क्या आपके विचार में भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह ‘नियंत्रण एवं संतुलन’ के सिद्धान्त पर आधारित है ? व्याख्या कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम भारतीय संविधान में नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों को अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए बनाए गए हैं। इन संशोधनों के माध्यम से, नगरीय स्वशासन को मजबूत किया गया है और स्थानीय स्तर पर शक्तियों का हस्तांतरण किया गया है। यह संशोधन नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों को नRead more
73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम भारतीय संविधान में नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों को अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए बनाए गए हैं। इन संशोधनों के माध्यम से, नगरीय स्वशासन को मजबूत किया गया है और स्थानीय स्तर पर शक्तियों का हस्तांतरण किया गया है।
यह संशोधन नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों को निर्देशित करने, विकसित करने और उन्हें स्वायत्त निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करते हैं। इसके माध्यम से स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में जनसहयोग को बढ़ावा मिलता है और नागरिकों को अपने विकास में सक्रिय भागीदार बनाता है।
हालांकि, कुछ क्षेत्रों में हस्तांतरण की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ आती हैं। इनमें सबसे मुख्य हैं वित्तीय स्वायत्तता की कमी, संसाधनों की अभाव, और क्षेत्रीय गवर्नेंस में असंघतितता। इन मुद्दों को हल करने के लिए सुधार की आवश्यकता है ताकि स्थानीय स्तर पर शक्तियों का सुचारू रूप से हस्तांतरण हो सके।
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भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को पूर्णतः स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह 'नियंत्रण एवं संतुलन' के सिद्धान्त पर आधारित है। व्याख्या: 1. शक्ति का पृथक्करण: भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है, लेकिन इसे कठोर पृथक्करण के बजाय लचीले तरीRead more
भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धान्त को पूर्णतः स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह ‘नियंत्रण एवं संतुलन’ के सिद्धान्त पर आधारित है।
व्याख्या:
1. शक्ति का पृथक्करण: भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है, लेकिन इसे कठोर पृथक्करण के बजाय लचीले तरीके से लागू किया गया है। संघीय ढांचा शक्तियों के विभाजन को मान्यता देता है, परंतु कुछ क्षेत्रों में केंद्र को अधिक प्रभावी प्राधिकरण प्रदान किया गया है।
2. नियंत्रण और संतुलन: संविधान में ‘नियंत्रण और संतुलन’ का सिद्धान्त लागू होता है, जहाँ विभिन्न अंग (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) एक-दूसरे की शक्तियों की निगरानी और संतुलन बनाए रखते हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति का वीटो अधिकार, उच्चतम न्यायालय की समीक्षा शक्ति, और संसद द्वारा विधायकों की नियुक्ति यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी अंग अत्यधिक शक्ति का प्रयोग न करे और सभी अंग आपस में संतुलित रहें।
इस प्रकार, भारतीय संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के बजाय एक समन्वित और संतुलित दृष्टिकोण को अपनाता है, जिससे प्रशासनिक और न्यायिक प्रणाली की कार्यप्रणाली को सुचारु रूप से संचालित किया जा सके।
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