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सहायिकियां सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं ? लघु और सीमांत कृषकों के लिए, फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है ? (250 words) [UPSC 2017]
सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव **1. सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप पर प्रभाव: **1. विशिष्ट फसलों की ओर झुकाव: सहायिकाओं की प्राथमिकता: खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के कारण कुछ फसलों जैसे धान और गेहूँ को प्राथमिकता दी जाती है। उदाहरण के लिए, धान के लिए सब्सिडीRead more
सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
**1. सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप पर प्रभाव:
**1. विशिष्ट फसलों की ओर झुकाव:
**2. संसाधन विषमताएँ:
**3. आर्थिक प्रभाव:
**2. सस्य विविधता पर प्रभाव:
**1. सस्य विविधता में कमी:
**2. पर्यावरणीय समस्याएँ:
**3. आर्थिक अस्थिरता:
**3. लघु और सीमांत कृषकों के लिए महत्त्वपूर्ण तत्व:
**1. फसल बीमा:
**2. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):
**3. खाद्य प्रसंस्करण:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष:
सस्यन तंत्र में धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के लिए क्या-क्या मुख्य कारण हैं ? तंत्र में फसलों की उपज के स्थिरीकरण में, सस्य विविधीकरण किस प्रकार मददगार होता है ? (250 words) [UPSC 2017]
धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के मुख्य कारण और सस्य विविधीकरण का योगदान **1. धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के मुख्य कारण: **1. मृदा अवसाद: पोषण की कमी: लगातार धान और गेहूँ की खेती से मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अध्ययन के अनुसार, रासायनिक उर्वरकों पर अत्Read more
धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के मुख्य कारण और सस्य विविधीकरण का योगदान
**1. धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के मुख्य कारण:
**1. मृदा अवसाद:
**2. जल संकट:
**3. जलवायु परिवर्तन:
**4. कीट और रोगों का दबाव:
**5. सिंगल फसल पद्धति:
**2. सस्य विविधीकरण का उपज स्थिरीकरण में योगदान:
**1. मृदा स्वास्थ्य में सुधार:
**2. जल उपयोग की दक्षता:
**3. कीट और रोग प्रबंधन:
**4. जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता:
**5. आर्थिक लाभ:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष:
कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका की विवेचना कीजिए। भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिए उत्तरदायी कारकों को चिह्नित कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका 1. भूमि सुधारों की आवश्यकता: भूमि सुधार कृषि विकास के आधारभूत तत्व हैं जो भूमि का प्रभावी उपयोग और उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करते हैं। ये सुधार भूमि वितरण, स्वामित्व अधिकार, और कृषि प्रक्रियाओं में सुधार करने का प्रयास करते हैं। 2. भूमि सुधारों की प्रमुख भूमिRead more
कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका
1. भूमि सुधारों की आवश्यकता:
भूमि सुधार कृषि विकास के आधारभूत तत्व हैं जो भूमि का प्रभावी उपयोग और उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करते हैं। ये सुधार भूमि वितरण, स्वामित्व अधिकार, और कृषि प्रक्रियाओं में सुधार करने का प्रयास करते हैं।
2. भूमि सुधारों की प्रमुख भूमिकाएँ:
a. भूमि का पुनर्वितरण:
भूमि सुधारों ने छोटे और सीमांत किसानों के लिए भूमि का पुनर्वितरण सुनिश्चित किया, जिससे समान वितरण और सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिला। हरित क्रांति के दौरान, भूमि सुधारों ने उत्पादकता को बढ़ाया और कृषि में पूंजी निवेश को प्रोत्साहित किया।
b. स्वामित्व अधिकारों का सुधार:
भूमि सुधारों ने स्वामित्व अधिकार को पंजीकृत करने और कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के माध्यम से कृषि में स्थिरता सुनिश्चित की। इससे कृषि ऋण प्राप्त करने में आसानी हुई और विकासात्मक योजनाओं का लाभ उठा सके।
c. भूमि उपयोग और सिंचाई में सुधार:
भूमि सुधारों ने सिंचाई के तरीकों और भूमि उपयोग के कुशल प्रबंधन में भी योगदान किया। ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसे सुधारों ने जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाया और उत्पादकता को बढ़ाया।
3. भारत में भूमि सुधारों की सफलता के कारक:
a. प्रभावी कार्यान्वयन:
राज्य सरकारों द्वारा नीति सुधारों का प्रभावी कार्यान्वयन और कृषि योजनाओं का उचित पालन भूमि सुधारों की सफलता में महत्वपूर्ण रहा है।
b. सरकारी योजनाएँ:
“भूमि सुधार आयोग” और “राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद” जैसी सरकारी पहलों ने भूमि सुधारों को प्रोत्साहित किया। “स्वामित्व योजना” और “प्रधानमंत्री आवास योजना” ने भूमि सुधारों को लागू करने में मदद की।
c. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी:
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के सहयोग ने भूमि सुधारों को सफलतापूर्वक लागू करने और कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
4. निष्कर्ष:
भूमि सुधार कृषि विकास में मूलभूत भूमिका निभाते हैं। स्वामित्व अधिकारों का सशक्तिकरण, भूमि का पुनर्वितरण, और सिंचाई में सुधार भूमि सुधारों की सफलता में योगदान देते हैं। भारत में नीति कार्यान्वयन, सरकारी योजनाएँ, और सार्वजनिक-निजी भागीदारी भूमि सुधारों की सफलता को सुनिश्चित करती हैं।
See lessऐलीलोपैथी क्या है? सिंचित कृषि क्षेत्रों की प्रमुख फसल पद्धतियों में इसकी भूमिका का वर्णन कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
ऐलीलोपैथी और सिंचित कृषि में इसकी भूमिका 1. ऐलीलोपैथी की परिभाषा: ऐलीलोपैथी (Allelopathy) एक परिस्थितिकीय प्रक्रिया है जिसमें एक पौधा रसायनिक पदार्थ छोड़ता है जो अन्य पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। ये रसायन जमीन में या वातावरण में वितरित होते हैं और सभी प्रकार की जैविक गतिविधियों पर प्रभाव डालRead more
ऐलीलोपैथी और सिंचित कृषि में इसकी भूमिका
1. ऐलीलोपैथी की परिभाषा:
ऐलीलोपैथी (Allelopathy) एक परिस्थितिकीय प्रक्रिया है जिसमें एक पौधा रसायनिक पदार्थ छोड़ता है जो अन्य पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। ये रसायन जमीन में या वातावरण में वितरित होते हैं और सभी प्रकार की जैविक गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं।
2. सिंचित कृषि क्षेत्रों में ऐलीलोपैथी की भूमिका:
a. खरपतवार नियंत्रण:
ऐलीलोपैथी एक प्राकृतिक खरपतवार नियंत्रण विधि के रूप में कार्य कर सकती है। मिट्टी में ऐलीलोपैथिक यौगिक अन्य खरपतवारों की वृद्धि को रोकते हैं, जैसे कि अरेगॉन में फेनक्वेल पौधों द्वारा विवर की वृद्धि को नियंत्रित किया गया।
b. फसल उत्पादन में सुधार:
कुछ फसलें ऐलीलोपैथिक प्रभाव का उपयोग फसल की वृद्धि को बढ़ाने के लिए करती हैं। उदाहरण के लिए, टमाटर और मक्का जैसे पौधों के रूट exudates नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जिससे फसल की उपज में सुधार होता है।
c. मिट्टी की उर्वरता:
ऐलीलोपैथी मिट्टी की उर्वरता में सुधार कर सकती है। दलहनी फसलों जैसे ग्वार और मूँग द्वारा मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाई जाती है, जो अन्य फसलों के लिए उपयुक्त पोषक तत्व प्रदान करती है।
d. उदाहरण:
पंजाब और हरियाणा में सरसों का प्रयोग ऐलीलोपैथी के माध्यम से धान की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करने में किया गया।
निष्कर्ष:
ऐलीलोपैथी सिंचित कृषि में एक प्राकृतिक और प्रभावी विधि है जो खरपतवार नियंत्रण, फसल उत्पादन में सुधार, और मिट्टी की उर्वरता में योगदान करती है। इसका सही उपयोग कृषि उत्पादन को सतत और पर्यावरण मित्रवत बनाने में सहायक हो सकता है।
See lessजल-उपयोग दक्षता से आप क्या समझते हैं? जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने में सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका का वर्णन कीजिए। What is water-use efficiency? (200 words) [UPSC 2016]
जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका 1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। 2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिकRead more
जल-उपयोग दक्षता और सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका
1. जल-उपयोग दक्षता: जल-उपयोग दक्षता (Water-Use Efficiency) से तात्पर्य जल के प्रभावी और सतत उपयोग से है, ताकि कम पानी में अधिक उत्पादन किया जा सके। यह जल की बर्बादी को कम करने और वृहत कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
2. सूक्ष्म सिंचाई की भूमिका:
a. सूक्ष्म सिंचाई की परिभाषा: सूक्ष्म सिंचाई (Micro-Irrigation) में ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी तकनीकों का उपयोग होता है, जो सटीक रूप से पौधों की जड़ों के पास पानी प्रदान करती हैं। यह जल की बर्बादी को कम करता है और जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाता है।
b. भूमिका:
i. जल की बचत: सूक्ष्म सिंचाई जल की मात्रा को नियंत्रित करती है और फव्वारे की तुलना में 30-50% अधिक जल की बचत कर सकती है। उदाहरण के लिए, ड्रिप सिंचाई ने पंजाब और हरियाणा में धान और गेंहू की फसलों में जल की बर्बादी को कम किया है।
ii. फसल की वृद्धि: यह प्रणाली फसल की वृद्धि और उत्पादकता में सुधार करती है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में सूक्ष्म सिंचाई के उपयोग से प्याज और मिर्च की फसलों में उत्पादकता में 30% तक की वृद्धि देखी गई है।
iii. भूमि की सिंचाई: सूक्ष्म सिंचाई भूमि की समान सिंचाई सुनिश्चित करती है और खेतों में जल की असमानता को समाप्त करती है, जिससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है।
c. पर्यावरणीय लाभ: यह प्रणाली भूस्खलन और मिट्टी की कटाई को कम करती है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गुजरात में सूक्ष्म सिंचाई ने मृदा की उपजाऊता को बनाए रखने में मदद की है।
निष्कर्ष: सूक्ष्म सिंचाई जल-उपयोग दक्षता को बढ़ाने में अत्यंत प्रभावी है, क्योंकि यह जल की बर्बादी को कम करती है, फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार करती है, और पर्यावरण की रक्षा करती है। यह सतत कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
See lessलागत प्रभावी छोटी प्रक्रमण इकाई की अल्प स्वीकारिता के क्या कारण हैं? खाद्य प्रक्रमण इकाई गरीब किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने में किस प्रकार सहायक होगी ? (150 words) [UPSC 2017]
लागत प्रभावी छोटी प्रक्रमण इकाई की अल्प स्वीकारिता के कारण: **1. आधारभूत संरचना की कमी: सीमित सुविधाएँ: छोटी प्रक्रमण इकाइयों को अक्सर आधारभूत संरचना की कमी का सामना करना पड़ता है, जैसे कि ठंडा भंडारण और आधुनिक प्रक्रमण तकनीक। उदाहरण के लिए, कई छोटे यूनिट्स में उचित ठंडा भंडारण की सुविधा नहीं होती,Read more
लागत प्रभावी छोटी प्रक्रमण इकाई की अल्प स्वीकारिता के कारण:
**1. आधारभूत संरचना की कमी:
**2. उच्च प्रारंभिक निवेश:
**3. बाजार पहुँच की समस्याएँ:
**4. नियमिती समस्याएँ:
खाद्य प्रक्रमण इकाई से गरीब किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार:
**1. मूल्य वृद्धि और आय में वृद्धि:
**2. रोजगार सृजन:
**3. पश्चात-फसल क्षति में कमी:
**4. ग्रामीण विकास:
इस प्रकार, लागत प्रभावी छोटी प्रक्रमण इकाइयाँ वित्तीय, बुनियादी ढाँचे, और नियामक चुनौतियों का सामना करती हैं, लेकिन ये किसानों की आय बढ़ाने, रोजगार सृजन, और ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
See lessगत वर्षों में कुछ विशेष फसलों पर जोर ने सस्पन पैटनों में किस प्रकार परिवर्तन ला दिए हैं? मोटे अनाजों (मिलटों) के उत्पादन और उपभोग पर बल को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए। (250 words) [UPSC 2018]
विशेष फसलों पर जोर और सस्पन पैटनों में परिवर्तन 1. विशेष फसलों पर जोर: सरकार की नीतियाँ: हाल के वर्षों में, सरकार ने विशेष फसलों जैसे धान और गेंहू पर जोर देने के साथ-साथ मोटे अनाज (मिलट्स) जैसे बाजरा, रागी, और कोदो की ओर भी ध्यान केंद्रित किया है। यह बदलाव सार्वजनिक वितरण प्रणाली और फसल विविधता के सRead more
विशेष फसलों पर जोर और सस्पन पैटनों में परिवर्तन
1. विशेष फसलों पर जोर:
2. मोटे अनाजों (मिलट्स) का महत्व:
3. हालिया पहलें:
4. सस्पन पैटनों में बदलाव:
5. निष्कर्ष: विशेष फसलों पर जोर ने सस्पन पैटनों में परिवर्तन लाया है। सरकार की नीतियों के तहत मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के प्रयास ने न केवल किसानों के लिए फसल विविधता बढ़ाई है, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता में भी योगदान दिया है। यह बदलाव भारत के कृषि क्षेत्र की सततता और विकास के लिए सकारात्मक संकेत है।
See lessन्यूनतम समर्थन मूल्य (एम० एस० पी०) से आप क्या समझते हैं? न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषकों का निम्न आय फंदे से किस प्रकार बचाव करेगा? (150 words) [UPSC 2018]
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी): परिभाषा: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) एक सरकारी निर्धारित मूल्य है, जिसके तहत सरकार कुछ विशिष्ट फसलों के लिए किसानों से खरीद सुनिश्चित करती है। यह मूल्य किसानों को कृषि उत्पादों की बिक्री पर न्यूनतम आय की गारंटी देता है, भले ही बाजार मूल्य घट जाए। कृषकों का निम्न आय फंदेRead more
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी):
परिभाषा:
कृषकों का निम्न आय फंदे से बचाव:
MSP के माध्यम से किसानों को वित्तीय स्थिरता और निवेश के लिए प्रोत्साहन मिलता है, जिससे वे निम्न आय फंदे से सुरक्षित रहते हैं।
See lessखाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रक की चुनौतियों के समाधान हेतु भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीति को सविस्तार स्पष्ट कीजिए। (250 words) [UPSC 2019]
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियों के समाधान हेतु भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीति 1. राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति: नीति का उद्देश्य: भारत सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को संवर्धित और आत्मनिर्भर बनाने के लिए राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति (NFPP) लागू की है। इसका लक्ष्य उत्पादन क्षमता बढ़ानRead more
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियों के समाधान हेतु भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीति
1. राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति:
2. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन:
3. प्रोसेसिंग पार्क और क्लस्टर डेवलपमेंट:
4. वित्तीय प्रोत्साहन और सब्सिडी:
5. मास्टर प्लान और नीति सुधार:
6. स्मार्ट टेक्नोलॉजी और अनुसंधान:
निष्कर्ष: भारत सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियों को दूर करने के लिए समग्र नीति अपनाई है, जिसमें प्रोसेसिंग पार्क, वित्तीय प्रोत्साहन, नीति सुधार, और स्मार्ट टेक्नोलॉजी के उपयोग शामिल हैं। ये उपाय क्षेत्र के विकास और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
See lessअनाज वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने हेतु सरकार द्वारा कौन-कौन से सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं? (250 words) [UPSC 2019]
अनाज वितरण प्रणाली में सुधारात्मक कदम 1. डिजिटल लाइसेंसिंग और ई-गवर्नेंस: डिजिटल लाभार्थी रिकॉर्ड: सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग कर लाइसेंसिंग प्रक्रिया को पारदर्शी और सुलभ बनाया है। पीडीएस-एनओसी (Public Distribution System-National Online Certificate) ने लाभार्थियों की सूची को डिजिटल रूप सेRead more
अनाज वितरण प्रणाली में सुधारात्मक कदम
1. डिजिटल लाइसेंसिंग और ई-गवर्नेंस:
2. प्रौद्योगिकी का उपयोग:
3. खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA):
4. वाणिज्यिक अनाज भंडारण में सुधार:
5. पुनरावलोकन और निगरानी:
इन सुधारात्मक कदमों से अनाज वितरण प्रणाली की सक्षमता और सटीकता में सुधार हुआ है, जिससे लाभार्थियों को समय पर और उचित मात्रा में अनाज मिल रहा है।
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