पूँजीवाद ने विश्व अर्थव्यवस्था का अभूतपूर्व समृद्धि तक दिशा-निर्देशन किया है। परन्तु फिर भी, वह अक्रसर अदूरदर्शिता को प्रोत्साहित करता है तथा धनवानों और निर्धनों के बीच विस्तृत असमताओं को बढ़ावा देता है। इसके प्रकाश में, भारत में समावेशी संवृद्धि ...
आंतर्पीढ़ी (Intra-regional) और अंतर्पीढ़ी (Inter-regional) साम्या की व्याख्या आंतर्पीढ़ी साम्या: परिभाषा: एक ही क्षेत्र के भीतर विभिन्न सामाजिक और आर्थिक समूहों के बीच समानता। उदाहरण: आंध्र प्रदेश में अमरावती का विकास - इस परियोजना ने न केवल क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा दिया बल्कि स्थानीय जनसंख्या के लRead more
आंतर्पीढ़ी (Intra-regional) और अंतर्पीढ़ी (Inter-regional) साम्या की व्याख्या
आंतर्पीढ़ी साम्या:
- परिभाषा: एक ही क्षेत्र के भीतर विभिन्न सामाजिक और आर्थिक समूहों के बीच समानता।
- उदाहरण: आंध्र प्रदेश में अमरावती का विकास – इस परियोजना ने न केवल क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा दिया बल्कि स्थानीय जनसंख्या के लिए रोजगार और शिक्षा के अवसर भी प्रदान किए।
अंतर्पीढ़ी साम्या:
- परिभाषा: विभिन्न क्षेत्रों या राज्यों के बीच विकास की असमानताओं को दूर करना।
- उदाहरण: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) – यह योजना भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे को बेहतर बनाकर विभिन्न राज्यों के बीच सड़क संपर्क को सुधारने का प्रयास करती है।
समावेशी संवृद्धि एवं संपोषणीय विकास के परिप्रेक्ष्य में:
- आंतर्पीढ़ी साम्या के उपाय:
- स्थानीय विकास योजनाएं और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार।
- अंतर्पीढ़ी साम्या के उपाय:
- राष्ट्रीय एकीकृत योजनाएं और संसाधनों का समान वितरण।
इन उपायों के माध्यम से समावेशी संवृद्धि और संपोषणीय विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है, जो सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
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परिचय: पूँजीवाद, जो कि निजी स्वामित्व और मुक्त बाजारों पर आधारित है, ने निस्संदेह विश्व अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व समृद्धि तक पहुँचाया है। परन्तु, इसके साथ ही यह अल्पकालिक लाभ और आय असमानताओं को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है। पूँजीवाद के लाभ: आर्थिक वृद्धि: पूँजीवाद नवाचार और प्रतिस्पर्धा को प्रRead more
परिचय: पूँजीवाद, जो कि निजी स्वामित्व और मुक्त बाजारों पर आधारित है, ने निस्संदेह विश्व अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व समृद्धि तक पहुँचाया है। परन्तु, इसके साथ ही यह अल्पकालिक लाभ और आय असमानताओं को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है।
पूँजीवाद के लाभ:
पूँजीवाद की आलोचना:
भारत में समावेशी संवृद्धि और पूँजीवाद:
निष्कर्ष: हालाँकि पूँजीवाद आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है, परन्तु भारत में समावेशी संवृद्धि प्राप्त करने के लिए यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है। संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए पूँजीवाद की शक्तियों के साथ राज्य हस्तक्षेप और सामाजिक नीतियों को मिलाना आवश्यक है ताकि न्यायसंगत और स्थायी विकास सुनिश्चित किया जा सके।
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