भूमि अर्जन, पुनरुद्धार और पुनर्वासन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 पहली जनवरी, 2014 से प्रभावी हो गया है। इस अधिनियम के लागू होने से कौन-से महत्त्वपूर्ण मुद्दों का समाधान निकलेगा? भारत में उद्योगीकरण और कृषि पर ...
कृषि उत्पादन बाजार समितियों (APMCs) का कृषि विकास और खाद्य वस्तु महँगाई पर प्रभाव परिचय राज्य अधिनियमों के तहत स्थापित कृषि उत्पादन बाजार समितियाँ (APMCs) किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाई गई थीं। लेकिन, यह दृष्टिकोण भी है कि इन समितियों ने कृषि के विकास को बाधित किया है और खाRead more
कृषि उत्पादन बाजार समितियों (APMCs) का कृषि विकास और खाद्य वस्तु महँगाई पर प्रभाव
परिचय राज्य अधिनियमों के तहत स्थापित कृषि उत्पादन बाजार समितियाँ (APMCs) किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाई गई थीं। लेकिन, यह दृष्टिकोण भी है कि इन समितियों ने कृषि के विकास को बाधित किया है और खाद्य वस्तु महँगाई में योगदान दिया है।
कृषि विकास पर प्रभाव
- बाज़ार एकाधिकार और प्रतिस्पर्धा की कमी: APMCs अक्सर एकाधिकारात्मक होती हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा सीमित होती है। पंजाब और हरियाणा में APMCs ने निजी क्षेत्र के प्रवेश को कठिन बना दिया है, जिससे किसानों को विविध बाज़ारों तक पहुँच नहीं मिल पाती और बेहतर मूल्य प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
- अप्रभावी प्रबंधन और भ्रष्टाचार: कई APMCs भ्रष्टाचार और प्रबंधन में कमी से जूझ रही हैं। कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) की रिपोर्ट ने APMC के संचालन में अपारदर्शिता और कुप्रबंधन की ओर संकेत किया है, जिससे कृषि विपणन की प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
खाद्य वस्तु महँगाई में योगदान
- उच्च लेन-देन लागत: APMC प्रणाली में कई बिचौलिए होते हैं, जिससे लेन-देन लागत बढ़ जाती है। उत्तर प्रदेश में मंडी सिस्टम के चलते बिचौलियों द्वारा लगाए गए शुल्क और कमीशन के कारण किसानों की लागत बढ़ती है, जो खाद्य वस्तु महँगाई को बढ़ावा देती है।
- मूल्य निर्धारण में हेरफेर: APMCs पर कभी-कभी मूल्य निर्धारण में हेरफेर का आरोप लगता है, जो महँगाई का कारण बनता है। कृषि कानूनों की वापसी (2021) ने APMC के मूल्य निर्धारण और बाज़ार नियंत्रण के मुद्दों को उजागर किया, जो खाद्य वस्तु कीमतों में उतार-चढ़ाव का कारण बने।
हालिया सुधार और विकास
- कृषि कानून 2020: कृषि कानून 2020 ने APMCs के बाहर निजी खरीदारों से सीधी बिक्री की अनुमति देने का प्रयास किया, लेकिन इन कानूनों का विरोध हुआ और 2021 में इन्हें वापस ले लिया गया।
- राज्य स्तरीय सुधार: महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों ने APMCs की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए पहल की है, जैसे बेहतर अवसंरचना और पारदर्शिता के उपाय, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
निष्कर्ष APMCs ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए स्थापना की गई थी, लेकिन उनकी कार्यप्रणाली की कमियाँ, बाज़ार नियंत्रण, और लेन-देन लागत ने कृषि विकास में बाधाएँ और खाद्य वस्तु महँगाई में योगदान किया है। इन समस्याओं को संबोधित करने के लिए व्यापक सुधार आवश्यक हैं।
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भूमि अर्जन, पुनरुद्धार और पुनर्वासन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013: समाधान और प्रभाव
परिचय भूमि अर्जन, पुनरुद्धार और पुनर्वासन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (RFCTLARR अधिनियम) 1 जनवरी, 2014 से लागू हुआ। यह अधिनियम भूमि अर्जन, मुआवजा, और पुनर्वासन से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करता है।
महत्त्वपूर्ण मुद्दों का समाधान
उद्योगीकरण और कृषि पर प्रभाव
निष्कर्ष RFCTLARR अधिनियम, 2013 उचित मुआवजा, पारदर्शिता, और व्यापक पुनर्वासन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। जबकि यह भूमि मालिकों के अधिकारों की रक्षा करता है, यह उद्योगीकरण की गति और कृषि भूमि के उपयोग को प्रभावित कर सकता है।
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