राष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में अकेले एक संसद सदस्य की भूमिका अवनति की ओर है, जिसके फलस्वरूप वादविवादों की गुणता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ भी चुका है। चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
समितियों की उपयोगिता: समितियाँ संसदीय कार्यों की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विस्तृत विचार-विमर्श, विश्लेषण, और विशेषज्ञों से साक्षात्कार के माध्यम से जटिल मुद्दों की गहराई से जांच करती हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया अधिक सूचित और संतुलित होती है। उदाहरRead more
समितियों की उपयोगिता: समितियाँ संसदीय कार्यों की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विस्तृत विचार-विमर्श, विश्लेषण, और विशेषज्ञों से साक्षात्कार के माध्यम से जटिल मुद्दों की गहराई से जांच करती हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया अधिक सूचित और संतुलित होती है। उदाहरण के लिए, लोकसभा की सार्वजनिक क्षेत्र समिति ने 2023 में कई सार्वजनिक उपक्रमों की स्थिति की समीक्षा की और सुधार सुझाव दिए, जो उनके प्रबंधन में पारदर्शिता और सुधार को बढ़ावा देते हैं।
प्राक्कलन समिति की भूमिका:
- प्राक्कलन की समीक्षा: प्राक्कलन समिति, जो संसद के सदस्यों द्वारा गठित होती है, बजट प्रस्तावों और अनुमानित खर्चों की गहन समीक्षा करती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बजट आवंटन वास्तविक और आवश्यकतों के अनुरूप हो। उदाहरण के लिए, 2023-24 के केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन पर समिति ने महत्वपूर्ण सुझाव दिए, जिससे स्वास्थ्य बजट में वृद्धि की गई।
- आर्थिक दक्षता: समिति खर्च की दक्षता और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करती है। नेशनल हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट के लिए आवंटित बजट की समीक्षा के दौरान, प्राक्कलन समिति ने उपयोग में सुधार के लिए महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं।
- सिफारिशें और सुधार: यह सरकार को बजट और योजनाओं में सुधार के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करती है। इसके माध्यम से, कृषि विकास योजनाओं के लिए वित्तीय प्रबंधन में सुधार हुआ है।
निष्कर्ष: समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए अत्यधिक उपयोगी होती हैं, और प्राक्कलन समिति का बजट समीक्षा और सुधार में केंद्रीय योगदान है, जो संसदीय प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और प्रभावशीलता को बढ़ाती है।
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एक संसद सदस्य की राष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में भूमिका को लेकर कई चुनौतियाँ हैं, जिनके परिणामस्वरूप वादविवादों की गुणवत्ता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इन समस्याओं की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: 1. विधायी प्रभावशीलता की कमी: एक अकेला संसद सदस्य, विशRead more
एक संसद सदस्य की राष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में भूमिका को लेकर कई चुनौतियाँ हैं, जिनके परिणामस्वरूप वादविवादों की गुणवत्ता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इन समस्याओं की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. विधायी प्रभावशीलता की कमी:
एक अकेला संसद सदस्य, विशेष रूप से एक छोटे दल या स्वतंत्र सदस्य, अक्सर विधायी प्रक्रिया में प्रभावी भूमिका निभाने में असमर्थ हो सकता है। उसके पास सीमित संसाधन, समर्थन और आवाज होती है, जो उसे प्रमुख मुद्दों पर प्रभाव डालने से रोकती है।
2. विवादों की गुणवत्ता:
एक सदस्य की सीमित शक्ति और संसाधनों के कारण, वादविवादों की गुणवत्ता में कमी हो सकती है। महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहन और सूक्ष्म विवेचन की कमी हो सकती है, जो विधायिका के समग्र कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।
3. संसदीय कार्यप्रणाली पर प्रभाव:
एक सदस्य की सीमित भूमिका के कारण, विधायिका में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। महत्वपूर्ण विधायी प्रस्तावों और निर्णयों में गहन बहस और विचार-विमर्श की कमी हो सकती है, जिससे पारदर्शिता और गुणात्मक निर्णयों पर असर पड़ता है।
4. संसदीय दायित्व और प्राथमिकताएँ:
अक्सर एक सदस्य की प्राथमिकताएँ और संसदीय दायित्व उसके स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं और उसकी व्यक्तिगत चिंताओं पर केंद्रित हो सकती हैं, जो राष्ट्रीय मुद्दों पर व्यापक दृष्टिकोण को प्रभावित करती है।
5. समर्थन की कमी:
अकेला सदस्य अक्सर पार्टी के नेतृत्व, संसदीय दल, और संसदीय समितियों के समर्थन से वंचित रहता है। यह स्थिति उसे विधायी कार्यों में सक्रिय और प्रभावी भागीदारी में कठिनाई का सामना कराती है।
इन समस्याओं के समाधान के लिए, संसदीय प्रक्रियाओं में सुधार, दलगत सहयोग को बढ़ावा देना और संसदीय कार्यप्रणाली को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। इस प्रकार, एक सदस्य की भूमिका को मजबूत करने के लिए आवश्यक संसाधनों और समर्थन की व्यवस्था की जानी चाहिए।
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