निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
संविधान (एक सौ एकवाँ संशोधन) अधिनियम, 2016, वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करने के लिए किया गया था, जो भारतीय कर प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार है। इसके प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित हैं: एकल कर प्रणाली: GST एक अप्रत्यक्ष कर है जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्न करों को समाहित कRead more
संविधान (एक सौ एकवाँ संशोधन) अधिनियम, 2016, वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करने के लिए किया गया था, जो भारतीय कर प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार है। इसके प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित हैं:
एकल कर प्रणाली: GST एक अप्रत्यक्ष कर है जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्न करों को समाहित करता है, जैसे कि वैट, सेवा कर, एक्साइज ड्यूटी, और अन्य उपकर। इससे विभिन्न स्तरों पर लगने वाले करों का समेकन होता है।
डुअल GST मॉडल: भारत में केंद्र और राज्यों के लिए डुअल GST मॉडल अपनाया गया है, जिसमें केंद्र द्वारा केंद्रीय GST (CGST) और राज्यों द्वारा राज्य GST (SGST) लगाया जाता है। अंतर्राज्यीय लेन-देन पर इंटीग्रेटेड GST (IGST) लागू होता है।
इनपुट टैक्स क्रेडिट: GST इनपुट टैक्स क्रेडिट की अनुमति देता है, जिससे उत्पादन और वितरण के प्रत्येक चरण पर केवल मूल्यवर्धन पर कर लगाया जाता है, जिससे करों के सोपानिक प्रभाव (Cascading Effect) को समाप्त किया जा सकता है।
संघीय कर परिषद: GST परिषद एक संघीय निकाय है जिसमें केंद्र और राज्य दोनों के प्रतिनिधि शामिल हैं। यह परिषद GST से संबंधित नीतियों, दरों, और संरचना पर निर्णय लेती है।
करों के सोपानिक प्रभाव और साझा राष्ट्रीय बाजार:
GST करों के सोपानिक प्रभाव को समाप्त करने में काफी प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। पूर्व में, एक ही वस्तु पर कई स्तरों पर कर लगाया जाता था, जिससे अंतिम उपभोक्ता पर कर का बोझ बढ़ जाता था। GST के तहत, केवल मूल्यवर्धन पर कर लगाया जाता है, जिससे करों का दोहराव खत्म हो जाता है और वस्तुएँ सस्ती होती हैं।
इसके अलावा, GST ने एक साझा राष्ट्रीय बाजार को भी साकार किया है। राज्यों के बीच कर अवरोधों का समाप्त होना, कर की एकरूप दरें, और सीमाओं पर चेकपोस्टों का हटना इसके प्रमाण हैं। इससे व्यापार की सुगमता बढ़ी है और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिला है।
हालांकि, GST के लागू होने के शुरुआती चरण में कुछ चुनौतियाँ रहीं, जैसे कि दरों की जटिलता और प्रारंभिक अनुपालन समस्याएँ। फिर भी, इसे एक प्रभावकारी कर सुधार के रूप में देखा जा सकता है, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को एकीकृत और सशक्त किया है।
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निजता का अधिकार भारत में मौलिक अधिकारों के विस्तार का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में "के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ" मामले में निर्णय दिया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत "जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता" के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह निर्Read more
निजता का अधिकार भारत में मौलिक अधिकारों के विस्तार का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में “के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ” मामले में निर्णय दिया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण में महत्वपूर्ण है, बल्कि मौलिक अधिकारों के व्यापक स्वरूप को भी दर्शाता है।
मौलिक अधिकारों का विस्तार:
निजता का अधिकार: उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि निजता का अधिकार व्यक्ति की गरिमा, स्वायत्तता, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है। इसके अंतर्गत, शारीरिक स्वतंत्रता, निजी संचार, जानकारी की गोपनीयता, और व्यक्तिगत निर्णय लेने की स्वतंत्रता जैसे पहलू शामिल हैं।
सूचना का अधिकार: निजता के अधिकार का विस्तार यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी निगरानी, डेटा संग्रह, और व्यक्तिगत जानकारी के प्रसंस्करण में पारदर्शिता और वैधता हो। यह विशेष रूप से डिजिटल युग में महत्वपूर्ण है, जहाँ व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा चिंता का विषय है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता: इस निर्णय ने मौलिक अधिकारों के दायरे को व्यक्तिगत पहचान, यौनिकता, भोजन की पसंद, और जीवन शैली के अधिकार तक विस्तारित किया है। इसने समलैंगिकता के विरुद्ध धारा 377 को समाप्त करने और समानता के अधिकार की पुष्टि में भी योगदान दिया।
डिजिटल अधिकारों का संरक्षण: आधार योजना और अन्य सरकारी परियोजनाओं में डेटा सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता की आवश्यकताओं को बढ़ावा दिया गया है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि नागरिकों की जानकारी का उपयोग केवल वैध उद्देश्यों के लिए होना चाहिए और इसके दुरुपयोग से बचने के लिए ठोस सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।
निष्कर्ष:
See lessइस निर्णय ने मौलिक अधिकारों को एक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण प्रदान किया है, जिसमें आधुनिक समय की आवश्यकताओं और चुनौतियों का समावेश है। निजता का अधिकार अब भारतीय संविधान के मूल्यों और उद्देश्यों के साथ पूरी तरह से संगत हो गया है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह निर्णय न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली की प्रगतिशीलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि मौलिक अधिकार समय के साथ प्रासंगिक बने रहें।