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बोडो समस्या' से आप क्या समझते हैं? क्या बोडो शांति समझौता 2020 असम में विकास और शांति सुनिश्चित करेगा? मूल्यांकन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
बोडो समस्या क्या है? **1. इतिहास और पृष्ठभूमि बोडो समस्या असम के बोडो लोगों, जो एक स्वदेशी जाति समूह हैं, की लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को संदर्भित करती है। बोडो लोग मुख्य रूप से बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) में निवास करते हैं और उन्होंने स्वायत्तता और सांस्कृतिक पहचान की मांग की है। बोडोलैंडRead more
बोडो समस्या क्या है?
**1. इतिहास और पृष्ठभूमि
बोडो समस्या असम के बोडो लोगों, जो एक स्वदेशी जाति समूह हैं, की लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को संदर्भित करती है। बोडो लोग मुख्य रूप से बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) में निवास करते हैं और उन्होंने स्वायत्तता और सांस्कृतिक पहचान की मांग की है। बोडोलैंड के अलग राज्य की मांग से दशकों से असामाजिक अशांति और हिंसा हुई है।
**2. मांग और मुद्दे
बोडो लोगों ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व, सांस्कृतिक संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अलग राज्य या स्वायत्त क्षेत्र की मांग की है। 1980 के दशक में बोडोलैंड की अलग राज्य की मांग ने कई हिंसक विरोध प्रदर्शन और सरकार के साथ वार्ताओं को जन्म दिया।
बोडो शांति समझौता 2020
**1. मुख्य प्रावधान
जनवरी 2020 में साइन किए गए बोडो शांति समझौते में बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (BTR) को अधिक स्वायत्तता देने का प्रस्ताव है। इसके प्रमुख प्रावधान हैं:
**2. विकास और शांति पर प्रभाव
**a. विकास की संभावनाएँ
समझौते के अनुसार, BTR क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और स्थानीय संसाधनों में सुधार किया जाएगा, जिससे क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलेगा। उदाहरण के लिए, बोडो सांस्कृतिक विश्वविद्यालय की स्थापना और स्थानीय विकास परियोजनाएं आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकती हैं।
**b. शांति और स्थिरता
समझौता बोडो लोगों की मुख्य मांगों को पूरा करके क्षेत्र में शांति लाने की संभावना है। बोडो उग्रवादियों का पुनर्वास और शांति के लिए समझौते में शामिल करना दीर्घकालिक शांति सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
चुनौतियाँ और विचार
हालांकि, समझौते की सफलता प्रभावी कार्यान्वयन और सभी भागीदारों के सहयोग पर निर्भर करती है। बोडो उग्रवादियों का समाज में एकीकरण, संसाधनों का प्रबंधन और सभी समुदायों के लिए समावेशी विकास को सुनिश्चित करना आवश्यक होगा।
निष्कर्ष
बोडो शांति समझौता 2020 असम में विकास और शांति की दिशा में सकारात्मक कदम है, बशर्ते कि इसे सही ढंग से लागू किया जाए और समाज के विभिन्न हिस्सों की जरूरतों का ध्यान रखा जाए।
See lessराष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण का वर्णन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण: वर्णन और कार्य **1. स्थापना और उद्देश्य राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) 2002 में जैव विविधता अधिनियम के तहत स्थापित किया गया। इसका मुख्यालय चेन्नई में है और यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। इसका उद्देश्य भारत की जैव विविधता कीRead more
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण: वर्णन और कार्य
**1. स्थापना और उद्देश्य
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) 2002 में जैव विविधता अधिनियम के तहत स्थापित किया गया। इसका मुख्यालय चेन्नई में है और यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। इसका उद्देश्य भारत की जैव विविधता की संरक्षण और सतत उपयोग को सुनिश्चित करना है।
**2. कार्य और जिम्मेदारियाँ
**a. संसाधनों तक पहुँच की नियामकता
NBA जैव विविधता संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के वाणिज्यिक उपयोग के लिए अनुमति प्रदान करता है। हाल ही में, NBA ने औषधीय पौधों पर आधारित बायोप्रोस्पेक्टिंग परियोजनाओं के लिए अनुमति प्रदान की है।
**b. संरक्षण और सतत उपयोग
NBA विभिन्न संवर्धन कार्यक्रमों और पहलों के माध्यम से जैव विविधता के संरक्षण को बढ़ावा देता है। राष्ट्रीय जैव विविधता और मानव कल्याण मिशन इसका एक उदाहरण है।
**c. नीति और समन्वय
यह राज्य जैव विविधता बोर्डों और विभिन्न हितधारकों के साथ समन्वय करता है ताकि जैव विविधता नीतियों का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके। NBA स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन योजनाओं के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।
**d. पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा
NBA स्थानीय स्वदेशी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान की रक्षा करता है और सुनिश्चित करता है कि इसे बिना उचित स्वीकृति के दुरुपयोग न किया जाए। हाल ही में, NBA ने सांस्कृतिक और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण के लिए पहल की है।
**3. हाल की पहलों
NBA ने “नागोया प्रोटोकॉल” के कार्यान्वयन में भूमिका निभाई है, जो जैव संसाधनों की पहुँच और लाभ साझा करने से संबंधित है। इसके अतिरिक्त, जैव विविधता विरासत स्थलों के संरक्षण में भी इसका योगदान है।
**4. चुनौतियाँ
NBA को सीमित संसाधन, प्रशासनिक अड़चनें, और नीतियों के स्थानीय स्तर पर प्रभावी कार्यान्वयन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
सारांश में, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण जैव विविधता के संरक्षण, संसाधनों की पहुँच की नियामकता, और पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, हालांकि इसे विभिन्न कार्यान्वयन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
See lessराज्यों में विधान परिषद के सृजन व उन्मूलन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये। आंध्रप्रदेश विधान सभा द्वारा राज्य के विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव लाने के क्या कारण हैं? संक्षेप में बताइए। (125 Words) [UPPSC 2019]
राज्यों में विधान परिषद के सृजन और उन्मूलन की प्रक्रिया **1. सृजन की प्रक्रिया राज्यों में विधान परिषद के सृजन के लिए राज्य विधान सभा में एक संकल्प पारित किया जाता है। इसके बाद, यह संकल्प केंद्र सरकार को भेजा जाता है। केंद्र सरकार के द्वारा लोकसभा और राज्यसभा में एक अधिनियम पारित करने के बाद विधान पRead more
राज्यों में विधान परिषद के सृजन और उन्मूलन की प्रक्रिया
**1. सृजन की प्रक्रिया
राज्यों में विधान परिषद के सृजन के लिए राज्य विधान सभा में एक संकल्प पारित किया जाता है। इसके बाद, यह संकल्प केंद्र सरकार को भेजा जाता है। केंद्र सरकार के द्वारा लोकसभा और राज्यसभा में एक अधिनियम पारित करने के बाद विधान परिषद की स्थापना होती है। तेलंगाना का विधान परिषद 2014 में इसी प्रक्रिया के तहत बना था।
**2. उन्मूलन की प्रक्रिया
विधान परिषद के उन्मूलन के लिए भी राज्य विधान सभा में एक संकल्प पारित किया जाता है। यह संकल्प केंद्र सरकार को भेजा जाता है, और केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा और राज्यसभा में एक अधिनियम पारित करने के बाद विधान परिषद समाप्त होती है।
**3. आंध्र प्रदेश के कारण
आंध्र प्रदेश विधान सभा ने 2020 में विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पेश किया। इसके मुख्य कारण थे अप्रभावशीलता और उच्च खर्च। राज्य सरकार का तर्क था कि विधान परिषद विधायी प्रक्रिया में बाधा डाल रही थी और इससे शासन में सुधार के लिए इसे समाप्त किया जाना चाहिए।
सारांश में, विधान परिषद के सृजन और उन्मूलन की प्रक्रिया राज्य विधान सभा के संकल्प और केंद्र सरकार के अधिनियम की आवश्यकता होती है। आंध्र प्रदेश ने इसे उच्च खर्च और अव्यवहारिकता के कारण समाप्त करने का प्रस्ताव किया।
See lessजन-प्रतिनिधित्व कानून के मुख्य तत्वों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
जन-प्रतिनिधित्व कानून के मुख्य तत्वों का आलोचनात्मक परीक्षण **1. चुनावी प्रक्रिया का नियमन जन-प्रतिनिधित्व कानून (1951 & 1952) चुनावी प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह चुनावों, उम्मीदवार की पात्रता, और मतदाता अधिकारों की प्रक्रियाओं को स्पष्ट करता है। हाल ही में, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMs)Read more
जन-प्रतिनिधित्व कानून के मुख्य तत्वों का आलोचनात्मक परीक्षण
**1. चुनावी प्रक्रिया का नियमन
जन-प्रतिनिधित्व कानून (1951 & 1952) चुनावी प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह चुनावों, उम्मीदवार की पात्रता, और मतदाता अधिकारों की प्रक्रियाओं को स्पष्ट करता है। हाल ही में, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMs) और वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश इसके निष्पक्षता को बढ़ाते हैं।
**2. पात्रता और अयोग्यता
कानून उम्मीदवारों के पात्रता मानदंड और अयोग्यता की स्थितियाँ निर्धारित करता है, जैसे आपराधिक सजा और विफलता। 2021 में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आपराधिक रिकॉर्ड के खुलासे पर इसका उदाहरण है।
**3. चुनावी अपराध
यह चुनावी अपराधों जैसे भ्रष्टाचार, डराना-धमकाना, और घूस को संबोधित करता है। हाल के चुनावों में धन और बल के दुरुपयोग के खिलाफ की गई कार्रवाई इस तत्व की प्रासंगिकता को दर्शाती है।
**4. सुधार और चुनौतियाँ
कानून के बावजूद, अधिकारों की अमलविज्ञता और पारदर्शिता की कमी जैसी समस्याएँ मौजूद हैं। हाल में ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण के प्रस्ताव जैसे सुधार इन चुनौतियों को संबोधित करने के प्रयास हैं।
सारांश में, जन-प्रतिनिधित्व कानून चुनावी व्यवस्था के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करता है, लेकिन सुधार और पारदर्शिता की निरंतर आवश्यकता है।
See lessभारतीय लोकतंत्र का दर्शन भारत वर्ष के संविधान की प्रस्तावना में सत्रिहित है। व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
भारतीय लोकतंत्र का दर्शन संविधान की प्रस्तावना में **1. मूलभूत मूल्य भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारतीय लोकतंत्र के दर्शन को स्पष्ट करती है। यह भारत को संप्रभु, साम्यवादिता, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करती है, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और भाईचारा की प्रतिबद्धता हैRead more
भारतीय लोकतंत्र का दर्शन संविधान की प्रस्तावना में
**1. मूलभूत मूल्य
भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारतीय लोकतंत्र के दर्शन को स्पष्ट करती है। यह भारत को संप्रभु, साम्यवादिता, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करती है, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और भाईचारा की प्रतिबद्धता है।
**2. संप्रभुता और गणराज्य
संप्रभुता भारत की आंतरिक और बाहरी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है, जबकि गणराज्य का मतलब है कि राष्ट्र प्रमुख का चुनाव विरासत द्वारा नहीं, बल्कि चुनाव के माध्यम से होता है, जैसा कि राष्ट्रपति के चुनाव में देखा जाता है।
**3. साम्यवादिता और धर्मनिरपेक्षता
साम्यवादिता का तात्पर्य आर्थिक समानता से है, जिसे प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रमों से बढ़ावा दिया गया है। धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों को समान मानती है, जैसा कि धार्मिक विविधता को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों में देखा जा सकता है।
**4. लोकतांत्रिक सिद्धांत
लोकतंत्र प्रतिनिधि शासन और मुक्त चुनाव सुनिश्चित करता है, जैसे कि हाल के आम चुनाव में देखा गया।
सारांश में, प्रस्तावना भारतीय लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों को स्पष्ट करती है और देश की नीति-निर्माण को मार्गदर्शन प्रदान करती है।
See lessसंक्षेप में भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका बताइये। (125 Words) [UPPSC 2019]
भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका **1. मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), 1993 में स्थापित, मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए जिम्मेदार है। यह शिकायतों और आरोपों की जांच करता है, जैसे पुलिस अत्याचार और कैदियों की मौत। **2. सलाहकारी भूमिका NHRC सरकRead more
भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका
**1. मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), 1993 में स्थापित, मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए जिम्मेदार है। यह शिकायतों और आरोपों की जांच करता है, जैसे पुलिस अत्याचार और कैदियों की मौत।
**2. सलाहकारी भूमिका
NHRC सरकार को नीति बदलाव और कानूनी सुधारों पर सिफारिशें प्रदान करता है। हाल ही में, इसने सजायाफ्ता कैदियों की स्थिति में सुधार के लिए सिफारिश की है।
**3. जन जागरूकता और शिक्षा
NHRC जन जागरूकता बढ़ाने और शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रचार अभियान, सेमिनार और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है। बाल श्रम और मानव तस्करी के खिलाफ अभियान इसका उदाहरण हैं।
**4. निगरानी और जवाबदेही
NHRC मानवाधिकार मानदंडों की निगरानी करता है और राज्य एजेंसियों की जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
सारांश में, NHRC मानवाधिकार सुरक्षा, सलाहकारी भूमिका, जन जागरूकता, और निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
See lessसार्वजनिक धन के सरंक्षक के रूप में, भारत के नियंत्रक एवं मालेखा परीक्षक की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
सार्वजनिक धन के सरंक्षक के रूप में, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका का परीक्षण 1. लेखा परीक्षण और वित्तीय रिपोर्टिंग (Audit and Financial Reporting): जिम्मेदारी: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) केंद्रीय और राज्य सरकारों के खातों का लेखा परीक्षण करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सारRead more
सार्वजनिक धन के सरंक्षक के रूप में, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका का परीक्षण
1. लेखा परीक्षण और वित्तीय रिपोर्टिंग (Audit and Financial Reporting):
2. जवाबदेही सुनिश्चित करना (Ensuring Accountability):
3. जनहित की रक्षा (Public Interest Protection):
4. रिपोर्टिंग और सिफारिशें (Reporting and Recommendations):
5. स्वतंत्रता और ईमानदारी (Independence and Integrity):
निष्कर्ष: भारत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) सार्वजनिक धन के एक महत्वपूर्ण संरक्षक के रूप में कार्य करता है। लेखा परीक्षण, जवाबदेही सुनिश्चित करने, जनहित की रक्षा, और सिफारिशों के माध्यम से, CAG पारदर्शिता और वित्तीय प्रबंधन की प्रभावशीलता में महत्वपूर्ण योगदान करता है। चुनौतियों के बावजूद, CAG का कार्य सार्वजनिक वित्तीय अनुशासन और ईमानदारी बनाए रखने में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
See lessभारत में पंचायती राज व्यवस्था की सफलताओं को सीमित करने वाली समस्याओं का विश्लेषण करें। इस समस्याओं का सामना करने में 73वाँ संवैधानिक संशोधन कितना सफल रहा है? (200 Words) [UPPSC 2021]
भारत में पंचायती राज व्यवस्था की सफलताओं को सीमित करने वाली समस्याएँ और 73वाँ संवैधानिक संशोधन 1. वित्तीय समस्याएँ (Financial Constraints): सीमित संसाधन: पंचायतों के पास अक्सर पर्याप्त फंड और वित्तीय स्वायत्तता की कमी होती है। राज्य सरकारों पर निर्भरता के कारण धन की आपूर्ति नियमित और पर्याप्त नहीं हRead more
भारत में पंचायती राज व्यवस्था की सफलताओं को सीमित करने वाली समस्याएँ और 73वाँ संवैधानिक संशोधन
1. वित्तीय समस्याएँ (Financial Constraints):
2. प्रशासनिक अक्षमताएँ (Administrative Inefficiencies):
3. राजनीतिक हस्तक्षेप (Political Interference):
4. क्षमता निर्माण की कमी (Lack of Capacity Building):
73वाँ संवैधानिक संशोधन (1992) का प्रभाव:
1. स्थानीय निकायों का सशक्तिकरण (Empowerment of Local Bodies):
2. वित्तीय व्यावसायिकता (Financial Devolution):
3. आरक्षण और समावेशिता (Reservations and Inclusivity):
निष्कर्ष: 73वाँ संवैधानिक संशोधन पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने में सफल रहा है, लेकिन वित्तीय समस्याएँ, प्रशासनिक अक्षमताएँ, राजनीतिक हस्तक्षेप, और क्षमता निर्माण की कमी जैसे मुद्दे इसकी पूरी सफलता को सीमित करते हैं। इन समस्याओं का समाधान आवश्यक है ताकि पंचायती राज व्यवस्था का पूर्ण लाभ उठाया जा सके।
See lessउन मुख्य उपायों की विवेचना कीजिये जिनके द्वारा भारतीय संसद कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है। (200 Words) [UPPSC 2021]
भारतीय संसद द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण के मुख्य उपाय 1. विधायी निरीक्षण (Legislative Oversight): संसदीय समितियाँ: संसद विभिन्न समितियाँ जैसे लोक लेखा समिति (PAC) और वित्तीय समिति का गठन करती है, जो सरकारी योजनाओं, बजट और खर्चों की जांच करती हैं। ये समितियाँ कार्यपालिका की गतिविधियों की निगरानी कRead more
भारतीय संसद द्वारा कार्यपालिका पर नियंत्रण के मुख्य उपाय
1. विधायी निरीक्षण (Legislative Oversight):
2. सवाल और उत्तर प्रणाली (Question and Answer System):
3. वेतन और संसद की अनुमति (Control over Expenditure):
4. अविश्वास प्रस्ताव (No-confidence Motion):
5. संसदीय बहस और चर्चा (Parliamentary Debate and Discussion):
निष्कर्ष: भारतीय संसद के पास कार्यपालिका पर नियंत्रण के प्रभावशाली उपाय हैं, जैसे विधायी निरीक्षण, सवाल-उत्तर प्रणाली, वित्तीय नियंत्रण, अविश्वास प्रस्ताव और संसदीय बहस। ये उपाय सरकारी नीतियों और क्रियावली की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं, जिससे लोकतंत्र की मजबूती बनी रहती है।
See lessभारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, परंतु उसकी आत्मा एकात्मक हैं।' स्पष्ट कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
भारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, परंतु उसकी आत्मा एकात्मक है 1. संघात्मक ढाँचा (Federal Structure): शक्ति का विभाजन: भारतीय संविधान संघात्मक ढाँचा स्थापित करता है, जिसमें केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन होता है। यह विभाजन संघ सूची, राज्य सूची, और सांझी सूची में निर्धारित है।Read more
भारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, परंतु उसकी आत्मा एकात्मक है
1. संघात्मक ढाँचा (Federal Structure):
2. एकात्मक विशेषताएँ (Unitary Features):
3. केंद्रीय सरकार की प्रधानता (Central Supremacy):
4. न्यायिक व्याख्या (Judicial Interpretation):
निष्कर्ष: भारतीय संविधान संघात्मक ढाँचा स्थापित करता है, लेकिन उसकी एकात्मक विशेषताएँ जैसे केंद्रीय शक्ति और आपातकालीन प्रावधान यह सुनिश्चित करती हैं कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय एकता और अखंडता बनाए रख सके और समस्त देश के लिए चुनौतीपूर्ण स्थितियों का समाधान कर सके।
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