आप उन आंकड़ों को किस प्रकार स्पष्ट करते हैं, जो दशति हैं कि भारत में जनजातीय लिंगानुपात, अनुसूचित जातियों के बीच लिंगानुपात के मुकाबले, महिलाओं के अधिक अनुकूल हैं। (200 words) [UPSC 2015]
आधुनिक भारत में विवाह एक संस्कार के रूप में अपना पारंपरिक मूल्य खोता दिखाई दे रहा है, इसके कई कारण हैं: आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन: तेजी से बदलते सामाजिक और आर्थिक परिदृश्यों ने विवाह की परंपरागत धारणाओं को चुनौती दी है। महिलाओं की शिक्षा और रोजगार में वृद्धि ने विवाह की पारंपरिक भूमिका को बदल दियाRead more
आधुनिक भारत में विवाह एक संस्कार के रूप में अपना पारंपरिक मूल्य खोता दिखाई दे रहा है, इसके कई कारण हैं:
- आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन: तेजी से बदलते सामाजिक और आर्थिक परिदृश्यों ने विवाह की परंपरागत धारणाओं को चुनौती दी है। महिलाओं की शिक्षा और रोजगार में वृद्धि ने विवाह की पारंपरिक भूमिका को बदल दिया है।
- विवाह का बदलता स्वरूप: आधुनिक विवाह अक्सर निजी पसंद और व्यावसायिक लक्ष्यों के आधार पर तय होते हैं, पारंपरिक धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से कम जुड़ाव रहता है।
- समाज में बदलते दृष्टिकोण: विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, विवाह को एक कानूनी और सामाजिक अनुबंध के रूप में देखा जाने लगा है, न कि केवल एक संस्कार के रूप में।
- डिवोर्स और सेकेंड मैरिज: तलाक और दूसरी शादी की बढ़ती प्रवृत्ति भी विवाह के संस्कारात्मक महत्व को चुनौती देती है।
इन बदलते परिदृश्यों ने विवाह के पारंपरिक संस्कारात्मक मूल्य को चुनौती दी है, हालांकि कुछ क्षेत्रों और समुदायों में यह मूल्य अभी भी मजबूत है।
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भारत के जनजातीय समुदायों की विविधताओं को देखते हुए, उन्हें किसी एकल श्रेणी में वर्गीकृत करना कठिन है क्योंकि ये समुदाय सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत विविध हैं। हालांकि, एक विशिष्ट संदर्भ के तहत इनका वर्गीकरण किया जा सकता है: सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ: भारत के जनजातीय समुदायोंRead more
भारत के जनजातीय समुदायों की विविधताओं को देखते हुए, उन्हें किसी एकल श्रेणी में वर्गीकृत करना कठिन है क्योंकि ये समुदाय सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत विविध हैं। हालांकि, एक विशिष्ट संदर्भ के तहत इनका वर्गीकरण किया जा सकता है:
सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ: भारत के जनजातीय समुदायों को सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ में एकल श्रेणी में माना जा सकता है, जहां इनकी साझा विशेषताएँ जैसे कि पारंपरिक जीवनशैली, आत्मनिर्भरता, और सामूहिकता पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
ये समुदाय सामान्यतः अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, पारंपरिक प्रथाओं और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता के साथ जीवनयापन करते हैं। इस दृष्टिकोण से, जनजातीय समुदायों को एकल श्रेणी में “संविधानिक रूप से आदिवासी” के रूप में समझा जा सकता है, जो उनकी विशिष्ट पहचान को सम्मानित करता है और उनके अद्वितीय सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखता है।
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