क्या विभागों से संबंधित संसदीय स्थायी समितियाँ प्रशासन को अपने पैर की उँगलियों पर रखती हैं और संसदीय नियंत्रण के लिए सम्मान-प्रदर्शन हेतु प्रेरित करती हैं? उपयुक्त उदाहरणों के साथ ऐसी समितियों के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए। (250 words) [UPSC ...
परिचय: भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है और इसकी संरचना में लचीलापन और स्थायित्व का अनूठा मिश्रण है। संविधान की धारा 368 के अंतर्गत संसद को संविधान संशोधन की शक्ति दी गई है। हालांकि, मूल ढांचा सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तनRead more
परिचय: भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है और इसकी संरचना में लचीलापन और स्थायित्व का अनूठा मिश्रण है। संविधान की धारा 368 के अंतर्गत संसद को संविधान संशोधन की शक्ति दी गई है। हालांकि, मूल ढांचा सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। यह सिद्धांत संविधान की स्थिरता और उसके बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा करता है।
मूल ढांचा सिद्धांत का उदय:
- केशवानंद भारती मामला (1973): इस ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि संविधान की धारा 368 के तहत संसद को संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन इस शक्ति का उपयोग संविधान के मूल ढांचे को बदलने के लिए नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने मूल ढांचे की परिभाषा में शामिल किया – लोकतंत्र, संघीयता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार, और विधि का शासन।
- मूल ढांचे की परिभाषा: यद्यपि मूल ढांचे की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है, यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि संविधान के महत्वपूर्ण तत्व, जो इसे विशिष्ट और स्थायी बनाते हैं, संशोधन के माध्यम से नष्ट न किए जाएं। उदाहरण के लिए, हाल ही में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करना एक बड़ा संवैधानिक परिवर्तन था, लेकिन इसे मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं माना गया क्योंकि यह संविधान की संघीय संरचना को बाधित नहीं करता।
समकालीन उदाहरण:
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) मामला (2015): संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 में संशोधन कर NJAC की स्थापना की गई थी, जो न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका की भूमिका को बढ़ाता था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया, क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता था।
- एक राष्ट्र, एक चुनाव प्रस्ताव: हाल ही में सरकार द्वारा “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की अवधारणा पर विचार किया जा रहा है। यह प्रस्ताव चुनावों के संचालन को एकीकृत करने का प्रयास करता है, जो देश के संघीय ढांचे को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, इस पर विस्तृत चर्चा और विचार-विमर्श की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन न करे।
निष्कर्ष: भारतीय संविधान का मूल ढांचा सिद्धांत लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संघीयता और मौलिक अधिकारों जैसे तत्वों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करता है। संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार असीमित नहीं है। मूल ढांचा सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि संविधान की आत्मा संरक्षित रहे, और कोई भी संशोधन संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर न करे। वर्तमान में, संवैधानिक संशोधनों के संदर्भ में इस सिद्धांत का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र की स्थिरता और अखंडता की रक्षा करता है।
See less
संसदीय स्थायी समितियाँ प्रशासन के कार्यों पर निगरानी और नियंत्रण रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विभागों के कार्यों और नीतियों की समीक्षा करती हैं और संसदीय नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को जवाबदेह बनाती हैं। संसदीय स्थायी समितियों के कार्य और उनका मूल्यांकन: 1. निगरानी औRead more
संसदीय स्थायी समितियाँ प्रशासन के कार्यों पर निगरानी और नियंत्रण रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये समितियाँ विभागों के कार्यों और नीतियों की समीक्षा करती हैं और संसदीय नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को जवाबदेह बनाती हैं।
संसदीय स्थायी समितियों के कार्य और उनका मूल्यांकन:
1. निगरानी और समीक्षा:
उदाहरण: लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee – PAC) और वित्त समिति (Estimates Committee) संसदीय स्थायी समितियाँ हैं जो बजट और खर्चों की समीक्षा करती हैं। PAC का मुख्य कार्य सरकारी खातों का ऑडिट करना और वित्तीय गड़बड़ियों की पहचान करना है। इस प्रकार, यह विभागों की वित्तीय अनुशासन पर नजर रखती है।
मूल्यांकन: ये समितियाँ विभागों को पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बनाए रखने के लिए प्रेरित करती हैं। PAC के उदाहरण के रूप में, इसने विभिन्न समय पर महत्वपूर्ण घोटालों को उजागर किया है, जैसे कि 2G स्पेक्ट्रम घोटाला और कोल घोटाला।
2. नीतिगत सलाह और सुधार:
उदाहरण: गृह मामलों की स्थायी समिति (Standing Committee on Home Affairs) और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण की स्थायी समिति (Standing Committee on Health and Family Welfare) विभागों की नीतियों की समीक्षा करती हैं और सुधार के सुझाव देती हैं।
मूल्यांकन: ये समितियाँ विभागों को नीतिगत सुधारों के लिए प्रेरित करती हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण की स्थायी समिति ने स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार के लिए कई सुझाव दिए हैं, जिससे विभागों को नीतियों में बदलाव और सुधार लाने की दिशा में मार्गदर्शन मिला है।
3. सरकारी प्रदर्शन की निगरानी:
उदाहरण: संविधान समीक्षा समिति (Committee on the Constitution) और संसदीय समितियाँ (Parliamentary Committees) विभिन्न सरकारी विभागों के कार्यों की निगरानी करती हैं और प्रशासन को उसकी जिम्मेदारियों के प्रति जवाबदेह बनाती हैं।
मूल्यांकन: ये समितियाँ विभागों को उनकी कार्यप्रणाली और प्रदर्शन में सुधार के लिए प्रेरित करती हैं। संविधान समीक्षा समिति ने कई बार संविधान में सुधारों की सिफारिश की है, जिससे प्रशासन को अपनी कार्यप्रणाली को अपडेट करने में सहायता मिली है।
निष्कर्ष:
See lessसंसदीय स्थायी समितियाँ विभागों से संबंधित प्रशासनिक कार्यों की निगरानी करती हैं, पारदर्शिता बनाए रखने में मदद करती हैं, और संसदीय नियंत्रण को मजबूत करती हैं। इनके कार्यों से प्रशासन को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है और संसदीय सिस्टम के प्रति सम्मान बनाए रहता है। ये समितियाँ न केवल नीतिगत सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, बल्कि प्रशासनिक सुधारों के लिए भी प्रेरित करती हैं।