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आप यह क्यों सोचते हैं कि समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए उपयोगी मानी जाती हैं? इस संदर्भ में प्राक्कलन समिति की भूमिका की विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
'समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती हैं।' इसका मुख्य कारण यह है कि संसद के पास सीमित समय होता है और वह सभी मुद्दों पर गहनता से विचार नहीं कर पाती। समितियाँ इस कार्य को आसान बनाती हैं। वे विभिन्न विषयों पर गहराई से अध्ययन करती हैं, विशेषज्ञों से राय लेती हैं और फिर संसद के समक्ष अRead more
‘समितियाँ संसदीय कार्यों के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती हैं।’ इसका मुख्य कारण यह है कि संसद के पास सीमित समय होता है और वह सभी मुद्दों पर गहनता से विचार नहीं कर पाती। समितियाँ इस कार्य को आसान बनाती हैं। वे विभिन्न विषयों पर गहराई से अध्ययन करती हैं, विशेषज्ञों से राय लेती हैं और फिर संसद के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करती हैं।
‘प्राक्कलन समिति’ ऐसी ही संसदीय समिति है जो बजट में सरकार द्वारा प्रस्तावित व्यय के अनुमानों की जांच करती है। यह यह सुनिश्चित करती है कि सरकार का पैसा सही तरीके से खर्च किया जा रहा है और कोई भी धनराशि का दुरुपयोग नहीं हो रहा है। यह समिति सरकार को किफायती तरीके से काम करने के लिए सुझाव भी देती है।
रोल:
प्राक्कलन समिति का काम इस प्रकार है:
-बजट का विश्लेषण: यह समिति बजट में दिए गए आंकड़ों का विस्तृत विश्लेषण करती है और यह सुनिश्चित करती है कि ये आंकड़े सही हैं।
सरकारी खर्च की जांच: यह समिति सरकार द्वारा किए जा रहे खर्च की जांच करती है और यह सुनिश्चित करती है कि यह खर्च आवश्यक है और सही तरीके से किया जा रहा है।
-बजट पर जोर: यह समिति सरकार को किफायति से काम करने के लिए सुझाव देती है ताकि पैसे का दुरुपयोग न हो।
-जनता का हित: प्राक्कलन समिति जनता के हित में काम करती और यही कारण है कि यह सरकार के पैसे का सही व्यय करता है।
निष्कर्ष: प्राक्कलन समिति संसदीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सरकार को जवाबदेह बनाती है और यह सुनिश्चित करती है कि जनता का पैसा सही तरीके से खर्च किया जा रहा है।
See lessभारतीय संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, परन्तु इसके मूल ढांचे में नहीं" चर्चा करें।
परिचय: भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है और इसकी संरचना में लचीलापन और स्थायित्व का अनूठा मिश्रण है। संविधान की धारा 368 के अंतर्गत संसद को संविधान संशोधन की शक्ति दी गई है। हालांकि, मूल ढांचा सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तनRead more
परिचय: भारतीय संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है और इसकी संरचना में लचीलापन और स्थायित्व का अनूठा मिश्रण है। संविधान की धारा 368 के अंतर्गत संसद को संविधान संशोधन की शक्ति दी गई है। हालांकि, मूल ढांचा सिद्धांत के अनुसार, संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। यह सिद्धांत संविधान की स्थिरता और उसके बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा करता है।
मूल ढांचा सिद्धांत का उदय:
समकालीन उदाहरण:
निष्कर्ष: भारतीय संविधान का मूल ढांचा सिद्धांत लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संघीयता और मौलिक अधिकारों जैसे तत्वों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करता है। संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार असीमित नहीं है। मूल ढांचा सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि संविधान की आत्मा संरक्षित रहे, और कोई भी संशोधन संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर न करे। वर्तमान में, संवैधानिक संशोधनों के संदर्भ में इस सिद्धांत का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र की स्थिरता और अखंडता की रक्षा करता है।
See lessराज्यों में विधान परिषद के सृजन व उन्मूलन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये। आंध्रप्रदेश विधान सभा द्वारा राज्य के विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव लाने के क्या कारण हैं? संक्षेप में बताइए। (125 Words) [UPPSC 2019]
राज्यों में विधान परिषद के सृजन और उन्मूलन की प्रक्रिया **1. सृजन की प्रक्रिया राज्यों में विधान परिषद के सृजन के लिए राज्य विधान सभा में एक संकल्प पारित किया जाता है। इसके बाद, यह संकल्प केंद्र सरकार को भेजा जाता है। केंद्र सरकार के द्वारा लोकसभा और राज्यसभा में एक अधिनियम पारित करने के बाद विधान पRead more
राज्यों में विधान परिषद के सृजन और उन्मूलन की प्रक्रिया
**1. सृजन की प्रक्रिया
राज्यों में विधान परिषद के सृजन के लिए राज्य विधान सभा में एक संकल्प पारित किया जाता है। इसके बाद, यह संकल्प केंद्र सरकार को भेजा जाता है। केंद्र सरकार के द्वारा लोकसभा और राज्यसभा में एक अधिनियम पारित करने के बाद विधान परिषद की स्थापना होती है। तेलंगाना का विधान परिषद 2014 में इसी प्रक्रिया के तहत बना था।
**2. उन्मूलन की प्रक्रिया
विधान परिषद के उन्मूलन के लिए भी राज्य विधान सभा में एक संकल्प पारित किया जाता है। यह संकल्प केंद्र सरकार को भेजा जाता है, और केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा और राज्यसभा में एक अधिनियम पारित करने के बाद विधान परिषद समाप्त होती है।
**3. आंध्र प्रदेश के कारण
आंध्र प्रदेश विधान सभा ने 2020 में विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पेश किया। इसके मुख्य कारण थे अप्रभावशीलता और उच्च खर्च। राज्य सरकार का तर्क था कि विधान परिषद विधायी प्रक्रिया में बाधा डाल रही थी और इससे शासन में सुधार के लिए इसे समाप्त किया जाना चाहिए।
सारांश में, विधान परिषद के सृजन और उन्मूलन की प्रक्रिया राज्य विधान सभा के संकल्प और केंद्र सरकार के अधिनियम की आवश्यकता होती है। आंध्र प्रदेश ने इसे उच्च खर्च और अव्यवहारिकता के कारण समाप्त करने का प्रस्ताव किया।
See lessउन मुख्य उपायों की विवेचना कीजिये जिनके द्वारा भारतीय संसद कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है। (200 Words) [UPPSC 2021]
भारतीय संसद द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण के मुख्य उपाय 1. विधायी निरीक्षण (Legislative Oversight): संसदीय समितियाँ: संसद विभिन्न समितियाँ जैसे लोक लेखा समिति (PAC) और वित्तीय समिति का गठन करती है, जो सरकारी योजनाओं, बजट और खर्चों की जांच करती हैं। ये समितियाँ कार्यपालिका की गतिविधियों की निगरानी कRead more
भारतीय संसद द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण के मुख्य उपाय
1. विधायी निरीक्षण (Legislative Oversight):
2. सवाल और उत्तर प्रणाली (Question and Answer System):
3. वेतन और संसद की अनुमति (Control over Expenditure):
4. अविश्वास प्रस्ताव (No-confidence Motion):
5. संसदीय बहस और चर्चा (Parliamentary Debate and Discussion):
निष्कर्ष: भारतीय संसद के पास कार्यपालिका पर नियंत्रण के प्रभावशाली उपाय हैं, जैसे विधायी निरीक्षण, सवाल-उत्तर प्रणाली, वित्तीय नियंत्रण, अविश्वास प्रस्ताव और संसदीय बहस। ये उपाय सरकारी नीतियों और क्रियावली की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं, जिससे लोकतंत्र की मजबूती बनी रहती है।
See lessभारतीय संसद की कार्यप्रणाली में संसदीय समितियों की भूमिका का वर्णन करें। (125 Words) [UPPSC 2021]
भारतीय संसद की कार्यप्रणाली में संसदीय समितियों की भूमिका 1. विस्तृत समीक्षा: संसदीय समितियाँ विधेयकों और नीतियों की विस्तृत समीक्षा करती हैं। उदाहरण के लिए, लोक लेखा समिति (PAC) ने कोविड-19 वैक्सीन खरीद की प्रक्रिया की जांच की, जिससे सरकारी खर्चों की पारदर्शिता सुनिश्चित की गई। 2. निगरानी और जवाबदेRead more
भारतीय संसद की कार्यप्रणाली में संसदीय समितियों की भूमिका
1. विस्तृत समीक्षा: संसदीय समितियाँ विधेयकों और नीतियों की विस्तृत समीक्षा करती हैं। उदाहरण के लिए, लोक लेखा समिति (PAC) ने कोविड-19 वैक्सीन खरीद की प्रक्रिया की जांच की, जिससे सरकारी खर्चों की पारदर्शिता सुनिश्चित की गई।
2. निगरानी और जवाबदेही: ये समितियाँ कार्यकारी कार्यों और कानूनों के अनुपालन पर निगरानी रखती हैं। गृह मामलों की स्थायी समिति आंतरिक सुरक्षा और सार्वजनिक सुरक्षा से संबंधित नीतियों की निगरानी करती है, जिससे जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
3. नीति सिफारिशें: संसदीय समितियाँ विभिन्न मुद्दों पर नीति सिफारिशें प्रदान करती हैं। व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बिल पर संयुक्त समिति ने डेटा गोपनीयता को मजबूत करने के लिए सिफारिशें कीं।
4. विशेषज्ञ इनपुट: समितियाँ विशेषज्ञों और जनता से इनपुट प्राप्त करती हैं। कृषि कानूनों पर चयनित समिति ने विविध दृष्टिकोणों को शामिल करके सिफारिशें प्रस्तुत कीं।
निष्कर्ष: संसदीय समितियाँ भारतीय संसद की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, विधायी प्रभावशीलता को बढ़ावा देती हैं, निगरानी सुनिश्चित करती हैं, और सूचित निर्णय लेने में सहायता करती हैं।
See less"यदि संसद में पटल पर रखे गए व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 के संशोधन बिल को पारित कर दिया जाता है, तो हो सकता है कि सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई बचे ही नहीं।" समालोचनापूर्वक मूल्यांकन कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 के संशोधन बिल का समालोचनापूर्वक मूल्यांकन व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 का पृष्ठभूमि: व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2011 को सरकारी और सार्वजनिक संस्थानों में भ्रष्टाचार या दुराचार को उजागर करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पारित किया गया था। इसका उद्Read more
व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 के संशोधन बिल का समालोचनापूर्वक मूल्यांकन
व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 का पृष्ठभूमि: व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2011 को सरकारी और सार्वजनिक संस्थानों में भ्रष्टाचार या दुराचार को उजागर करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पारित किया गया था। इसका उद्देश्य व्हिसलब्लोअर्स को प्रतिशोध और उत्पीड़न से बचाना था।
संशोधन बिल के साथ चिंताएँ:
निष्कर्ष: यदि संशोधन बिल पारित हो जाता है, तो व्हिसलब्लोअर्स अधिनियम, 2011 द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा को गंभीर रूप से कमजोर किया जा सकता है। प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अधिनियम को मजबूत संरक्षित उपायों को बनाए रखना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि शिकायत प्रक्रिया सुलभ और प्रभावी हो। इन मुद्दों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है ताकि व्यक्ति भ्रष्टाचार और दुराचार की रिपोर्ट करने के लिए सुरक्षित महसूस कर सकें।
See lessराष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में अकेले एक संसद सदस्य की भूमिका अवनति की ओर है, जिसके फलस्वरूप वादविवादों की गुणता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ भी चुका है। चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
एक संसद सदस्य की राष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में भूमिका को लेकर कई चुनौतियाँ हैं, जिनके परिणामस्वरूप वादविवादों की गुणवत्ता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इन समस्याओं की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: 1. विधायी प्रभावशीलता की कमी: एक अकेला संसद सदस्य, विशRead more
एक संसद सदस्य की राष्ट्रीय विधि निर्माता के रूप में भूमिका को लेकर कई चुनौतियाँ हैं, जिनके परिणामस्वरूप वादविवादों की गुणवत्ता और उनके परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इन समस्याओं की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. विधायी प्रभावशीलता की कमी:
एक अकेला संसद सदस्य, विशेष रूप से एक छोटे दल या स्वतंत्र सदस्य, अक्सर विधायी प्रक्रिया में प्रभावी भूमिका निभाने में असमर्थ हो सकता है। उसके पास सीमित संसाधन, समर्थन और आवाज होती है, जो उसे प्रमुख मुद्दों पर प्रभाव डालने से रोकती है।
2. विवादों की गुणवत्ता:
एक सदस्य की सीमित शक्ति और संसाधनों के कारण, वादविवादों की गुणवत्ता में कमी हो सकती है। महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहन और सूक्ष्म विवेचन की कमी हो सकती है, जो विधायिका के समग्र कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।
3. संसदीय कार्यप्रणाली पर प्रभाव:
एक सदस्य की सीमित भूमिका के कारण, विधायिका में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। महत्वपूर्ण विधायी प्रस्तावों और निर्णयों में गहन बहस और विचार-विमर्श की कमी हो सकती है, जिससे पारदर्शिता और गुणात्मक निर्णयों पर असर पड़ता है।
4. संसदीय दायित्व और प्राथमिकताएँ:
अक्सर एक सदस्य की प्राथमिकताएँ और संसदीय दायित्व उसके स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं और उसकी व्यक्तिगत चिंताओं पर केंद्रित हो सकती हैं, जो राष्ट्रीय मुद्दों पर व्यापक दृष्टिकोण को प्रभावित करती है।
5. समर्थन की कमी:
अकेला सदस्य अक्सर पार्टी के नेतृत्व, संसदीय दल, और संसदीय समितियों के समर्थन से वंचित रहता है। यह स्थिति उसे विधायी कार्यों में सक्रिय और प्रभावी भागीदारी में कठिनाई का सामना कराती है।
इन समस्याओं के समाधान के लिए, संसदीय प्रक्रियाओं में सुधार, दलगत सहयोग को बढ़ावा देना और संसदीय कार्यप्रणाली को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। इस प्रकार, एक सदस्य की भूमिका को मजबूत करने के लिए आवश्यक संसाधनों और समर्थन की व्यवस्था की जानी चाहिए।
See less"लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक ही समय में चुनाव, चुनाव प्रचार की अवधि और व्यय को तो सीमित कर देंगे, परंतु ऐसा करने से लोगों के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी।" चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
एक ही समय में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव: प्रभाव और जवाबदेही समान समय पर चुनाव कराने से चुनाव प्रचार की अवधि और व्यय को सीमित किया जा सकता है, जिससे चुनावी खर्चे कम होंगे और प्रचार गतिविधियाँ एक साथ चल सकेंगी। इससे विधानसभा और लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया की सुगमता बढ़ेगी और लॉजिस्टिक सुविधाएँRead more
एक ही समय में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव: प्रभाव और जवाबदेही
समान समय पर चुनाव कराने से चुनाव प्रचार की अवधि और व्यय को सीमित किया जा सकता है, जिससे चुनावी खर्चे कम होंगे और प्रचार गतिविधियाँ एक साथ चल सकेंगी। इससे विधानसभा और लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया की सुगमता बढ़ेगी और लॉजिस्टिक सुविधाएँ सुलभ होंगी।
जवाबदेही पर प्रभाव: हालांकि, एक ही समय में चुनाव कराने से जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो सकती है। अलग-अलग समय पर चुनाव सरकार को उनके कार्यकाल के दौरान प्रदर्शन की निगरानी का अवसर देते हैं। यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो सरकार की सत्ता के प्रति जवाबदेही कम हो सकती है क्योंकि सरकार को किसी विशिष्ट चुनावी मुद्दे या विधानसभा कार्यों पर समर्पित तरीके से जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकेगा।
इस प्रकार, समान समय पर चुनाव निश्चित लाभ प्रदान करते हैं, लेकिन जवाबदेही की स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकते हैं।
See lessविगत कुछ दशकों में राज्य सभा एक 'उपयोगहीन स्टैपनी टायर' से सर्वाधिक उपयोगी सहायक अंग में रूपांतरित हुआ है। उन कारकों तथा क्षेत्रों को आलोकित कीजिये जहाँ यह रूपांतरण दृष्टिगत हो सकता है। (250 words) [UPSC 2020]
विगत कुछ दशकों में राज्य सभा ने 'उपयोगहीन स्टैपनी टायर' से एक महत्वपूर्ण सहायक अंग के रूप में रूपांतरित होने की प्रक्रिया को पार किया है। इस रूपांतरण को निम्नलिखित कारकों और क्षेत्रों में देखा जा सकता है: 1. विधायिका की कार्यप्रणाली में योगदान: राज्य सभा ने विधायिका की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण भूRead more
विगत कुछ दशकों में राज्य सभा ने ‘उपयोगहीन स्टैपनी टायर’ से एक महत्वपूर्ण सहायक अंग के रूप में रूपांतरित होने की प्रक्रिया को पार किया है। इस रूपांतरण को निम्नलिखित कारकों और क्षेत्रों में देखा जा सकता है:
1. विधायिका की कार्यप्रणाली में योगदान:
राज्य सभा ने विधायिका की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेषकर समीक्षा और सुझाव देने में। यह सदन विधेयकों की समीक्षा करता है, उन्हें संशोधित करता है, और अपने सुझाव प्रस्तुत करता है, जो कि लोकसभा द्वारा पास किए गए विधेयकों की गुणवत्ता में सुधार लाता है। उदाहरणस्वरूप, कई महत्वपूर्ण विधेयक जैसे कि राजस्व, वित्तीय सुधार, और समाजिक कल्याण के विधेयकों पर राज्य सभा की संस्तुति और सुझाव महत्वपूर्ण रहे हैं।
2. विशेषज्ञता और विविधता:
राज्य सभा में विशेषज्ञों, अनुभवी व्यक्तियों और विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व होता है। इस कारण, सदन में पेश किए गए मुद्दों पर गहराई से विचार-विमर्श होता है और विभिन्न दृष्टिकोण सामने आते हैं। यह विशेष रूप से उन मामलों में महत्वपूर्ण होता है जहाँ तकनीकी या विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है।
3. संघीय संतुलन:
राज्य सभा ने संघीय ढांचे में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह राज्यों की आवाज को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने का माध्यम है और केंद्रीय नीतियों पर राज्यों के दृष्टिकोण को समाहित करता है। उदाहरण के लिए, राज्यों की विशेष समस्याओं और आवश्यकताओं पर चर्चा कर उन्हें केंद्र सरकार के ध्यान में लाया जाता है।
4. विवादों का समाधान:
राज्य सभा ने विवादित मुद्दों पर मध्यस्थता और समाधान प्रदान करने में भी योगदान दिया है। कई बार यह सदन विधायिका में उत्पन्न होने वाले विवादों को सुलझाने का काम करता है और संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है।
5. संवैधानिक संशोधन:
राज्य सभा ने संवैधानिक संशोधनों पर विचार और मंजूरी प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह प्रक्रिया संविधान में आवश्यक बदलाव और सुधार को लागू करने में सहायक रही है।
इन कारकों और क्षेत्रों के माध्यम से, राज्य सभा ने अपनी भूमिका और प्रभावशीलता को मजबूत किया है, जिससे यह एक ‘उपयोगहीन स्टैपनी टायर’ से एक महत्वपूर्ण सहायक अंग में परिवर्तित हो गया है।
See less'एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर'! क्या आपके विचार में लोकसभा अध्यक्ष पद की निष्पक्षता के लिए इस कार्यप्रणाली को स्वीकारना चाहिए ? भारत में संसदीय प्रयोजन की सुदृढ कार्यशैली के लिए इसके क्या परिणाम हो सकते हैं ? (150 words) [UPSC 2020]
"एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर" का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि एक बार जब कोई व्यक्ति लोकसभा अध्यक्ष बन जाता है, तो उसे सदन की अध्यक्षता के दौरान पूरी निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से दूर रहना चाहिए। यह सिद्धांत लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्णRead more
“एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर” का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि एक बार जब कोई व्यक्ति लोकसभा अध्यक्ष बन जाता है, तो उसे सदन की अध्यक्षता के दौरान पूरी निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, और राजनीतिक पूर्वाग्रहों से दूर रहना चाहिए। यह सिद्धांत लोकसभा अध्यक्ष की निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
सकारात्मक परिणाम:
See lessनिष्पक्षता और स्वतंत्रता: अध्यक्ष को एक बार निर्वाचित होने के बाद राजनीति से अलग माना जाएगा, जिससे वह निष्पक्ष निर्णय ले सकेगा और सदन की कार्यवाही को स्वतंत्रता से संचालित कर सकेगा।
विश्वसनीयता: यह सिद्धांत अध्यक्ष की भूमिका की विश्वसनीयता और सम्मान बढ़ा सकता है, जिससे सदन की कार्यवाही पर विश्वास मजबूत होगा।
संभावित चुनौतियाँ:
दीर्घकालिक प्रभाव: लंबे समय तक अध्यक्ष बने रहने से राजनीतिक दबावों से बचना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सुधार में कठिनाई: एक ही व्यक्ति लंबे समय तक पद पर रहने से सुधार की प्रक्रिया में रुकावट आ सकती है, यदि अध्यक्ष प्रणाली की कमियों को दूर नहीं कर पाता।
इसलिए, “एकदा स्पीकर, सदैव स्पीकर” का सिद्धांत निष्पक्षता को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए समुचित निगरानी और निरंतर सुधार की आवश्यकता होगी।