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बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिए सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
मानव बस्तियों का पुनर्वास: विवाद और समाधान परिचय बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के दौरान मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात होता है, जो अक्सर विवाद का कारण बनता है। इस संघात को कम करने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता होती है। उपाय सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन: परियोजना से पूर्व व्यापRead more
मानव बस्तियों का पुनर्वास: विवाद और समाधान
परिचय बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के दौरान मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात होता है, जो अक्सर विवाद का कारण बनता है। इस संघात को कम करने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता होती है।
उपाय
निष्कर्ष मानव बस्तियों के पुनर्वास के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को कम करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जिसमें गहन मूल्यांकन, समुदाय की भागीदारी, और प्रभावी पुनर्वास योजनाएं शामिल हैं।
See lessहाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिए । (200 words) [UPSC 2015]
हाँ, यह विचार कि भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति "नौकरीहीन संवृद्धि" के रूप में देखी जा रही है, एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस विचार से सहमत होने के कुछ प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं: नौकरी की कमी: भारत की आर्थिक वृद्धि के बावजूद, नई नौकरियों का सृजन पर्याप्त नहीं हो रहा है। रोजगार वृद्धि की दर अक्सरRead more
हाँ, यह विचार कि भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति “नौकरीहीन संवृद्धि” के रूप में देखी जा रही है, एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस विचार से सहमत होने के कुछ प्रमुख तर्क निम्नलिखित हैं:
इन तर्कों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि भारत की आर्थिक वृद्धि की प्रकृति में “नौकरीहीन संवृद्धि” का तत्व मौजूद है, और इस चुनौती को हल करने के लिए समेकित नीतियों और पहल की आवश्यकता है।
See lessपूँजीवाद ने विश्व अर्थव्यवस्था का अभूतपूर्व समृद्धि तक दिशा-निर्देशन किया है। परन्तु फिर भी, वह अक्रसर अदूरदर्शिता को प्रोत्साहित करता है तथा धनवानों और निर्धनों के बीच विस्तृत असमताओं को बढ़ावा देता है। इसके प्रकाश में, भारत में समावेशी संवृद्धि को लाने के लिए क्या पूँजीवाद में विश्वास करना और उसको अपना लेना सही होगा? चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय: पूँजीवाद, जो कि निजी स्वामित्व और मुक्त बाजारों पर आधारित है, ने निस्संदेह विश्व अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व समृद्धि तक पहुँचाया है। परन्तु, इसके साथ ही यह अल्पकालिक लाभ और आय असमानताओं को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है। पूँजीवाद के लाभ: आर्थिक वृद्धि: पूँजीवाद नवाचार और प्रतिस्पर्धा को प्रRead more
परिचय: पूँजीवाद, जो कि निजी स्वामित्व और मुक्त बाजारों पर आधारित है, ने निस्संदेह विश्व अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व समृद्धि तक पहुँचाया है। परन्तु, इसके साथ ही यह अल्पकालिक लाभ और आय असमानताओं को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है।
पूँजीवाद के लाभ:
पूँजीवाद की आलोचना:
भारत में समावेशी संवृद्धि और पूँजीवाद:
निष्कर्ष: हालाँकि पूँजीवाद आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है, परन्तु भारत में समावेशी संवृद्धि प्राप्त करने के लिए यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है। संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए पूँजीवाद की शक्तियों के साथ राज्य हस्तक्षेप और सामाजिक नीतियों को मिलाना आवश्यक है ताकि न्यायसंगत और स्थायी विकास सुनिश्चित किया जा सके।
See less'समावेशी संवृद्धि' के प्रमुख अभिलक्षण क्या हैं ? क्या भारत इस प्रकार के संवृद्धि प्रक्रम का अनुभव करता रहा है ? विश्लेषण कीजिए एवं समावेशी संवृद्धि हेतु उपाय सुझाइये । (250 words) [UPSC 2017]
समावेशी संवृद्धि के प्रमुख अभिलक्षण और भारत का अनुभव **1. समावेशी संवृद्धि के प्रमुख अभिलक्षण: **1. संसाधनों का समान वितरण: आय और संपत्ति में समानता: समावेशी संवृद्धि का उद्देश्य आय और संपत्ति के असमान वितरण को कम करना है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसरों को सभी वर्गों के बीच समान रूप से बाRead more
समावेशी संवृद्धि के प्रमुख अभिलक्षण और भारत का अनुभव
**1. समावेशी संवृद्धि के प्रमुख अभिलक्षण:
**1. संसाधनों का समान वितरण:
**2. स्थायी विकास:
**3. परिवादित समूहों का सशक्तिकरण:
**4. विस्तृत आर्थिक भागीदारी:
**2. भारत का अनुभव:
**1. प्रगति और उपलब्धियाँ:
**2. चुनौतियाँ:
**3. समावेशी संवृद्धि के लिए उपाय:
**1. गुणवत्ता शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार:
**2. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सुदृढ़ करना:
**3. क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहन देना:
**4. उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देना:
निष्कर्ष:
भारतीय सन्दर्भ में समावेशी विकास में निहित चुनौतियों, जिनमें लापरवाह और बेकार जनशक्ति शामिल है, पर टिप्पणी कीजिए। इन चुनौतियों का सामना करने के उपाय सुझाइए। (200 words) [UPSC 2016]
भारतीय संदर्भ में समावेशी विकास की चुनौतियाँ 1. लापरवाह और बेकार जनशक्ति: भारत में समावेशी विकास के रास्ते में लापरवाह और बेकार जनशक्ति एक प्रमुख चुनौती है। यह स्थिति अशिक्षा, आवश्यक कौशलों की कमी, और प्रशासनिक विफलता के कारण उत्पन्न होती है। अनौपचारिक क्षेत्र में कामकाजी व्यक्तियों की आय असमानता औरRead more
भारतीय संदर्भ में समावेशी विकास की चुनौतियाँ
1. लापरवाह और बेकार जनशक्ति: भारत में समावेशी विकास के रास्ते में लापरवाह और बेकार जनशक्ति एक प्रमुख चुनौती है। यह स्थिति अशिक्षा, आवश्यक कौशलों की कमी, और प्रशासनिक विफलता के कारण उत्पन्न होती है। अनौपचारिक क्षेत्र में कामकाजी व्यक्तियों की आय असमानता और कामकाजी सुरक्षा की कमी से भी यह समस्या गंभीर हो जाती है। उदाहरण के लिए, युवा बेरोजगारी की समस्या और कौशल के अद्यतन की कमी जैसी समस्याएँ इसके मुख्य कारण हैं।
2. उपाय:
a. शिक्षा और कौशल विकास: लापरवाह जनशक्ति को शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से सुधारना आवश्यक है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और साक्षरता मिशन जैसी योजनाएँ युवाओं को प्रशिक्षित कर रही हैं और उनके रोजगार की संभावनाओं को बढ़ा रही हैं।
b. बेहतर नियोजन और प्रशासन: अच्छे प्रशासनिक ढांचे के माध्यम से कार्यक्रमों और योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए। उदाहरण के लिए, मंगलसूत्र योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों में सुधार लाने का प्रयास किया है।
c. औपचारिक क्षेत्र में रोजगार: औपचारिक क्षेत्र में अधिक रोजगार सृजन की आवश्यकता है, जिससे कि मजदूरी असमानता और बेहतर कार्य वातावरण को सुनिश्चित किया जा सके। मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी पहलों ने औपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने का प्रयास किया है।
d. सरकारी योजनाओं की निगरानी: सरकारी योजनाओं और योजनाओं की निगरानी को सुदृढ़ करना होगा ताकि उनके लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित हो सके। समावेशी विकास रिपोर्ट्स और जनगणना डेटा का विश्लेषण इस प्रक्रिया में सहायक हो सकता है।
निष्कर्ष: समावेशी विकास में लापरवाह और बेकार जनशक्ति की चुनौतियों का सामना शिक्षा, कौशल विकास, अच्छे प्रशासन, औपचारिक रोजगार और सही निगरानी के माध्यम से किया जा सकता है। इन उपायों से भारत में समावेशी विकास की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है।
See lessप्रधान मंत्री जन-धन योजना (पी० एम० जे० डी० वाइ०) बैंकरहितों को संस्थागत वित्त में लाने के लिए आवश्यक है। क्या आप सहमत हैं कि इससे भारतीय समाज के गरीब तबके के लोगों का वित्तीय समावेश होगा? अपने मत की पुष्टि के लिए तर्क प्रस्तुत कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
प्रधान मंत्री जन-धन योजना (PMJDY) और वित्तीय समावेश वित्तीय समावेश की दिशा में प्रभाव: 1. बैंकिंग पहुँच: प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) का उद्देश्य बैंकरहित लोगों को संस्थानिक वित्त से जोड़ना है। इस योजना के तहत, 2014 से शुरू होकर, लाखों लोगों को बैंक खाते खोले गए हैं, जिनमें न्यूनतम बैलेंस की आवशRead more
प्रधान मंत्री जन-धन योजना (PMJDY) और वित्तीय समावेश
वित्तीय समावेश की दिशा में प्रभाव:
1. बैंकिंग पहुँच: प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) का उद्देश्य बैंकरहित लोगों को संस्थानिक वित्त से जोड़ना है। इस योजना के तहत, 2014 से शुरू होकर, लाखों लोगों को बैंक खाते खोले गए हैं, जिनमें न्यूनतम बैलेंस की आवश्यकता नहीं होती।
2. सामाजिक सुरक्षा: PMJDY खाताधारकों को साधारण बचत खातों के साथ-साथ बीमा कवर (जैसे कि प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री जीवन जॉति बीमा योजना) भी प्रदान किया गया है। इससे गरीब तबके को आर्थिक सुरक्षा और सवास्थ्य लाभ मिल रहा है।
3. डिजिटल लेनदेन: योजना के अंतर्गत, डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दिया गया है। जनधन खातों की डिजिटल बैंकिंग सुविधाएँ जैसे कि AEPS (आधार एनेबल्ड पेमेंट सिस्टम) और UPI (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) ने वित्तीय समावेश को सुगम बनाया है।
4. सरकारी लाभ: PMJDY के अंतर्गत सरकारी सब्सिडी और लाभार्थियों के भुगतान सीधे खातों में ट्रांसफर किए जाते हैं, जो वित्तीय समावेश को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री आवास योजना और राशन वितरण के लिए खातों का उपयोग किया जाता है।
विवाद और चुनौतियाँ:
1. डिजिटल साक्षरता: डिजिटल साक्षरता की कमी गरीब तबके के लिए वित्तीय समावेश में बाधा बन सकती है। कई ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में लोग डिजिटल लेनदेन की प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं।
2. बैंकिंग सुविधाएँ: कई क्षेत्रों में बैंक शाखाओं और ATM की कमी भी वित्तीय समावेश में रुकावट डालती है।
निष्कर्ष:
प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY) ने भारतीय समाज के गरीब तबके को वित्तीय समावेश के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यद्यपि कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं, इस योजना ने बैंकरहित लोगों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान कर आर्थिक समावेशिता में सुधार किया है।
See lessभारत की संभाव्य संवृद्धि के अनेक कारको में बचत दर, सर्वाधिक प्रभावी है। क्या आप इससे सहमत हैं ? संवृद्धि संभाव्यता के अन्य कौन से कारक उपलब्ध हैं ? (150 words) [UPSC 2017]
भारत की संभाव्य संवृद्धि में बचत दर की भूमिका: 1. बचत दर का महत्व: पूंजी निर्माण: उच्च बचत दर पूंजी निर्माण को बढ़ावा देती है, जो आधारभूत संरचना, तकनीकी उन्नति, और उद्योगों में निवेश के लिए आवश्यक है। हाल के वर्षों में, भारत की सकल घरेलू बचत दर लगभग 30% रही है, जो आर्थिक विकास को समर्थन प्रदान करतीRead more
भारत की संभाव्य संवृद्धि में बचत दर की भूमिका:
1. बचत दर का महत्व:
2. संवृद्धि संभाव्यता के अन्य कारक:
**1. मानव संसाधन विकास:
**2. आधारभूत संरचना विकास:
**3. प्रौद्योगिकी और नवाचार:
**4. आर्थिक सुधार:
इस प्रकार, जबकि बचत दर आर्थिक स्थिरता और पूंजी निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है, मानव संसाधन विकास, आधारभूत संरचना, प्रौद्योगिकी और आर्थिक सुधार भी भारत की संवृद्धि संभाव्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
See lessयह तर्क दिया जाता है कि समावेशी संवृद्धि की रणनीति का आशय एकसाथ समावेशिता और धारणीयता के उद्देश्यों को प्राप्त किया जाना है। इस कथन पर टिप्पणी कीजिए। (250 words) [UPSC 2019]
समावेशी संवृद्धि की रणनीति: समावेशिता और धारणीयता का समन्वय 1. समावेशी संवृद्धि का आशय: समावेशी संवृद्धि एक ऐसी रणनीति है जिसका उद्देश्य सभी सामाजिक और आर्थिक वर्गों को विकास की धारा में शामिल करना है। इसका लक्ष्य केवल आर्थिक वृद्धि नहीं है, बल्कि सामाजिक समानता और धारणीयता को भी सुनिश्चित करना है।Read more
समावेशी संवृद्धि की रणनीति: समावेशिता और धारणीयता का समन्वय
1. समावेशी संवृद्धि का आशय:
2. समावेशिता की दिशा:
3. धारणीयता की दिशा:
4. प्रासंगिक उदाहरण:
5. चुनौतियाँ और समाधान:
समावेशी संवृद्धि की रणनीति समाज और पर्यावरण दोनों की धारणीयता को सुनिश्चित करने के लिए समाज के सभी वर्गों को विकास की धारा में शामिल करने की दिशा में एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करती है।
See lessसमावेशी संवृद्धि एवं संपोषणीय विकास के परिप्रेक्ष्य में, आंतर्पीढ़ी एवं अंतर्पीढ़ी साम्या के विषयों की व्याख्या कीजिए। (150 words) [UPSC 2020]
आंतर्पीढ़ी (Intra-regional) और अंतर्पीढ़ी (Inter-regional) साम्या की व्याख्या आंतर्पीढ़ी साम्या: परिभाषा: एक ही क्षेत्र के भीतर विभिन्न सामाजिक और आर्थिक समूहों के बीच समानता। उदाहरण: आंध्र प्रदेश में अमरावती का विकास - इस परियोजना ने न केवल क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा दिया बल्कि स्थानीय जनसंख्या के लRead more
आंतर्पीढ़ी (Intra-regional) और अंतर्पीढ़ी (Inter-regional) साम्या की व्याख्या
आंतर्पीढ़ी साम्या:
अंतर्पीढ़ी साम्या:
समावेशी संवृद्धि एवं संपोषणीय विकास के परिप्रेक्ष्य में:
इन उपायों के माध्यम से समावेशी संवृद्धि और संपोषणीय विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है, जो सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
See less"तीव्रतर एवं समावेशी आर्थिक संवृद्धि के लिए आधारिक-अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।" भारतीय अनुभव के परिप्रेक्ष्य में विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
आधारिक-अवसंरचना में निवेश और समावेशी आर्थिक संवृद्धि आधारिक-अवसंरचना का महत्व: आधारिक-अवसंरचना में निवेश आर्थिक संवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उत्पादन और वितरण क्षमताओं को बढ़ाता है, रोजगार सृजन करता है, और समग्र जीवन गुणवत्ता में सुधार करता है। इसके अलावा, यह आर्थिक विकास के लिए एक मजबूतRead more
आधारिक-अवसंरचना में निवेश और समावेशी आर्थिक संवृद्धि
आधारिक-अवसंरचना का महत्व: आधारिक-अवसंरचना में निवेश आर्थिक संवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उत्पादन और वितरण क्षमताओं को बढ़ाता है, रोजगार सृजन करता है, और समग्र जीवन गुणवत्ता में सुधार करता है। इसके अलावा, यह आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
भारतीय अनुभव:
चुनौतियाँ और सुझाव:
निष्कर्ष: भारत में आधारिक अवसंरचना में निवेश ने समावेशी आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहित किया है, लेकिन असमान विकास और वित्तीय चुनौतियों को संबोधित करने के लिए सतत और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। यह निवेश न केवल आर्थिक विकास को तेज करता है बल्कि सामाजिक समावेश और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है।
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