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भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति और भारत की तत्परता: 1. भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति: भौगोलिक स्थिति: भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पीय गतिविधि बढ़ रही है, विशेष रूप से हिमालय क्षेत्र में। उदाहरण के लिए, 2015 नेपाल भूकम्प (7.8 मैग्नीट्यूड) ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों, जैसे उत्तर प्रदेRead more
भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति और भारत की तत्परता:
1. भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति:
- भौगोलिक स्थिति: भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पीय गतिविधि बढ़ रही है, विशेष रूप से हिमालय क्षेत्र में। उदाहरण के लिए, 2015 नेपाल भूकम्प (7.8 मैग्नीट्यूड) ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों, जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार को प्रभावित किया। इसके अतिरिक्त, 2021 लद्दाख भूकम्प (6.0 मैग्नीट्यूड) ने इस क्षेत्र में चिंता को बढ़ाया।
- टेक्टोनिक प्लेट्स: भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव के कारण, हिमालयी क्षेत्र में भूकम्पीय गतिविधि अधिक होती है, जिससे यह क्षेत्र उच्च-खतरे वाली ज़ोन बन गया है।
2. तत्परता में कमी:
- निर्माण मानक: भूकम्प-प्रतिरोधी भवन मानकों का पालन करने में कमी है। कई पुराने भवन और ग्रामीण क्षेत्रों की संरचनाएँ भूकम्पीय बलों को सहन करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। जैसे, हालिया भूकम्पों के दौरान शिमला और देहरादून में कई इमारतों ने मानकों को पूरा नहीं किया।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने भूकम्प तैयारी के लिए दिशानिर्देश विकसित किए हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर कार्यान्वयन में समन्वय की कमी होती है। दिल्ली में 2019 भूकम्प के जवाब को आलोचना का सामना करना पड़ा था।
- सार्वजनिक जागरूकता: भूकम्प सुरक्षा उपायों पर सार्वजनिक शिक्षा की कमी है। भूकम्प-प्रवण क्षेत्रों के निवासी निकासी प्रक्रियाओं और मूल सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में जागरूक नहीं हैं।
3. सुधार की रणनीतियाँ:
- संरचनात्मक सुधार: वर्तमान संरचनाओं को रेट्रोफिट करना और नई इमारतों को भूकम्पीय मानकों का पालन कराना महत्वपूर्ण है। जैसे, राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC) में भूकम्प-प्रतिरोधी निर्माण के लिए दिशानिर्देश शामिल हैं।
- आपातकालीन तैयारी: नियमित आपदा अभ्यास और आपातकालीन सेवाओं के बीच समन्वय में सुधार करना आवश्यक है। “ऑपरेशन ब्लू स्टार” और NDRF (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) जैसे कार्यक्रम ऐसी तत्परता के उदाहरण हैं।
- सार्वजनिक जागरूकता अभियान: सार्वजनिक जागरूकता अभियानों को बढ़ाना और स्कूल पाठ्यक्रम में भूकम्प सुरक्षा शिक्षा को शामिल करना जरूरी है। “शेकआउट” जैसे अंतर्राष्ट्रीय अभ्यास भारत में अपनाए जा सकते हैं।
हालिया उदाहरण:
- सिक्किम भूकम्प (2011): 2011 सिक्किम भूकम्प ने उत्तर-पूर्वी भारत में भूकम्प तत्परता पर ध्यान केंद्रित किया और राष्ट्रीय भूकम्पीय जोखिम न्यूनीकरण रणनीति के विकास की शुरुआत की।
निष्कर्ष:
भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पीय गतिविधियों की बढ़ती आवृत्ति के बावजूद, तत्परता में महत्वपूर्ण कमी है। निर्माण मानकों को मजबूत करना, आपातकालीन प्रतिक्रिया क्षमताओं में सुधार और सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना भूकम्पीय घटनाओं के प्रति बेहतर तत्परता और सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम हैं।
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1. शहरी बाढ़ के कारण:
2. जोखिम कम करने की तैयारियाँ:
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