रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं द्वारा तर्क को दबाने से प्रगतिविरोध उत्पन्न हुआ है। क्या आप इससे सहमत हैं ? (250 words) [UPSC 2020]
सहिष्णुता और प्रेम की भावना: भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा और वर्तमान महत्व परिचय: भारतीय समाज का एक प्रमुख अभिलक्षण सहिष्णुता और प्रेम की भावना रही है, जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है। प्राचीन कRead more
सहिष्णुता और प्रेम की भावना: भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा और वर्तमान महत्व
परिचय: भारतीय समाज का एक प्रमुख अभिलक्षण सहिष्णुता और प्रेम की भावना रही है, जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना भारतीय सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रही है।
प्राचीन काल में सहिष्णुता और प्रेम:
- धार्मिक सहिष्णुता:
- प्राचीन भारत में विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के बीच सहिष्णुता का आदान-प्रदान देखा गया। “अशोक का धर्मनिरपेक्षता” और “मौर्य साम्राज्य” के समय में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सम्मान और सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया गया। “जैन धर्म” और “बौद्ध धर्म” ने भी अहिंसा और सहिष्णुता के सिद्धांतों को अपनाया।
- साहित्य और कला में प्रेम:
- भारतीय साहित्य और कला में प्रेम और सहिष्णुता की भावना व्यापक रूप से परिलक्षित होती है। “रवींद्रनाथ ठाकुर” और “कबीर” जैसे कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रेम, मानवता, और सहिष्णुता के संदेश को फैलाया।
वर्तमान समय में सहिष्णुता और प्रेम:
- समाज में विविधता का सम्मान:
- आज भी भारत में “धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता” के बावजूद सहिष्णुता एक महत्वपूर्ण तत्व है। “आधुनिक भारत” में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच सम्मान और सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है। “गांधीजी के विचार” और “पंचायती राज संस्थाओं” का सहयोग सहिष्णुता की भावना को साकार करता है।
- वर्तमान सामाजिक प्रयास:
- “भारत सरकार” और “सामाजिक संगठनों” द्वारा “समावेशी विकास” और “धार्मिक सहिष्णुता” के लिए अनेक योजनाएँ और पहल की जाती हैं। “सभी धर्मों और जातियों के लिए समान अवसर” और “सांस्कृतिक आदान-प्रदान” की गतिविधियाँ इस भावना को जीवित रखती हैं।
निष्कर्ष: सहिष्णुता और प्रेम की भावना भारतीय समाज की प्राचीन परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है और वर्तमान में भी यह विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक विविधताओं के बीच सामंजस्य बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भावना समाज में एकता, शांति, और सहयोग को प्रोत्साहित करती है, जो भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।
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रीति-रिवाजों और परम्पराओं द्वारा तर्क को दबाने से प्रगतिविरोध: विश्लेषण परिचय रीति-रिवाजों और परम्पराओं का समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। ये सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक संरचना को बनाए रखते हैं। हालांकि, कभी-कभी ये परम्पराएँ और रीति-रिवाज तर्क और प्रगति के खिलाफ एक बाधा बन सकते हैं। इस प्रश्नRead more
रीति-रिवाजों और परम्पराओं द्वारा तर्क को दबाने से प्रगतिविरोध: विश्लेषण
परिचय
रीति-रिवाजों और परम्पराओं का समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। ये सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक संरचना को बनाए रखते हैं। हालांकि, कभी-कभी ये परम्पराएँ और रीति-रिवाज तर्क और प्रगति के खिलाफ एक बाधा बन सकते हैं। इस प्रश्न का विश्लेषण करने के लिए, यह समझना आवश्यक है कि कैसे परम्पराएँ और रीति-रिवाज तर्क को दबा सकती हैं और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।
रीति-रिवाजों द्वारा तर्क को दबाने के उदाहरण
प्रगतिविरोध का प्रभाव
निष्कर्ष
रीति-रिवाजों और परम्पराओं द्वारा तर्क को दबाना प्रगतिविरोध उत्पन्न कर सकता है। जबकि ये परम्पराएँ सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, उनका अंधानुकरण समाज के विकास और प्रगति में बाधा उत्पन्न कर सकता है। एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए परम्पराओं का सम्मान करते हुए, लेकिन साथ ही तर्क और विज्ञान पर आधारित निर्णय लेना आवश्यक है ताकि समाज में प्रगति और समरसता को बढ़ावा दिया जा सके।
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