Home/भारतीय राजव्यवस्था/Page 16
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
भारत के 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों ने राज्यों को अपनी राजकोषीय स्थिति सुधारने में कैसे सक्षम किया है? (150 words) [UPSC 2021]
भारत के 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों से राज्यों की राजकोषीय स्थिति में सुधार 1. केंद्रीय करों में बढ़ी भागीदारी: 14वें वित्त आयोग ने राज्यों को केंद्रीय करों में उनकी हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी। इससे राज्यों को अधिक वित्तीय संसाधन प्राप्त हुए, जिससे उनके राजकोषीय स्थिति में सुधार हुआ। 2.Read more
भारत के 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों से राज्यों की राजकोषीय स्थिति में सुधार
1. केंद्रीय करों में बढ़ी भागीदारी: 14वें वित्त आयोग ने राज्यों को केंद्रीय करों में उनकी हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी। इससे राज्यों को अधिक वित्तीय संसाधन प्राप्त हुए, जिससे उनके राजकोषीय स्थिति में सुधार हुआ।
2. लचीले अनुदान: आयोग ने प्रदर्शन आधारित अनुदान और बिना शर्त अनुदान की सिफारिश की, जिससे राज्यों को अपने अनुसार धन का उपयोग करने की स्वतंत्रता मिली। यह स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार खर्च करने में सहायक साबित हुआ।
3. ऋण प्रबंधन: आयोग ने राज्यों के ऋण प्रबंधन के लिए ऋण राहत कोष की सिफारिश की, जिससे राज्यों को अपने ऋण बोझ को कम करने और राजकोषीय स्थिरता बनाए रखने में मदद मिली।
4. राजकोषीय जिम्मेदारी: आयोग ने राजकोषीय जिम्मेदारी के मानदंडों का पालन करने की सिफारिश की, जिससे बेहतर वित्तीय प्रबंधन और अनुशासन को बढ़ावा मिला।
निष्कर्ष: 14वें वित्त आयोग की संस्तुतियों ने राज्यों को अधिक संसाधन, लचीलापन और बेहतर ऋण प्रबंधन के माध्यम से अपनी राजकोषीय स्थिति सुधारने में सक्षम किया।
See lessसंवैधानिक नैतिकता' की जड़ संविधान में ही निहित है और इसके तात्त्विक फलकों पर आधारित है। 'संवैधानिक नैतिकता' के सिद्धांत की प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2021]
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत 1. संवैधानिक नैतिकता का परिचय 'संवैधानिक नैतिकता' संविधान के अंतर्निहित मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह सिद्धांत संविधान की मूलभूत धारणाओं जैसे न्याय, समानता, और लोकतंत्र के अनुरूप राज्य की क्रियावली और व्यक्तिगत आचरण को मार्गदर्शित करता है।Read more
संवैधानिक नैतिकता का सिद्धांत
1. संवैधानिक नैतिकता का परिचय
‘संवैधानिक नैतिकता’ संविधान के अंतर्निहित मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह सिद्धांत संविधान की मूलभूत धारणाओं जैसे न्याय, समानता, और लोकतंत्र के अनुरूप राज्य की क्रियावली और व्यक्तिगत आचरण को मार्गदर्शित करता है।
2. न्यायिक निर्णयों की प्रासंगिकता
के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017): इस निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता के अधिकार को मान्यता दी और संवैधानिक नैतिकता को संविधान के मूलभूत अधिकारों की व्याख्या में महत्वपूर्ण बताया।
नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018): कोर्ट ने सहमति से यौन संबंधों को अपराधमुक्त किया, यह मानते हुए कि संवैधानिक नैतिकता व्यक्तित्व की गरिमा और समानता की सुरक्षा की मांग करती है।
3. निष्कर्ष
संवैधानिक नैतिकता यह सुनिश्चित करती है कि संविधान के मूल्यों को शासन और न्यायिक निर्णयों में बनाए रखा जाए, जो लोकतंत्र और मानवाधिकारों की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है।
See lessआदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका 1. निर्वाचन आयोग की भूमिका भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था है जो संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति-उपाध्यक्ष चुनावों का आयोजन करती है। इसका मुख्य उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता, निष्पक्षता, औरRead more
आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका
1. निर्वाचन आयोग की भूमिका
भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था है जो संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति-उपाध्यक्ष चुनावों का आयोजन करती है। इसका मुख्य उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता, निष्पक्षता, और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है।
प्रमुख जिम्मेदारियाँ:
2. आदर्श आचार-संहिता (MCC) का उद्भव और विकास
उद्भव: आदर्श आचार-संहिता (MCC) की शुरुआत 1968 में की गई थी। इसका उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष और व्यवस्थित बनाए रखना है और सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के आचरण को नियंत्रित करना है। यह संहिता चुनावी वातावरण को अधिक प्रतिस्पर्धात्मक और पारदर्शी बनाने के लिए बनाई गई थी।
विकास:
हालिया उदाहरण: 2019 के आम चुनाव में MCC का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया गया। निर्वाचन आयोग ने सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग और सोशल मीडिया पर अनुचित प्रचार के खिलाफ कार्रवाई की, जो MCC के विकसित स्वरूप को दर्शाता है।
निष्कर्ष: भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका आदर्श आचार-संहिता के माध्यम से चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है। MCC का विकास और कार्यान्वयन आयोग के प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह चुनावी प्रक्रिया को समय के साथ बदलती परिस्थितियों के अनुसार समायोजित करता है।
See lessभारत और फ्रांस के राष्ट्रपति के निर्वाचित होने की प्रक्रिया का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
भारत और फ्रांस के राष्ट्रपति के निर्वाचित होने की प्रक्रिया 1. भारत में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया संवैधानिक ढांचा: भारत में राष्ट्रपति का चुनाव एक प्रतिनिधि प्रणाली के माध्यम से होता है, जिसमें एक निर्वाचन मंडल शामिल होता है। इस मंडल में संसद के सदस्य और राज्य विधानसभाओं के सदस्य शामिल होते हैं।Read more
भारत और फ्रांस के राष्ट्रपति के निर्वाचित होने की प्रक्रिया
1. भारत में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया
संवैधानिक ढांचा: भारत में राष्ट्रपति का चुनाव एक प्रतिनिधि प्रणाली के माध्यम से होता है, जिसमें एक निर्वाचन मंडल शामिल होता है। इस मंडल में संसद के सदस्य और राज्य विधानसभाओं के सदस्य शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया संघीय और राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व का मिश्रण सुनिश्चित करती है।
निर्वाचन मंडल की संरचना:
मतदान प्रणाली:
हालिया उदाहरण: 2022 के भारतीय राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को निर्वाचित किया गया। इस चुनाव में सांसदों और राज्य विधायकों के मतों का समावेश किया गया, जो संघीय और राष्ट्रीय स्वार्थों का संतुलन दर्शाता है।
2. फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया
संवैधानिक ढांचा: फ्रांस में राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष लोकप्रिय मतदान के माध्यम से होता है, जो सीधे लोकतंत्र को दर्शाता है।
निर्वाचन प्रक्रिया:
हालिया उदाहरण: 2022 के फ्रांसीसी राष्ट्रपति चुनाव में एमानुएल मैक्रों को दूसरे दौर में Marine Le Pen के खिलाफ विजय प्राप्त हुई, जिससे उनकी दूसरी बार राष्ट्रपति पद पर चुने गए।
तुलना:
निष्कर्ष: भारत और फ्रांस की राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रियाएँ उनके राजनीतिक और संवैधानिक ढाँचों को दर्शाती हैं। भारत की प्रणाली संघीय संतुलन और प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता देती है, जबकि फ्रांस की प्रणाली सीधा लोकप्रिय मतदान पर निर्भर करती है। दोनों प्रक्रियाएँ प्रभावी नेतृत्व सुनिश्चित करने के उद्देश्य को पूरा करती हैं, लेकिन भिन्न तंत्रों के माध्यम से।
See less"भारत में राष्ट्रीय राजनैतिक दल केन्द्रीयकरण के पक्ष में हैं, जबकि क्षेत्रीय दल राज्य-स्वायत्तता के पक्ष में ।” टिप्पणी कीजिए। (250 words) [UPSC 2022]
भारत में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के बीच केंद्रीयकरण और राज्य-स्वायत्तता के मुद्दे पर विभिन्न दृष्टिकोण हैं, जो देश के संघीय ढांचे की जटिलता को दर्शाते हैं। राष्ट्रीय राजनैतिक दल और केंद्रीयकरण: राष्ट्रीय दल जैसे भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई.एन.सी.) केंदRead more
भारत में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के बीच केंद्रीयकरण और राज्य-स्वायत्तता के मुद्दे पर विभिन्न दृष्टिकोण हैं, जो देश के संघीय ढांचे की जटिलता को दर्शाते हैं।
राष्ट्रीय राजनैतिक दल और केंद्रीयकरण: राष्ट्रीय दल जैसे भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई.एन.सी.) केंद्रीयकरण के पक्षधर होते हैं। उनका मानना है कि केंद्रीयकरण से पूरे देश में एक समान नीतियों और कानूनों का कार्यान्वयन संभव होता है, जिससे राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा मिलता है। केंद्रीयकरण से सरकार को संसाधनों का बेहतर वितरण, और एकीकृत राष्ट्रीय रणनीतियों का निर्माण करना आसान होता है, जो विभिन्न राज्यों में समान विकास और नीति प्रभावी बनाने में सहायक होता है।
क्षेत्रीय राजनैतिक दल और राज्य-स्वायत्तता: इसके विपरीत, क्षेत्रीय दल जैसे द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डी.एम.के.), तृणमूल कांग्रेस (टी.एम.सी.), और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस.) राज्य-स्वायत्तता के पक्षधर होते हैं। वे तर्क करते हैं कि स्थानीय सरकारें अपने क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं और समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ सकती हैं और उन्हें संबोधित कर सकती हैं। राज्य-स्वायत्तता से राज्यों को अपने संसाधनों और नीतियों पर अधिक नियंत्रण मिलता है, जिससे स्थानीय विकास को बढ़ावा मिलता है और सांस्कृतिक विविधताओं को संरक्षित किया जा सकता है।
विवाद और सहयोग: इन दोनों दृष्टिकोणों के बीच मतभेद भारत के संघीय ढांचे को चुनौती देते हैं। केंद्रीयकरण राष्ट्रीय एकता और समरसता को बढ़ावा देता है, जबकि राज्य-स्वायत्तता क्षेत्रीय विविधताओं और स्थानीय स्वायत्तता को महत्व देती है। भारतीय संविधान ने इन दोनों पहलुओं को संतुलित करने के लिए एक संघीय ढांचा प्रदान किया है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति का विभाजन सुनिश्चित किया गया है।
इस प्रकार, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के दृष्टिकोणों के बीच संघर्ष और सहयोग भारत के संघीय ढांचे की जटिलताओं को उजागर करते हैं, जहां केंद्र और राज्य दोनों की भूमिकाएं महत्वपूर्ण हैं।
See lessराज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिए। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनःप्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तें: संवैधानिक प्रावधान: राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ भारतीय संविधान के तहत निर्धारित होती हैं। इनमें विधायिका को बुलाना, स्थगित करना या भंग करना, और विधेयकों पर सहमति देना या अस्वीकृत करना शामिल है। इन शक्तियों का प्रयोग संविधान और विधायी प्रक्रRead more
राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तें:
राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनःप्रख्यापन की वैधता:
अध्यादेशों का पुनःप्रख्यापन बिना विधायिका के समक्ष पेश किए संविधान की प्रावधानों के खिलाफ होता है। अध्यादेश, अनुच्छेद 123 और अनुच्छेद 213 के तहत, तब जारी किए जाते हैं जब विधायिका सत्र में नहीं होती और तत्काल कदम उठाना आवश्यक हो।
मुख्य बिंदु:
इस प्रकार, राज्यपाल की विधायी शक्तियाँ संविधान और मंत्रियों की सलाह के तहत सीमित होती हैं, और अध्यादेशों का पुनःप्रख्यापन विधायिका की स्वीकृति के बिना असंवैधानिक होता है।
See lessलोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अन्तर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिए। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है ? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है ? वाद विधियों का सन्दर्भ दीजिए। (250 words) [UPSC 2022]
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद और राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों का निवारण निम्नलिखित प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है: निर्णय की प्रक्रिया: याचिका दाखिल करना: किसी भी विवादित चुनाव के परिणाम के खिलाफ याचिका दाखिल करनी होती है। यह याचिका चुनाव परिणाम घोषित होनेRead more
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद और राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों का निवारण निम्नलिखित प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है:
निर्णय की प्रक्रिया:
निर्वाचन को शून्य घोषित करने के आधार:
उपचार: पीड़ित पक्ष उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है और इसके खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती।
इस प्रकार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया प्रदान करता है, जो सुनिश्चित करती है कि चुनाव विवादों का समाधान कानूनी और पारदर्शी तरीके से हो।
See lessराष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सांविधिक निकाय से संवैधानिक निकाय में रूपांतरण को ध्यान में रखते हुए इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए। (150 words)[UPSC 2022]
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) का सांविधिक निकाय से संवैधानिक निकाय में रूपांतरण भारतीय समाज में सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। इस परिवर्तन से आयोग को अधिक प्रभावशाली और स्वतंत्र भूमिका मिलती है। संविधानिक स्थिति प्राप्त करने के बाद, NCBC को स्वतंत्रता और शक्ति पRead more
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) का सांविधिक निकाय से संवैधानिक निकाय में रूपांतरण भारतीय समाज में सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। इस परिवर्तन से आयोग को अधिक प्रभावशाली और स्वतंत्र भूमिका मिलती है।
संविधानिक स्थिति प्राप्त करने के बाद, NCBC को स्वतंत्रता और शक्ति प्राप्त होती है कि वह अधिक प्रभावी ढंग से अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक और आर्थिक उन्नयन के लिए काम कर सके। आयोग का यह नया दर्जा उसे स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति देता है और उसके सुझाव और सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी हो सकती हैं।
इससे आयोग की सिफारिशों की गंभीरता और महत्व में वृद्धि होगी, जिससे सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। यह बदलाव अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देगा।
See lessराज्य सभा के सभापति के रूप में भारत के उप-राष्ट्रपति की भूमिका की विवेचना कीजिए । (150 words)[UPSC 2022]
राज्य सभा के सभापति के रूप में भारत के उप-राष्ट्रपति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करते हैं, नियमों और विधायिका की प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करते हैं। सभापति सदन में शांति और अनुशासन बनाए रखते हैं, और बहस की दिशा को नियंत्रित करते हैं। उनके पास मतदान में टाई की सRead more
राज्य सभा के सभापति के रूप में भारत के उप-राष्ट्रपति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करते हैं, नियमों और विधायिका की प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करते हैं। सभापति सदन में शांति और अनुशासन बनाए रखते हैं, और बहस की दिशा को नियंत्रित करते हैं। उनके पास मतदान में टाई की स्थिति में निर्णायक मत डालने का अधिकार होता है। सभापति विधेयकों को विभिन्न समितियों के पास भेज सकते हैं और संसदीय कार्यवाही के दौरान निष्पक्षता बनाए रखते हैं। इसके अलावा, वे राज्य सभा के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रपति और अन्य विधायी निकायों के साथ संवाद करते हैं। इस भूमिका से वे राज्य सभा के सुचारू और प्रभावी संचालन को सुनिश्चित करते हैं, जो समग्र लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अहम है।
See lessआपकी राय में, भारत में शक्ति के विकेन्द्रीकरण ने जमीनी स्तर पर शासन परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है ? (150 words)[UPSC 2022]
भारत में शक्ति के विकेन्द्रीकरण ने जमीनी स्तर पर शासन परिदृश्य को काफी हद तक परिवर्तित किया है। पंचायतों और नगरीय स्थानीय निकायों को स्वायत्तता मिलने से स्थानीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित किया जा रहा है। यह विकेन्द्रीकरण स्थानीय विकास योजनाओं को अपनाने और कार्यान्वित करने में तेजी लाया हRead more
भारत में शक्ति के विकेन्द्रीकरण ने जमीनी स्तर पर शासन परिदृश्य को काफी हद तक परिवर्तित किया है। पंचायतों और नगरीय स्थानीय निकायों को स्वायत्तता मिलने से स्थानीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित किया जा रहा है। यह विकेन्द्रीकरण स्थानीय विकास योजनाओं को अपनाने और कार्यान्वित करने में तेजी लाया है, जिससे बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता और प्रशासनिक पारदर्शिता में सुधार हुआ है। स्थानीय निकायों को वित्तीय और विधायी शक्तियाँ मिलने से वे क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को अधिक त्वरित और उपयुक्त ढंग से समझ सकते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कि भ्रष्टाचार, कमजोर संस्थागत क्षमताएँ और संसाधनों की कमी, जो प्रभावी शासन में बाधक हो सकती हैं। फिर भी, विकेन्द्रीकरण ने जमीनी स्तर पर प्रशासनिक दक्षता और उत्तरदायित्व में सुधार लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
See less