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जल-प्रतिबलित क्षेत्रों से कृषि उत्पादन में वृद्धि करने में राष्ट्रीय जल-विभाजक परियोजना के प्रभाव को सविस्तार स्पष्ट कीजिए। (150 words) [UPSC 2019]
राष्ट्रीय जल-विभाजक परियोजना और जल-प्रतिबलित क्षेत्रों से कृषि उत्पादन में वृद्धि 1. जल संरक्षण और प्रबंधन: वृष्टि जल संचयन: राष्ट्रीय जल-विभाजक परियोजना के तहत वृष्टि जल संचयन के उपाय जैसे चेक डैम, तालाब, और वृक्षारोपण से जल की उपलब्धता में सुधार हुआ है। महाराष्ट्र में, वृक्षारोपण और जलाशय निर्माणRead more
राष्ट्रीय जल-विभाजक परियोजना और जल-प्रतिबलित क्षेत्रों से कृषि उत्पादन में वृद्धि
1. जल संरक्षण और प्रबंधन:
2. मृदा स्वास्थ्य में सुधार:
3. कृषि उत्पादन में वृद्धि:
4. समुदाय की भागीदारी:
इन उपायों और सुधारों के माध्यम से, राष्ट्रीय जल-विभाजक परियोजना ने जल-प्रतिबलित क्षेत्रों में कृषि उत्पादन को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाया है और दीर्घकालिक कृषि स्थिरता को सुनिश्चित किया है।
See lessएकीकृत कृषि प्रणाली (आइ० एफ० एस०) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (150 words) [UPSC 2019]
एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) और कृषि उत्पादन की संधारणीयता 1. विविधीकरण और स्थिरता: विविध फसलों का उत्पादन: IFS विभिन्न कृषि गतिविधियों को एकीकृत करता है, जैसे कि फसल उत्पादन, पशुपालन, और मछली पालन, जिससे किसानों को एकल फसल पर निर्भरता कम होती है। झारखंड में, धान और मछली पालन के संयोजन ने किसानों की आयRead more
एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) और कृषि उत्पादन की संधारणीयता
1. विविधीकरण और स्थिरता:
2. संसाधन प्रबंधन:
3. पर्यावरणीय लाभ:
4. आय स्थिरता:
इस प्रकार, IFS कृषि उत्पादन को संधारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विभिन्न कृषि गतिविधियों को एकीकृत करके स्थिरता और संसाधन प्रबंधन में सुधार करता है।
See lessविज्ञान हमारे जीवन में गहराई तक कैसे गुथा हुआ है? विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा कृषि में उत्पन्न हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन क्या है? (150 words) [UPSC 2020]
विज्ञान हमारे जीवन के हर पहलू में शामिल है, जिससे हमारी दैनिक गतिविधियाँ और सुविधाएँ संभव होती हैं। यह स्वास्थ्य, संचार, परिवहन और आवास जैसी बुनियादी ज़रूरतों से लेकर अत्याधुनिक तकनीकी नवाचार तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, "स्मार्टफोन्स" और "इंटरनेट" विज्ञान की उन्नति से ही संभवRead more
विज्ञान हमारे जीवन के हर पहलू में शामिल है, जिससे हमारी दैनिक गतिविधियाँ और सुविधाएँ संभव होती हैं। यह स्वास्थ्य, संचार, परिवहन और आवास जैसी बुनियादी ज़रूरतों से लेकर अत्याधुनिक तकनीकी नवाचार तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, “स्मार्टफोन्स” और “इंटरनेट” विज्ञान की उन्नति से ही संभव हुए हैं, और “चिकित्सा क्षेत्र में नई उपचार विधियाँ” जैसे कि “सर्जरी” और “दवाओं की खोज” भी विज्ञान पर निर्भर हैं।
विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा कृषि में परिवर्तन:
ये विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियाँ कृषि को अधिक उत्पादक, कुशल और पर्यावरण के अनुकूल बना रही हैं।
See lessदेश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ एवं अवसर क्या हैं? खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहित कर कृषकों की आय में पर्याप्त वृद्धि कैसे की जा सकती है? (150 words) [UPSC 2020]
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ और अवसर चुनौतियाँ: अवसंरचनात्मक कमियाँ: उदाहरण: "कोल्ड चेन की कमी" - कृषि उत्पादों की खराब प्रसंस्करण और भंडारण सुविधाएँ, जैसे "कृषि से जुड़े आधुनिक गोदामों का अभाव"। निवेश की कमी: उदाहरण: "उच्च पूंजी निवेश की आवश्यकता" - खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में निवेश की कमीRead more
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ और अवसर
चुनौतियाँ:
अवसर:
कृषकों की आय में वृद्धि के उपाय:
इन उपायों से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान संभव है और कृषकों की आय में वृद्धि हो सकती है।
See lessभारत में कृषि उत्पादों के परिवहन एवं विपणन में मुख्य बाधाएँ क्या हैं? (150 words) [UPSC 2020]
भारत में कृषि उत्पादों के परिवहन एवं विपणन की मुख्य बाधाएँ अवसंरचनात्मक समस्याएँ: उदाहरण: "कृषि उपज के लिए सड़क और परिवहन नेटवर्क की कमी" - खराब सड़कें और कम कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ उत्पाद की गुणवत्ता और मूल्य को प्रभावित करती हैं। विपणन प्रणाली की जटिलताएँ: उदाहरण: "कृषि मंडियों में बिचौलियों की अधिRead more
भारत में कृषि उत्पादों के परिवहन एवं विपणन की मुख्य बाधाएँ
समाधान:
इन उपायों से भारत में कृषि उत्पादों के परिवहन और विपणन में सुधार किया जा सकता है।
See lessफ़सल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं ? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फ़सल विविधता के लिए किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं ? (250 words) [UPSC 2021]
फ़सल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ 1. एकल फसल पर निर्भरता: भारत के कई क्षेत्रों में एकल फसल की निर्भरता, जैसे धान या गेंहू, पारंपरिक प्रथाओं और बाज़ार प्रोत्साहनों के कारण है। इस पर निर्भरता विविध फसलों को अपनाने में बाधक है। 2. अवसंरचना की कमी: सभी क्षेत्रों में पर्याप्त सिंचाई सुविधाओं, बाज़ारRead more
फ़सल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ
1. एकल फसल पर निर्भरता: भारत के कई क्षेत्रों में एकल फसल की निर्भरता, जैसे धान या गेंहू, पारंपरिक प्रथाओं और बाज़ार प्रोत्साहनों के कारण है। इस पर निर्भरता विविध फसलों को अपनाने में बाधक है।
2. अवसंरचना की कमी: सभी क्षेत्रों में पर्याप्त सिंचाई सुविधाओं, बाज़ार पहुँच और भंडारण सुविधाओं की कमी से किसानों को नई या विविध फसलों की खेती में कठिनाई होती है। उदाहरण के लिए, पानी की कमी वाले क्षेत्रों में किसान पानी की अधिक माँग वाली फसलों पर ध्यान देते हैं।
3. आर्थिक जोखिम: नई फसलों की आर्थिक जोखिम जैसे मूल्य अनिश्चितता और उत्पादकता की समस्याएँ किसान को विविधता अपनाने से रोकती हैं। जैसे, फलों और सब्जियों की खेती में अधिक निवेश और जोखिम होता है।
4. ज्ञान और विस्तार सेवाओं की कमी: फसल विविधता के लाभ और तकनीकों के बारे में अक्सर ज्ञान की कमी होती है। कृषि विस्तार सेवाएँ नई फसलों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और समर्थन प्रदान करने में असमर्थ हो सकती हैं।
उभरती प्रौद्योगिकियाँ फ़सल विविधता के लिए अवसर
1. सटीक कृषि: ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी और मिट सेंसर जैसी प्रौद्योगिकियाँ मिट्टी की स्थिति का मूल्यांकन करने में मदद करती हैं और उचित फसलों का चयन करती हैं। उदाहरण के लिए, सटीक कृषि किसानों को बेहतर फसल चयन में सहायता करती है।
2. आनुवंशिक सुधार: फसल आनुवंशिकी में उन्नति से सूखा सहनशील और उच्च उत्पादकता वाली प्रजातियाँ विकसित हुई हैं। Bt कपास और बायोफोर्टिफाइड फसलों की शुरुआत विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के लिए अनुकूलन में मदद करती है।
3. जलवायु-स्मार्ट कृषि: जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रथाएँ, जैसे ड्रिप सिंचाई और वृष्टि जल संचयन, किसानों को प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों के बावजूद विविध फसलों की खेती में मदद करती हैं।
4. डिजिटल प्लेटफॉर्म: कृषि-टेक प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप्स जैसे किसान सुविधा वास्तविक समय की बाज़ार जानकारी, मौसम पूर्वानुमान, और विशेषज्ञ सलाह प्रदान करते हैं, जिससे किसानों को फसल विविधता के निर्णय में सहायता मिलती है।
5. आपूर्ति श्रृंखला नवाचार: कोल्ड स्टोरेज समाधान और प्रभावी लॉजिस्टिक्स उच्च मूल्य वाली फसलों जैसे फलों और सब्जियों की बाज़ार में पहुँच और शेल्फ-लाइफ को सुधारते हैं, जिससे किसानों को विविध फसलों की खेती के लिए प्रेरणा मिलती है।
निष्कर्ष: फ़सल विविधता को अपनाने में चुनौतियाँ जैसे एकल फसल पर निर्भरता और अवसंरचना की कमी मौजूद हैं, लेकिन उभरती प्रौद्योगिकियाँ जैसे सटीक कृषि, आनुवंशिक सुधार, जलवायु-स्मार्ट प्रथाएँ, और डिजिटल प्लेटफॉर्म इन बाधाओं को पार करने में महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती हैं। इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग किसानों को अधिक लचीले और सतत कृषि प्रणालियों की ओर बढ़ने में मदद कर सकता है।
See lessभारत के जल संकट के समाधान में, सूक्ष्म सिंचाई कैसे और किस सीमा तक सहायक होगी ? (150 words) [UPSC 2021]
सूक्ष्म सिंचाई और भारत का जल संकट 1. जल उपयोग में सुधार: सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ, जैसे कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, सटीक जल आपूर्ति प्रदान करती हैं, जिससे जल की बर्बादी और वाष्पीकरण कम होता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने से गन्ना की खेती में 30% जल की कमी आई है, साथRead more
सूक्ष्म सिंचाई और भारत का जल संकट
1. जल उपयोग में सुधार: सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ, जैसे कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, सटीक जल आपूर्ति प्रदान करती हैं, जिससे जल की बर्बादी और वाष्पीकरण कम होता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने से गन्ना की खेती में 30% जल की कमी आई है, साथ ही उपज में भी वृद्धि हुई है।
2. कृषि उत्पादकता में वृद्धि: सूक्ष्म सिंचाई फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाती है। कर्नाटक में, टमाटर की फसलों में ड्रिप सिंचाई के कारण उपज में सुधार और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि देखी गई है।
3. जल संरक्षण: यह भूजल स्तर को बनाए रखने और सतही जल संसाधनों पर दबाव कम करने में सहायक है। तमिलनाडु में सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों ने भूजल स्तर को सहेजने में मदद की है, खासकर सूखे की स्थिति में।
4. आर्थिक लाभ: यह संचालन लागत को कम करती है और जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन संभव बनाती है। गुजरात में, किसानों ने सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों के उपयोग से लागत में कमी और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की रिपोर्ट की है।
प्रभाव की सीमा: जबकि सूक्ष्म सिंचाई के लाभ स्पष्ट हैं, उच्च प्रारंभिक लागत और रखरखाव की जटिलता जैसे मुद्दे इसकी विस्तृत अपनाने में बाधक हो सकते हैं। सरकार की सब्सिडी और तकनीकी उन्नति इसे विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
कुल मिलाकर, सूक्ष्म सिंचाई भारत के जल संकट के समाधान में प्रभावशाली उपाय प्रस्तुत करती है, विशेष रूप से जब इसे समर्थन नीतियों और व्यापक अपनाने के साथ जोड़ा जाए।
See lessराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? खाद्य सुरक्षा विधेयक ने भारत में भूख तथा कुपोषण को दूर करने में किस प्रकार सहायता की है ? (250 words) [UPSC 2021]
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएँ 1. कवरेज और अधिकार: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013, का उद्देश्य लगभग 75% ग्रामीण जनसंख्या और 50% शहरी जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है। अधिनियम पात्र घरों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम सब्सिडी वाले खाद्य अनाज कीRead more
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएँ
1. कवरेज और अधिकार: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013, का उद्देश्य लगभग 75% ग्रामीण जनसंख्या और 50% शहरी जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है। अधिनियम पात्र घरों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम सब्सिडी वाले खाद्य अनाज की आपूर्ति करता है, जिसमें चावल ₹3/kg, गेहूं ₹2/kg, और मोटे अनाज ₹1/kg की दर पर उपलब्ध हैं।
2. प्राथमिक और अंत्योदय अन्न योजना: यह अधिनियम दो श्रेणियों के लाभार्थियों को निर्दिष्ट करता है:
3. पोषण सहायता: अधिनियम गर्भवती महिलाओं, दूध पिलाने वाली माताओं और बच्चों को पोषण सहायता प्रदान करने की व्यवस्था करता है। मिड-डे मील योजना और एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) के तहत मुफ्त भोजन और पोषणयुक्त भोजन प्रदान किया जाता है।
4. शिकायत निवारण तंत्र: खाद्य वितरण और अधिकारों से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए राज्य खाद्य आयोग जैसे शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना की गई है।
5. कानूनी अधिकार: यह अधिनियम खाद्य अधिकार को एक कानूनी अधिकार बनाता है, जिसे कानूनी ढांचे के माध्यम से लागू किया जा सकता है।
भूख और कुपोषण को दूर करने में खाद्य सुरक्षा विधेयक की सहायता
1. भूख में कमी: NFSA ने भूख को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। NFHS-5 के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि निम्न-आय वाले घरानों के लिए खाद्य सुरक्षा में सुधार हुआ है।
2. पोषण सुधार: मिड-डे मील योजना और ICDS के अंतर्गत पोषणयुक्त भोजन देने से बच्चों और महिलाओं के पोषण में सुधार हुआ है। हाल की रिपोर्टों के अनुसार, कुपोषण दरें कम हुई हैं।
3. खाद्य वितरण में सुधार: NFSA ने खाद्य वितरण तंत्र को सुव्यवस्थित किया है, जिससे अनाज की चोरी और गड़बड़ी कम हुई है। कई राज्यों में आधार आधारित बायोमैट्रिक सिस्टम का उपयोग करके पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है।
चुनौतियाँ और सुधार की दिशा: फिर भी, कार्यांवयन की समस्याएँ, अपर्याप्त भंडारण सुविधाएँ, और खाद्य अपव्यय जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। सरकार इन समस्याओं को बेहतर प्रबंधन प्रथाओं और सुधारित लॉजिस्टिक्स के माध्यम से संबोधित कर रही है।
निष्कर्ष: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 ने भारत में भूख और कुपोषण को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन कार्यांवयन की समस्याओं को दूर करने और अधिनियम की प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।
See lessदेश के कुछ भागों में भूमि सुधारों ने सीमांत और लघु किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए किस प्रकार सहायता की है ?(150 words) [UPSC 2021]
भूमि सुधारों और सीमांत एवं लघु किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर प्रभाव **1. भूमि सुधारों का उद्देश्य: भूमि सुधारों का मुख्य उद्देश्य भूमि वितरण में समानता लाना और कृषि उत्पादकता को बढ़ाना था। इनमें जमीन का वैधकरण, भूमि छूट और भूमि पुनर्वितरण जैसे उपाय शामिल हैं। **2. सामाजिक-आर्थिक सुधार: स्वामितRead more
भूमि सुधारों और सीमांत एवं लघु किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
**1. भूमि सुधारों का उद्देश्य:
**2. सामाजिक-आर्थिक सुधार:
**3. हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष: भूमि सुधारों ने सीमांत और लघु किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उनके आर्थिक स्थायित्व और जीवन स्तर में सुधार लाने में सहायता प्रदान की है।
See lessसमेकित कृषि प्रणाली क्या है ? भारत में छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह कैसे लाभदायक हो सकती है ? (250 words) [UPSC 2022]
समेकित कृषि प्रणाली: परिभाषा और लाभ **1. समेकित कृषि प्रणाली क्या है?: समेकित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System, IFS) एक बहुआयामी दृष्टिकोण है जिसमें विभिन्न प्रकार की कृषि गतिविधियाँ जैसे कि फसल उत्पादन, पशुपालन, मछली पालन, और वृक्षारोपण एक ही प्रणाली में एकीकृत की जाती हैं। इसका उद्देश्य कृषRead more
समेकित कृषि प्रणाली: परिभाषा और लाभ
**1. समेकित कृषि प्रणाली क्या है?:
**2. भारत में छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाभ:
**a. आय विविधीकरण:
**b. संसाधनों का प्रभावी उपयोग:
**c. विपणन और भंडारण में सुधार:
**d. पर्यावरणीय स्थिरता:
**3. हाल के उदाहरण:
**a. किसान उत्पादक संगठनों: कई राज्यों में किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) ने समेकित कृषि प्रणाली को अपनाया है। उत्तर प्रदेश में, किसान समूहों ने कृषि-लाइवस्टॉक समेकन के माध्यम से अपनी आय को दोगुना किया है और फसलों की जोखिम को कम किया है।
**b. डिजिटल प्लेटफॉर्म्स: आधुनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे eNAM और किसान मित्र ने किसानों को समेकित कृषि प्रणाली के लाभ और जानकारी प्रदान की है, जिससे वे बेहतर निर्णय ले पा रहे हैं और संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर रहे हैं।
निष्कर्ष: समेकित कृषि प्रणाली छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक प्रभावी तरीका है जिससे वे आय विविधीकरण, संसाधनों के कुशल उपयोग, और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं। भारत में इसे लागू करने से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और स्थायी कृषि प्रथाएँ प्रोत्साहित होंगी।
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