भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की संवैधानिक स्थिति का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
वित्त आयोग के कार्य और राजकोषीय संघवाद में उभरती भूमिका की समीक्षा 1. वित्त आयोग के कार्य: राजस्व वितरण: वित्त आयोग का मुख्य कार्य केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व का वितरण तय करना है। यह आयोग संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठित होता है और राजस्व के साझा अधिकार और वित्तीय संसाधनों की सिफारिश करता है।Read more
वित्त आयोग के कार्य और राजकोषीय संघवाद में उभरती भूमिका की समीक्षा
1. वित्त आयोग के कार्य:
- राजस्व वितरण:
वित्त आयोग का मुख्य कार्य केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व का वितरण तय करना है। यह आयोग संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत गठित होता है और राजस्व के साझा अधिकार और वित्तीय संसाधनों की सिफारिश करता है। - अनुदान और सहायता:
आयोग केंद्र सरकार को राज्यों को वित्तीय सहायता और अनुदान की सिफारिश करता है, जिससे राज्यों को विकासात्मक परियोजनाओं के लिए आवश्यक संसाधन मिल सकें। - वित्तीय अनुशासन:
वित्त आयोग राज्यों के वित्तीय प्रबंधन और सदुपयोग पर सिफारिशें करता है, जिससे राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित हो सके।
2. राजकोषीय संघवाद में उभरती भूमिका की समीक्षा:
- राज्य वित्तीय स्वतंत्रता:
हाल के वर्षों में, 2021-22 के वित्त आयोग ने राज्य वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए कई सिफारिशें की हैं, जिससे राज्यों को अधिक स्वतंत्रता और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। - राजकोषीय विषमताएँ कम करना:
आयोग ने आय और व्यय के असंतुलन को कम करने के लिए फाइनेंसियल असिस्टेंस और अनुदान की सिफारिश की है। वित्त आयोग की 15वीं रिपोर्ट ने सर्वजनिक वितरण प्रणाली और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अतिरिक्त सहायता की सिफारिश की। - उदाहरण:
2024 में वित्त आयोग ने COVID-19 महामारी के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए विशेष वित्तीय सहायता की सिफारिश की, जिससे राज्यों को स्वास्थ्य और राहत कार्य के लिए अतिरिक्त संसाधन प्राप्त हो सके।
निष्कर्ष:
वित्त आयोग के कार्य राजस्व वितरण, अनुदान, और वित्तीय अनुशासन को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण हैं। राजकोषीय संघवाद में इसका उभरता हुआ योगदान राज्यों की वित्तीय स्थिति को सुधारने और आर्थिक असंतुलन को कम करने में सहायक साबित हो रहा है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की संवैधानिक स्थिति 1. नियुक्ति और कार्यकाल: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और इसका कार्यकाल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 के तहत निर्धारित होता है। कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है। गिरीश चंद्र मुर्मू 2020 में हाल ही में नियुक्Read more
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की संवैधानिक स्थिति
1. नियुक्ति और कार्यकाल: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और इसका कार्यकाल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 के तहत निर्धारित होता है। कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है। गिरीश चंद्र मुर्मू 2020 में हाल ही में नियुक्त CAG हैं।
2. स्वतंत्रता: CAG पूरी स्वतंत्रता से कार्य करता है और इसके पद की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। हटाने की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह होती है, जो इसकी स्वतंत्रता को बनाए रखती है।
3. अधिकार और कार्य: CAG केंद्र और राज्य सरकारों के खातों की लेखा परीक्षा करता है। इसके रिपोर्ट संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, 2021 की CAG रिपोर्ट ने कोविड-19 टीकाकरण प्रक्रिया में अनियमितताओं को उजागर किया।
निष्कर्ष: CAG की संवैधानिक स्थिति उसे स्वतंत्र रूप से काम करने और सरकारी वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने की शक्ति देती है।
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