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नीति आयोग के सात स्तम्भों का उल्लेख कीजिए।
नीति आयोग के सात स्तम्भ नीति आयोग, जिसे भारत सरकार ने 2015 में स्थापित किया था, का उद्देश्य देश के विकास को प्रोत्साहित करने और सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के लिए एक सशक्त रणनीतिक ढांचा प्रदान करना है। इसके कामकाज को सात प्रमुख स्तम्भों के चारों ओर व्यवस्थित किया गया है। ये सात स्तम्भ निम्नलिखित हैRead more
नीति आयोग के सात स्तम्भ
नीति आयोग, जिसे भारत सरकार ने 2015 में स्थापित किया था, का उद्देश्य देश के विकास को प्रोत्साहित करने और सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के लिए एक सशक्त रणनीतिक ढांचा प्रदान करना है। इसके कामकाज को सात प्रमुख स्तम्भों के चारों ओर व्यवस्थित किया गया है। ये सात स्तम्भ निम्नलिखित हैं:
1. साझा दृष्टिकोण विकसित करना
नीति आयोग का पहला स्तम्भ राष्ट्रीय विकास के लिए एक साझा दृष्टिकोण विकसित करना है। इसका मतलब है कि सभी हिस्सों के साथ मिलकर एक समग्र विकास योजना बनाना।
2. सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित करना
नीति आयोग संघीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है। यह राज्यों के बीच विचारों और संसाधनों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करता है।
3. रणनीतिक नीतियाँ डिजाइन और लागू करना
यह स्तम्भ महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिए रणनीतिक नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन करता है।
4. नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना
नीति आयोग नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करता है, जिससे एक उद्यमशीलता की संस्कृति का विकास हो सके।
5. सतत विकास को प्रोत्साहित करना
यह स्तम्भ पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक आयामों को नीति योजना और कार्यान्वयन में शामिल करता है।
6. संस्थानों और शासन को सुदृढ़ करना
नीति आयोग सार्वजनिक संस्थानों की दक्षता और प्रभावशीलता को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करता है।
7. क्षमता निर्माण और मानव संसाधन विकास
नीति आयोग क्षमता निर्माण और मानव संसाधन के विकास को प्रोत्साहित करता है ताकि नीतियों और कार्यक्रमों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।
निष्कर्ष
नीति आयोग के सात स्तम्भ—साझा दृष्टिकोण विकसित करना, सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित करना, रणनीतिक नीतियाँ डिजाइन और लागू करना, नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना, सतत विकास को प्रोत्साहित करना, संस्थानों और शासन को सुदृढ़ करना, और क्षमता निर्माण और मानव संसाधन विकास—भारत के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये स्तम्भ भारत की विकास यात्रा को दिशा देने और एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिए आधार प्रदान करते हैं।
See lessनागरिक समाज के दायरे में क्या शामिल है?
नागरिक समाज के दायरे में शामिल तत्व नागरिक समाज (Civil Society) उन संगठनों, समूहों और संस्थाओं का एक विस्तृत नेटवर्क है जो सरकार और बाजार से स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य समाज के विभिन्न पहलुओं को सुधारना, अधिकारों की रक्षा करना, और सार्वजनिक बहस को प्रोत्साहित करना है। नागरिकRead more
नागरिक समाज के दायरे में शामिल तत्व
नागरिक समाज (Civil Society) उन संगठनों, समूहों और संस्थाओं का एक विस्तृत नेटवर्क है जो सरकार और बाजार से स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य समाज के विभिन्न पहलुओं को सुधारना, अधिकारों की रक्षा करना, और सार्वजनिक बहस को प्रोत्साहित करना है। नागरिक समाज के दायरे में निम्नलिखित तत्व शामिल हैं:
1. गैर-सरकारी संगठन (NGOs)
गैर-सरकारी संगठन, जो सरकार से स्वतंत्र होते हैं, समाज के विभिन्न मुद्दों पर काम करते हैं। उदाहरण के लिए, अक्षय पात्र फाउंडेशन भोजन और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है, जबकि सेवा इंटरनेशनल आपदा राहत और सामुदायिक विकास में सक्रिय है।
2. सामुदायिक संगठनों (CBOs)
सामुदायिक संगठन स्थानीय स्तर पर काम करते हैं और स्थानीय समस्याओं का समाधान निकालते हैं। हाल ही का उदाहरण है विवेकानंद युथ फाउंडेशन, जो गरीब बच्चों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है।
3. वकालत और सक्रियतावादी समूह
ये समूह विशेष मुद्दों पर जन जागरूकता बढ़ाते हैं और सरकार की नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। उदाहरण स्वरूप, “स्वच्छ भारत अभियान” ने स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
4. पेशेवर संघ और श्रम संघ
पेशेवर संघ और श्रम संघ विभिन्न पेशेवर समूहों या श्रमिक वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके अधिकारों की रक्षा करते हैं। हाल ही में, भारतीय श्रम संघ (INTUC) ने श्रमिकों के अधिकारों और न्यायपूर्ण वेतन की मांग की है।
5. धार्मिक और आस्थापंथ आधारित संगठन
ये संगठन धार्मिक या आध्यात्मिक विश्वासों के आधार पर सामाजिक सेवाएं, मानवीय सहायता, और सामुदायिक समर्थन प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने आपदा के समय राहत कार्य किए हैं और सामाजिक सेवाएं प्रदान की हैं।
6. सामाजिक और सांस्कृतिक क्लब
ये क्लब सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सामाजिक मेलजोल, और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं। उदाहरण के लिए, रोटरी क्लब ने विभिन्न सामाजिक परियोजनाओं के माध्यम से वैश्विक स्तर पर सेवा प्रदान की है, जैसे पोलियो उन्मूलन।
7. थिंक टैंक और शोध संस्थान
थिंक टैंक और शोध संस्थान नीति अनुशंसाओं का निर्माण करते हैं, शोध करते हैं, और विशेषज्ञ राय प्रदान करते हैं। उदाहरण के तौर पर, भारतीय सार्वजनिक नीति अनुसंधान संस्थान (CPR) नीति निर्माण और बहस में योगदान करता है।
8. मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता
मीडिया, विशेष रूप से स्वतंत्र पत्रकारिता, जनसंख्या को सूचित करने, सत्ता को जवाबदेह ठहराने, और सार्वजनिक बहस को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हाल ही में, “द वायर” ने सरकारी और कॉर्पोरेट शक्तियों की जवाबदेही को लेकर महत्वपूर्ण रिपोर्टिंग की है।
निष्कर्ष
नागरिक समाज का दायरा व्यापक है और इसमें विभिन्न प्रकार के संगठन और गतिविधियाँ शामिल हैं जो समाज की बेहतरी, अधिकारों की रक्षा, और सार्वजनिक बहस को प्रोत्साहित करती हैं। इन तत्वों के माध्यम से, नागरिक समाज समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
See lessन्यायिक समीक्षा के तीन महत्व क्या हैं?
न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रिया है जो यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी प्राधिकरण और कानून संविधान के अनुसार हों। इसके तीन प्रमुख महत्व निम्नलिखित हैं: संविधान की रक्षा: न्यायिक समीक्षा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य संविधान की रक्षा करना है। जब भी किसी कानून, आदेश, या सरकारीRead more
न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रिया है जो यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी प्राधिकरण और कानून संविधान के अनुसार हों। इसके तीन प्रमुख महत्व निम्नलिखित हैं:
जनहित याचिका के तीन मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
जनहित याचिका (PIL) के तीन मुख्य उद्देश्य 1. कमज़ोर वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करना उद्देश्य: जनहित याचिका का एक प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्याय उन लोगों तक पहुँचे जो स्वयं कानूनी उपाय नहीं कर सकते, विशेषकर समाज के कमज़ोर और गरीब वर्गों के लिए। उदाहरण: 2020 में COVID-19 लॉकडाउन के दौRead more
जनहित याचिका (PIL) के तीन मुख्य उद्देश्य
1. कमज़ोर वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करना
2. संस्थानिक और प्रणालीगत विफलताओं का समाधान
3. सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों को बढ़ावा देना
निष्कर्ष
जनहित याचिका का उद्देश्य न्याय की पहुंच को बढ़ाना, प्रणालीगत विफलताओं को ठीक करना और सामाजिक न्याय तथा मानवाधिकारों को प्रोत्साहित करना है। यह एक प्रभावी साधन है जो व्यापक सामाजिक मुद्दों को हल करने और संवैधानिक अधिकारों को लागू करने में सहायक है।
See lessभारतीय संविधान की तीन संघीय विशेषताएँ इंगित करें।
भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएँ शक्ति विभाजन: संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन संघ सूची, राज्य सूची, और समवर्ती सूची के माध्यम से होता है। दो-स्तरीय सरकार: भारत में संघीय संरचना के अंतर्गत संघ और राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं। स्वतंत्र न्यायपालिका: सुप्रीम कोर्ट संघ और राज्यRead more
भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएँ
नीति आयोग के गठन के कारण उद्देश्य एवं कार्यों का उल्लेख करते हुये हाल ही में पुनर्गठित नीति आयोग का विवरण दीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
नीति आयोग के गठन के कारण नीति आयोग का गठन जनवरी 2015 में भारतीय योजना आयोग की जगह पर किया गया। इसके गठन के प्रमुख कारण थे: केंद्रित योजना प्रणाली की समस्या: योजना आयोग की ऊपर से नीचे की योजना और कमजोर प्रभावशीलता की आलोचना थी। राज्यों को अधिक भूमिका: राज्यों को विकास में अधिक भागीदारी देने की आवश्यकRead more
नीति आयोग के गठन के कारण
नीति आयोग का गठन जनवरी 2015 में भारतीय योजना आयोग की जगह पर किया गया। इसके गठन के प्रमुख कारण थे:
उद्देश्य
कार्य
हाल ही में पुनर्गठित नीति आयोग
2023 में नीति आयोग का पुनर्गठन किया गया, जिसमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं:
इन परिवर्तनों का उद्देश्य नीति आयोग को अधिक प्रभावशाली और लचीला बनाना है ताकि वह भारत की जटिल विकासात्मक चुनौतियों का सामना कर सके।
See lessभारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की संवैधानिक स्थिति का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की संवैधानिक स्थिति 1. नियुक्ति और कार्यकाल: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और इसका कार्यकाल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 के तहत निर्धारित होता है। कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है। गिरीश चंद्र मुर्मू 2020 में हाल ही में नियुक्Read more
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की संवैधानिक स्थिति
1. नियुक्ति और कार्यकाल: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और इसका कार्यकाल नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अधिनियम, 1971 के तहत निर्धारित होता है। कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है। गिरीश चंद्र मुर्मू 2020 में हाल ही में नियुक्त CAG हैं।
2. स्वतंत्रता: CAG पूरी स्वतंत्रता से कार्य करता है और इसके पद की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। हटाने की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह होती है, जो इसकी स्वतंत्रता को बनाए रखती है।
3. अधिकार और कार्य: CAG केंद्र और राज्य सरकारों के खातों की लेखा परीक्षा करता है। इसके रिपोर्ट संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, 2021 की CAG रिपोर्ट ने कोविड-19 टीकाकरण प्रक्रिया में अनियमितताओं को उजागर किया।
निष्कर्ष: CAG की संवैधानिक स्थिति उसे स्वतंत्र रूप से काम करने और सरकारी वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने की शक्ति देती है।
See lessभारत के संविधान में जीवन का अधिकार की समीक्षा कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
भारत के संविधान में जीवन का अधिकार की समीक्षा संविधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के धारा 21 के तहत जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो कहता है कि "किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।" स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता: धाRead more
भारत के संविधान में जीवन का अधिकार की समीक्षा
संविधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के धारा 21 के तहत जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो कहता है कि “किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।”
स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता: धारा 21 में जीवन का अधिकार केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है। इसमें स्वास्थ्य, स्वच्छता, और जीवन की गुणवत्ता शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे “जीवन की गुणवत्ता” के हिस्से के रूप में मान्यता दी है, जिसमें आवास, शिक्षा, और काम के उचित हालात भी शामिल हैं।
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष: धारा 21 का अधिकार संविधान के मौलिक अधिकारों में प्रमुख है और इसे केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं माना जा सकता। यह आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य से जुड़े पहलुओं के समग्र दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
See lessभारत में प्रधानमंत्री की उभरती भूमिका का वर्णन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
भारत में प्रधानमंत्री की उभरती भूमिका **1. शक्ति का संकेंद्रण हाल के वर्षों में, भारत के प्रधानमंत्री की भूमिका में महत्वपूर्ण संकेंद्रण देखा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी कार्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत, 2014 से, प्रशाRead more
भारत में प्रधानमंत्री की उभरती भूमिका
**1. शक्ति का संकेंद्रण
हाल के वर्षों में, भारत के प्रधानमंत्री की भूमिका में महत्वपूर्ण संकेंद्रण देखा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी कार्यों पर अधिक नियंत्रण स्थापित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तहत, 2014 से, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया गया है और नीति कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान दिया गया है।
**2. नीति पहलों में नेतृत्व
प्रधानमंत्री प्रमुख नीति पहलों को शुरू करने और लागू करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। “मेक इन इंडिया” अभियान (2014) ने घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य रखा। “डिजिटल इंडिया” पहल ने डिजिटल सशक्त समाज बनाने की दिशा में कदम उठाए। ये पहलों प्रधानमंत्री की भूमिका को राष्ट्रीय एजेंडाओं को आकार देने में दिखाते हैं।
**3. सामरिक कूटनीति
प्रधानमंत्री की अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रधानमंत्री मोदी की सक्रिय विदेश नीति दृष्टिकोण, जिसमें Quad Leaders’ Summit और अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिशें शामिल हैं, भारत की वैश्विक स्थिति को सशक्त बनाती हैं।
**4. जनता से जुड़ाव और संचार
प्रधानमंत्री अब सोशल मीडिया और सार्वजनिक भाषणों के माध्यम से जनता से सक्रिय रूप से जुड़ते हैं, जिससे सरकारी नीतियों की प्रत्यक्ष और व्यापक संचार होता है। प्रधानमंत्री मोदी का ट्विटर और इंस्टाग्राम का उपयोग सरकारी पहलों की दृश्यता और पहुंच को बढ़ाता है।
हालिया उदाहरण
COVID-19 महामारी के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय रणनीति को तैयार और संप्रेषित करने में केंद्रीय भूमिका निभाई। लॉकडाउन और वैक्सीनेशन ड्राइव की घोषणा करने में उनकी नेतृत्व क्षमता ने संकट प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष
भारत में प्रधानमंत्री की भूमिका ने शक्ति संकेंद्रण, नीति निर्माण, कूटनीति और जनसंचार के क्षेत्र में व्यापक विस्तार देखा है। यह उभरती भूमिका भारत की शासन व्यवस्था और वैश्विक स्थिति को आकार देने में महत्वपूर्ण है।
See lessआधारभूत ढाँचे का सिद्धांत' से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान के लिये इसके महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत क्या है? **1. परिभाषा और उत्पत्ति 'आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत' भारतीय न्यायपालिका द्वारा स्थापित एक न्यायिक सिद्धांत है, जिसका तात्पर्य है कि संविधान के कुछ मूलभूत तत्वों को किसी भी संशोधन के द्वारा नष्ट या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह सिद्धांत केसवानंद भारती मामले (1973)Read more
आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत क्या है?
**1. परिभाषा और उत्पत्ति
‘आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत’ भारतीय न्यायपालिका द्वारा स्थापित एक न्यायिक सिद्धांत है, जिसका तात्पर्य है कि संविधान के कुछ मूलभूत तत्वों को किसी भी संशोधन के द्वारा नष्ट या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह सिद्धांत केसवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय से उत्पन्न हुआ, जहाँ कोर्ट ने निर्णय दिया कि संसद को संविधान को संशोधित करने की व्यापक शक्ति है, परंतु वह संविधान के “आधारभूत ढाँचे” को बदल नहीं सकती।
**2. सिद्धांत के मुख्य तत्व
इस सिद्धांत के तहत, संविधान के कुछ मूलभूत तत्व होते हैं जिन्हें सुरक्षित रखा जाता है, जैसे:
भारतीय संविधान के लिए महत्त्व
**1. मूलभूत मूल्यों की सुरक्षा
यह सिद्धांत भारतीय संविधान के मूलभूत मूल्यों और विचारधारा की सुरक्षा करता है। उदाहरण के लिए, गोलकनाथ मामले (1967) और केसवानंद भारती मामले (1973) में यह सिद्धांत लोकतांत्रिक सिद्धांतों और कानूनी राज्य को बनाए रखने में सहायक रहा है।
**2. संसदीय शक्तियों की सीमा
इस सिद्धांत के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट ने संसदीय शक्तियों का संतुलन बनाए रखा है और सुनिश्चित किया है कि संविधान में कोई भी संशोधन मूलभूत तत्वों को कमजोर नहीं कर सकता। इससे संसदीय शक्ति की पूर्णता को सीमित किया गया है, जैसे कि एस.आर. बोम्मई मामला (1994) में संघीयता की सुरक्षा की गई।
**3. न्यायिक स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा
यह सिद्धांत न्यायिक स्वतंत्रता और मूल अधिकारों की रक्षा करता है। के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार (2017) मामले में, कोर्ट ने यह माना कि गोपनीयता का अधिकार भी संविधान के आधारभूत ढाँचे का हिस्सा है, जिससे मूल अधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया गया।
निष्कर्ष
‘आधारभूत ढाँचे का सिद्धांत’ भारतीय संविधान की मौलिक मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह संविधान की संरचना और लोकतांत्रिक संस्थाओं को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और संविधान के मूलभूत तत्वों को किसी भी संभावित संशोधन से सुरक्षित करता है।
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