Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
चारे की खराब गुणवत्ता और उसकी अपर्याप्त उपलब्धता भारत में पशुधन की कम उत्पादकता के पीछे प्रमुख कारण हैं। चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में पशुधन की कम उत्पादकता के प्रमुख कारणों में चारे की खराब गुणवत्ता और उसकी अपर्याप्त उपलब्धता महत्वपूर्ण हैं। चारे की खराब गुणवत्ता: भारतीय चारे में प्रोटीन, विटामिन और खनिजों की कमी होती है, जिससे पशुओं की स्वास्थ्य स्थिति और दूध, मांस, और अन्य उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अपर्यापRead more
भारत में पशुधन की कम उत्पादकता के प्रमुख कारणों में चारे की खराब गुणवत्ता और उसकी अपर्याप्त उपलब्धता महत्वपूर्ण हैं।
चारे की खराब गुणवत्ता: भारतीय चारे में प्रोटीन, विटामिन और खनिजों की कमी होती है, जिससे पशुओं की स्वास्थ्य स्थिति और दूध, मांस, और अन्य उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अपर्याप्त उपलब्धता: चारे की उपलब्धता की कमी भी एक बड़ा मुद्दा है, खासकर सूखा या अनियमित मौसमी परिस्थितियों में। इसका कारण अक्सर फसल उत्पादन में कमी, भूमि उपयोग की समस्याएँ, और परिवहन की असुविधाएँ होती हैं।
इन समस्याओं के कारण, पशुधन को पोषण की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी उत्पादकता और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले चारे की खेती, बेहतर प्रबंधन प्रथाएँ, और चारे के उपयोग की तकनीकियों में सुधार आवश्यक है।
See lessशहरी कृषि से आप क्या समझते हैं और इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए। साथ ही, भारत के संदर्भ में इसके महत्व पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
शहरी कृषि से तात्पर्य शहरों और नगरों में कृषि गतिविधियों से है, जहां खेत, बागान या अन्य उत्पादन क्षेत्र शहरी या उपनगरीय क्षेत्रों में स्थित होते हैं। इसके विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं: वर्टिकल फार्मिंग: ऊँची इमारतों में विभिन्न स्तरों पर फसलें उगाई जाती हैं। हाइड्रोपोनिक्स: मिट्टी के बिना पौधों कोRead more
शहरी कृषि से तात्पर्य शहरों और नगरों में कृषि गतिविधियों से है, जहां खेत, बागान या अन्य उत्पादन क्षेत्र शहरी या उपनगरीय क्षेत्रों में स्थित होते हैं। इसके विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं:
वर्टिकल फार्मिंग: ऊँची इमारतों में विभिन्न स्तरों पर फसलें उगाई जाती हैं।
See lessहाइड्रोपोनिक्स: मिट्टी के बिना पौधों को पोषक तत्वयुक्त जल में उगाया जाता है।
एरोपोनिक्स: पौधों की जड़ों को हवा में निलंबित कर पोषक तत्वों का छिड़काव किया जाता है।
रूफ गार्डनिंग: इमारतों की छतों पर बागवानी की जाती है।
भारत में शहरी कृषि का महत्व बढ़ रहा है क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करता है, शहरी क्षेत्रों में ताजे और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराता है, और पर्यावरणीय लाभ प्रदान करता है। इससे शहरों में भोजन की पहुंच आसान होती है और यह स्थानीय रोजगार भी सृजित करता है। शहरी कृषि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और खाद्य संसाधनों की स्थिरता को बढ़ाने में भी सहायक है।
जलवायु परिवर्तन में वृद्धि से मोटे अनाज की खेती का पुनरुद्धार हो रहा है। चर्चा कीजिए। साथ ही, भारत में मोटे अनाज के उत्पादन को गति देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि और मौसम की अनिश्चितता ने मोटे अनाज की खेती को फिर से महत्वपूर्ण बना दिया है। मोटे अनाज जैसे कि बाजरा, ज्वार, और रागी, जलवायु के प्रति अधिक सहनशील होते हैं और कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे वे सूखा-प्रवण क्षेत्रों में उपयुक्त होते हैं। भारत में, सरकार नेRead more
जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि और मौसम की अनिश्चितता ने मोटे अनाज की खेती को फिर से महत्वपूर्ण बना दिया है। मोटे अनाज जैसे कि बाजरा, ज्वार, और रागी, जलवायु के प्रति अधिक सहनशील होते हैं और कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे वे सूखा-प्रवण क्षेत्रों में उपयुक्त होते हैं।
भारत में, सरकार ने मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। ‘प्रेरण’ योजना के तहत मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और कृषि अवसंरचना निधि जैसी योजनाओं के माध्यम से किसानों को वित्तीय सहायता दी जा रही है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में भी मोटे अनाज को शामिल किया गया है, जिससे अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन मिला है। इन प्रयासों से मोटे अनाज की खेती को पुनर्जीवित करने में मदद मिल रही है।
See lessपरीक्षण कीजिए कि भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के डिजिटल रूपांतरण ने इसे बाधित करने वाली चुनौतियों का समाधान करने में कैसे मदद की है। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का डिजिटल रूपांतरण कई चुनौतियों को हल करने में सहायक रहा है। डिजिटल पहल जैसे ई-पॉस (E-POS) और आधार-आधारित भुगतान प्रणाली ने पारदर्शिता और कुशल वितरण सुनिश्चित किया है। आधार आधारित पहचान से लाभार्थियों की सही पहचान सुनिश्चित होती है, जिससे कुप्रबंधन और भ्रामक आवRead more
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का डिजिटल रूपांतरण कई चुनौतियों को हल करने में सहायक रहा है। डिजिटल पहल जैसे ई-पॉस (E-POS) और आधार-आधारित भुगतान प्रणाली ने पारदर्शिता और कुशल वितरण सुनिश्चित किया है। आधार आधारित पहचान से लाभार्थियों की सही पहचान सुनिश्चित होती है, जिससे कुप्रबंधन और भ्रामक आवंटन में कमी आई है।
डिजिटल रजिस्टर और ट्रैकिंग सिस्टम ने गोदामों में अनाज की वास्तविक स्थिति की निगरानी को आसान बनाया है, जिससे भंडारण और वितरण में सुधार हुआ है। साथ ही, डिजिटल रिपोर्टिंग ने भ्रष्टाचार और खाद्यान्न की चोरी को कम किया है।
हालांकि, डिजिटल रूपांतरण ने कई समस्याओं का समाधान किया है, लेकिन तकनीकी और इंफ्रास्ट्रक्चर की सीमाओं, और डिजिटल साक्षरता की कमी जैसे नए चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। इन चुनौतियों का समाधान भी महत्वपूर्ण है ताकि PDS की प्रभावशीलता और समावेशिता बढ़ सके।
See lessचर्चा कीजिए कि किस प्रकार अनाज की वास्तविक कमी की तुलना में खराब खाद्यान्न प्रबंधन भारत में खाद्य सुरक्षा के समक्ष एक बड़ी चुनौती रहा है। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में खाद्य सुरक्षा को लेकर वास्तविक अनाज कमी की तुलना में खराब खाद्यान्न प्रबंधन एक बड़ी चुनौती रही है। भंडारण और वितरण में अक्षम नीतियों के कारण, अनाज की एक बड़ी मात्रा अक्सर बर्बाद हो जाती है। फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) जैसे संगठनों द्वारा संचालित गोदामों में खराब भंडारण सुविधाएं और कुप्रबंRead more
भारत में खाद्य सुरक्षा को लेकर वास्तविक अनाज कमी की तुलना में खराब खाद्यान्न प्रबंधन एक बड़ी चुनौती रही है। भंडारण और वितरण में अक्षम नीतियों के कारण, अनाज की एक बड़ी मात्रा अक्सर बर्बाद हो जाती है। फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) जैसे संगठनों द्वारा संचालित गोदामों में खराब भंडारण सुविधाएं और कुप्रबंधन के कारण अनाज सड़ जाता है या कीटों द्वारा प्रभावित हो जाता है।
इसके अलावा, वितरण प्रणाली में भी गड़बड़ियां हैं, जिससे अनाज उन क्षेत्रों तक नहीं पहुँच पाता जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इन समस्याओं के कारण, जबकि अनाज की कमी का कोई तात्कालिक संकट नहीं होता, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में बड़ी कठिनाइयाँ आती हैं।
अतः, भारत में खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए खाद्यान्न प्रबंधन सुधार और वितरण प्रणाली की दक्षता में सुधार अत्यंत आवश्यक है।
See lessफसल पद्धति और फसल प्रणाली के बीच अंतर को स्पष्ट कीजिए। साथ ही, भारत में प्रचलित विभिन्न प्रकार की फसल प्रणालियों पर चर्चा कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
फसल पद्धति और फसल प्रणाली में अंतर यह है कि फसल पद्धति एक विशिष्ट फसल की उगाने की विधि को दर्शाती है, जबकि फसल प्रणाली एक साथ उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों का एक व्यवस्थित समूह है। फसल पद्धति: यह एक विशिष्ट फसल के उत्पादन की विधि को संदर्भित करती है, जैसे कि सिंचित, वर्षा आधारित, या जैविक खेती। उदाहरRead more
फसल पद्धति और फसल प्रणाली में अंतर यह है कि फसल पद्धति एक विशिष्ट फसल की उगाने की विधि को दर्शाती है, जबकि फसल प्रणाली एक साथ उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों का एक व्यवस्थित समूह है।
फसल पद्धति: यह एक विशिष्ट फसल के उत्पादन की विधि को संदर्भित करती है, जैसे कि सिंचित, वर्षा आधारित, या जैविक खेती। उदाहरण के लिए, चावल की खेती में हवाई खेत की विधि एक फसल पद्धति है।
फसल प्रणाली: यह एक कृषि प्रबंधन प्रणाली है जिसमें एक साथ या अनुक्रमिक रूप से उगाई जाने वाली फसलों का संयोजन होता है। यह फसलें विभिन्न उद्देश्यों, जैसे खाद्य सुरक्षा, भूमि उपयोग या आर्थिक लाभ के लिए चुनी जाती हैं।
भारत में प्रमुख फसल प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं:
मल्टी-क्रॉपिंग (Multi-Cropping): एक ही खेत में विभिन्न फसलों की बारी-बारी से खेती, जैसे कि गेंहू के बाद चने की फसल।
इंटर-क्रॉपिंग (Inter-Cropping): एक ही समय में विभिन्न फसलों की खेती, जैसे मक्का और दालें एक साथ।
सिल्वो-अग्रीकल्चर (Silvo-Agriculture): कृषि और वानिकी के संयोजन में फसलें, जैसे पेड़ और फसलें एक ही खेत में उगाना।
रोटेशनल क्रॉपिंग (Rotational Cropping): एक ही क्षेत्र में समय-समय पर विभिन्न फसलों का अनुक्रम, जैसे गेंहू और चावल का परिवर्तन।
ये प्रणालियाँ भूमि उपयोग को बेहतर बनाती हैं और संसाधनों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करती हैं।
See less