भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
परिचय दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है जहाँ समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ते तनाव ने नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता की सुरक्षा की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट किया है। इस संदर्भ में, भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं। दक्षिण चीन सागर के विवाद दक्षिण चीन सागरRead more
परिचय
दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र है जहाँ समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ते तनाव ने नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता की सुरक्षा की आवश्यकता को और अधिक स्पष्ट किया है। इस संदर्भ में, भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं।
दक्षिण चीन सागर के विवाद
दक्षिण चीन सागर में चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स, मलेशिया और ब्रुनेई के बीच भूभागीय दावे हैं। चीन की नाइन-डैश लाइन के आधार पर सम्पूर्ण सागर पर दावा, क्षेत्र में मिलिटरीकरण और संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है। यह स्थिति समुद्री सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों की स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करती है।
भारत और चीन के द्विपक्षीय मुद्दे
हालांकि भारत सीधे दक्षिण चीन सागर विवाद में शामिल नहीं है, लेकिन द्विपक्षीय मुद्दे महत्वपूर्ण हैं:
- चीन की भारतीय महासागर में बढ़ती उपस्थिति: चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और समुद्री गतिविधियाँ भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती बन गई हैं।
- डोकलाम विवाद: 2017 में डोकलाम में हुए सीमा विवाद ने द्विपक्षीय तनाव को उजागर किया, जो समुद्री मुद्दों के अलावा व्यापक भू-राजनीतिक संघर्ष को दर्शाता है।
सहयोग और संवाद
दोनों देशों ने तनाव प्रबंधन के लिए BRICS शिखर सम्मेलन और अनौपचारिक शिखर बैठकों जैसी पहल की हैं। भारत और चीन ने समुद्री सुरक्षा और नौपरिवहन की स्वतंत्रता की पुष्टि की है, जो उनके अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप है।
निष्कर्ष
दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता को स्पष्ट करते हैं। भारत और चीन के द्विपक्षीय मुद्दों के बावजूद, सहयोग और संवाद इन विवादों को प्रबंधित करने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं।
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भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पश्चिम एशियाई देशों के साथ सहयोग परिचय भारत की ऊर्जा सुरक्षा उसकी आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता और विविधता भारत के औद्योगिक विकास और समग्र आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग में महत्वपूRead more
भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पश्चिम एशियाई देशों के साथ सहयोग
परिचय भारत की ऊर्जा सुरक्षा उसकी आर्थिक प्रगति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता और विविधता भारत के औद्योगिक विकास और समग्र आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पश्चिम एशिया की रणनीतिक महत्वता पश्चिम एशिया, विशेषकर सऊदी अरब, यूएई, और ईरान, ऊर्जा संसाधनों से भरपूर क्षेत्र है। भारत की तेल की 80% से अधिक आवश्यकता इन देशों से पूरी होती है। इस पर निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा की रणनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
द्विपक्षीय समझौते और निवेश भारत ने ऊर्जा सुरक्षा के लिए कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं:
हालिया विकास 2023 में भारत और ईरान ने चाबहार पोर्ट परियोजना पर चर्चा फिर से शुरू की, जो ऊर्जा व्यापार के लिए बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, भारत-यूएई स्ट्रैटेजिक ऑइल रिजर्व्स एग्रीमेंट भारत को आपातकालीन परिस्थितियों में तेल भंडार बनाए रखने में मदद करता है।
चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ हालांकि सहयोग मजबूत है, ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंध जैसी भौगोलिक तनावों से चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं। भविष्य में, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के अवसरों की खोज की जाएगी।
निष्कर्ष पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत का ऊर्जा नीति सहयोग ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आर्थिक विकास को समर्थन प्रदान करता है। रणनीतिक समझौते और निवेश इस सहयोग को और अधिक प्रभावी बनाते हैं, जबकि क्षेत्रीय चुनौतियों को भी ध्यान में रखते हैं।
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