भारतीय लोकतंत्र का दर्शन भारत वर्ष के संविधान की प्रस्तावना में सत्रिहित है। व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत क्या है? **1. परिभाषा और उत्पत्ति 'आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत' भारतीय न्यायपालिका द्वारा स्थापित एक न्यायिक सिद्धांत है, जिसका तात्पर्य है कि संविधान के कुछ मूलभूत तत्वों को किसी भी संशोधन के द्वारा नष्ट या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह सिद्धांत केसवानंद भारती मामले (1973)Read more
आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत क्या है?
**1. परिभाषा और उत्पत्ति
‘आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत’ भारतीय न्यायपालिका द्वारा स्थापित एक न्यायिक सिद्धांत है, जिसका तात्पर्य है कि संविधान के कुछ मूलभूत तत्वों को किसी भी संशोधन के द्वारा नष्ट या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह सिद्धांत केसवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय से उत्पन्न हुआ, जहाँ कोर्ट ने निर्णय दिया कि संसद को संविधान को संशोधित करने की व्यापक शक्ति है, परंतु वह संविधान के “आधारभूत ढाँचे” को बदल नहीं सकती।
**2. सिद्धांत के मुख्य तत्व
इस सिद्धांत के तहत, संविधान के कुछ मूलभूत तत्व होते हैं जिन्हें सुरक्षित रखा जाता है, जैसे:
- लोकतंत्र
- कानूनी राज्य (Rule of Law)
- शक्ति का पृथक्करण
- न्यायिक समीक्षा
- संघवाद
- मूल अधिकार
भारतीय संविधान के लिए महत्त्व
**1. मूलभूत मूल्यों की सुरक्षा
यह सिद्धांत भारतीय संविधान के मूलभूत मूल्यों और विचारधारा की सुरक्षा करता है। उदाहरण के लिए, गोलकनाथ मामले (1967) और केसवानंद भारती मामले (1973) में यह सिद्धांत लोकतांत्रिक सिद्धांतों और कानूनी राज्य को बनाए रखने में सहायक रहा है।
**2. संसदीय शक्तियों की सीमा
इस सिद्धांत के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट ने संसदीय शक्तियों का संतुलन बनाए रखा है और सुनिश्चित किया है कि संविधान में कोई भी संशोधन मूलभूत तत्वों को कमजोर नहीं कर सकता। इससे संसदीय शक्ति की पूर्णता को सीमित किया गया है, जैसे कि एस.आर. बोम्मई मामला (1994) में संघीयता की सुरक्षा की गई।
**3. न्यायिक स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा
यह सिद्धांत न्यायिक स्वतंत्रता और मूल अधिकारों की रक्षा करता है। के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार (2017) मामले में, कोर्ट ने यह माना कि गोपनीयता का अधिकार भी संविधान के आधारभूत ढाँचे का हिस्सा है, जिससे मूल अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया गया।
निष्कर्ष
‘आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत’ भारतीय संविधान की मौलिक मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह संविधान की संरचना और लोकतांत्रिक संस्थाओं को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और संविधान के मूलभूत तत्वों को किसी भी संभावित संशोधन से सुरक्षित करता है।
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भारतीय लोकतंत्र का दर्शन संविधान की प्रस्तावना में **1. मूलभूत मूल्य भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारतीय लोकतंत्र के दर्शन को स्पष्ट करती है। यह भारत को संप्रभु, साम्यवादिता, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करती है, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और भाईचारा की प्रतिबद्धता हैRead more
भारतीय लोकतंत्र का दर्शन संविधान की प्रस्तावना में
**1. मूलभूत मूल्य
भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारतीय लोकतंत्र के दर्शन को स्पष्ट करती है। यह भारत को संप्रभु, साम्यवादिता, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करती है, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और भाईचारा की प्रतिबद्धता है।
**2. संप्रभुता और गणराज्य
संप्रभुता भारत की आंतरिक और बाहरी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है, जबकि गणराज्य का मतलब है कि राष्ट्र प्रमुख का चुनाव विरासत द्वारा नहीं, बल्कि चुनाव के माध्यम से होता है, जैसा कि राष्ट्रपति के चुनाव में देखा जाता है।
**3. साम्यवादिता और धर्मनिरपेक्षता
साम्यवादिता का तात्पर्य आर्थिक समानता से है, जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रमों से बढ़ावा दिया गया है। धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों को समान मानती है, जैसा कि धार्मिक विविधता को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों में देखा जा सकता है।
**4. लोकतांत्रिक सिद्धांत
लोकतंत्र प्रतिनिधि शासन और मुक्त चुनाव सुनिश्चित करता है, जैसे कि हाल के आम चुनाव में देखा गया।
सारांश में, प्रस्तावना भारतीय लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों को स्पष्ट करती है और देश की नीति-निर्माण को मार्गदर्शन प्रदान करती है।
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