क्या भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने एक परिसंघीय संविधान निर्धारित कर दिया था ? चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
कोहिलो केस, जिसे I.R. Coelho v. State of Tamil Nadu (2007) के रूप में जाना जाता है, भारतीय संविधान के बुनियादी संरचनाओं के संरक्षण के संदर्भ में महत्वपूर्ण निर्णय था। कोहिलो केस में अभिनिर्धारित बातें: संविधान संशोधन और बुनियादी संरचना: इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की कि संसद के पास संविधान संRead more
कोहिलो केस, जिसे I.R. Coelho v. State of Tamil Nadu (2007) के रूप में जाना जाता है, भारतीय संविधान के बुनियादी संरचनाओं के संरक्षण के संदर्भ में महत्वपूर्ण निर्णय था।
कोहिलो केस में अभिनिर्धारित बातें:
संविधान संशोधन और बुनियादी संरचना: इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की कि संसद के पास संविधान संशोधन की शक्ति है, लेकिन यह शक्ति संविधान की बुनियादी संरचना को बदलने या नष्ट करने के लिए नहीं है। संविधान की बुनियादी संरचना, जैसे कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, और विधायिका की स्वतंत्रता, को किसी भी संशोधन से प्रभावित नहीं किया जा सकता।
न्यायिक पुनर्विलोकन का दायरा: कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान संशोधनों की न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति निरंतर रहेगी। इसका मतलब है कि कोई भी संशोधन जो बुनियादी संरचना के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, उसे न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।
न्यायिक पुनर्विलोकन का महत्व:
न्यायिक पुनर्विलोकन संविधान के बुनियादी अभिलक्षणों में प्रमुख महत्त्व का है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी संविधान संशोधन या कानून का कार्यान्वयन संविधान की बुनियादी संरचना से मेल खाता हो। न्यायिक पुनर्विलोकन न केवल संविधान की मूलभूत संरचना की रक्षा करता है, बल्कि लोकतंत्र, विधि के शासन, और नागरिक अधिकारों की रक्षा भी करता है। कोहिलो केस ने न्यायिक पुनर्विलोकन की इस भूमिका की पुष्टि की, यह साबित करते हुए कि यह संविधान की स्थिरता और उसकी बुनियादी संरचनाओं की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।
भारत सरकार अधिनियम, 1935, एक महत्वपूर्ण विधायी ढाँचा था जिसने ब्रिटिश भारत के शासन के लिए एक संरचना प्रदान की। हालांकि इस अधिनियम ने कुछ परिसंघीय विशेषताएँ पेश कीं, यह एक पूर्ण परिसंघीय संविधान नहीं था। परिसंघीय विशेषताएँ: संघीय संरचना: इस अधिनियम ने संघीय संरचना का निर्माण किया, जिसमें केंद्रीय औरRead more
भारत सरकार अधिनियम, 1935, एक महत्वपूर्ण विधायी ढाँचा था जिसने ब्रिटिश भारत के शासन के लिए एक संरचना प्रदान की। हालांकि इस अधिनियम ने कुछ परिसंघीय विशेषताएँ पेश कीं, यह एक पूर्ण परिसंघीय संविधान नहीं था।
परिसंघीय विशेषताएँ:
संघीय संरचना: इस अधिनियम ने संघीय संरचना का निर्माण किया, जिसमें केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया। इसमें केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं का गठन हुआ और शक्तियों को संघीय सूची, प्रांतीय सूची, और सहवर्ती सूची में विभाजित किया गया।
संघीय न्यायालय: अधिनियम ने एक संघीय न्यायालय की स्थापना की, जो केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच विवादों को निपटाने के लिए जिम्मेदार था, जिससे संघीय संरचना को कानूनी मान्यता मिली।
सीमाएँ:
केंद्रीय प्रभुत्व: हालांकि अधिनियम ने संघीय विशेषताएँ पेश कीं, केंद्रीय सरकार के पास काफी अधिकार थे। गवर्नर-जनरल और गवर्नरों को प्रांतीय विधानसभाओं को भंग करने और विधेयकों पर वीटो लगाने की शक्ति प्राप्त थी, जिससे प्रांतीय स्वायत्तता सीमित हो गई।
प्रिंसली राज्य: अधिनियम ने प्रिंसली राज्यों को केवल ढांचे में शामिल किया, लेकिन वे असल में संघीय प्रणाली में पूरी तरह से नहीं जुड़े थे। उनके पास काफी स्वायत्तता थी और वे केंद्रीय प्रणाली के तहत नहीं आते थे।
संघीय संतुलन की कमी: केंद्रीय सरकार की शक्तियाँ इतनी व्यापक थीं कि यह संघीय संतुलन को प्रभावित करती थीं। प्रांतीय विधानसभाओं की स्वायत्तता को सीमित किया गया था।
निष्कर्ष:
See lessभारत सरकार अधिनियम, 1935 ने संघीय सिद्धांतों को पेश किया, लेकिन यह पूर्ण रूप से परिसंघीय संविधान नहीं था। यह एक मिश्रित प्रणाली थी जिसमें केंद्रीय नियंत्रण अधिक था और प्रांतीय स्वायत्तता सीमित थी। सच्चे परिसंघीय सिद्धांत भारत में 1950 में भारतीय संविधान के साथ स्थापित किए गए, जिसने राज्यों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की और एक अधिक संतुलित संघीय ढाँचा निर्मित किया।