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भारत अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के साथ अपने दृष्टिकोण में अब 'केवल द्विपक्षवाद' के लिए प्रतिबद्ध नहीं है। विवंचना कीजिए। साथ ही, इस क्षेत्र में प्रभावी सहयोग से संबंधित चुनौतियों को भी रेखांकित कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत का दृष्टिकोण दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के साथ अब केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय सहयोग और बहुपरकारीकता की दिशा में भी प्रगति कर रहा है। इस दृष्टिकोण की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: **विवेचना:** 1. **सार्क और अन्य क्षेत्रीय संगठन**: भारत नेRead more
भारत का दृष्टिकोण दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के साथ अब केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय सहयोग और बहुपरकारीकता की दिशा में भी प्रगति कर रहा है। इस दृष्टिकोण की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
**विवेचना:**
1. **सार्क और अन्य क्षेत्रीय संगठन**: भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) जैसे क्षेत्रीय संगठनों में सक्रिय भूमिका निभाई है। हालांकि, सार्क की प्रभावशीलता सीमित रही है, भारत ने क्षेत्रीय एकता और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए इसकी मजबूती के प्रयास किए हैं। साथ ही, भारत ने बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) और कलापी (Kolkata-Lhasa Agreement for Political and Economic Cooperation) जैसे अन्य बहुपरकारीक संगठन में भी सक्रियता दिखाई है।
2. **मूलभूत ढांचे में निवेश**: भारत ने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए सड़क, रेल, और समुद्री मार्गों में निवेश किया है। विशेषकर, ‘सागा’ (South Asian Growth Alliance) और ‘नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान’ के तहत पड़ोसी देशों में बुनियादी ढांचे का विकास भारत की प्राथमिकता है।
3. **सामाजिक और मानवाधिकार पहल**: भारत ने पड़ोसी देशों में सामाजिक और मानवाधिकार समस्याओं के समाधान के लिए सहयोग को बढ़ावा दिया है। उदाहरण स्वरूप, नेपाल में भूकंप राहत और पुनर्निर्माण में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
**चुनौतियाँ:**
1. **राजनीतिक अस्थिरता और द्विपक्षीय विवाद**: क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता और द्विपक्षीय विवाद (जैसे भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद) प्रभावी सहयोग में बाधक बने हुए हैं। इन विवादों ने क्षेत्रीय सहयोग को जटिल बना दिया है।
2. **आर्थिक विषमताएँ**: दक्षिण एशिया में आर्थिक विषमताएँ भी एक चुनौती हैं। गरीब और विकासशील देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए भारत को इनके विकासात्मक मुद्दों को संबोधित करना पड़ता है।
3. **भाषायी और सांस्कृतिक विविधता**: क्षेत्रीय सांस्कृतिक और भाषायी विविधता के कारण समन्वय और सहयोग में कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। एकीकृत दृष्टिकोण और समन्वय की कमी से सामूहिक प्रयास प्रभावित होते हैं।
4. **सुरक्षा और आतंकवाद**: क्षेत्रीय सुरक्षा समस्याएँ और आतंकवाद की घटनाएँ भी प्रभावी सहयोग के लिए बाधा बनती हैं। आतंकवादी गतिविधियाँ और सीमा पार हिंसा क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालती हैं।
इन चुनौतियों के बावजूद, भारत का दृष्टिकोण अब क्षेत्रीय सहयोग और बहुपरकारीकता की ओर उन्मुख है, जो दक्षिण एशिया में स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के प्रयासों का हिस्सा है।
See lessचूंकि भारत अपने पड़ोस की पुनः कल्पना कर रहा है, इसलिए उप-क्षेत्रों के माध्यम से सीमा पार कनेक्टिविटी तेजी से महत्वपूर्ण होती जा रही है। विश्लेषण कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत के पड़ोस की पुनः कल्पना करते हुए सीमा पार कनेक्टिविटी उप-क्षेत्रों के माध्यम से एक महत्वपूर्ण रणनीति बनती जा रही है। दक्षिण एशिया में भारत की भौगोलिक स्थिति उसे एक केंद्रीय भूमिका प्रदान करती है, जो कि न केवल आर्थिक विकास के लिए बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए भी आवश्यक है। सीमाRead more
भारत के पड़ोस की पुनः कल्पना करते हुए सीमा पार कनेक्टिविटी उप-क्षेत्रों के माध्यम से एक महत्वपूर्ण रणनीति बनती जा रही है। दक्षिण एशिया में भारत की भौगोलिक स्थिति उसे एक केंद्रीय भूमिका प्रदान करती है, जो कि न केवल आर्थिक विकास के लिए बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए भी आवश्यक है।
सीमा पार कनेक्टिविटी के माध्यम से भारत उप-क्षेत्रों में व्यापार, परिवहन, ऊर्जा, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है। **बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, और म्यांमार** के साथ सड़क, रेल, और जलमार्ग कनेक्टिविटी परियोजनाएँ इन देशों के साथ भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ कर रही हैं। उदाहरण के लिए, **बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर व्हीकल एग्रीमेंट** और **बिम्सटेक (BIMSTEC)** जैसे क्षेत्रीय मंच, जो दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों को जोड़ते हैं, सीमा पार कनेक्टिविटी को बढ़ावा दे रहे हैं।
**पूर्वोत्तर भारत** के संदर्भ में, म्यांमार के माध्यम से **थाईलैंड और अन्य आसियान देशों** तक कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना भारत के “एक्ट ईस्ट” नीति का हिस्सा है, जो आर्थिक विकास के साथ-साथ क्षेत्रीय सुरक्षा को भी मजबूत करता है। इसके अलावा, **चाबहार बंदरगाह** के विकास के माध्यम से अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाना भारत के भू-राजनीतिक हितों को सुदृढ़ करता है, विशेषकर चीन के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में।
इन प्रयासों से न केवल आर्थिक लाभ होगा, बल्कि भारत को अपने पड़ोस में एक विश्वसनीय और प्रभावी भागीदार के रूप में स्थापित करने में भी मदद मिलेगी। सीमा पार कनेक्टिविटी उप-क्षेत्रों के माध्यम से भारत की रणनीतिक सोच का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो पूरे क्षेत्र में समृद्धि और शांति की दिशा में योगदान करेगा।
See lessयद्यपि भारत-यू.के. के भविष्य के संबंधों के लिए 2030 के रोडमैप का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को पुनर्जीवित करना है, तथापि कुछ ऐसी प्रमुख चुनौतियां विद्यमान हैं जिनका समाधान करने की आवश्यकता है। विश्लेषण कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत-यू.के. 2030 के रोडमैप का उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक मोर्चों पर पुनर्जीवित करना है। इस रोडमैप के तहत, दोनों देशों ने व्यापार, रक्षा, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, और शिक्षा के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया है। हालांकि, इस महत्वाकांक्षी योजना के समक्षRead more
भारत-यू.के. 2030 के रोडमैप का उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक मोर्चों पर पुनर्जीवित करना है। इस रोडमैप के तहत, दोनों देशों ने व्यापार, रक्षा, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य, और शिक्षा के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया है। हालांकि, इस महत्वाकांक्षी योजना के समक्ष कुछ प्रमुख चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें संबोधित करना आवश्यक है।
सबसे पहले, ब्रेक्सिट के बाद यू.के. की बदलती वैश्विक स्थिति और भारत के साथ नए व्यापार समझौते पर असहमति एक बड़ी चुनौती है। यू.के. का ब्रेक्सिट के बाद का आर्थिक पुनर्गठन और भारत की अपनी व्यापार नीतियाँ दोनों के बीच एक व्यापक और संतुलित व्यापार समझौते को जटिल बना रहे हैं।
दूसरा, आव्रजन और वीजा नीतियाँ भी एक संवेदनशील मुद्दा हैं। भारतीय पेशेवरों और छात्रों के लिए वीजा नियमों में सख्ती दोनों देशों के बीच मानव संसाधन और ज्ञान के आदान-प्रदान को बाधित कर सकती है।
तीसरा, औपनिवेशिक इतिहास की छाया भी कभी-कभी द्विपक्षीय वार्ताओं में अप्रत्यक्ष रूप से बाधा बन सकती है। ऐतिहासिक असंतोष और वर्तमान में पुनः जीवित होने वाले मुद्दे, जैसे मुआवजे की मांग, दोनों देशों के बीच संबंधों को तनावपूर्ण बना सकते हैं।
अंत में, भू-राजनीतिक मुद्दे, जैसे चीन का बढ़ता प्रभाव, दोनों देशों के लिए नीति समन्वय में कठिनाइयाँ पैदा कर सकते हैं। भारत-यू.के. के 2030 के रोडमैप की सफलता इन सभी चुनौतियों के समाधान पर निर्भर करेगी। दोनों देशों को एक-दूसरे की संवेदनशीलताओं को समझते हुए एक संतुलित और लचीला दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी।
See lessकुछ चुनौतियों के बावजूद, भारत और बांग्लादेश के बीच आपसी समझ ने दोनों देशों के 'गोल्डन चैप्टर (सुनहरे अध्याय)' को जारी रखा है। विवेचना कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत और बांग्लादेश के संबंधों को 'गोल्डन चैप्टर' के रूप में वर्णित किया जाना उनके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के मजबूत होने का प्रतीक है। दोनों देशों के बीच 1971 के स्वतंत्रता संग्राम से शुरू हुई यह साझेदारी समय के साथ और गहरी हुई है। हालांकि चुनौतियाँ भी मौजूद हैं, जैसे सीमा विवाद, जल बंRead more
भारत और बांग्लादेश के संबंधों को ‘गोल्डन चैप्टर’ के रूप में वर्णित किया जाना उनके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के मजबूत होने का प्रतीक है। दोनों देशों के बीच 1971 के स्वतंत्रता संग्राम से शुरू हुई यह साझेदारी समय के साथ और गहरी हुई है। हालांकि चुनौतियाँ भी मौजूद हैं, जैसे सीमा विवाद, जल बंटवारा, और अप्रवासन के मुद्दे, लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद, आपसी समझ और सहयोग ने द्विपक्षीय संबंधों को सकारात्मक दिशा में बनाए रखा है।
भारत और बांग्लादेश ने जल संसाधनों के प्रबंधन और सीमा सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर समझौतों के माध्यम से आपसी विश्वास को बढ़ाया है। 2015 में, भूमि सीमा समझौता (Land Boundary Agreement) का निष्पादन एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने दशकों पुराने सीमा विवाद को सुलझाया और दोनों देशों के नागरिकों के जीवन को स्थिरता प्रदान की। इसके अलावा, गंगा नदी के जल बंटवारे पर 1996 में हुए समझौते ने जल संबंधी विवादों को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आर्थिक क्षेत्र में, दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और दोनों देशों ने अपने व्यापारिक संबंधों को और मजबूत करने के लिए विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके साथ ही, ऊर्जा सहयोग और कनेक्टिविटी परियोजनाओं ने भी द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती दी है।
सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी, दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंध बने हुए हैं, जो लोगों के बीच आपसी समझ और सहयोग को बढ़ावा देते हैं। यह आपसी समझ ही है जिसने भारत-बांग्लादेश संबंधों के ‘गोल्डन चैप्टर’ को जीवित रखा है, और भविष्य में भी इसे मजबूती से बनाए रखने की संभावना है।
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