भारत में संवैधानिक शासन को संरक्षित करने के लिए राज्यपाल के पद को रूपांतरित करने की आवश्यकता है। राज्यपाल के पद से जुड़े हालिया विवादों के आलोक में विवेचना कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान के संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है, लेकिन यह शक्ति एक परिसीमित शक्ति है और इसे अनंत या पूर्ण शक्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसका व्याख्या निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: 1. संविधान की संशोधन शक्ति: अनुच्छेद 368 के अंतर्गत, संसद को संRead more
संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान के संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है, लेकिन यह शक्ति एक परिसीमित शक्ति है और इसे अनंत या पूर्ण शक्ति के रूप में नहीं देखा जा सकता। इसका व्याख्या निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. संविधान की संशोधन शक्ति:
अनुच्छेद 368 के अंतर्गत, संसद को संविधान के किसी भी भाग को संशोधित करने की शक्ति है, जो एक विधायी प्रक्रिया के माध्यम से की जाती है। संशोधन के लिए संसद में प्रस्ताव पेश किया जाता है, और इसे दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाता है, उसके बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होती है।
2. संविधान के मूल ढांचे की रक्षा:
केशवानंद भारती केस (1973) में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संसद के पास संविधान के मूल ढांचे को बदलने की शक्ति नहीं है। संविधान का मूल ढांचा उन आधारभूत सिद्धांतों और प्रावधानों का समूह है जो संविधान की स्थिरता और पहचान को बनाए रखते हैं। इनमें संघीय ढांचा, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, और मौलिक अधिकार शामिल हैं।
3. संशोधन की सीमाएँ:
संसद की संशोधन शक्ति परिसीमित है, जिसका अर्थ है कि संसद संविधान के मूल ढांचे को नष्ट या परिवर्तित नहीं कर सकती। यदि संसद ऐसा संशोधन प्रस्तावित करती है जो संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित करता है या उसे कमजोर करता है, तो वह संशोधन न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है। सुप्रीम कोर्ट किसी भी संशोधन की समीक्षा कर सकता है और यह तय कर सकता है कि क्या वह संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित करता है या नहीं।
इस प्रकार, संसद के पास संविधान के मूल ढांचे को नष्ट करने की शक्ति नहीं है, और उसकी संशोधन शक्ति इस ढांचे के प्रति संरक्षित रहती है।
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भारत में राज्यपाल के पद से जुड़े हालिया विवादों के आलोक में, संवैधानिक शासन को संरक्षित करने के लिए इस पद के रूपांतर की आवश्यकता पर चर्चा की जा रही है। राज्यपाल का पद संघ और राज्यों के बीच संवैधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन हाल के वर्षों में यह पद राजनीति में विवाद का केंद्Read more
भारत में राज्यपाल के पद से जुड़े हालिया विवादों के आलोक में, संवैधानिक शासन को संरक्षित करने के लिए इस पद के रूपांतर की आवश्यकता पर चर्चा की जा रही है।
राज्यपाल का पद संघ और राज्यों के बीच संवैधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन हाल के वर्षों में यह पद राजनीति में विवाद का केंद्र बन गया है। राज्यपाल अक्सर राज्य सरकारों के साथ संघर्षों में शामिल होते हैं, जैसे कि सरकार बनाने के आदेश, पदस्थापनाओं में हस्तक्षेप, और नीति संबंधी विवाद।
उदाहरण: हाल के विवादों में, राज्यपालों के द्वारा राज्य सरकारों को विधायी कार्यों में हस्तक्षेप, जैसे कि विधानसभा सत्रों को स्थगित करना या सदन को बुलाने में देरी, ने आलोचनाएँ उत्पन्न की हैं।
इस स्थिति को सुधारने के लिए, राज्यपाल के चयन प्रक्रिया में सुधार, उनके कार्यों पर निगरानी तंत्र की स्थापना, और उनकी शक्तियों को सीमित करने के लिए संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि राज्यपाल का पद संवैधानिक रूप से और निष्पक्षता से कार्य करे, और राज्यों की स्वायत्तता की रक्षा हो सके।
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