राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिए। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनःप्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद और राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों का निवारण निम्नलिखित प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है: निर्णय की प्रक्रिया: याचिका दाखिल करना: किसी भी विवादित चुनाव के परिणाम के खिलाफ याचिका दाखिल करनी होती है। यह याचिका चुनाव परिणाम घोषित होनेRead more
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद और राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों का निवारण निम्नलिखित प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है:
निर्णय की प्रक्रिया:
- याचिका दाखिल करना: किसी भी विवादित चुनाव के परिणाम के खिलाफ याचिका दाखिल करनी होती है। यह याचिका चुनाव परिणाम घोषित होने के 45 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय (राज्य विधायिका के लिए) या सर्वोच्च न्यायालय (संसद के लिए) में दायर की जाती है।
- याचिका की सुनवाई: याचिका दायर करने के बाद, न्यायालय तथ्यों और साक्ष्यों की जांच करता है। आवश्यकतानुसार चुनाव आयोग या अन्य प्राधिकृत अधिकारियों से जांच करवाने के आदेश भी दिए जा सकते हैं।
- निर्णय: न्यायालय साक्ष्यों के आधार पर निर्णय सुनाता है। यदि याचिका स्वीकार कर ली जाती है, तो चुनाव को शून्य घोषित किया जा सकता है।
निर्वाचन को शून्य घोषित करने के आधार:
- भ्रष्ट प्रथाएँ: यदि यह साबित होता है कि चुनाव के दौरान भ्रष्ट प्रथाओं का उपयोग किया गया, जैसे कि रिश्वत या दबाव डालना। (जैसे, हरबंस सिंह बनाम शिवराज मामला)
- कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन: यदि चुनाव प्रक्रिया में विधिक प्रावधानों का उल्लंघन किया गया हो, जैसे कि वोटों की गिनती में गड़बड़ी या अन्य प्रक्रियात्मक खामियाँ। (जैसे, के.के. अग्रवाल बनाम भारत संघ मामला)
- प्रत्याशी की अयोग्यता: यदि निर्वाचित प्रत्याशी की चुनाव लड़ने की पात्रता पर प्रश्न उठे, जैसे कि कानूनी अयोग्यता या अन्य कानूनी प्रतिबंध। (जैसे, कुलदीप नायर बनाम भारत संघ मामला)
उपचार: पीड़ित पक्ष उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है और इसके खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती।
इस प्रकार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया प्रदान करता है, जो सुनिश्चित करती है कि चुनाव विवादों का समाधान कानूनी और पारदर्शी तरीके से हो।
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राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तें: संवैधानिक प्रावधान: राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ भारतीय संविधान के तहत निर्धारित होती हैं। इनमें विधायिका को बुलाना, स्थगित करना या भंग करना, और विधेयकों पर सहमति देना या अस्वीकृत करना शामिल है। इन शक्तियों का प्रयोग संविधान और विधायी प्रक्रRead more
राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तें:
राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनःप्रख्यापन की वैधता:
अध्यादेशों का पुनःप्रख्यापन बिना विधायिका के समक्ष पेश किए संविधान की प्रावधानों के खिलाफ होता है। अध्यादेश, अनुच्छेद 123 और अनुच्छेद 213 के तहत, तब जारी किए जाते हैं जब विधायिका सत्र में नहीं होती और तत्काल कदम उठाना आवश्यक हो।
मुख्य बिंदु:
इस प्रकार, राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ संविधान और मंत्रियों की सलाह के तहत सीमित होती हैं, और अध्यादेशों का पुनःप्रख्यापन विधायिका की स्वीकृति के बिना असंवैधानिक होता है।
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