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यद्यपि भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण एक सकारात्मक कदम है, तथापि उसमें कुछ ऐसी चुनौतियां भी विद्यमान हैं जिनका समाधान किए जाने की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक कदम है, जो पारदर्शिता, सुगमता और अधिकारिता को बढ़ावा देता है। हालांकि, इसके साथ कुछ प्रमुख चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं: डेटा सुरक्षा और गोपनीयता: डिजिटलीकृत भूमि अभिलेखों की सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। साइबर हमलों और डेटा चोरी से बचाव के लिRead more
भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक कदम है, जो पारदर्शिता, सुगमता और अधिकारिता को बढ़ावा देता है। हालांकि, इसके साथ कुछ प्रमुख चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं:
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक व्यापक रणनीति, बेहतर तकनीकी अवसंरचना, और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है, ताकि डिजिटलीकरण की प्रक्रिया सफल और सुरक्षित हो सके।
See lessपशुधन रोगों से उत्पन्न चुनौतियों के आलोक में सरकार द्वारा उनके समाधान के लिए उठाए गए कदमों पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
पशुधन रोगों से उत्पन्न चुनौतियाँ जैसे रोगों के फैलने से पशुधन की मृत्यु, उत्पादन में कमी, और आर्थिक क्षति होती है। इन चुनौतियों के समाधान के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं: टीकाकरण अभियान: पशुधन के लिए नियमित टीकाकरण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जैसे ब्रुसेलोसिस और पारवोवायरस के खिलाफ। रोग निRead more
पशुधन रोगों से उत्पन्न चुनौतियाँ जैसे रोगों के फैलने से पशुधन की मृत्यु, उत्पादन में कमी, और आर्थिक क्षति होती है। इन चुनौतियों के समाधान के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
इन कदमों से पशुधन रोगों की रोकथाम और नियंत्रण में मदद मिल रही है, जिससे किसानों और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण लाभ हो रहा है।
See lessएकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) क्या है? IPM के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए, इसके विभिन्न घटकों पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) एक प्रणालीगत दृष्टिकोण है जो कीटों के नियंत्रण के लिए विभिन्न विधियों को मिलाकर पर्यावरणीय, आर्थिक, और स्वास्थ्य पर न्यूनतम प्रभाव डालता है। IPM का उद्देश्य कीटों के प्रभावी नियंत्रण के साथ-साथ फसलों की सुरक्षा और पर्यावरण की रक्षा करना है। उद्देश्य: कीट नियंत्रण: कीटों की जRead more
एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) एक प्रणालीगत दृष्टिकोण है जो कीटों के नियंत्रण के लिए विभिन्न विधियों को मिलाकर पर्यावरणीय, आर्थिक, और स्वास्थ्य पर न्यूनतम प्रभाव डालता है। IPM का उद्देश्य कीटों के प्रभावी नियंत्रण के साथ-साथ फसलों की सुरक्षा और पर्यावरण की रक्षा करना है।
उद्देश्य:
घटक:
IPM की विधियाँ एक साथ मिलकर एक संतुलित और प्रभावी कीट प्रबंधन प्रणाली को सुनिश्चित करती हैं।
See lessफर्टिगेशन मौलिक रूप से जल जैसे कीमती संसाधनों के उपयोग और पर्यावरण के पोषक तत्वों की क्षति को कम करते हुए बदलती जलवायु में स्थायी रूप से अधिक खाद्यान्नों के उत्पादन में मदद कर सकता है। चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
फर्टिगेशन, जिसमें उर्वरक और जल को संयोजित किया जाता है, जल और पोषक तत्वों के उपयोग को अधिक कुशल बनाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, उर्वरक सीधे पौधों की जड़ों में पहुंचते हैं, जिससे उनकी अवशोषण दर बढ़ती है और उर्वरक का अधिकतम उपयोग होता है। इससे जल की मात्रा कम होती है और पर्यावरणीय प्रदूषण भी घटताRead more
फर्टिगेशन, जिसमें उर्वरक और जल को संयोजित किया जाता है, जल और पोषक तत्वों के उपयोग को अधिक कुशल बनाता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, उर्वरक सीधे पौधों की जड़ों में पहुंचते हैं, जिससे उनकी अवशोषण दर बढ़ती है और उर्वरक का अधिकतम उपयोग होता है। इससे जल की मात्रा कम होती है और पर्यावरणीय प्रदूषण भी घटता है।
बदलती जलवायु के प्रभाव में, जैसे कि अनियमित वर्षा और सूखा, फर्टिगेशन एक स्थायी समाधान प्रस्तुत करता है। यह न केवल जल का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करता है, बल्कि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व समय पर प्रदान करता है, जिससे उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार होता है। इस प्रकार, फर्टिगेशन जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खेती में एक महत्वपूर्ण उपकरण बन सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है।
See lessभारत में अनाज और दालों की खरीद एवं विपणन से जुड़ी वर्तमान समस्याओं को दुग्ध क्षेत्रक के सफल मॉडल के माध्यम से हल किया जा सकता है। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में अनाज और दालों की खरीद एवं विपणन से जुड़ी कई समस्याएँ हैं, जैसे कि कम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की प्राप्ति, विपणन चैनलों की कमी, मध्यस्थों की भूमिका और भंडारण की कमी। ये समस्याएँ किसानों की आय को प्रभावित करती हैं और खाद्य सुरक्षा को भी चुनौती देती हैं। इन समस्याओं का समाधान दुग्ध क्षेत्रकRead more
भारत में अनाज और दालों की खरीद एवं विपणन से जुड़ी कई समस्याएँ हैं, जैसे कि कम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की प्राप्ति, विपणन चैनलों की कमी, मध्यस्थों की भूमिका और भंडारण की कमी। ये समस्याएँ किसानों की आय को प्रभावित करती हैं और खाद्य सुरक्षा को भी चुनौती देती हैं। इन समस्याओं का समाधान दुग्ध क्षेत्रक के सफल मॉडल के माध्यम से किया जा सकता है।
1. दुग्ध क्षेत्रक का सफल मॉडल: दुग्ध क्षेत्र में अमूल और मेडा जैसे सहकारी संघों ने किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया है। इन मॉडलों ने सीधे किसानों से उत्पाद की खरीद, सहकारी समितियों के माध्यम से प्रबंधन, और स्थानीय स्तर पर मूल्य वर्धन को अपनाया है।
2. एकीकृत विपणन चैनल: दुग्ध क्षेत्र के सफल मॉडलों में एकीकृत विपणन चैनल शामिल हैं। किसानों को सीधे संघों के माध्यम से सही मूल्य मिलता है, जिससे वे मध्यस्थों से बचते हैं। इसी तरह, अनाज और दालों के लिए किसान सहकारी समितियों और विपणन संघों की स्थापना से किसानों को उचित मूल्य और भंडारण की सुविधा मिल सकती है।
3. भंडारण और लॉजिस्टिक्स: दुग्ध क्षेत्र के मॉडल में भंडारण और लॉजिस्टिक्स का महत्व है। फ्रिजर वैन और ठंडे गोदाम के उपयोग ने दूध के वितरण को सुव्यवस्थित किया है। इसी तरह, अनाज और दालों के लिए ठंडे गोदाम और संगठित भंडारण की व्यवस्था करने से नुकसान कम हो सकता है और कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखी जा सकती है।
4. कृषि उत्पाद बाजार समितियाँ (APMC): दुग्ध क्षेत्र की तरह, APMC के सुधार से भी स्थानीय बाजारों में किसानों की सीधी पहुंच सुनिश्चित की जा सकती है। यह विपणन लागत को कम करेगा और किसानों की आय को बढ़ाएगा।
निष्कर्ष: भारत में अनाज और दालों के विपणन से जुड़ी समस्याओं का समाधान दुग्ध क्षेत्रक के सफल मॉडल को अपनाकर किया जा सकता है। इस मॉडल से किसानों के लिए बेहतर मूल्य और सही विपणन चैनल सुनिश्चित किए जा सकते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और खाद्य सुरक्षा को भी समर्थन मिलेगा।
See lessभारत में भूमि अभिलेखों से संबंधित मौजूदा मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए, चर्चा कीजिए कि भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण और 'लैंड टाइटलिंग' (भू-स्वामित्व का निर्धारण) इनके समाधान में कैसे मदद कर सकता है। (250 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण और 'लैंड टाइटलिंग' तकनीकी उन्नति का महत्वपूर्ण पहलू है जो मौजूदा मुद्दों का समाधान कर सकता है। भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण: भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण स्थानीय भू-संपत्ति व्यवस्थाओं को सुदृढ़ और पारदर्शी बना सकता है। इससे भू-संपत्ति के संबंधित डेटा का संचयन, प्रबRead more
भारत में भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण और ‘लैंड टाइटलिंग’ तकनीकी उन्नति का महत्वपूर्ण पहलू है जो मौजूदा मुद्दों का समाधान कर सकता है।
भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण:
‘लैंड टाइटलिंग’ का महत्व:
इन तकनीकी उपायों के माध्यम से, भारत में भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण और ‘लैंड टाइटलिंग’ का अभिवादन करने से भू-संपत्ति संबंधित मुद्दों का समाधान सुगम हो सकता है। यह स्थानीय समुदायों को सुरक्षित करने में मदद कर सकता है, अवैध कब्जों को रोक सकता है, और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
See lessयद्यपि कृषि सब्सिडी ने किसानों की आय में वृद्धि की है, तथापि इन्होंने पर्यावरणीय निम्नीकरण और जैव विविधता के ह्रास में भी योगदान दिया है। भारत के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
कृषि सब्सिडी ने भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया है, लेकिन इसके साथ ही पर्यावरण और जैव विविधता को भी प्रभावित किया गया है। सब्सिडी के प्राप्तकर्ताओं ने उन्हें उन्नत तकनीकी उपकरण और कृषि तकनीकियों तक पहुंचाने में मदद की है, जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई है। इससे विभिन्न फसलों की उत्पादकतRead more
कृषि सब्सिडी ने भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया है, लेकिन इसके साथ ही पर्यावरण और जैव विविधता को भी प्रभावित किया गया है। सब्सिडी के प्राप्तकर्ताओं ने उन्हें उन्नत तकनीकी उपकरण और कृषि तकनीकियों तक पहुंचाने में मदद की है, जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई है। इससे विभिन्न फसलों की उत्पादकता में सुधार और अन्न स्वावलंबन की दिशा में कदम बढ़ा है।
हालांकि, सब्सिडी के प्रयोग में वृद्धि ने पर्यावरणीय निम्नीकरण और जैव विविधता को प्रभावित किया है। कृषि सब्सिडी की अधिक उपयोगिता के लिए किसानों ने अधिक खेती की, जिससे भूमि के अधिक उपयोग, जल प्रयोग और उपयोगिता की भी वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप, भूमि की उपयोगिता में बढ़ोतरी, जल संकट, और जैव विविधता के ह्रास की मुश्किलें उत्पन्न हुई हैं।
इस संदर्भ में, भारत को सुदृढ़ और समर्थनयोग्य कृषि नीतियों की आवश्यकता है जो किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारते हुए पर्यावरणीय समृद्धि और जैव विविधता की सुरक्षा कर सके। सब्सिडी के सही उपयोग, उचित मूल्य निर्धारण, और जल संरक्षण के लिए नई तकनीकों का प्रयोग करना महत्वपूर्ण है ताकि कृषि के सहायक कार्यों के साथ पर्यावरण और जैव विविधता को भी संरक्षित किया जा सके।
See lessडिजिटल कृषि अर्थव्यवस्था की क्षमता को साकार करने में आने वाली चुनौतियों को रेखांकित कीजिए। इस संबंध में सार्वजनिक- निजी भागीदारी (PPP) की भूमिका पर चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
डिजिटल कृषि अर्थव्यवस्था की क्षमता को साकार करने में आने वाली चुनौतियाँ: डिजिटल बुनियादी ढाँचा: ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में उचित इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी एक बड़ी चुनौती है। इससे डिजिटल उपकरणों और सेवाओं की पहुँच और उपयोग में बाधाएँ आती हैं। तकनीकी साक्षरता: किसानों कRead more
डिजिटल कृषि अर्थव्यवस्था की क्षमता को साकार करने में आने वाली चुनौतियाँ:
डिजिटल बुनियादी ढाँचा: ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में उचित इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी एक बड़ी चुनौती है। इससे डिजिटल उपकरणों और सेवाओं की पहुँच और उपयोग में बाधाएँ आती हैं।
तकनीकी साक्षरता: किसानों की तकनीकी साक्षरता का स्तर कम है, जिससे वे डिजिटल कृषि समाधानों का सही उपयोग नहीं कर पाते। इसके लिए प्रशिक्षण और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है।
डिजिटल विभाजन: तकनीकी संसाधनों की असमान वितरण और डिजिटल विभाजन से छोटे और सीमांत किसानों को डिजिटल कृषि के लाभों से वंचित रहना पड़ता है।
सुरक्षा और गोपनीयता: डेटा सुरक्षा और गोपनीयता के मुद्दे डिजिटल कृषि समाधानों के लिए चिंता का विषय हैं। किसानों की व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है।
वित्तीय और तकनीकी समर्थन: डिजिटल कृषि समाधानों को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता और तकनीकी समर्थन की कमी भी एक बाधा है।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की भूमिका:
संवर्धन और विस्तार: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से डिजिटल कृषि परियोजनाओं का संवर्धन और विस्तार किया जा सकता है। निजी क्षेत्र के निवेश और तकनीकी विशेषज्ञता के साथ, सरकारी प्रयासों को सहयोग और समर्थन मिलता है।
प्रशिक्षण और जागरूकता: PPP मॉडल के तहत, निजी कंपनियाँ प्रशिक्षण कार्यक्रम और जागरूकता अभियानों का संचालन कर सकती हैं, जिससे किसानों को डिजिटल उपकरणों और सेवाओं के लाभ समझ में आ सकें और उनका उपयोग बढ़ सके।
बुनियादी ढाँचा सुधार: सरकारी और निजी कंपनियों के संयुक्त प्रयासों से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी ढाँचा सुधारा जा सकता है, जैसे कि उच्च गति इंटरनेट और मोबाइल कनेक्टिविटी की उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है।
नवाचार और समाधान: PPP के माध्यम से नई तकनीकों और नवाचारों का विकास और कार्यान्वयन किया जा सकता है, जो किसानों की जरूरतों को बेहतर ढंग से पूरा कर सकते हैं।
वित्तीय सहायता: सार्वजनिक-निजी भागीदारी से वित्तीय सहायता प्राप्त की जा सकती है, जिससे डिजिटल कृषि उपकरणों और सेवाओं की लागत कम की जा सकती है और किसानों को वित्तीय रूप से समर्थन प्राप्त हो सकता है।
इन प्रयासों से डिजिटल कृषि की क्षमता को साकार किया जा सकता है, जिससे कृषि क्षेत्र को आधुनिक तकनीक से लाभ मिलेगा और किसानों की उत्पादकता और आय में सुधार होगा।
See lessफसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता के कारण लघु और सीमांत किसानों की आजीविका पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के साथ-साथ फसल की हानि हो रही है। भारत के संदर्भ में चर्चा कीजिए। इन चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? (250 शब्दों में उत्तर दें)
फसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता और इसके प्रभाव: फसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता, जैसे कि अपारदर्शी आपूर्ति श्रृंखलाएँ, भंडारण की कमी, और परिवहन की समस्याएँ, भारतीय लघु और सीमांत किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। इस स्थिति के कारण फसलों की गुणवत्ता में गिरावRead more
फसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता और इसके प्रभाव:
फसल कटाई के बाद की मूल्य श्रृंखला में अक्षमता, जैसे कि अपारदर्शी आपूर्ति श्रृंखलाएँ, भंडारण की कमी, और परिवहन की समस्याएँ, भारतीय लघु और सीमांत किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। इस स्थिति के कारण फसलों की गुणवत्ता में गिरावट आती है, नुकसान बढ़ता है, और मूल्य में कमी होती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है और फसल की हानि होती है। इन समस्याओं के कारण किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है।
सरकारी कदम:
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): यह योजना फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने के लिए एकीकृत सिंचाई प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करती है, जिससे फसलों की सिंचाई और भंडारण के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध हो सकें।
कृषि उत्पाद बाजार समिति (APMC) सुधार: सरकार ने APMC एक्ट में सुधार की दिशा में कदम बढ़ाया है ताकि किसानों को अधिक प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी बाजार मूल्य प्राप्त हो सके और बिचौलियों की भूमिका कम हो सके।
फसल कटाई के बाद प्रबंधन की योजना: ‘फसल कटाई के बाद प्रबंधन’ पर ध्यान केंद्रित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलायी जा रही हैं, जैसे कि कोल्ड स्टोरेज और प्रसेसिंग यूनिट्स की स्थापना, जिससे फसल की गुणवत्ता बनाए रखी जा सके और भंडारण की समस्याओं को सुलझाया जा सके।
कृषि-प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर: सरकार ने कृषि-प्रोसेसिंग और इनक्लूसिव फार्मिंग पर ध्यान देने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं, जैसे कि ‘प्रसंस्करण और संरक्षण’ परियोजनाएँ। इन परियोजनाओं का उद्देश्य किसानों को बेहतर मूल्य श्रृंखला और मूल्य वर्धन के अवसर प्रदान करना है।
ई-नम (E-NAM): ई-नम एक ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म है जो किसानों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी फसलें बेचने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे उन्हें बेहतर कीमत मिल सके और बाजार की विसंगतियों को दूर किया जा सके।
इन प्रयासों से सरकार का उद्देश्य फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करना, किसानों को उचित मूल्य प्राप्त करना, और समग्र कृषि उत्पादन को स्थिर और सशक्त बनाना है। यह रणनीतियाँ किसानों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने और फसल की हानि को कम करने में सहायक हो रही हैं।
See lessभारत में समावेशी विकास और निर्धनता उन्मूलन के लिए भूमि तक पहुंच और उस पर प्रभावी नियंत्रण महत्वपूर्ण हैं। सविस्तार वर्णन कीजिए। साथ ही, समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए हाल के दिनों में भारत में अपनाए गए भूमि सुधार उपायों पर भी चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
भूमि तक पहुंच और प्रभावी नियंत्रण का महत्व: भारत में समावेशी विकास और निर्धनता उन्मूलन के लिए भूमि तक पहुंच और प्रभावी नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। भूमि संसाधन न केवल कृषि के लिए आवश्यक हैं बल्कि आवास, उद्योग और अन्य विकासात्मक गतिविधियों के लिए भी जरूरी हैं। निर्धन परिवारों और वंचित समुदायों केRead more
भूमि तक पहुंच और प्रभावी नियंत्रण का महत्व:
भारत में समावेशी विकास और निर्धनता उन्मूलन के लिए भूमि तक पहुंच और प्रभावी नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। भूमि संसाधन न केवल कृषि के लिए आवश्यक हैं बल्कि आवास, उद्योग और अन्य विकासात्मक गतिविधियों के लिए भी जरूरी हैं। निर्धन परिवारों और वंचित समुदायों के लिए भूमि की उपलब्धता और नियंत्रण न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करता है बल्कि सामाजिक न्याय भी सुनिश्चित करता है। भूमि पर अधिकार से गरीबों को आत्मनिर्भरता मिलती है और वे अपनी आजीविका सुधार सकते हैं।
हाल के भूमि सुधार उपाय:
प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): यह योजना गरीबों को किफायती आवास उपलब्ध कराने पर केंद्रित है। इसके तहत, भूमि और आवास दोनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
भूमि रिकॉर्ड डिजिटलाइजेशन: भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल रूप में संजोने के लिए ‘स्वामित्व योजना’ और ‘भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण’ जैसे उपाय अपनाए गए हैं। इससे भूमि स्वामित्व की पारदर्शिता बढ़ी है और भ्रष्टाचार की संभावना कम हुई है।
कृषि भूमि सुधार: कृषि भूमि की बंटवारा और भूमिहीन किसानों को भूमि का वितरण बढ़ाने के लिए कई राज्य सरकारों ने भूमि सुधार कानून लागू किए हैं। इन सुधारों के तहत, भूमि के बंटवारे और पुनर्वितरण की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया गया है।
न्यायसंगत भूमि वितरण: भूमिहीन किसान और आदिवासी समुदायों को भूमि का अधिकार देने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जैसे कि ‘भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन कानून’, जो न्यायसंगत और पारदर्शी तरीके से भूमि का पुनर्वितरण सुनिश्चित करता है।
ये उपाय समावेशी विकास के लिए आवश्यक हैं क्योंकि ये वंचित वर्गों को सशक्त बनाते हैं और उनकी जीवनस्तर में सुधार करते हैं। प्रभावी भूमि प्रबंधन और वितरण न केवल सामाजिक और आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम बढ़ाते हैं बल्कि विकास की समावेशिता को भी बढ़ावा देते हैं।
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