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भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पों की आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है। फिर भी, इनके प्रभाव के न्यूनीकरण हेतु भारत की तैयारी (तत्परता) में महत्त्वपूर्ण कमियाँ हैं। विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2015]
भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति और भारत की तत्परता: 1. भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति: भौगोलिक स्थिति: भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पीय गतिविधि बढ़ रही है, विशेष रूप से हिमालय क्षेत्र में। उदाहरण के लिए, 2015 नेपाल भूकम्प (7.8 मैग्नीट्यूड) ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों, जैसे उत्तर प्रदेRead more
भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति और भारत की तत्परता:
1. भूकम्पों की बढ़ती आवृत्ति:
2. तत्परता में कमी:
3. सुधार की रणनीतियाँ:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष:
भारतीय उप-महाद्वीप में भूकम्पीय गतिविधियों की बढ़ती आवृत्ति के बावजूद, तत्परता में महत्वपूर्ण कमी है। निर्माण मानकों को मजबूत करना, आपातकालीन प्रतिक्रिया क्षमताओं में सुधार और सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना भूकम्पीय घटनाओं के प्रति बेहतर तत्परता और सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम हैं।
See lessराष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एन० डी० एम० ए०) के सुझावों के सन्दर्भ में, उत्तराखण्ड के अनेकों स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के संघात को कम करने के लिए अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
एन० डी० एम० ए० के सुझावों के संदर्भ में उत्तराखण्ड में बादल फटने की घटनाओं को कम करने के उपाय 1. बादल फटने की घटनाओं का विवरण: बादल फटना अत्यधिक तीव्र वर्षा की घटनाएँ हैं जो सामान्यतः पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में होती हैं। इन घटनाओं के परिणामस्वरूप अचानक बाढ़ और भूस्खलन होते हैं, जिससे व्यापक क्षRead more
एन० डी० एम० ए० के सुझावों के संदर्भ में उत्तराखण्ड में बादल फटने की घटनाओं को कम करने के उपाय
1. बादल फटने की घटनाओं का विवरण: बादल फटना अत्यधिक तीव्र वर्षा की घटनाएँ हैं जो सामान्यतः पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में होती हैं। इन घटनाओं के परिणामस्वरूप अचानक बाढ़ और भूस्खलन होते हैं, जिससे व्यापक क्षति होती है।
2. एन० डी० एम० ए० के सुझावों के आधार पर अपनाए जाने वाले उपाय:
इन उपायों को अपनाकर उत्तराखण्ड में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है, जिससे जनसामान्य की सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
See lessकई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारम्बारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिए। (200 words) [UPSC 2016]
शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारण और जोखिम कम करने की तैयारियाँ 1. शहरी बाढ़ के कारण: त्वरित शहरीकरण: तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण अधिक अवशोषित सतहें (जैसे सड़कें और भवन) बन गई हैं, जिससे वर्षा का जल तेजी से बहकर नालों में जाता है और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है। अप्रचलित जल निकासी प्रणाली: कई शहरोRead more
शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारण और जोखिम कम करने की तैयारियाँ
1. शहरी बाढ़ के कारण:
2. जोखिम कम करने की तैयारियाँ:
इन उपायों को अपनाकर शहरी बाढ़ के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है, जिससे शहरों को सुरक्षित और समृद्ध बनाया जा सकता है।
See lessसूखे को उसके स्थानिक विस्तार, कालिक अवधि, मंथर प्रारम्भ और कमज़ोर बगों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एन० डी० एम० ए०) के सितम्बर 2010 मार्गदर्शी सिद्धान्तों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए भारत में एल नीनो और ला नीना के सम्भावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिए तैयारी की कार्यविधियों पर चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय: सूखा को उसके विशाल स्थानिक प्रभाव, दीर्घकालिक अवधि, मंथर प्रारंभ, और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। एनडीएमए (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) के सितम्बर 2010 के मार्गदर्शी सिद्धांतों पर आधारित, भारत में एल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावRead more
परिचय: सूखा को उसके विशाल स्थानिक प्रभाव, दीर्घकालिक अवधि, मंथर प्रारंभ, और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। एनडीएमए (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) के सितम्बर 2010 के मार्गदर्शी सिद्धांतों पर आधारित, भारत में एल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिए विभिन्न तैयारी कार्यविधियाँ निर्धारित की गई हैं।
सितम्बर 2010 एनडीएमए मार्गदर्शी सिद्धांतों के तहत तैयारी:
हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष: सितम्बर 2010 के एनडीएमए मार्गदर्शी सिद्धांत सूखा प्रबंधन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। एल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ, जल संसाधन प्रबंधन, सूखा-प्रतिरोधी कृषि प्रथाएँ, और प्रभावी प्रतिक्रिया योजनाओं का कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है। इन तैयारियों से भारत सूखे और जलवायु परिवर्तन से बेहतर तरीके से निपट सकता है।
See lessदिसम्बर 2004 को सुनामी भारत सहित चौदह देशों में तबाही लायी थी। सुनामी के होने के लिए जिम्मेदार कारकों पर एवं जीवन तथा अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले उसके प्रभावों पर चर्चा कीजिए। एन.डी.एम.ए. के दिशा निर्देशों (2010) के प्रकाश में, इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
दिसंबर 2004 का सुनामी: जिम्मेदार कारक और प्रभाव 1. सुनामी के होने के लिए जिम्मेदार कारक: 1.1. भूकंप: कारण: 26 दिसंबर 2004 को भारतीय महासागर में 9.1-9.3 तीव्रता का भूकंप आया, जिसे "सुनामी जनक भूकंप" कहा जाता है। यह भूकंप सुमात्रा के पश्चिमी तट के पास समुद्रतल में हुआ। उदाहरण: इस भूकंप ने समुद्र के नीRead more
दिसंबर 2004 का सुनामी: जिम्मेदार कारक और प्रभाव
1. सुनामी के होने के लिए जिम्मेदार कारक:
1.1. भूकंप:
1.2. समुद्री भूस्खलन:
2. जीवन और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
2.1. जीवन की हानि:
2.2. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
3. एन.डी.एम.ए. के दिशा निर्देशों (2010) के प्रकाश में जोखिम कम करने की क्रियाविधि:
3.1. आपातकालीन तैयारी और योजना:
3.2. संरचनात्मक और अवसंरचनात्मक सुधार:
3.3. जागरूकता और शिक्षा:
निष्कर्ष:
Describe various measures taken in India for Disaster Risk Reduction (DRR) before and after signing ‘Sendai Framework for DRR (2015-2030)’. How is this framework different from ‘Hyogo Framework for Action, 2005? (250 words) [UPSC 2018]
Measures for Disaster Risk Reduction (DRR) in India Before Signing the Sendai Framework: National Disaster Management Act (2005): Established the National Disaster Management Authority (NDMA) to formulate policies and coordinate disaster response. National Disaster Management Plan (2009): Focused onRead more
Measures for Disaster Risk Reduction (DRR) in India
Before Signing the Sendai Framework:
After Signing the Sendai Framework:
Differences between the Sendai Framework and Hyogo Framework for Action:
Conclusion: The transition from the Hyogo Framework to the Sendai Framework marks a shift towards a more comprehensive, proactive, and inclusive approach to disaster risk reduction, focusing on resilience and risk management at all levels.
See lessभू-स्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिए । राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
भू-स्खलन के कारण और प्रभाव भू-स्खलन के कारण: प्राकृतिक कारण: भौगोलिक तत्व: भू-स्खलन अक्सर उन भौगोलिक संरचनाओं की अस्थिरता के कारण होते हैं जिनमें कमजोर या दरार वाले चट्टानें होती हैं। उदाहरणस्वरूप, हिमालयी क्षेत्र में भौगोलिक अस्थिरता के कारण लगातार भू-स्खलन होते रहते हैं। मौसमी स्थिति: भारी वर्षा मRead more
भू-स्खलन के कारण और प्रभाव
भू-स्खलन के कारण:
भू-स्खलन के प्रभाव:
राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटक:
इन कारणों और राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के घटकों को समझकर, भू-स्खलनों के प्रभाव को कम किया जा सकता है और संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा को बढ़ाया जा सकता है।
See lessआपदा प्रभावों और लोगों के लिए उसके खतरे को परिभाषित करने के लिए भेद्यता एक अत्यावश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता का किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र-चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2019]
आपदाओं के प्रति भेद्यता का चरित्र-चित्रण 1. भेद्यता की परिभाषा: भेद्यता: आपदाओं के प्रभाव और खतरों को समझने के लिए भेद्यता एक महत्वपूर्ण तत्व है। यह संवेदनशीलता और सक्षम क्षमताओं के आधार पर लोगों और समुदायों की संभावित क्षति की माप होती है। 2. भौगोलिक भेद्यता: भौगोलिक स्थिति: प्राकृतिक आपदाओं के प्रRead more
आपदाओं के प्रति भेद्यता का चरित्र-चित्रण
1. भेद्यता की परिभाषा:
2. भौगोलिक भेद्यता:
3. आर्थिक भेद्यता:
4. सामाजिक भेद्यता:
5. भौतिक भेद्यता:
6. प्राकृतिक भेद्यता:
इन विभिन्न प्रकारों से भेद्यता का विश्लेषण कर, आपदा प्रबंधन के लिए प्रभावी रणनीतियाँ और सुधारात्मक उपाय अपनाए जा सकते हैं।
See lessकिसी भी आपदा प्रबंधन प्रक्रम में आपदा तैयारी पहला कदम होता है। भूस्खलनों के मामले में, स्पष्ट कीजिए कि संकट अनुक्षेत्र मानचित्रण किस प्रकार आपदा अल्पीकरण में मदद करेगा। (250 words) [UPSC 2019]
भूस्खलनों में संकट अनुक्षेत्र मानचित्रण का महत्व 1. संकट अनुक्षेत्र मानचित्रण की परिभाषा: संकट अनुक्षेत्र मानचित्रण (Hazard Zonation Mapping) एक भू-आकृतिक प्रक्रिया है जिसमें किसी विशेष क्षेत्र में भूस्खलन के संभावित खतरों को मानचित्र पर दर्शाया जाता है। यह प्रक्रिया भूस्खलन संभाव्यता को विभिन्न श्रRead more
भूस्खलनों में संकट अनुक्षेत्र मानचित्रण का महत्व
1. संकट अनुक्षेत्र मानचित्रण की परिभाषा:
2. आपदा तैयारी में मदद:
1. जोखिम क्षेत्र की पहचान:
2. योजना और नीतिगत निर्णय:
3. आपदा प्रबंधन और प्रतिक्रिया:
4. जन जागरूकता और शिक्षा:
5. संरचनात्मक सुधार:
उपसंहार: संकट अनुक्षेत्र मानचित्रण भूस्खलनों के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह जोखिम की पहचान, विकास और योजना में सुधार, और आपातकालीन प्रतिक्रियाओं को सक्षम बनाता है, जिससे आपदा अल्पीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान मिलता है।
See lessआपदा प्रबन्धन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरम्भ किए गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2020]
भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन में अभिनूतन उपाय 1. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) 2019: प्रोएक्टिव दृष्टिकोण: NDMP 2019 ने पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण को बदलते हुए जोखिम कम करने और सतत प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया है। योजना में जोखिम मूल्यांकन, सामुदायिक भागीदारी, और प्रस्तावित प्रतिRead more
भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन में अभिनूतन उपाय
1. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) 2019:
2. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की पहल:
3. राज्यस्तरीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण:
4. तकनीकी एकीकरण:
5. सामुदायिक भागीदारी और क्षमता निर्माण:
6. वित्तीय और संस्थागत समर्थन:
इन उपायों के माध्यम से, भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन में एक प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण से हटकर एक अधिक समन्वित, प्रोएक्टिव और प्रौद्योगिकी-संचालित दृष्टिकोण अपनाया है, जिससे आपदाओं की तैयारी और प्रतिक्रिया में सुधार हुआ है।
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