“भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली परिवर्तन के ऐसे दौर से गुज़र रही है, जो अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा प्रतीत होता है।” चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
राष्ट्रपति द्वारा मृत्यु दंडादेशों के लघुकरण (कम्प्यूटेशन) में विलंब अक्सर न्याय प्रत्याख्यान के रूप में आलोचना का विषय बनता है। इस परिप्रेक्ष्य में, यह सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए एक विशेष समय सीमा का उल्लेख होना चाहिए। समय सीमा के पक्Read more
राष्ट्रपति द्वारा मृत्यु दंडादेशों के लघुकरण (कम्प्यूटेशन) में विलंब अक्सर न्याय प्रत्याख्यान के रूप में आलोचना का विषय बनता है। इस परिप्रेक्ष्य में, यह सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए एक विशेष समय सीमा का उल्लेख होना चाहिए।
समय सीमा के पक्ष में तर्क:
- न्याय की त्वरिता: देर से न्याय का सिद्धांत कि “न्याय में देरी, न्याय से इनकार” होता है, मृत्यु दंड मामलों में विशेष महत्व रखता है। समय सीमा तय करने से पीड़ितों और उनके परिवारों को न्याय की त्वरित प्राप्ति हो सकती है और लंबे समय तक मानसिक तनाव से राहत मिल सकती है।
- प्रभावी प्रबंधन: समय सीमा तय करने से राष्ट्रपति कार्यालय की प्रक्रिया को सुगम और पारदर्शी बनाया जा सकता है, जिससे प्रशासनिक दक्षता में सुधार हो सकता है।
- शासन में पारदर्शिता: एक निर्धारित समय सीमा से राष्ट्रपति के फैसलों में पारदर्शिता बढ़ेगी और संभावित ढिलाई या अन्याय की आशंकाओं को कम किया जा सकेगा।
समय सीमा के विपक्ष में तर्क:
- मामलों की जटिलता: मृत्यु दंड के मामलों की समीक्षा में कानूनी, नैतिक, और मानवाधिकार से संबंधित जटिलताएँ होती हैं। समय सीमा लगाने से सतही या जल्दबाजी में निर्णय हो सकता है, जिससे न्याय की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
- अविवेकी दबाव: समय सीमा के अंतर्गत निर्णय लेने का दबाव राष्ट्रपति को त्वरित निर्णय की ओर प्रवृत्त कर सकता है, जो संभवतः आवश्यक सावधानी और विचार-विमर्श को प्रभावित कर सकता है।
- संवैधानिक स्वायत्तता: राष्ट्रपति की भूमिका संवैधानिक स्वतंत्रता और गंभीरता की मांग करती है। समय सीमा का निर्धारण इस स्वायत्तता पर प्रभाव डाल सकता है।
निष्कर्ष:
समय सीमा की आवश्यकता और उसकी उचितता का निर्धारण करते समय मामलों की जटिलता और न्याय की गुणवत्ता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। एक संभावित समाधान यह हो सकता है कि एक उचित और लचीली समय सीमा तय की जाए, जो त्वरित निर्णय सुनिश्चित करे लेकिन साथ ही उचित विचार-विमर्श की सुविधा भी प्रदान करे।
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भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली इस समय एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो विभिन्न अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा हुआ है। अन्तर्विरोध और विरोधाभास: नई पार्टियों का उभार और स्थापित पार्टियों की प्रभुत्व: नई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियाँ, जैसे आम आदमी पार्टी और टीएमसी, पुरानी पार्टियों की चुनRead more
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली इस समय एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो विभिन्न अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा हुआ है।
अन्तर्विरोध और विरोधाभास:
नई पार्टियों का उभार और स्थापित पार्टियों की प्रभुत्व: नई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियाँ, जैसे आम आदमी पार्टी और टीएमसी, पुरानी पार्टियों की चुनौती बन गई हैं। लेकिन इन नई पार्टियों द्वारा अपनाई गई रणनीतियाँ और नीतियाँ अक्सर पुरानी पार्टियों के समान होती हैं, जिससे पुराने और नए में निरंतरता दिखती है।
क्षेत्रीय पार्टियों की वृद्धि और राष्ट्रीय एकता: क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता प्रभाव स्थानीय मुद्दों और पहचान पर ध्यान केंद्रित करता है, जो कभी-कभी राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे सकता है। यह विरोधाभास दिखाता है कि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के खिलाफ हो सकते हैं।
बढ़ती चुनावी भागीदारी और घटती विश्वास: चुनावी भागीदारी में वृद्धि के बावजूद, राजनीतिक संस्थानों और प्रतिनिधियों पर विश्वास में कमी देखी जा रही है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि अधिक भागीदारी का मतलब हमेशा बेहतर संतोषजनक राजनीति नहीं होता।
गठबंधन राजनीति और मजबूत जनादेश: गठबंधन राजनीति का चलन बढ़ा है, जिससे अस्थिर और टुकड़ों में बंटी सरकारें बनती हैं। साथ ही, लोगों की मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की चाहत बढ़ी है, जो मजबूत सरकार और गठबंधन राजनीति के बीच तनाव को दिखाता है.
विचारधारा में बदलाव और नीतिगत निरंतरता: राजनीतिक पार्टियाँ अक्सर अपने विचारधाराओं को चुनावी लाभ के लिए बदलती हैं, लेकिन नीतियों में लगातारता बनी रहती है। यह विरोधाभास विचारधारा और व्यवहार में भिन्नता को दर्शाता है.
निष्कर्ष:
See lessभारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली में परिवर्तन के दौर की जटिलताएँ पुरानी और नई ताकतों के बीच संघर्ष, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों की टकराहट, और विचारधारा व व्यवहार के बीच के अंतर को उजागर करती हैं। यह व्यवस्था दर्शाती है कि परिवर्तन और निरंतरता दोनों ही भारतीय राजनीति के मौजूदा परिदृश्य का हिस्सा हैं।