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इस मुद्दे पर चर्चा कीजिये कि क्या और किस प्रकार दलित प्राख्यान (ऐसर्शन) के समकालीन आंदोलन जाति विनाश की दिशा में कार्य करते हैं। (200 words) [UPSC 2015]
दलित प्राख्यान (ऐसर्शन) के समकालीन आंदोलन और जाति विनाश दलित प्राख्यान का सशक्तिकरण समकालीन दलित आंदोलन दलित प्राख्यान (identity assertion) पर जोर देते हैं, जिसमें दलित समुदायों के इतिहास, संस्कृति और उनकी सामाजिक स्थिति की पहचान और सम्मान शामिल है। ये आंदोलन दलितों की सम्मानजनक पहचान और सामाजिक न्यRead more
दलित प्राख्यान (ऐसर्शन) के समकालीन आंदोलन और जाति विनाश
दलित प्राख्यान का सशक्तिकरण
समकालीन दलित आंदोलन दलित प्राख्यान (identity assertion) पर जोर देते हैं, जिसमें दलित समुदायों के इतिहास, संस्कृति और उनकी सामाजिक स्थिति की पहचान और सम्मान शामिल है। ये आंदोलन दलितों की सम्मानजनक पहचान और सामाजिक न्याय के लिए काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने दलित समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जाति प्रणाली के खिलाफ संघर्ष
हालांकि ये आंदोलन दलितों की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन जाति प्रणाली का पूर्ण विनाश इन आंदोलनों का केंद्रीय लक्ष्य नहीं होता। अधिकांश आंदोलन सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। रोहित वेमुला का मामला 2016 में जातिगत भेदभाव की ओर ध्यान आकर्षित करने वाला था, जिसने सुधार की मांग को गति दी लेकिन जाति प्रणाली के मूल कारणों को खत्म नहीं किया।
हालिया उदाहरण
अम्बेडकराइट आंदोलन डॉ. भीमराव अंबेडकर के दृष्टिकोण पर आधारित है और जाति प्रणाली के खिलाफ बौद्ध धर्म को अपनाने का समर्थन करता है। दूसरी ओर, SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम दलितों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है लेकिन जाति भेदभाव के मूल कारणों का समाधान नहीं करता।
निष्कर्ष
See lessसमकालीन दलित आंदोलन दलित पहचान और न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहे हैं। हालांकि, जाति का पूर्ण विनाश एक जटिल चुनौती है, जिसे पहचान assertion के अलावा सामाजिक, कानूनी और सांस्कृतिक परिवर्तनों की आवश्यकता है।
बहु-सांस्कृतिक भारतीय समाज को समझने में क्या जाति की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है ? उदाहरणों सहित विस्तृत उत्तर दीजिए। (150 words)[UPSC 2020]
परिचय भारत एक बहु-सांस्कृतिक समाज है, जिसमें जाति प्राचीन काल से सामाजिक संरचना का एक प्रमुख हिस्सा रही है। हालांकि आधुनिक युग में लोकतंत्र और संवैधानिक सुधारों के बाद जातिगत भेदभाव पर कानूनी प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन जाति की प्रासंगिकता अब भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर बनी हुई है। जाति कRead more
परिचय
भारत एक बहु-सांस्कृतिक समाज है, जिसमें जाति प्राचीन काल से सामाजिक संरचना का एक प्रमुख हिस्सा रही है। हालांकि आधुनिक युग में लोकतंत्र और संवैधानिक सुधारों के बाद जातिगत भेदभाव पर कानूनी प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन जाति की प्रासंगिकता अब भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर बनी हुई है।
जाति की प्रासंगिकता
आज के समय में जाति आधारित असमानताएं और भेदभाव कम होने के बावजूद पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा और रोजगार में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की नीति जाति की प्रासंगिकता को दर्शाती है। इसके अलावा, राजनीति में जाति आधारित वोट बैंक का भी प्रभाव बना हुआ है, जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जातिगत समीकरणों का चुनावी परिणामों पर सीधा प्रभाव देखा जा सकता है।
समाप्ति की ओर कदम
हालांकि शहरीकरण और शिक्षा के विस्तार के साथ जातिगत पहचान कम होती दिख रही है, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में जाति अभी भी सामाजिक संबंधों और विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा, दलित अत्याचार के मामले अब भी सामने आते हैं, जो जाति की प्रासंगिकता को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष
See lessइस प्रकार, भले ही भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव समाप्त करने की दिशा में प्रयास जारी हैं, लेकिन जाति की प्रासंगिकता अभी भी बहु-सांस्कृतिक समाज के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने में निहित है।
पिछले चार दशकों में, भारत के भीतर और भारत के बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2015]
भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तन **1. आंतरिक श्रमिक प्रवसन पिछले चार दशकों में आंतरिक श्रमिक प्रवसन में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। ग्रामीण-से-शहरी प्रवसन में वृद्धि देखी गई है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग बेहतर रोजगार के अवसरों की खोज में शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहेRead more
भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तन
**1. आंतरिक श्रमिक प्रवसन
पिछले चार दशकों में आंतरिक श्रमिक प्रवसन में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। ग्रामीण-से-शहरी प्रवसन में वृद्धि देखी गई है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग बेहतर रोजगार के अवसरों की खोज में शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग दिल्ली, मुंबई और अन्य महानगरों में काम की तलाश में जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) और अधोसंरचना परियोजनाओं ने नए प्रवसन केंद्रों को जन्म दिया है।
**2. अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक प्रवसन
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक प्रवसन में भी महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। मध्य पूर्व के देशों, जैसे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, में भारतीय श्रमिकों की बड़ी संख्या रही है, विशेष रूप से निर्माण और घरेलू कामकाजी क्षेत्रों में। हाल के वर्षों में, उच्च-कौशल वाले श्रमिकों के लिए प्रवसन का रुझान संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की ओर बढ़ा है। उदाहरण के लिए, H-1B वीजा कार्यक्रम ने अमेरिकी आईटी उद्योग में भारतीय पेशेवरों को आकर्षित किया है।
**3. हाल के उदाहरण और बदलाव
COVID-19 महामारी के दौरान, प्रवसन पैटर्न में उलटा प्रवसन देखा गया जब लाखों श्रमिक नौकरी छूटने और लॉकडाउन के कारण अपने गांवों की ओर लौटे। भारतीय सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जैसी नीतियों के माध्यम से प्रवासियों की मदद की है।
**4. नीति और आर्थिक कारक
राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसी नीतियों ने रोजगार के अवसरों को सुधारने और प्रवसन की आवश्यकता को कम करने का प्रयास किया है। वैश्वीकरण और डिजिटल परिवर्तन जैसे आर्थिक कारक भी श्रमिक प्रवसन को प्रभावित कर रहे हैं, जिसमें रिमोट वर्क और डिजिटल नोमैडिज़्म का बढ़ता महत्व शामिल है।
इस प्रकार, भारत के भीतर और बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में आर्थिक, सामाजिक और नीति संबंधी बदलावों के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
See lessसंयुक्त परिवार का जीवन चक्र सामाजिक मूल्यों के बजाय आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। चर्चा कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
संयुक्त परिवार का जीवन चक्र पारंपरिक सामाजिक मूल्यों और आर्थिक कारकों दोनों से प्रभावित होता है, लेकिन आज के संदर्भ में आर्थिक कारकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। आर्थिक कारक: वित्तीय सहारा: संयुक्त परिवारों में आर्थिक संसाधनों का साझा उपयोग परिवार की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करता हैRead more
संयुक्त परिवार का जीवन चक्र पारंपरिक सामाजिक मूल्यों और आर्थिक कारकों दोनों से प्रभावित होता है, लेकिन आज के संदर्भ में आर्थिक कारकों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है।
आर्थिक कारक:
वित्तीय सहारा: संयुक्त परिवारों में आर्थिक संसाधनों का साझा उपयोग परिवार की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करता है। घर के विभिन्न सदस्यों की आय और खर्च मिलाकर परिवार आर्थिक संकट का सामना कर सकता है।
भरण-पोषण की लागत: बढ़ती लागत और महंगाई के कारण परिवार आर्थिक रूप से एकजुट रहना पसंद करते हैं। यह विशेष रूप से वृद्ध माता-पिता की देखभाल और बच्चों की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण होता है।
सामाजिक मूल्य:
परंपरा और संस्कृति: पारंपरिक भारतीय समाज में संयुक्त परिवार सामाजिक मूल्यों जैसे परिवार की एकता, देखभाल और सम्मान को बढ़ावा देता है।
समाज में स्वीकार्यता: कुछ मामलों में, संयुक्त परिवार का अस्तित्व सामाजिक मान्यताओं और पारंपरिक धारणाओं पर निर्भर करता है।
हालांकि सामाजिक मूल्यों का महत्व रहता है, आर्थिक कारक आज के समय में संयुक्त परिवार की स्थिरता और अस्तित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
See lessभारत में विवाहों की हालिया प्रवृतियों पर प्रकाश डालते हुए, व्याख्या कीजिए कि समलैंगिक विवाह के कानूनी समर्थन को मौलिक महत्व का मुद्दा क्यों कहा जा रहा है। (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में विवाह की हालिया प्रवृतियों में प्रेम विवाहों का बढ़ता प्रचलन, अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाहों की स्वीकृति, और विवाह की आयु में वृद्धि देखी गई है। साथ ही, महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ने से विवाह में उनकी भूमिका भी बदल रही है। समलैंगिक विवाह के कानूनी समर्थन को मौलिक महत्व का मुद्दा इसRead more
भारत में विवाह की हालिया प्रवृतियों में प्रेम विवाहों का बढ़ता प्रचलन, अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाहों की स्वीकृति, और विवाह की आयु में वृद्धि देखी गई है। साथ ही, महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ने से विवाह में उनकी भूमिका भी बदल रही है।
समलैंगिक विवाह के कानूनी समर्थन को मौलिक महत्व का मुद्दा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह समाज में समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांतों से जुड़ा है। विवाह का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, और इसका विस्तार समलैंगिक समुदाय तक करना उनके संवैधानिक अधिकारों की मान्यता और सामाजिक स्वीकार्यता का प्रतीक है। यह LGBTQ+ समुदाय के खिलाफ भेदभाव को कम करने, उन्हें सम्मान और सुरक्षा प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जिससे समाज में समावेशिता बढ़ेगी।
See lessक्या हमारे राष्ट्र में सर्वत्र लघु भारत के सांस्कृतिक क्षेत्र हैं ? उदाहरणों के साथ सविस्तार स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
हाँ, हमारे राष्ट्र में सर्वत्र लघु भारत के सांस्कृतिक क्षेत्र हैं। भारत की विविधता और एकता की विशेषता यह है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक छोटे-छोटे भारत के सांस्कृतिक केन्द्र मौजूद हैं। उदाहरण के लिए: कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र: यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, बौद्ध संस्कृति और जीवन-शैलीRead more
हाँ, हमारे राष्ट्र में सर्वत्र लघु भारत के सांस्कृतिक क्षेत्र हैं। भारत की विविधता और एकता की विशेषता यह है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में एक छोटे-छोटे भारत के सांस्कृतिक केन्द्र मौजूद हैं। उदाहरण के लिए:
इस प्रकार, भारत में सांस्कृतिक विविधता देखने को मिलती है और प्रत्येक क्षेत्र में लघु भारत के केन्द्र मौजूद हैं, जो देश की एकता को प्रदर्शित करते हैं।
See lessक्या बात है जो भारतीय समाज को अपनी संस्कृति को जीवित रखने में अद्वितीय बना देती है ? चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
भारतीय समाज को अपनी संस्कृति को जीवित रखने में अद्वितीय बनाने वाली कुछ प्रमुख बातें हैं: धार्मिक विविधता और सहिष्णुता: भारत में विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों और परंपराओं का एक समृद्ध मिश्रण पाया जाता है। धार्मिक सहिष्णुता और एकतावाद भारतीय संस्कृति की मूल विशेषताएं हैं। विभिन्न धर्मों को एक साथ रहने कRead more
भारतीय समाज को अपनी संस्कृति को जीवित रखने में अद्वितीय बनाने वाली कुछ प्रमुख बातें हैं:
समग्र रूप से, भारतीय समाज को अपनी संस्कृति को जीवित रखने में अद्वितीय बनाने वाली ये विशेषताएं भारतीय संस्कृति की अनूठी पहचान को परिभाषित करती हैं और इसके अस्तित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
See lessभारतीय समाज में जाति, क्षेत्र तथा धर्म के समानांतर 'पंथ' की विशेषता की विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
भारतीय समाज में जाति, क्षेत्र, और धर्म के समानांतर 'पंथ' की विशेषता एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक तत्व है। पंथ, धार्मिक और आध्यात्मिक विचारधाराओं का एक समूह है, जो विशिष्ट आस्थाएँ, रीतियाँ, और अनुशासन निर्धारित करता है। यह भारतीय समाज में जाति और धर्म से जुड़े विभिन्न पहलुओं के साथ अंतर्क्रियाRead more
भारतीय समाज में जाति, क्षेत्र, और धर्म के समानांतर ‘पंथ’ की विशेषता एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक तत्व है। पंथ, धार्मिक और आध्यात्मिक विचारधाराओं का एक समूह है, जो विशिष्ट आस्थाएँ, रीतियाँ, और अनुशासन निर्धारित करता है। यह भारतीय समाज में जाति और धर्म से जुड़े विभिन्न पहलुओं के साथ अंतर्क्रियात्मक तरीके से जुड़ा हुआ है।
जाति और पंथ: जाति व्यवस्था भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और पंथ इसके साथ जुड़ी हुई है। विभिन्न जातियों में पंथों की विविधता देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए, सिख पंथ विशेष रूप से पंजाब क्षेत्र की जाति व्यवस्था से जुड़ा हुआ है और इसने जाति आधारित भेदभाव को कम करने का प्रयास किया। इसके विपरीत, कुछ पंथ जाति व्यवस्था की परवाह किए बिना समता और एकता की बात करते हैं।
क्षेत्र और पंथ: पंथों का क्षेत्रीय विस्तार भी भारतीय समाज की विविधता को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, दक्षिण भारत में ‘शैव’ और ‘वैष्णव’ पंथों का प्रभाव है, जबकि उत्तर भारत में ‘सिख’ और ‘भक्ति’ पंथ प्रमुख हैं। इन पंथों ने क्षेत्रीय संस्कृति और परंपराओं को अपनाया और अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली रहे।
धर्म और पंथ: धर्म और पंथ के बीच भी एक गहरा संबंध है। कई पंथ धार्मिक विचारधाराओं से उत्पन्न हुए हैं, जैसे कि सिख धर्म का पंथ, जो हिंदू धर्म और इस्लाम के तत्वों को समेटे हुए है। इसके अलावा, भक्ति आंदोलन ने विभिन्न पंथों को जन्म दिया, जो हिंदू धर्म के भीतर विभिन्न धार्मिक विचारों और आस्थाओं को एकत्रित करते हैं।
पंथ की विशेषता: पंथ समाज में धार्मिक विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है। यह विभिन्न धार्मिक प्रथाओं और विश्वासों को संजोए हुए है, और यह जाति, क्षेत्र और धर्म के समानांतर एक समानांतर धार्मिक पहचान बनाता है। पंथ एक ऐसी शक्ति है जो विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समूहों को जोड़ने और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने में मदद करती है।
इन पहलुओं के माध्यम से, पंथ भारतीय समाज की जटिलता और विविधता को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
See lessभारत के जनजातीय समुदायों की विविधताओं को देखते हुए किस विशिष्ट सन्दर्भ के अन्तर्गत उन्हें किसी एकल श्रेणी में माना जाना चाहिए ? (150 words)[UPSC 2022]
भारत के जनजातीय समुदायों की विविधताओं को देखते हुए, उन्हें किसी एकल श्रेणी में वर्गीकृत करना कठिन है क्योंकि ये समुदाय सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत विविध हैं। हालांकि, एक विशिष्ट संदर्भ के तहत इनका वर्गीकरण किया जा सकता है: सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ: भारत के जनजातीय समुदायोंRead more
भारत के जनजातीय समुदायों की विविधताओं को देखते हुए, उन्हें किसी एकल श्रेणी में वर्गीकृत करना कठिन है क्योंकि ये समुदाय सांस्कृतिक, भौगोलिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत विविध हैं। हालांकि, एक विशिष्ट संदर्भ के तहत इनका वर्गीकरण किया जा सकता है:
सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ: भारत के जनजातीय समुदायों को सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ में एकल श्रेणी में माना जा सकता है, जहां इनकी साझा विशेषताएँ जैसे कि पारंपरिक जीवनशैली, आत्मनिर्भरता, और सामूहिकता पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
ये समुदाय सामान्यतः अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, पारंपरिक प्रथाओं और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता के साथ जीवनयापन करते हैं। इस दृष्टिकोण से, जनजातीय समुदायों को एकल श्रेणी में “संविधानिक रूप से आदिवासी” के रूप में समझा जा सकता है, जो उनकी विशिष्ट पहचान को सम्मानित करता है और उनके अद्वितीय सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखता है।
See lessसहिष्णुता एवं प्रेम की भावना न केवल अति प्राचीन समय से ही भारतीय समाज का एक रोचक अभिलक्षण रही है, अपितु वर्तमान में भी यह एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सविस्तार स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2017]
सहिष्णुता और प्रेम की भावना: भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा और वर्तमान महत्व परिचय: भारतीय समाज का एक प्रमुख अभिलक्षण सहिष्णुता और प्रेम की भावना रही है, जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है। प्राचीन कRead more
सहिष्णुता और प्रेम की भावना: भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा और वर्तमान महत्व
परिचय: भारतीय समाज का एक प्रमुख अभिलक्षण सहिष्णुता और प्रेम की भावना रही है, जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है।
प्राचीन काल में सहिष्णुता और प्रेम:
वर्तमान समय में सहिष्णुता और प्रेम:
निष्कर्ष: सहिष्णुता और प्रेम की भावना भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है और वर्तमान में भी यह विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक विविधताओं के बीच सामंजस्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना समाज में एकता, शांति, और सहयोग को प्रोत्साहित करती है, जो भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।
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