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क्या बाज़ार अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत समावेशी विकास संभव है ? भारत में आर्थिक विकास की प्राप्ति के लिए वित्तीय समावेश के महत्त्व का उल्लेख कीजिए। (150 words)[UPSC 2022]
क्या बाज़ार अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत समावेशी विकास संभव है? बाज़ार अर्थव्यवस्था और समावेशी विकास: बाज़ार अर्थव्यवस्था में समावेशी विकास संभव है, लेकिन इसके लिए सही नीतियों और नियामक ढांचे की आवश्यकता होती है। समावेशी विकास का मतलब है कि आर्थिक विकास का लाभ सभी समाज के वर्गों तक पहुंचे, न कि केवल कुछRead more
क्या बाज़ार अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत समावेशी विकास संभव है?
बाज़ार अर्थव्यवस्था और समावेशी विकास:
बाज़ार अर्थव्यवस्था में समावेशी विकास संभव है, लेकिन इसके लिए सही नीतियों और नियामक ढांचे की आवश्यकता होती है। समावेशी विकास का मतलब है कि आर्थिक विकास का लाभ सभी समाज के वर्गों तक पहुंचे, न कि केवल कुछ विशेष समूहों तक सीमित रहे।
हाल के उदाहरण:
इन पहलों से यह स्पष्ट होता है कि बाज़ार अर्थव्यवस्था के अंतर्गत समावेशी विकास संभव है, बशर्ते कि नीति निर्धारण और कार्यक्रमों का ध्यान सभी समाज के वर्गों की जरूरतों पर केंद्रित हो।
See lessदेश के सभी हिस्सों में प्राकृतिक गैस के पर्याप्त और समान वितरण की उपलब्धता एक समान आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति हासिल करने में कैसे मदद कर सकती है? इस संदर्भ में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?(150 शब्दों में उत्तर दें)
देश के सभी हिस्सों में प्राकृतिक गैस का पर्याप्त और समान वितरण आर्थिक और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ऊर्जा स्रोत ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में औद्योगिकीकरण, रोजगार सृजन और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है। साथ ही, यह ऊर्जा की सस्ती उपलब्धता के कारण खाद्यRead more
देश के सभी हिस्सों में प्राकृतिक गैस का पर्याप्त और समान वितरण आर्थिक और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह ऊर्जा स्रोत ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में औद्योगिकीकरण, रोजगार सृजन और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है। साथ ही, यह ऊर्जा की सस्ती उपलब्धता के कारण खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार करता है।
भारत को इस संदर्भ में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। प्रमुख चुनौतियाँ हैं:
इन चुनौतियों को सुलझाने के लिए बेहतर अवसंरचना विकास और नीति सुधार की आवश्यकता है।
See less. क्या आप इस बात से सहमत हैं कि आर्थिक सुधार के बाद की अवधि में उच्च आर्थिक संवृद्धि के परिणामस्वरूप संवृद्धि का लाभ हाशिए पर मौजूद वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है, जिससे समावेशी विकास चिंता का एक प्रमुख विषय बन गया है? अपने उत्तर का औचित्य सिद्ध </strong><strong>कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
हाँ, यह कहना उचित है कि आर्थिक सुधार के बाद की अवधि में उच्च आर्थिक संवृद्धि के परिणामस्वरूप संवृद्धि का लाभ हाशिए पर मौजूद वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है, और समावेशी विकास एक प्रमुख चिंता बन गया है। इसके औचित्य के निम्नलिखित कारण हैं: आय असमानता: आर्थिक सुधारों ने समग्र GDP वृद्धि को बढ़ाया, लेकिन इसRead more
हाँ, यह कहना उचित है कि आर्थिक सुधार के बाद की अवधि में उच्च आर्थिक संवृद्धि के परिणामस्वरूप संवृद्धि का लाभ हाशिए पर मौजूद वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है, और समावेशी विकास एक प्रमुख चिंता बन गया है। इसके औचित्य के निम्नलिखित कारण हैं:
आय असमानता: आर्थिक सुधारों ने समग्र GDP वृद्धि को बढ़ाया, लेकिन इस वृद्धि का लाभ अमीर वर्गों और बड़े शहरों तक सीमित रहा, जबकि गरीब और हाशिए पर मौजूद वर्गों को इसका समान लाभ नहीं मिला।
संवृद्धि का असमान वितरण: शहरी क्षेत्रों और औद्योगिक क्षेत्रों में अधिक निवेश होने से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में विकास की दर धीमी रही, जिससे असमानता बढ़ी।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: हाशिए पर मौजूद वर्गों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पाया।
इन कारणों से, समावेशी विकास, जो हर वर्ग को आर्थिक लाभ और अवसर प्रदान करता है, चिंता का एक प्रमुख विषय बन गया है।
See lessउत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने के लिए सरकार की कोशिश एक आधार है। चर्चा कीजिए। साथ ही, इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों का भी उल्लेख कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना भारतीय सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है जो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ावा देने का उद्देश्य रखती है। यह योजना विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। यह उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करने के लिए उत्कृष्Read more
उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना भारतीय सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है जो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ावा देने का उद्देश्य रखती है। यह योजना विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है। यह उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करने के लिए उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए उन्नत तकनीकी और उत्पादकता को प्रोत्साहित करने के लिए माध्यम से विभिन्न उद्यमों को प्रेरित करती है।
इसके साथ ही, इस योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने में कई चुनौतियाँ हैं। उनमें तकनीकी नवाचार, विपणन, और आपरेशनल क्षमता में सुधार करने की जरुरत है। साथ ही, विदेशी प्रतिस्पर्धा और वित्तीय संगठन भी चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती हैं। इन चुनौतियों का सामना करते हुए, सरकार को नीतियों में सुधार करने और उत्पादकता में सुधार करने के लिए सक्रिय रूप से काम करने की जरुरत है।
See lessबहुआयामी निर्धनता की अवधारणा की व्याख्या करते हुए, भारत में इस समस्या के समाधान के लिए किए गए उपायों का उल्लेख कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
बहुआयामी निर्धनता (Multidimensional Poverty) एक ऐसी अवधारणा है जिसमें निर्धनता को केवल आय की कमी से नहीं बल्कि जीवन के विभिन्न आयामों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर और जीवन की बुनियादी सुविधाओं की कमी से परखा जाता है। इस दृष्टिकोण में यह माना जाता है कि निर्धनता केवल आर्थिक तंगी नहीं, बल्कि सामाजRead more
बहुआयामी निर्धनता (Multidimensional Poverty) एक ऐसी अवधारणा है जिसमें निर्धनता को केवल आय की कमी से नहीं बल्कि जीवन के विभिन्न आयामों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर और जीवन की बुनियादी सुविधाओं की कमी से परखा जाता है। इस दृष्टिकोण में यह माना जाता है कि निर्धनता केवल आर्थिक तंगी नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय घटकों की भी समस्या है।
भारत में बहुआयामी निर्धनता की समस्या के समाधान के लिए किए गए प्रमुख उपाय:
इन उपायों के माध्यम से भारत ने बहुआयामी निर्धनता को कम करने और समाज के कमजोर वर्गों के जीवन स्तर को सुधारने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
See lessयह तर्क दिया गया है कि भारत में उद्यमिता परिवेश के समक्ष विद्यमान विभिन्न बाधाओं के बावजूद, भारत के भविष्य को इसके उद्यमियों द्वारा आकार दिए जाने की संभावना है। टिप्पणी कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में उद्यमिता परिवेश में अनेक बाधाएँ हैं, लेकिन देश के भविष्य को आकार देने में उद्यमियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत की विशाल जनसंख्या, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, और युवा जनसंख्या उद्यमिता के लिए एक संभावनाशील वातावरण प्रदान करती है, हालांकि कई चुनौतियाँ भी हैं। विद्यमान बाधाएँ: नियम औRead more
भारत में उद्यमिता परिवेश में अनेक बाधाएँ हैं, लेकिन देश के भविष्य को आकार देने में उद्यमियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत की विशाल जनसंख्या, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, और युवा जनसंख्या उद्यमिता के लिए एक संभावनाशील वातावरण प्रदान करती है, हालांकि कई चुनौतियाँ भी हैं।
विद्यमान बाधाएँ:
उद्यमिता का भविष्य:
समाधान और सुझाव:
उद्यमिता की क्षमता को समझते हुए और इन बाधाओं को संबोधित करके, भारत के उद्यमी न केवल देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देंगे बल्कि एक नवीन और सतत भविष्य की दिशा भी प्रदान करेंगे।
See lessनिर्धनता आकलन के लिए गठित विभिन्न समितियों द्वारा उपयोग की गई पद्धति पर ध्यान केंद्रित करते हुए, व्याख्या कीजिए कि स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता का आकलन कैसे विकसित हुआ है। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता के आकलन का तरीका समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें विभिन्न समितियों और आयोगों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। प्रारंभ में, निर्धनता की माप के लिए साधारण आर्थिक संकेतकों का उपयोग किया गया, जैसे कि आय स्तर और उपभोग के पैटर्न। **1. ** पंडित नेहरू की समिति (1951): स्Read more
स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता के आकलन का तरीका समय के साथ विकसित हुआ है, जिसमें विभिन्न समितियों और आयोगों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। प्रारंभ में, निर्धनता की माप के लिए साधारण आर्थिक संकेतकों का उपयोग किया गया, जैसे कि आय स्तर और उपभोग के पैटर्न।
**1. ** पंडित नेहरू की समिति (1951): स्वतंत्रता के तुरंत बाद, पंडित नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति ने निर्धनता के आकलन के लिए आय और उपभोग के आंकड़ों को प्राथमिकता दी। इस समय, निर्धनता को मुख्यतः जीवनस्तर और बुनियादी सुविधाओं की कमी के आधार पर समझा गया।
**2. ** सार्वजनिक उपभोग समिति (1962): इस समिति ने उपभोग की वस्तुओं के आधार पर निर्धनता की पहचान की। इसमें बुनियादी वस्त्र, खाद्य पदार्थ और अन्य जरूरतों के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक संकेतकों को भी शामिल किया गया।
**3. ** सिंह आयोग (1979): 1979 में स्थापित सिंह आयोग ने निर्धनता के आकलन के लिए नया दृष्टिकोण पेश किया। इस आयोग ने न्यूनतम जीवन स्तर (Minimum Needs) और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता को निर्धनता की पहचान का एक महत्वपूर्ण मानक माना।
**4. ** वर्गी पॉल आयोग (1980): इस आयोग ने निर्धनता की गणना के लिए एक नई विधि पेश की, जिसमें आय की सीमा और उपभोग खर्च को शामिल किया गया।
**5. ** नरेंद्र जडेजा समिति (1993): इस समिति ने गरीबी रेखा (Poverty Line) को निर्धारित करने के लिए एक मानक विधि विकसित की, जिसमें उपभोग के आंकड़े और औसत आय शामिल थे।
समाज और अर्थशास्त्र में बदलाव के साथ, निर्धनता के आकलन की विधियों में सुधार हुआ है। आजकल, यह दृष्टिकोण अधिक व्यापक है, जिसमें बहुआयामी निर्धनता सूचकांक, जीवन स्तर, स्वास्थ्य, शिक्षा, और सामाजिक सुरक्षा को शामिल किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि निर्धनता का आकलन केवल आर्थिक पहलुओं पर निर्भर न हो बल्कि सामाजिक और जीवन गुणवत्ता के मानदंडों को भी ध्यान में रखा जाए।
See lessविकास वित्तीय संस्थान क्या हैं? भारत में इन संस्थानों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
विकास वित्तीय संस्थान वे संस्थान होते हैं जो विकासी देशों में विकास कार्यक्रमों को संचालित करने और समर्थन प्रदान करने के लिए निर्मित होते हैं। इन संस्थानों का मुख्य उद्देश्य विकास के क्षेत्र में वित्तीय सहायता प्रदान करना होता है। भारत में विकास वित्तीय संस्थानों की मुख्य चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनRead more
विकास वित्तीय संस्थान वे संस्थान होते हैं जो विकासी देशों में विकास कार्यक्रमों को संचालित करने और समर्थन प्रदान करने के लिए निर्मित होते हैं। इन संस्थानों का मुख्य उद्देश्य विकास के क्षेत्र में वित्तीय सहायता प्रदान करना होता है।
भारत में विकास वित्तीय संस्थानों की मुख्य चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय स्थिरता, वित्तीय प्रबंधन, और प्रभावी वित्तीय समाधान की उपलब्धता शामिल है। इन संस्थानों को अपने संबंधित क्षेत्रों में सशक्त और सुरक्षित वित्तीय समाधान प्रदान करने के लिए नवीनतम तकनीकी और नीतिगत प्रयासों की आवश्यकता है।
विकास वित्तीय संस्थानों को समृद्धि और विकास के क्षेत्रों में सकारात्मक परिणामों तक पहुंचाने के लिए भी वित्तीय सशक्तिकरण की आवश्यकता है। इन संस्थानों को वित्तीय स्थिरता, पारदर्शिता, और संगठनात्मक क्षमता में सुधार करने के लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है।
See lessभारत के समावेशी विकास की राह में महत्वपूर्ण प्रभाव डालने के लिए एक लचीला और समृद्ध MSME क्षेत्रक आवश्यक है। इस क्षेत्रक द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारतीय MSME क्षेत्र एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो देश के समावेशी विकास में अहम भूमिका निभा सकती है। हालांकि, इस क्षेत्र का सामना कई मुद्दों से होता है। वित्तीय संकट, अदबाजी, प्रौद्योगिकी में पिछड़ावा, बाजार में प्रवेश में अवरोध, तकनीकी नवाचारों के अभाव, और उचित वित्तीय संसाधनों की कमी इस क्षेत्र के साRead more
भारतीय MSME क्षेत्र एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो देश के समावेशी विकास में अहम भूमिका निभा सकती है। हालांकि, इस क्षेत्र का सामना कई मुद्दों से होता है। वित्तीय संकट, अदबाजी, प्रौद्योगिकी में पिछड़ावा, बाजार में प्रवेश में अवरोध, तकनीकी नवाचारों के अभाव, और उचित वित्तीय संसाधनों की कमी इस क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों में से कुछ है। इन मुद्दों का समाधान करने के लिए सरकार को प्रोत्साहन देना, वित्तीय संसाधनों को सुलझाना, तकनीकी नवाचारों का उपयोग करना, और व्यापारिक अदालतों का संवाहन करना आवश्यक है। इसके साथ ही, एक सुचारू नीतिगत मार्गदर्शन और सामाजिक सहयोग भी इस क्षेत्र को समृद्धि की ओर ले जा सकते हैं।
See lessहालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारतीय गिग इकोनॉमी अगले दशक में तीव्र गति से विकसित हो रही होगी। इस संदर्भ में, भारत में गिग कर्मियों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों और उनके समाधान के लिए आवश्यक नीतिगत उपायों पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारतीय गिग इकोनॉमी की तीव्र वृद्धि के साथ, गिग कर्मियों को संबोधित करने के लिए कई मुद्दे उभर रहे हैं। पहला मुद्दा है सुरक्षा और सुरक्षितता का अभाव। गिग कर्मियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने के लिए समाज और सरकार को मिलकर काम करना होगा। दूसरा मुद्दा है भविष्य की योजना और लाभ। गिग कर्मियों के लिए योजनाएRead more
भारतीय गिग इकोनॉमी की तीव्र वृद्धि के साथ, गिग कर्मियों को संबोधित करने के लिए कई मुद्दे उभर रहे हैं। पहला मुद्दा है सुरक्षा और सुरक्षितता का अभाव। गिग कर्मियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने के लिए समाज और सरकार को मिलकर काम करना होगा। दूसरा मुद्दा है भविष्य की योजना और लाभ। गिग कर्मियों के लिए योजनाएं और वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए नीतियों को अपडेट करना आवश्यक है। इसके अलावा, गिग कर्मियों की अधिक समान स्थिति और वित्तीय स्वतंत्रता के लिए नीतियों की आवश्यकता है। साथ ही, उन्हें क्षमता विकास और प्रशिक्षण के लिए सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। इस प्रकार की नीतियों के माध्यम से, भारतीय गिग इकोनॉमी को सुदृढ़ और समृद्ध बनाने में सहायता मिल सकती है।
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