लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत निरर्हता के आधारों को वर्णित कीजिए। साथ ही, निरर्ह प्रतिनिधियों के लिए उपलब्ध उपचारात्मक उपार्यो पर भी चर्चा कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारतीय संविधान की धारा 105 संसद और उसके सदस्यों को विशेषाधिकार और उन्मुक्तियों (इम्यूनिटीज़) की सुरक्षा प्रदान करती है, लेकिन इन विशेषाधिकारों का विधिक संहिताकरण (कोडिफिकेशन) की अनुपस्थिति ने कई समस्याएँ उत्पन्न की हैं। विशेषाधिकारों के विधिक संहिताकरण की अनुपस्थिति के कारण: परंपरागत दृष्टिकोण: संसदRead more
भारतीय संविधान की धारा 105 संसद और उसके सदस्यों को विशेषाधिकार और उन्मुक्तियों (इम्यूनिटीज़) की सुरक्षा प्रदान करती है, लेकिन इन विशेषाधिकारों का विधिक संहिताकरण (कोडिफिकेशन) की अनुपस्थिति ने कई समस्याएँ उत्पन्न की हैं।
विशेषाधिकारों के विधिक संहिताकरण की अनुपस्थिति के कारण:
- परंपरागत दृष्टिकोण: संसदीय विशेषाधिकारों का अधिकांश हिस्सा परंपरागत और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर आधारित है, जिसे संवैधानिक रूप से स्पष्ट नहीं किया गया। इन विशेषाधिकारों का विकास समय के साथ हुआ है और इन्हें कानूनी रूप से संहिताबद्ध करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
- विधायी स्वतंत्रता: संसद की कार्यवाही और उसके विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने से संसदीय स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ सकता है। संसद अपने कार्यकलापों को स्वायत्त रूप से संचालित करने के लिए विशेषाधिकारों की आवश्यकता समझती है।
- अवसर की कमी: विशेषाधिकारों का विधिक संहिताकरण एक व्यापक और जटिल प्रक्रिया है, जिसे वर्तमान कानूनी और विधायी ढांचे में उचित स्थान और अवसर की कमी के कारण नहीं किया गया है।
समाधान:
- विशेषाधिकारों का विस्तृत अध्ययन और संहिताबद्धकरण: एक विशेष समिति गठित की जा सकती है जो संसद के विशेषाधिकारों का विस्तृत अध्ययन कर उन्हें विधिक रूप से संहिताबद्ध करे। इससे विशेषाधिकारों की सीमाएँ और दायरे स्पष्ट होंगे।
- संविधान में संशोधन: संविधान में आवश्यक संशोधन कर संसद और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों को और स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जा सकता है, जिससे कानूनी असमंजस कम हो सके।
- सार्वजनिक और विधायिका की बातचीत: इस मुद्दे पर सार्वजनिक और विधायिका के बीच चर्चा बढ़ाई जा सकती है, जिससे एक सर्वसम्मति से विधिक संहिताकरण की दिशा में कदम उठाए जा सकें।
इन उपायों से संसदीय विशेषाधिकारों को स्पष्ट और व्यवस्थित किया जा सकता है, जिससे कानूनी पारदर्शिता और कार्यकुशलता में सुधार होगा।
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लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में निरर्हता के आधार: नागरिकता: एक व्यक्ति को भारतीय नागरिकता होनी चाहिए। आयु: न्यूनतम आयु सीमा का पालन करना चाहिए। मानव स्वास्थ्य: उर्वरित रोग, मानसिक अस्वस्थता, या अपातकालीन तथा अस्वीकृत उपचार स्थिति में नहीं होना चाहिए। अपराधिक अभियोग: किसी भी अधिकारित अदालत द्वाराRead more
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में निरर्हता के आधार:
निरर्ह प्रतिनिधियों के लिए उपचारात्मक उपार्यों पर चर्चा:
निरर्ह प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत निरर्ह प्रतिनिधियों के लिए उपचारात्मक उपार्य उन्हें समर्थ और जागरूक बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
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