प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियों और भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण करें। अन्य संस्थाओं पर इसका कैसे प्रभाव पडता है ? (200 Words) [UPPSC 2023]
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत 1. संवैधानिक नैतिकता का अर्थ: 'संवैधानिक नैतिकता' संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों की ओर अनुग्रहित दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाए और संविधान के तात्त्विक मूल्यों को बनाए रखा जाए। 2. न्यायिRead more
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत
1. संवैधानिक नैतिकता का अर्थ: ‘संवैधानिक नैतिकता’ संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों की ओर अनुग्रहित दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के मूलभूत अधिकार और स्वतंत्रताओं का सम्मान किया जाए और संविधान के तात्त्विक मूल्यों को बनाए रखा जाए।
2. न्यायिक निर्णयों की प्रासंगिकता
के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017): इस निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता को मूलभूत अधिकार मानते हुए कहा कि संवैधानिक नैतिकता संविधान के मूल सिद्धांतों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018): कोर्ट ने सहमति से यौन संबंधों को अपराधमुक्त किया, यह बताते हुए कि संवैधानिक नैतिकता समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है।
3. निष्कर्ष: संवैधानिक नैतिकता संविधान के मूल सिद्धांतों की सुरक्षा और न्यायिक फैसलों में उनके प्रभाव को सुनिश्चित करती है, जो न्याय और समानता को बढ़ावा देती है।
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प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियों और भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण विभिन्न दृष्टिकोणों से किया जा सकता है: बढ़ती शक्तियाँ: केन्द्रीयकृत निर्णय-लेने की क्षमता: प्रधानमंत्री के पास केंद्रीय सरकार के प्रमुख के रूप में महत्वपूर्ण निर्णय लेने की व्यापक शक्ति होती है, जो उनके प्रभाव को बढ़ाती है। खासकर जब प्रRead more
प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियों और भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण विभिन्न दृष्टिकोणों से किया जा सकता है:
बढ़ती शक्तियाँ:
आलोचनात्मक दृष्टिकोण:
समग्रतः, प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ प्रभावशाली हो सकती हैं, लेकिन यह संविधानिक संतुलन और लोकतांत्रिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं। इसलिए, उचित नियंत्रण और संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
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