इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूहों में हज़ारों द्वीपों के विरचन की व्याख्या कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
महासागरीय अधस्तल के मानचित्रण पर आधारित उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत (Seafloor Spreading Theory) ने महासागरों और महाद्वीपों के वितरण के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। इस सिद्धांत का प्रस्ताव 1960 के दशक में हुआ और इसका प्रमुख योगदान अमेरिकी भूगर्भशास्त्री हैरी हैस ने किया था। सिद्धांत का मूलभूतRead more
महासागरीय अधस्तल के मानचित्रण पर आधारित उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत (Seafloor Spreading Theory) ने महासागरों और महाद्वीपों के वितरण के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। इस सिद्धांत का प्रस्ताव 1960 के दशक में हुआ और इसका प्रमुख योगदान अमेरिकी भूगर्भशास्त्री हैरी हैस ने किया था।
सिद्धांत का मूलभूत विचार: उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत के अनुसार, महासागरीय तल (Seafloor) लगातार उत्पन्न होता है और इसका विस्तार होता है। यह प्रक्रिया समुद्री दरारों (Mid-Ocean Ridges) से शुरू होती है, जहां नई परतें मैग्मा के रूप में उगती हैं और ठंडी होकर ठोस होती हैं। जैसे-जैसे नई परतें बनती हैं, पुरानी परतें महासागरीय तल से बाहर की ओर फैल जाती हैं और महासागर के किनारों पर समा जाती हैं, जिसे महासागरीय तल का विलोप (Subduction) कहा जाता है।
महासागरीय और महाद्वीपीय वितरण पर प्रभाव: इस सिद्धांत ने बताया कि महासागरों के तल के विस्तार के कारण महाद्वीप भी स्थानांतरित होते हैं। इस प्रक्रिया से प्लेट टेक्टोनिक्स की समझ में सुधार हुआ, जिससे महाद्वीपीय ड्रिफ्ट (Continental Drift) और प्लेट टेक्टोनिक्स के सिद्धांतों को जोड़ने में सहायता मिली। उदाहरण के लिए, अटलांटिक महासागर के दोनों ओर के महाद्वीपों की स्थानांतरण प्रक्रिया ने महाद्वीपीय विभाजन और महासागरीय विस्तार को स्पष्ट किया।
प्रस्तावित परिवर्तन: उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत ने यह भी स्पष्ट किया कि महासागरीय तल के विभाजन और महाद्वीपीय टकराव की घटनाएँ भूगर्भीय गतिविधियों, जैसे कि भूकंप और ज्वालामुखियों, को उत्पन्न करती हैं। इसके अलावा, यह सिद्धांत महाद्वीपीय स्थिति और समुद्री भूगोल के बदलावों की भविष्यवाणी करने में सहायक है।
इस प्रकार, उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत ने भूगर्भीय प्रक्रियाओं की अंतर्दृष्टि प्रदान की और महासागर और महाद्वीपों के वितरण की गतिशीलता को समझने में एक नई दिशा दी।
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इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूहों में द्वीपों का गठन टेक्टोनिक प्लेट गतिविधि इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूह टेक्टोनिक प्लेट गतिविधियों के कारण बने हैं। ये क्षेत्र कई प्रमुख टेक्टोनिक प्लेटों के मिलन स्थल पर स्थित हैं, जैसे पैसिफिक प्लेट, इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट, और यूरेशियन प्लेट। इन प्लेटों कीRead more
इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूहों में द्वीपों का गठन
टेक्टोनिक प्लेट गतिविधि
इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूह टेक्टोनिक प्लेट गतिविधियों के कारण बने हैं। ये क्षेत्र कई प्रमुख टेक्टोनिक प्लेटों के मिलन स्थल पर स्थित हैं, जैसे पैसिफिक प्लेट, इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट, और यूरेशियन प्लेट। इन प्लेटों की गति और टकराव के परिणामस्वरूप द्वीपों का निर्माण होता है।
ज्वालामुखीय गतिविधि
ज्वालामुखीय गतिविधि द्वीप निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इंडोनेशियाई द्वीपसमूह में, सुमात्रा और जावा जैसे द्वीप रिंग ऑफ फायर के ज्वालामुखीय विस्फोटों के कारण बने हैं, जहां पैसिफिक प्लेट इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट के नीचे जाती है। फिलिपीनी द्वीपसमूह में, लुज़ोन और मिंडानाओ जैसे द्वीप ज्वालामुखीय विस्फोटों और टेक्टोनिक उथल-पुथल से बने हैं।
हाल के उदाहरण
1883 में क्राकातुआ के विस्फोट ने इंडोनेशिया में द्वीपों का परिदृश्य बदल दिया। फिलिपींस में ताल ज्वालामुखी का गठन नए भू-आकृतियों को जन्म दे रहा है।
निष्कर्ष
See lessइंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूहों में हज़ारों द्वीप टेक्टोनिक गतिविधियों और ज्वालामुखीय गतिविधियों के कारण बने हैं, जो इन भौगोलिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों की विशेषता हैं।