“लोकहित का प्रत्येक मामला, लोकहित वाद का मामला नहीं होता।” मूल्यांकन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
भारत के संविधान में जीवन का अधिकार की समीक्षा संविधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के धारा 21 के तहत जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो कहता है कि "किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।" स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता: धाRead more
भारत के संविधान में जीवन का अधिकार की समीक्षा
संविधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के धारा 21 के तहत जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो कहता है कि “किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।”
स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता: धारा 21 में जीवन का अधिकार केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है। इसमें स्वास्थ्य, स्वच्छता, और जीवन की गुणवत्ता शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे “जीवन की गुणवत्ता” के हिस्से के रूप में मान्यता दी है, जिसमें आवास, शिक्षा, और काम के उचित हालात भी शामिल हैं।
हालिया उदाहरण:
- COVID-19 महामारी (2020): महामारी के दौरान, सर्वोच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य सुविधाओं और टीकाकरण अभियान के लिए दिशा-निर्देश दिए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन अधिकार सुरक्षित रहे।
- पेट्रोलियम और गैस की कीमतों में वृद्धि (2022): सर्वोच्च न्यायालय ने आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि को जीवन की गुणवत्ता पर प्रभाव डालने वाला माना और इसके सुलझाने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया।
निष्कर्ष: धारा 21 का अधिकार संविधान के मौलिक अधिकारों में प्रमुख है और इसे केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं माना जा सकता। यह आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य से जुड़े पहलुओं के समग्र दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
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"लोकहित का प्रत्येक मामला, लोकहित वाद का मामला नहीं होता": मूल्यांकन 1. लोकहित वाद (Public Interest Litigation - PIL): लोकहित वाद एक कानूनी उपकरण है जो न्यायपालिका को समाज के सामान्य हित और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति देता है। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और पारदर्शRead more
“लोकहित का प्रत्येक मामला, लोकहित वाद का मामला नहीं होता”: मूल्यांकन
1. लोकहित वाद (Public Interest Litigation – PIL):
लोकहित वाद एक कानूनी उपकरण है जो न्यायपालिका को समाज के सामान्य हित और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति देता है। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
2. लोकहित और लोकहित वाद में अंतर:
3. प्रभाव और चुनौतियाँ:
निष्कर्ष:
See lessलोकहित का हर मामला लोकहित वाद का मामला नहीं होता। PIL को सामाजिक कल्याण और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए ही सीमित करना चाहिए, ताकि इसका उचित प्रभाव और सकारात्मक उपयोग सुनिश्चित हो सके।