान करते हैं, लेकिन जब उधारकर्ता ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाता है, तो वह अपनी संसाधन या सम्पत्ति के बदले ऋण देने वाले देश के नियंत्रण में चला जाता है।
चीन की ऋण-जाल कूटनीति भारत के पड़ोसी देशों में भारतीय हितों को प्रभावित कर सकती है। उदाहरण के लिए, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों में चीन द्वारा बड़े पैमाने पर ऋण दिए गए हैं। जब ये देश ऋण चुकाने में विफल रहते हैं, तो चीन को प्रमुख सामरिक और आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण मिल जाता है। इससे भारत के पड़ोसी देशों में चीन का प्रभाव बढ़ता है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा और रणनीतिक संतुलन पर असर पड़ता है।
See less