चूंकि भारत अपने पड़ोस की पुनः कल्पना कर रहा है, इसलिए उप-क्षेत्रों के माध्यम से सीमा पार कनेक्टिविटी तेजी से महत्वपूर्ण होती जा रही है। विश्लेषण कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत का दक्षिण एशियाई दृष्टिकोण: भारत ने अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में 'केवल द्विपक्षवाद' की पारंपरिक नीति से बाहर जाकर एक समग्र क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाया है। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता, विकास, और सहयोग को बढ़ावा देना है। दृष्टिकोण में बदलाव के कारण: क्षेत्रीय एकता को प्रोRead more
भारत का दक्षिण एशियाई दृष्टिकोण:
भारत ने अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में ‘केवल द्विपक्षवाद’ की पारंपरिक नीति से बाहर जाकर एक समग्र क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाया है। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता, विकास, और सहयोग को बढ़ावा देना है।
दृष्टिकोण में बदलाव के कारण:
- क्षेत्रीय एकता को प्रोत्साहन: भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) के माध्यम से क्षेत्रीय एकता को प्रोत्साहित करने की कोशिश की है, जिसमें व्यापार, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे साझा मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- क्षेत्रीय कनेक्टिविटी: भारत ने बिम्सटेक (BIMSTEC) और मालदीव-भारत भागीदारी जैसे मल्टी-लैटरल संगठनों और परियोजनाओं को प्रोत्साहित किया है, जो दक्षिण एशिया की कनेक्टिविटी और आर्थिक एकता को बढ़ावा देते हैं।
- सामाजिक और आर्थिक विकास: भारत ने अपने पड़ोसी देशों के लिए विकासात्मक सहायता, जैसे बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं और मानव संसाधन विकास, पर जोर दिया है।
चुनौतियाँ:
- भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अड़चनें: कुछ पड़ोसी देशों में भ्रष्टाचार और कमजोर प्रशासनिक प्रणालियाँ सहयोगात्मक परियोजनाओं को प्रभावित करती हैं।
- सार्वजनिक विरोध और राजनीतिक अस्थिरता: क्षेत्रीय परियोजनाओं पर स्थानीय विरोध और राजनीतिक अस्थिरता भारतीय पहलों को बाधित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, नेपाल और श्रीलंका में भारत विरोधी भावनाएँ कई बार सहयोगात्मक प्रयासों में रुकावट डाल चुकी हैं।
- सुरक्षा चिंताएँ और सीमा विवाद: सीमा विवाद और सुरक्षा चिंताएँ, जैसे पाकिस्तान के साथ तनाव, क्षेत्रीय सहयोग की गतिशीलता को प्रभावित कर सकती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: चीन जैसे बाहरी शक्तियों का क्षेत्रीय प्रभाव भी भारत की नीतियों को चुनौती दे सकता है, खासकर आर्थिक और रणनीतिक क्षेत्रों में।
निष्कर्ष:
भारत का क्षेत्रीय दृष्टिकोण केवल द्विपक्षीय रिश्तों से परे जाकर एक समग्र क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है, लेकिन इसके लिए कई प्रशासनिक, राजनीतिक, और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों का समाधान कर के ही भारत दक्षिण एशिया में स्थिरता और विकास को साकार कर सकता है।
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भारत का पड़ोसी क्षेत्र, विशेषकर दक्षिण एशिया, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सीमा पार कनेक्टिविटी की प्रक्रिया को पुनः कल्पित करने के प्रयासों के तहत, भारत विभिन्न उप-क्षेत्रीय पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो आर्थिक विकास, क्षेत्रीय सुरक्षा, और सामाजिक समन्वय कRead more
भारत का पड़ोसी क्षेत्र, विशेषकर दक्षिण एशिया, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सीमा पार कनेक्टिविटी की प्रक्रिया को पुनः कल्पित करने के प्रयासों के तहत, भारत विभिन्न उप-क्षेत्रीय पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो आर्थिक विकास, क्षेत्रीय सुरक्षा, और सामाजिक समन्वय को प्रोत्साहित करते हैं।
पहली चुनौती सीमा पार कनेक्टिविटी में बुनियादी ढांचे की कमी है। भारत ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू की हैं जैसे कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर सड़क और रेल नेटवर्क का विस्तार। ये परियोजनाएं व्यापार और आर्थिक गतिविधियों को सरल बनाती हैं, जो न केवल भारत बल्कि पड़ोसी देशों के लिए भी लाभकारी हैं।
दूसरी चुनौती क्षेत्रीय सुरक्षा की है। सीमा पार कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के साथ-साथ, भारत सुरक्षा मामलों को भी संज्ञान में ले रहा है। इसके लिए, वह बांग्लादेश, नेपाल और भूटान जैसे देशों के साथ सुरक्षा सहयोग को मजबूत कर रहा है ताकि सीमा पार अपराध और आतंकवाद को रोका जा सके।
तीसरी चुनौती क्षेत्रीय एकता को बढ़ावा देना है। भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) और अन्य उप-क्षेत्रीय समूहों के माध्यम से सहयोग को प्रोत्साहित किया है। इसके अलावा, भारत ने “साउथ एशिया गेटवे” जैसे प्रस्तावित कार्यक्रमों के माध्यम से समृद्धि और संपर्क को बढ़ाने की दिशा में कदम उठाए हैं।
इन पहलुओं के माध्यम से, भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ संपर्क और सहयोग को मजबूत कर रहा है, जो न केवल क्षेत्रीय समृद्धि को बढ़ावा देता है बल्कि राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता भी सुनिश्चित करता है।
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