Home/भारतीय राजव्यवस्था/Page 10
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
"संघवाद के भारतीय मॉडल की अत्यधिक केंद्रीकृत होने के कारण आलोचना की जाती है, लेकिन यह राज्यों को पर्याप्त अवसर और स्वायत्तता भी प्रदान करता है।" विश्लेषण कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारतीय संघवाद की आलोचना अक्सर इसकी अत्यधिक केंद्रीकरण प्रवृत्ति के कारण की जाती है, लेकिन साथ ही यह राज्य सरकारों को पर्याप्त अवसर और स्वायत्तता भी प्रदान करता है। भारतीय संविधान में संघीय ढांचे को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का वितरण सुनिश्चित किRead more
भारतीय संघवाद की आलोचना अक्सर इसकी अत्यधिक केंद्रीकरण प्रवृत्ति के कारण की जाती है, लेकिन साथ ही यह राज्य सरकारों को पर्याप्त अवसर और स्वायत्तता भी प्रदान करता है। भारतीय संविधान में संघीय ढांचे को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का वितरण सुनिश्चित किया गया है।
केंद्रवाद का पहलू: भारतीय संघवाद में केंद्र सरकार के पास महत्वपूर्ण शक्तियां और अधिकार हैं। संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य, और समवर्ती सूची के माध्यम से शक्ति का विभाजन किया गया है, लेकिन केंद्र के पास समवर्ती सूची में कानून बनाने की शक्ति होती है यदि राज्य सरकारों के साथ सहमति न हो। इसके अलावा, आपातकाल की स्थिति में केंद्र सरकार को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, जो राज्यों की स्वायत्तता को सीमित कर सकते हैं। इस कारण से, संघीय संरचना को केंद्रीकृत माना जाता है।
राज्यों को स्वायत्तता: इसके बावजूद, भारतीय संविधान राज्यों को कई महत्वपूर्ण अधिकार और स्वायत्तता भी प्रदान करता है। राज्यों के पास अपनी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नीतियों को आकार देने का अधिकार होता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, और स्थानीय प्रशासन जैसे क्षेत्र राज्य सूची में आते हैं, जिनमें राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकती हैं। इसके अतिरिक्त, पंचायतों और नगर निकायों के माध्यम से स्थानीय स्वायत्तता को भी प्रोत्साहित किया गया है, जो स्थानीय समस्याओं का समाधान और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विवाद और सुधार: संघवाद की इस संरचना पर आलोचना यह भी है कि केंद्रीकरण के कारण राज्यों के बीच समान विकास की खाई उत्पन्न हो सकती है और यह केन्द्र-राज्य संबंधों में असंतुलन पैदा कर सकता है। कई विशेषज्ञ और राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि राज्यों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि संघीय व्यवस्था अधिक संतुलित और प्रभावी हो सके।
इस प्रकार, भारतीय संघवाद की संरचना के दोनों पहलू – केंद्रीकरण और राज्य स्वायत्तता – संघीय प्रणाली की जटिलता को दर्शाते हैं। जहां केंद्रीकरण केंद्र सरकार की शक्ति को मजबूत करता है, वहीं राज्यों को दी गई स्वायत्तता उनके विकास और प्रशासनिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है।
See lessविश्व भर के विभिन्न संविधानों का मिश्रण होने के बावजूद, भारतीय संविधान अपने विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से सामाजिक न्याय, बहुलवाद और समानता को आत्मसात किए हुए है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारतीय संविधान, जो विश्व भर के विभिन्न संविधानों के तत्वों का मिश्रण है, अपने व्यापक और समावेशी प्रावधानों के माध्यम से सामाजिक न्याय, बहुलवाद और समानता की अवधारणाओं को आत्मसात करता है। संविधान की प्रस्तावना, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की गारंटी देती है, भारतीय लोकतंत्र की मूलभूत मान्यताओंRead more
भारतीय संविधान, जो विश्व भर के विभिन्न संविधानों के तत्वों का मिश्रण है, अपने व्यापक और समावेशी प्रावधानों के माध्यम से सामाजिक न्याय, बहुलवाद और समानता की अवधारणाओं को आत्मसात करता है। संविधान की प्रस्तावना, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की गारंटी देती है, भारतीय लोकतंत्र की मूलभूत मान्यताओं को दर्शाती है।
सामाजिक न्याय की दिशा में, भारतीय संविधान विशेष रूप से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित नौकरियों और शिक्षा के अवसरों की व्यवस्था करता है। अनुच्छेद 15 और 16 जाति, धर्म, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करते हैं। इसके अतिरिक्त, सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए विभिन्न योजनाएं और कानून बनाए गए हैं।
बहुलवाद को अपनाने में, भारतीय संविधान विभिन्न धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक समूहों के अधिकारों की रक्षा करता है। अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी संस्कृति, भाषा और शिक्षा के अधिकार प्रदान करते हैं। यह बहुलवादी संस्कृति को प्रोत्साहित करता है और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देता है।
समानता की दिशा में, संविधान का अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है और कानून के समक्ष समानता की गारंटी करता है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म, जाति, लिंग, या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव का सामना न करना पड़े।
इन प्रावधानों के माध्यम से, भारतीय संविधान न केवल विश्व के विभिन्न संविधानों से प्रेरित है, बल्कि अपने अद्वितीय दृष्टिकोण से सामाजिक न्याय, बहुलवाद और समानता को मजबूत करता है, जो भारतीय समाज की विविधता और समृद्धि को प्रतिबिंबित करता है।
See lessप्रधान मंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा किए जाने वाले कार्यों और भारत में नीति-निर्माण को आकार देने में इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
प्रधान मंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा किए जाने वाले कार्य और नीति-निर्माण में भूमिका प्रधान मंत्री कार्यालय (PMO) भारत की सरकार की महत्वपूर्ण अंग है, जो नीति-निर्माण और कार्यान्वयन में केंद्रीय भूमिका निभाता है। PMO प्रधान मंत्री के नेतृत्व में कार्य करता है और उनके फैसलों को अमल में लाने के लिए विभिनRead more
प्रधान मंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा किए जाने वाले कार्य और नीति-निर्माण में भूमिका
प्रधान मंत्री कार्यालय (PMO) भारत की सरकार की महत्वपूर्ण अंग है, जो नीति-निर्माण और कार्यान्वयन में केंद्रीय भूमिका निभाता है। PMO प्रधान मंत्री के नेतृत्व में कार्य करता है और उनके फैसलों को अमल में लाने के लिए विभिन्न विभागों और मंत्रालयों के साथ समन्वय करता है।
इस प्रकार, PMO भारत में नीति-निर्माण और कार्यान्वयन को आकार देने में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है।
See lessभारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिए भारत के चुनाव आयोग ने में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (250 words) [UPSC 2017]
भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में लोकतंत्र की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कई चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया। ये सुधार पारदर्शिता, जवाबदेही, और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। सुझाए गए सुधार: वोटर आईडी को आधार से जोड़ना: वोटर आईडी को आधार संख्या से जोड़ने का प्रस्ताव कियाRead more
भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में लोकतंत्र की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कई चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया। ये सुधार पारदर्शिता, जवाबदेही, और चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
सुझाए गए सुधार:
वोटर आईडी को आधार से जोड़ना: वोटर आईडी को आधार संख्या से जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है ताकि डुप्लिकेट और फर्जी मतदाता प्रविष्टियों को समाप्त किया जा सके। यह एक साफ-सुथरी मतदाता सूची सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
ऑनलाइन नामांकन प्रक्रिया: उम्मीदवारों को ऑनलाइन नामांकन पत्र दाखिल करने की सुविधा देने का सुझाव दिया गया है। इससे प्रक्रिया पारदर्शी और सुगम बनेगी, और कागजी कार्रवाई कम होगी।
इलेक्ट्रॉनिक वोटर रोल सत्यापन: वोटर रोल का इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन करने का प्रस्ताव है जिससे सटीकता बढ़ेगी और गलतियों को कम किया जा सकेगा।
राजनीतिक विज्ञापन पर नियंत्रण: राजनीतिक विज्ञापनों की निगरानी और नियमन के लिए प्रस्तावित सुधार, जिससे मीडिया के दुरुपयोग को रोका जा सके और विज्ञापनों की नैतिकता सुनिश्चित की जा सके।
राजनीति में आपराधिककरण पर अंकुश: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के लिए कड़ी प्रकटीकरण नीतियों का प्रस्ताव है, जिसमें विस्तृत हलफनामे और आपराधिक रिकॉर्ड का प्रकाशन शामिल है।
चुनावी वित्त में सुधार: चुनावी वित्त की पारदर्शिता को सुधारने के लिए, राजनीतिक दान और खर्च के लिए सख्त रिपोर्टिंग आवश्यकताओं का सुझाव दिया गया है।
महत्व:
चुनावी अखंडता में सुधार: वोटर आईडी को आधार से जोड़ने और इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन से मतदाता सूची की सटीकता बढ़ेगी, जिससे धोखाधड़ी कम होगी।
पारदर्शिता में वृद्धि: ऑनलाइन नामांकन और विज्ञापनों पर नियंत्रण से चुनावी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होगी, जिससे मतदाता सूचित निर्णय ले सकेंगे।
जवाबदेही और ईमानदारी: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों और चुनावी वित्त की पारदर्शिता से राजनीति में जवाबदेही बढ़ेगी और भ्रष्टाचार कम होगा।
प्रशासनिक दक्षता: सुधारों से प्रशासनिक प्रक्रियाएं सरल और तेज होंगी, जिससे चुनावी प्रक्रिया में विलंब और त्रुटियाँ कम होंगी।
निष्कर्ष:
See lessचुनाव आयोग द्वारा सुझाए गए सुधार भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। ये सुधार चुनावों की पारदर्शिता, अखंडता, और जवाबदेही को बढ़ाएंगे, जो एक सफल और प्रभावी लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं। इन सुधारों के लागू होने से चुनावी प्रणाली अधिक विश्वसनीय और सक्षम बनेगी।
भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान है। उन अवसरों को गिनाइए जब सामान्यतः यह होता है तथा उन अवसरों को भी जब यह नहीं किया जा सकता, और इसके कारण भी बताइए। (250 words) [UPSC 2017]
भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान अनुच्छेद 108 में किया गया है। यह संयुक्त सत्र संसद के दोनों सदनों के बीच सामान्यतः होने वाली गतिरोधों को सुलझाने के लिए बुलाया जाता है। संयुक्त सत्र बुलाने के सामान्य अवसर: कानूनी गतिरोध: जब कोई विधेयक लोकRead more
भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा, का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान अनुच्छेद 108 में किया गया है। यह संयुक्त सत्र संसद के दोनों सदनों के बीच सामान्यतः होने वाली गतिरोधों को सुलझाने के लिए बुलाया जाता है।
संयुक्त सत्र बुलाने के सामान्य अवसर:
कानूनी गतिरोध: जब कोई विधेयक लोकसभा द्वारा पारित हो जाता है, लेकिन राज्यसभा द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है या राज्यसभा इसमें 14 दिनों के भीतर कोई निर्णय नहीं लेती है, तब संयुक्त सत्र बुलाया जा सकता है। यह विधेयक की प्रक्रिया में गतिरोध को समाप्त करने के लिए किया जाता है।
विधेयक की पुनरावृत्ति: यदि राज्यसभा एक विधेयक को लोकसभा द्वारा भेजे जाने के बाद 14 दिनों के भीतर पास नहीं करती या वापस नहीं भेजती है, तो लोकसभा संयुक्त सत्र की मांग कर सकती है।
संयुक्त सत्र नहीं बुलाए जा सकते:
मनी बिल: मनी बिलों पर संयुक्त सत्र नहीं बुलाया जा सकता। मनी बिल पर राज्यसभा केवल सिफारिशें कर सकती है, और लोकसभा को अंतिम निर्णय लेने का अधिकार है। राज्यसभा को मनी बिल को 14 दिनों के भीतर वापस करना होता है, और लोकसभा की अनुमति से ही इसे पारित किया जा सकता है।
अनुदान विधेयक: अनुदान विधेयक, जो सरकारी खर्च से संबंधित होते हैं, संयुक्त सत्र का हिस्सा नहीं हो सकते। इन पर लोकसभा का विशेष अधिकार होता है।
संविधान संशोधन विधेयक: संविधान संशोधन विधेयक भी संयुक्त सत्र के दायरे में नहीं आते। इन्हें संसद में दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता है और इसके साथ-साथ कुछ राज्यों द्वारा भी अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
निष्कर्ष
See lessसंविधान के अनुसार, संयुक्त सत्र विशेष परिस्थितियों में बुलाया जाता है, जैसे कि विधेयकों पर गतिरोध को समाप्त करने के लिए। मनी बिल, अनुदान विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक जैसे विशेष मामलों में संयुक्त सत्र का प्रावधान नहीं होता, ताकि प्रत्येक सदन की विशेष भूमिका और प्रक्रियाओं की रक्षा की जा सके।
निजता के अधिकार पर उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में, मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
निजता का अधिकार भारत में मौलिक अधिकारों के विस्तार का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में "के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ" मामले में निर्णय दिया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत "जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता" के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह निर्Read more
निजता का अधिकार भारत में मौलिक अधिकारों के विस्तार का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। उच्चतम न्यायालय ने 2017 में “के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ” मामले में निर्णय दिया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण में महत्वपूर्ण है, बल्कि मौलिक अधिकारों के व्यापक स्वरूप को भी दर्शाता है।
मौलिक अधिकारों का विस्तार:
निजता का अधिकार: उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि निजता का अधिकार व्यक्ति की गरिमा, स्वायत्तता, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है। इसके अंतर्गत, शारीरिक स्वतंत्रता, निजी संचार, जानकारी की गोपनीयता, और व्यक्तिगत निर्णय लेने की स्वतंत्रता जैसे पहलू शामिल हैं।
सूचना का अधिकार: निजता के अधिकार का विस्तार यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी निगरानी, डेटा संग्रह, और व्यक्तिगत जानकारी के प्रसंस्करण में पारदर्शिता और वैधता हो। यह विशेष रूप से डिजिटल युग में महत्वपूर्ण है, जहाँ व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा चिंता का विषय है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता: इस निर्णय ने मौलिक अधिकारों के दायरे को व्यक्तिगत पहचान, यौनिकता, भोजन की पसंद, और जीवन शैली के अधिकार तक विस्तारित किया है। इसने समलैंगिकता के विरुद्ध धारा 377 को समाप्त करने और समानता के अधिकार की पुष्टि में भी योगदान दिया।
डिजिटल अधिकारों का संरक्षण: आधार योजना और अन्य सरकारी परियोजनाओं में डेटा सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता की आवश्यकताओं को बढ़ावा दिया गया है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि नागरिकों की जानकारी का उपयोग केवल वैध उद्देश्यों के लिए होना चाहिए और इसके दुरुपयोग से बचने के लिए ठोस सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।
निष्कर्ष:
See lessइस निर्णय ने मौलिक अधिकारों को एक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण प्रदान किया है, जिसमें आधुनिक समय की आवश्यकताओं और चुनौतियों का समावेश है। निजता का अधिकार अब भारतीय संविधान के मूल्यों और उद्देश्यों के साथ पूरी तरह से संगत हो गया है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह निर्णय न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली की प्रगतिशीलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि मौलिक अधिकार समय के साथ प्रासंगिक बने रहें।
संविधान (एक सौ एक संशोधन) अधिनियम, 2016 के प्रमुख अभिलक्षणों को समझाइए। क्या आप समझते हैं कि यह "करों के सोपानिक प्रभाव को समाप्त करने में और माल तथा सेवाओं के लिए साझा राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराने में" काफी प्रभावकारी है? (250 words) [UPSC 2017]
संविधान (एक सौ एकवाँ संशोधन) अधिनियम, 2016, वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करने के लिए किया गया था, जो भारतीय कर प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार है। इसके प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित हैं: एकल कर प्रणाली: GST एक अप्रत्यक्ष कर है जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्न करों को समाहित कRead more
संविधान (एक सौ एकवाँ संशोधन) अधिनियम, 2016, वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करने के लिए किया गया था, जो भारतीय कर प्रणाली में एक महत्वपूर्ण सुधार है। इसके प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित हैं:
एकल कर प्रणाली: GST एक अप्रत्यक्ष कर है जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्न करों को समाहित करता है, जैसे कि वैट, सेवा कर, एक्साइज ड्यूटी, और अन्य उपकर। इससे विभिन्न स्तरों पर लगने वाले करों का समेकन होता है।
डुअल GST मॉडल: भारत में केंद्र और राज्यों के लिए डुअल GST मॉडल अपनाया गया है, जिसमें केंद्र द्वारा केंद्रीय GST (CGST) और राज्यों द्वारा राज्य GST (SGST) लगाया जाता है। अंतर्राज्यीय लेन-देन पर इंटीग्रेटेड GST (IGST) लागू होता है।
इनपुट टैक्स क्रेडिट: GST इनपुट टैक्स क्रेडिट की अनुमति देता है, जिससे उत्पादन और वितरण के प्रत्येक चरण पर केवल मूल्यवर्धन पर कर लगाया जाता है, जिससे करों के सोपानिक प्रभाव (Cascading Effect) को समाप्त किया जा सकता है।
संघीय कर परिषद: GST परिषद एक संघीय निकाय है जिसमें केंद्र और राज्य दोनों के प्रतिनिधि शामिल हैं। यह परिषद GST से संबंधित नीतियों, दरों, और संरचना पर निर्णय लेती है।
करों के सोपानिक प्रभाव और साझा राष्ट्रीय बाजार:
GST करों के सोपानिक प्रभाव को समाप्त करने में काफी प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। पूर्व में, एक ही वस्तु पर कई स्तरों पर कर लगाया जाता था, जिससे अंतिम उपभोक्ता पर कर का बोझ बढ़ जाता था। GST के तहत, केवल मूल्यवर्धन पर कर लगाया जाता है, जिससे करों का दोहराव खत्म हो जाता है और वस्तुएँ सस्ती होती हैं।
इसके अलावा, GST ने एक साझा राष्ट्रीय बाजार को भी साकार किया है। राज्यों के बीच कर अवरोधों का समाप्त होना, कर की एकरूप दरें, और सीमाओं पर चेकपोस्टों का हटना इसके प्रमाण हैं। इससे व्यापार की सुगमता बढ़ी है और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिला है।
हालांकि, GST के लागू होने के शुरुआती चरण में कुछ चुनौतियाँ रहीं, जैसे कि दरों की जटिलता और प्रारंभिक अनुपालन समस्याएँ। फिर भी, इसे एक प्रभावकारी कर सुधार के रूप में देखा जा सकता है, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को एकीकृत और सशक्त किया है।
See lessभारत में केंद्र और राज्यों के वित्तीय संबंधों का वर्णन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
भारत में केंद्र और राज्यों के वित्तीय संबंध वित्तीय संसाधनों का वितरण: भारत की संघीय व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का वितरण एक महत्वपूर्ण पहलू है। संविधान के अनुसार, केंद्र सरकार के पास केंद्रीय कर (जैसे, आयकर, वस्तु और सेवा कर) एकत्र करने का अधिकार है, जबकि राज्य सरकारें राRead more
भारत में केंद्र और राज्यों के वित्तीय संबंध
वित्तीय संसाधनों का वितरण: भारत की संघीय व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का वितरण एक महत्वपूर्ण पहलू है। संविधान के अनुसार, केंद्र सरकार के पास केंद्रीय कर (जैसे, आयकर, वस्तु और सेवा कर) एकत्र करने का अधिकार है, जबकि राज्य सरकारें राजस्व (जैसे, संपत्ति कर, बिक्री कर) प्राप्त करती हैं।
वित्त आयोग: राज्यों को वित्तीय सहायता और संसाधनों के वितरण के लिए वित्त आयोग का गठन किया जाता है। यह आयोग राज्यों को अनुदान और करों का हिस्सा प्रदान करता है।
वित्तीय असंतुलन: राज्यों के पास सीमित संसाधन होते हैं, जबकि उनके खर्चे अधिक होते हैं। इस असंतुलन को केंद्र द्वारा अनुदान और वित्तीय सहायता के माध्यम से संबोधित किया जाता है।
निष्कर्ष: भारत में केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंध करों का वितरण, वित्त आयोग के माध्यम से सहायता और वित्तीय असंतुलन के समाधान पर आधारित हैं।
See lessनिर्धनता और भूख से जुड़े मुद्दे भारत की चुनावी राजनीति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? (125 Words) [UPPSC 2021]
निर्धनता और भूख का चुनावी राजनीति पर प्रभाव चुनावी वादे: निर्धनता और भूख प्रमुख चुनावी मुद्दे बनते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ वोट बटोरने के लिए सबसिडी, वेलफेयर स्कीम्स, और भ्रष्टाचार विरोधी वादे करती हैं, जैसे राशन कार्ड, नौकरियों और आर्थिक सहायता के प्रलोभन। मतदाता आकर्षण: गरीब और भूखे वर्ग को लक्षितRead more
निर्धनता और भूख का चुनावी राजनीति पर प्रभाव
चुनावी वादे: निर्धनता और भूख प्रमुख चुनावी मुद्दे बनते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ वोट बटोरने के लिए सबसिडी, वेलफेयर स्कीम्स, और भ्रष्टाचार विरोधी वादे करती हैं, जैसे राशन कार्ड, नौकरियों और आर्थिक सहायता के प्रलोभन।
मतदाता आकर्षण: गरीब और भूखे वर्ग को लक्षित कर मतदाता आधार को बढ़ाने की कोशिश की जाती है। चुनावों के समय आकर्षक पैकेज और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के वादे होते हैं।
वोट बैंक राजनीति: इन मुद्दों का राजनीतिक दुरुपयोग होता है। पार्टियाँ अक्सर अल्पकालिक समाधान प्रदान करती हैं, जिससे दीर्घकालिक नीति पर ध्यान कम होता है।
निष्कर्ष: निर्धनता और भूख चुनावी राजनीति को वोट बैंक राजनीति, पॉपुलिस्ट वादे और अल्पकालिक उपायों के माध्यम से प्रभावित करते हैं।
See lessWhat are the methods used by the farmers’ organisations to influence the policy- makers in India and how effective are these methods? (150 words) [UPSC 2019]
Farmers' organizations in India employ several methods to influence policymakers and advocate for their interests: Protests and Demonstrations: Large-scale rallies and demonstrations are used to draw public and media attention to agricultural issues. For example, the farmers' protests in 2020-21 agaRead more
Farmers’ organizations in India employ several methods to influence policymakers and advocate for their interests:
Effectiveness: These methods are often effective in raising awareness and influencing policy decisions, as seen in recent farm law protests. However, the impact varies depending on the scale of mobilization, media coverage, and political climate.
See less