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भारत में संघीय ढाँचा विभिन्न राज्यों की विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को कैसे समायोजित करता है? क्या इसके सम्मुख कुछ चुनौतियाँ भी है, यदि है, तो उसका समाधान कैसे किया जाता है ? (200 Words) [UPPSC 2023]
भारत में संघीय ढाँचा: विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं का समायोजन 1. संघीय ढाँचा का समायोजन: संविधान की संरचना: भारतीय संविधान की संघीय ढाँचा के अंतर्गत, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। यह केंद्र-राज्य संबंध की स्वायत्तता को सुनिश्चित करता है और राज्यों की विविध आवश्यकताRead more
भारत में संघीय ढाँचा: विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं का समायोजन
1. संघीय ढाँचा का समायोजन:
2. चुनौतियाँ:
3. समाधान:
निष्कर्ष: भारतीय संघीय ढाँचा विभिन्न राज्यों की विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को समायोजित करने में सक्षम है, परंतु चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें संविधानिक और वित्तीय उपायों के माध्यम से संतुलित किया जाता है।
See lessप्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियों और भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण करें। अन्य संस्थाओं पर इसका कैसे प्रभाव पडता है ? (200 Words) [UPPSC 2023]
प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ और भूमिका: आलोचनात्मक परीक्षण 1. प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ: प्रधानमंत्री के कार्यालय की शक्ति संगठनों और नीतियों में वृद्धि के कारण बढ़ी है। यह विशेषकर राजनीतिक और प्रशासनिक निर्णयों में विधायिका और न्यायपालिका के मुकाबले अधिक प्रभावशाली बनाता है। प्रधानमंत्री केRead more
प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ और भूमिका: आलोचनात्मक परीक्षण
1. प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ: प्रधानमंत्री के कार्यालय की शक्ति संगठनों और नीतियों में वृद्धि के कारण बढ़ी है। यह विशेषकर राजनीतिक और प्रशासनिक निर्णयों में विधायिका और न्यायपालिका के मुकाबले अधिक प्रभावशाली बनाता है। प्रधानमंत्री के पास पार्टी अनुशासन, संसदीय बहुमत और केंद्रीय नीति पर व्यापक नियंत्रण होता है।
2. संविधानिक संतुलन पर प्रभाव: बढ़ती शक्तियों से संविधानिक संतुलन में विकृति आ सकती है। प्रधानमंत्री की अधिक शक्तियाँ विधायिका और न्यायपालिका के स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे विविध दृष्टिकोण और चेक एंड बैलेंस में कमी आ सकती है।
3. अन्य संस्थाओं पर प्रभाव:
4. संतुलन और सुधार: इस स्थिति को सुधारने के लिए, संविधानिक प्रावधानों और संस्थागत संरचनाओं को सशक्त करना आवश्यक है ताकि प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियों के बावजूद लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और संतुलन बनाए रखा जा सके।
निष्कर्ष: प्रधानमंत्री की बढ़ती शक्तियाँ शासन में संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन संविधानिक प्रावधान और संस्थागत नियंत्रण के माध्यम से इन प्रभावों को सुधारा और संतुलित किया जा सकता है।
See less42 वें भारतीय संशोधन को संविधान का पुनः लेखन क्यों कहा जाता है ? (125 Words) [UPPSC 2023]
42वें भारतीय संशोधन का संविधान का पुनः लेखन 1. वृहद परिवर्तन: 42वां संशोधन (1976) भारतीय संविधान में व्यापक और गहरे बदलाव लाया, जो इसे "संविधान का पुनः लेखन" का दर्जा देता है। इस संशोधन ने संविधान की प्रस्तावना को संशोधित किया और सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सर्वजन कल्याण जैसे मूल्यों को स्थापितRead more
42वें भारतीय संशोधन का संविधान का पुनः लेखन
1. वृहद परिवर्तन: 42वां संशोधन (1976) भारतीय संविधान में व्यापक और गहरे बदलाव लाया, जो इसे “संविधान का पुनः लेखन” का दर्जा देता है। इस संशोधन ने संविधान की प्रस्तावना को संशोधित किया और सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और सर्वजन कल्याण जैसे मूल्यों को स्थापित किया।
2. संसदीय और कानूनी बदलाव: संशोधन ने संसदीय प्रणाली में भी बदलाव किए। इसमें केंद्र-राज्य संबंध, संविधान के भागों की पुनर्रचना और सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिता को प्रभावित करने वाले कई प्रावधान जोड़े गए।
3. संविधान की संरचना में बदलाव: संशोधन ने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में बदलाव किया, जिससे कई धारा और धारणाओं को नया स्वरूप मिला।
4. प्रस्तावना में परिवर्तन: प्रस्तावना में “समाजवाद”, “धर्मनिरपेक्षता” और “गणतंत्र” के सिद्धांतों को शामिल किया गया, जिससे संविधान की मूल भावना और उद्देश्य को स्पष्ट किया गया।
निष्कर्ष: 42वां संशोधन संविधान के संरचनात्मक और वैधानिक बदलाव के कारण संविधान का “पुनः लेखन” कहा जाता है, जो भारतीय राज्य की प्रशासनिक और सामाजिक दिशा को पुनः परिभाषित करता है।
See less"भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र में निवास करने और विचरण करने का अधिकार स्वतंत्र रूप से सभी भारतीय नागरिकों को उपलब्ध है, किन्तु ये अधिकार असीम नहीं हैं।" टिप्पणी कीजिए । (150 words)[UPSC 2022]
भारत के संविधान के अनुसार, भारतीय नागरिकों को पूरे देश में निवास और विचरण करने का अधिकार प्राप्त है, जैसा कि अनुच्छेद 19(1)(d) और 19(1)(e) में स्पष्ट किया गया है। यह अधिकार नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से रहने और यात्रा करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। हालांकि, ये अधिकार पूरीRead more
भारत के संविधान के अनुसार, भारतीय नागरिकों को पूरे देश में निवास और विचरण करने का अधिकार प्राप्त है, जैसा कि अनुच्छेद 19(1)(d) और 19(1)(e) में स्पष्ट किया गया है। यह अधिकार नागरिकों को देश के किसी भी हिस्से में स्वतंत्र रूप से रहने और यात्रा करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
हालांकि, ये अधिकार पूरी तरह से असीमित नहीं हैं। संविधान में अनुच्छेद 19(5) के तहत, इन अधिकारों पर सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, और जनहित के आधार पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति दी गई है। उदाहरण के लिए, कुछ क्षेत्रों को सुरक्षा कारणों से प्रतिबंधित किया जा सकता है, या सामाजिक असंतुलन और आपातकालीन परिस्थितियों के चलते अधिकारों पर नियंत्रण लगाया जा सकता है।
इस प्रकार, नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, लेकिन इन्हें समाज के व्यापक हितों के मद्देनजर सीमित किया जा सकता है।
See lessप्रस्तावना को भारतीय संविधान का दर्शन क्यों कहा जाता है? (125 Words) [UPPSC 2023]
भारतीय संविधान का दर्शन: प्रस्तावना की भूमिका आधिकारिक दिशा-निर्देश: भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान का दर्शन इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह संविधान के मूल सिद्धांतों और उद्देश्यों को स्पष्ट करती है। यह प्रस्तावना भारतीय गणराज्य के आदर्श और मूल्य को संक्षेप में प्रस्तुत करती है, जैसे कि समानताRead more
भारतीय संविधान का दर्शन: प्रस्तावना की भूमिका
आधिकारिक दिशा-निर्देश: भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान का दर्शन इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह संविधान के मूल सिद्धांतों और उद्देश्यों को स्पष्ट करती है। यह प्रस्तावना भारतीय गणराज्य के आदर्श और मूल्य को संक्षेप में प्रस्तुत करती है, जैसे कि समानता, स्वतंत्रता, और बंधुत्व।
लोकतांत्रिक उद्देश्य: प्रस्तावना का प्रमुख उद्देश्य लोकतांत्रिक सत्ता और संप्रभुता की पुष्टि करना है। यह संविधान के धार्मिक, जातीय और सामाजिक असमानताओं को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करती है।
संविधान की आधिकारिक दिशा: प्रस्तावना, संविधान के अन्य अनुच्छेदों और प्रावधानों के निर्देश और भावनाओं को आधार प्रदान करती है। यह संविधान की भावनात्मक और राजनीतिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करती है और उसके अनुपालन की दिशा तय करती है।
इस प्रकार, प्रस्तावना भारतीय संविधान का दर्शन इसलिए कहलाती है क्योंकि यह संविधान के मूल उद्देश्यों और दृष्टिकोण को प्रतिविम्बित करती है।
See lessसंसदीय समिति प्रणाली की संरचना को समझाइए । भारतीय संसद के संस्थानीकरण में वित्तीय समितियों ने कहां तक मदद की ? (250 words) [UPSC 2023]
संसदीय समिति प्रणाली की संरचना: भारत की संसदीय समिति प्रणाली संसद के कार्यों की दक्षता और पारदर्शिता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी संरचना निम्नलिखित प्रकार की समितियों से मिलकर होती है: स्थायी समितियाँ: वित्तीय समितियाँ: ये समितियाँ सरकारी वित्तीय कार्यों की जाँच करती हैं। इसमें लोRead more
संसदीय समिति प्रणाली की संरचना:
भारत की संसदीय समिति प्रणाली संसद के कार्यों की दक्षता और पारदर्शिता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी संरचना निम्नलिखित प्रकार की समितियों से मिलकर होती है:
वित्तीय समितियों का संस्थानीकरण में योगदान:
101 वें संविधान संशोधन अधिनियम का महत्व समझाइए। यह किस हद तक संघवाद के समावेशी भावना को दर्शाता है ? (250 words) [UPSC 2023]
101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2021, भारतीय संघीय ढांचे में एक महत्वपूर्ण सुधार है, जो मुख्यतः निर्वाचन क्षेत्रों की परिसीमन और अनुसूचित जातियों (SCs) तथा अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिए आरक्षित सीटों से संबंधित है। इसके महत्व और संघवाद की समावेशी भावना को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकतRead more
101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2021, भारतीय संघीय ढांचे में एक महत्वपूर्ण सुधार है, जो मुख्यतः निर्वाचन क्षेत्रों की परिसीमन और अनुसूचित जातियों (SCs) तथा अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिए आरक्षित सीटों से संबंधित है। इसके महत्व और संघवाद की समावेशी भावना को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
महत्व
संघवाद की समावेशी भावना
इस प्रकार, 101वें संविधान संशोधन अधिनियम का महत्व राजनीतिक प्रतिनिधित्व की स्थिरता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में है, और यह संघवाद की समावेशी भावना को प्रकट करता है।
See lessकिसी राज्य में राष्ट्रपति शासन किन आधारों पर अधिरोपित किया जा सकता है? साथ ही, इसके अधिरोपण की प्रक्रिया तथा इसके प्रभावों का भी उल्लेख कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
राज्य में राष्ट्रपति शासन अधिरोपण के आधार, प्रक्रिया और प्रभाव राज्य में राष्ट्रपति शासन को अधिरोपित करने के लिए कई आधार हो सकते हैं। यह आधार राज्य की संविधानिक प्रावधानों पर निर्भर करते हैं। अधिरोपण की प्रक्रिया: आवेदन: राज्य सरकार को राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता का प्रस्ताव राज्य विधानसभा में पेश कRead more
राज्य में राष्ट्रपति शासन अधिरोपण के आधार, प्रक्रिया और प्रभाव
राज्य में राष्ट्रपति शासन को अधिरोपित करने के लिए कई आधार हो सकते हैं। यह आधार राज्य की संविधानिक प्रावधानों पर निर्भर करते हैं।
अधिरोपण की प्रक्रिया:
राज्य में राष्ट्रपति शासन अधिरोपण का प्रभाव राज्य के राजनीतिक और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
See lessअधिकरण क्या हैं? अनुच्छेद 323A, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323B से किस प्रकार भिन्न है?(उत्तर 200 शब्दों में दें)
अधिकरण एक शक्ति या अधिकार होता है जो किसी व्यक्ति, संगठन, या सरकारी अधिकारी को निर्धारित कार्य करने की अनुमति देता है। अधिकरण संविधान, कानून, नियमों या प्रथाओं द्वारा प्राप्त किया जाता है और समाज में व्यवस्था और न्याय को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अनुच्छेद 323A और अनुच्छेद 323B Read more
अधिकरण एक शक्ति या अधिकार होता है जो किसी व्यक्ति, संगठन, या सरकारी अधिकारी को निर्धारित कार्य करने की अनुमति देता है। अधिकरण संविधान, कानून, नियमों या प्रथाओं द्वारा प्राप्त किया जाता है और समाज में व्यवस्था और न्याय को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अनुच्छेद 323A और अनुच्छेद 323B दो संविधानीय प्रावधान हैं जो भारतीय संविधान में संबंधित हैं।
इस प्रकार, अनुच्छेद 323A और 323B दोनों वर्गीकृत सेवा संबंधित विषयों पर न्यायाधिकरण और सेवा आयोग की स्थापना के लिए विवरण प्रदान करते हैं, परंतु उनके अधिकार और कार्यक्षेत्र में भिन्नता है।
See lessशक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। भारतीय संविधान में ऐसे कौन-से प्रावधान हैं, जो शक्तियों के पृथक्करण को प्रतिबिंबित करते हैं?(उत्तर 200 शब्दों में दें)
शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा एक ऐसी सिद्धांत है जिसमें सरकार की विभिन्न संगठनाओं या अधिकारियों को विशिष्ट क्षेत्रों में शक्तियों का पृथक्करण किया जाता है, ताकि वे अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता से निर्णय ले सकें और अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार हों। यह विभिन्न संगठनों और अधिकारियों को स्वतंत्रता औरRead more
शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा एक ऐसी सिद्धांत है जिसमें सरकार की विभिन्न संगठनाओं या अधिकारियों को विशिष्ट क्षेत्रों में शक्तियों का पृथक्करण किया जाता है, ताकि वे अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता से निर्णय ले सकें और अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार हों। यह विभिन्न संगठनों और अधिकारियों को स्वतंत्रता और सामर्थ्य प्रदान करता है ताकि सरकारी कार्य प्रभावी रूप से संचालित हो सके।
भारतीय संविधान में शक्तियों के पृथक्करण को प्रतिबिंबित करने के कई प्रावधान हैं। कुछ मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
इन प्रावधानों के माध्यम से भारतीय संविधान ने शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा को प्रतिबिंबित किया है और सरकारी संगठनों को स्वतंत्रता और सामर्थ्य प्रदान किया है ।
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