भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) में संवैधानिक रूप से सामंजस्य स्थापित करना एक कठिन कार्य रहा है। प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से चर्चा कीजिए। (150 शब्दों ...
भारतीय संविधान की उद्देशिका (प्रस्तावना) में 'गणराज्य' के साथ जुड़े विशेषण हैं: "संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य।" प्रत्येक विशेषण की चर्चा और उनकी वर्तमान परिस्थितियों में प्रतिरक्षणीयता निम्नलिखित है: 1. संप्रभु (Sovereign) अर्थ: 'संप्रभु' का मतलब है कि भारत पूर्ण स्वतंत्रता औरRead more
भारतीय संविधान की उद्देशिका (प्रस्तावना) में ‘गणराज्य’ के साथ जुड़े विशेषण हैं: “संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य।” प्रत्येक विशेषण की चर्चा और उनकी वर्तमान परिस्थितियों में प्रतिरक्षणीयता निम्नलिखित है:
1. संप्रभु (Sovereign)
अर्थ: ‘संप्रभु’ का मतलब है कि भारत पूर्ण स्वतंत्रता और अधिकार के साथ अपने आंतरिक और बाहरी मामलों का प्रबंधन करता है।
प्रतिरक्षणीयता: यह सिद्धांत आज भी मजबूत है। भारत अपनी संप्रभुता को बनाए हुए है, और अंतर्राष्ट्रीय संधियों और संबंधों के बावजूद, देश के आंतरिक मामलों में पूरी स्वतंत्रता रखता है।
2. समाजवादी (Socialist)
अर्थ: ‘समाजवादी’ का तात्पर्य है आर्थिक समानता और संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित करना।
प्रतिरक्षणीयता: यह आदर्श आज भी प्रासंगिक है, हालांकि इसकी कार्यान्वयन में चुनौतियाँ हैं। सरकार सामाजिक कल्याण योजनाओं और आर्थिक सुधारों के माध्यम से असमानता को कम करने का प्रयास कर रही है, परन्तु पूर्णता की दिशा में अभी भी कार्य होना बाकी है।
3. धर्मनिरपेक्ष (Secular)
अर्थ: ‘धर्मनिरपेक्ष’ का मतलब है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है और किसी भी धर्म को विशेष लाभ या हानि नहीं पहुँचाता।
प्रतिरक्षणीयता: संविधान में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा कायम है, लेकिन व्यवहार में धार्मिक तनाव और विवाद होते रहते हैं। इसके बावजूद, संविधान और राज्य नीति धर्मनिरपेक्षता को सुनिश्चित करने का प्रयास करती हैं।
4. लोकतंत्रात्मक (Democratic)
अर्थ: ‘लोकतंत्रात्मक’ का तात्पर्य है कि सरकार जनप्रतिनिधियों के माध्यम से जनता द्वारा चुनी जाती है और जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।
प्रतिरक्षणीयता: भारत का लोकतांत्रिक ढाँचा सक्रिय और सशक्त है। नियमित चुनाव, प्रतिनिधि संस्थाएँ और नागरिक स्वतंत्रताएँ लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करती हैं, हालांकि राजनीतिक चुनौतियाँ और सुधार की आवश्यकता बनी रहती है।
निष्कर्ष
उद्देशिका में वर्णित विशेषण भारत के गणराज्य के मूलभूत आदर्शों को दर्शाते हैं। ये विशेषण वर्तमान परिस्थितियों में भी सामान्यतः प्रतिरक्षणीय हैं, यद्यपि उनके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ और सुधार की संभावनाएँ बनी रहती हैं।
भारतीय संविधान में मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) के बीच सामंजस्य स्थापित करना चुनौतीपूर्ण रहा है। मूल अधिकार नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करते हैं, जबकि DPSPs सरकार को सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। सुप्रीम कोर्ट कRead more
भारतीय संविधान में मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) के बीच सामंजस्य स्थापित करना चुनौतीपूर्ण रहा है। मूल अधिकार नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करते हैं, जबकि DPSPs सरकार को सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के Kesavananda Bharati (1973) मामले में, कोर्ट ने तय किया कि संविधान के मूल ढांचे को संरक्षित रखते हुए DPSPs को लागू किया जा सकता है। इस निर्णय में यह भी कहा गया कि यदि DPSPs का कार्यान्वयन मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो मूल अधिकारों की प्राथमिकता होगी।
Minerva Mills (1980) केस में, कोर्ट ने DPSPs और मूल अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया, यह मानते हुए कि संविधान के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दोनों की समान महत्वपूर्ण भूमिका है। इन निर्णयों ने भारतीय संविधान के मूल अधिकारों और DPSPs के बीच संतुलन स्थापित किया है।
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