फसल पद्धति और फसल प्रणाली के बीच अंतर को स्पष्ट कीजिए। साथ ही, भारत में प्रचलित विभिन्न प्रकार की फसल प्रणालियों पर चर्चा कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारत में कृषि विपणन सुधारों का संक्षिप्त मूल्यांकन और उनकी समुचितता सुधारों का अवलोकन: APMC अधिनियम में सुधार: मॉडल APMC अधिनियम के तहत किसानों को पारंपरिक APMC मंडियों के बाहर सीधे विक्रेताओं को बेचने की अनुमति दी गई है। कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (प्रोत्साहन और सुविधा) अधिनियम, 2020 इसके तहत एRead more
भारत में कृषि विपणन सुधारों का संक्षिप्त मूल्यांकन और उनकी समुचितता
सुधारों का अवलोकन:
- APMC अधिनियम में सुधार: मॉडल APMC अधिनियम के तहत किसानों को पारंपरिक APMC मंडियों के बाहर सीधे विक्रेताओं को बेचने की अनुमति दी गई है। कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (प्रोत्साहन और सुविधा) अधिनियम, 2020 इसके तहत एक खुला बाजार वातावरण बनाने का प्रयास करता है।
- e-NAM (राष्ट्रीय कृषि बाजार): 2016 में शुरू किया गया e-NAM एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफार्म है जो विभिन्न राज्यों के कृषि बाजारों को एकीकृत करता है। अब तक, 2024 तक, 1000 से अधिक मंडियाँ e-NAM से जुड़ी हैं।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): DBT योजना के तहत सब्सिडी सीधे किसानों के खातों में ट्रांसफर की जाती है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) इसका एक उदाहरण है, जो छोटे और सीमांत किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
हालिया उदाहरण:
- कृषि कानूनों की वापसी (2021): 2020 में लागू किए गए कृषि कानूनों, जैसे कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य अधिनियम और कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौते पर मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाएं अधिनियम, को बड़े विरोध के बाद वापस ले लिया गया, जिससे सुधारों की जटिलताओं और चुनौतियों को उजागर किया।
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना: KCC योजना का विस्तार मत्स्य और पशुपालन क्षेत्रों में किया गया है, जो सभी कृषि पहलुओं का समर्थन करने के लिए है। यह किसानों को बेहतर क्रेडिट पहुंच प्रदान करता है।
समुचितता:
- कार्यान्वयन की समस्याएँ: सुधारों के बावजूद, स्थानीय व्यापारियों और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण वास्तविक प्रभाव सीमित है। लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- किसान विरोध: कृषि कानूनों की वापसी ने नीति निर्माण की पारदर्शिता और समावेशिता की आवश्यकता को उजागर किया, यह संकेत करता है कि सुधारों में अभी भी सुधार की आवश्यकता है।
- बुनियादी ढांचे की कमी: दूरदराज के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी सुधारों की प्रभावशीलता को प्रभावित करती है।
निष्कर्ष:
भारत में कृषि विपणन सुधारों ने क्षेत्र को आधुनिक बनाने की दिशा में कदम उठाया है, लेकिन कार्यान्वयन, बुनियादी ढांचे और भागीदारों के विरोध में चुनौतियों के कारण ये सुधार पूरी तरह से समुचित नहीं हैं। इन मुद्दों को हल करने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है।
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फसल पद्धति और फसल प्रणाली में अंतर यह है कि फसल पद्धति एक विशिष्ट फसल की उगाने की विधि को दर्शाती है, जबकि फसल प्रणाली एक साथ उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों का एक व्यवस्थित समूह है। फसल पद्धति: यह एक विशिष्ट फसल के उत्पादन की विधि को संदर्भित करती है, जैसे कि सिंचित, वर्षा आधारित, या जैविक खेती। उदाहरRead more
फसल पद्धति और फसल प्रणाली में अंतर यह है कि फसल पद्धति एक विशिष्ट फसल की उगाने की विधि को दर्शाती है, जबकि फसल प्रणाली एक साथ उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों का एक व्यवस्थित समूह है।
फसल पद्धति: यह एक विशिष्ट फसल के उत्पादन की विधि को संदर्भित करती है, जैसे कि सिंचित, वर्षा आधारित, या जैविक खेती। उदाहरण के लिए, चावल की खेती में हवाई खेत की विधि एक फसल पद्धति है।
फसल प्रणाली: यह एक कृषि प्रबंधन प्रणाली है जिसमें एक साथ या अनुक्रमिक रूप से उगाई जाने वाली फसलों का संयोजन होता है। यह फसलें विभिन्न उद्देश्यों, जैसे खाद्य सुरक्षा, भूमि उपयोग या आर्थिक लाभ के लिए चुनी जाती हैं।
भारत में प्रमुख फसल प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं:
मल्टी-क्रॉपिंग (Multi-Cropping): एक ही खेत में विभिन्न फसलों की बारी-बारी से खेती, जैसे कि गेंहू के बाद चने की फसल।
इंटर-क्रॉपिंग (Inter-Cropping): एक ही समय में विभिन्न फसलों की खेती, जैसे मक्का और दालें एक साथ।
सिल्वो-अग्रीकल्चर (Silvo-Agriculture): कृषि और वानिकी के संयोजन में फसलें, जैसे पेड़ और फसलें एक ही खेत में उगाना।
रोटेशनल क्रॉपिंग (Rotational Cropping): एक ही क्षेत्र में समय-समय पर विभिन्न फसलों का अनुक्रम, जैसे गेंहू और चावल का परिवर्तन।
ये प्रणालियाँ भूमि उपयोग को बेहतर बनाती हैं और संसाधनों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करती हैं।
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