भारत के वित्तीय आयोग का गठन किस प्रकार किया जाता है? हाल में गठित वित्तीय आयोग के विचारार्थ विषय (टर्म्स ऑफ रेफरेंस) के बारे में आप क्या जानते हैं? विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2018]
भारत का संविधान: गतिशीलता और प्रगतिशीलता के उदाहरण जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के निरंतर विस्तार: **1. "जीने का अधिकार (Article 21): "उन्नति और विस्तार": भारत का संविधान जीने के अधिकार को अत्यधिक गतिशील तरीके से समझता है। यह अधिकार मूल रूप से जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण की गारRead more
भारत का संविधान: गतिशीलता और प्रगतिशीलता के उदाहरण
जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के निरंतर विस्तार:
**1. “जीने का अधिकार (Article 21):
- “उन्नति और विस्तार”: भारत का संविधान जीने के अधिकार को अत्यधिक गतिशील तरीके से समझता है। यह अधिकार मूल रूप से जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण की गारंटी प्रदान करता है, लेकिन इसके दायरे में निरंतर विस्तार हो रहा है।
- “प्रमुख निर्णय”:
- “केशवानंद भारती केस (1973)”: सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि जीने का अधिकार केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें जीवन की गुणवत्ता भी शामिल है।
- “नलसार यूनिवर्सिटी केस (2005)”: कोर्ट ने शिक्षा को जीने के अधिकार का हिस्सा माना, यह मानते हुए कि शिक्षा का अधिकार जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है।
**2. “व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Article 19):
- “स्वतंत्रता का विस्तार”: संविधान के अनुच्छेद 19 ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को आधारभूत बनाया है, जो विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रताओं जैसे बोलने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और आंदोलन की स्वतंत्रता को सुरक्षित करता है।
- “प्रमुख निर्णय”:
- “मणका गांधी केस (1978)”: इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान की स्वतंत्रता की अधिकार केवल सरकारी हस्तक्षेप से ही नहीं बल्कि समाज की अन्य बाधाओं से भी मुक्त होनी चाहिए।
- “शिवकुमार यादव केस (2021)”: कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है, जिसे निजता के उल्लंघन से सुरक्षा दी जानी चाहिए।
निष्कर्ष:
भारत का संविधान, अपने गतिशील दृष्टिकोण के माध्यम से, जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में निरंतर विस्तार कर रहा है। यह संविधान प्रगतिशील समाज की आवश्यकताओं के अनुसार अद्यतित रहता है, और इसके द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों की व्याख्या और संरक्षण में न्यायालयों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
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भारत के वित्तीय आयोग का गठन और टर्म्स ऑफ रेफरेंस वित्तीय आयोग का गठन: भारत में वित्तीय आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत किया जाता है। इसका उद्देश्य केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संसाधनों का वितरण और संघीय वित्तीय संबंधों को व्यवस्थित करना है। वित्तीय आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपतिRead more
भारत के वित्तीय आयोग का गठन और टर्म्स ऑफ रेफरेंस
वित्तीय आयोग का गठन:
भारत में वित्तीय आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत किया जाता है। इसका उद्देश्य केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संसाधनों का वितरण और संघीय वित्तीय संबंधों को व्यवस्थित करना है। वित्तीय आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। आयोग में एक अध्यक्ष और एक या दो सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। आयोग के अध्यक्ष और सदस्य आमतौर पर वित्तीय और प्रशासनिक अनुभव वाले व्यक्ति होते हैं।
हाल में गठित वित्तीय आयोग के टर्म्स ऑफ रेफरेंस:
1. वित्तीय समन्वय: आयोग को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय समन्वय के लिए सुझाव देने का कार्य सौंपा गया है। इसमें राज्य सरकारों को प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता और उनकी योजनाओं के लिए आवश्यक अनुदान की सिफारिश शामिल है।
2. संसाधनों का वितरण: आयोग को यह तय करने की जिम्मेदारी दी जाती है कि केंद्रीय वित्तीय संसाधनों का वितरण राज्यों के बीच किस प्रकार किया जाएगा। इसमें केंद्रीय करों के आवंटन और राज्यों को दिए जाने वाले वित्तीय हिस्से की सिफारिश करना शामिल है।
3. ऋण और अन्य वित्तीय मामलों पर सलाह: आयोग को राज्य सरकारों के ऋणों की स्थिति और उनकी वित्तीय स्थिरता पर भी सलाह देने का कार्य सौंपा गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्यों की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ रहे, आयोग राज्य सरकारों के ऋण प्रबंधन और वित्तीय अनुशासन पर भी विचार करता है।
4. विशेष समस्याओं पर ध्यान: आयोग को उन राज्यों या क्षेत्रों के लिए विशेष समाधान सुझाने का भी कार्य सौंपा गया है जो आर्थिक रूप से पिछड़े या विशेष समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसमें विशेष अनुदान और वित्तीय सहायता की सिफारिश करना शामिल हो सकता है।
5. रिपोर्ट और सिफारिशें: वित्तीय आयोग अपनी रिपोर्ट को राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जिसमें वे अपने सिफारिशों को विस्तृत रूप से बताते हैं। रिपोर्ट को सरकार द्वारा लागू करने के लिए उचित कदम उठाए जाते हैं।
उपसंहार:
वित्तीय आयोग का गठन और इसके टर्म्स ऑफ रेफरेंस भारत के संघीय वित्तीय संरचना को संतुलित और व्यवस्थित रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। आयोग के द्वारा की जाने वाली सिफारिशें और उनके आधार पर उठाए गए कदम केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सहयोग को सुगम बनाते हैं और आर्थिक समन्वय को सुनिश्चित करते हैं।
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