Home/BPSC Mains Old Year Questions
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जनसंख्या में बहुमुखी वृद्धि एवं अ-योजना के फलस्वरूप असंगत कचरा उत्पन्न हुआ है। विभिन्न प्रकार के कचरे की विवचेना कीजिये। इस समस्या को देश किस प्रकार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सहायता से दूर कर सकता है? विस्तार से वर्णन कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारत में कचरा समस्या: भारत में बढ़ती जनसंख्या और अ-योजनाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले कचरे की समस्या एक गंभीर चुनौती बन गई है। यह समस्या न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और संसाधनों के उपभोग पर भी प्रभाव डालती है। भारत में कचरे के विभिन्न प्रकाRead more
भारत में कचरा समस्या:
भारत में बढ़ती जनसंख्या और अ-योजनाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले कचरे की समस्या एक गंभीर चुनौती बन गई है। यह समस्या न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और संसाधनों के उपभोग पर भी प्रभाव डालती है। भारत में कचरे के विभिन्न प्रकार हैं, जिनका विश्लेषण करना और उनके निवारण के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करना आवश्यक है।
कचरे के प्रकार
कचरा मुख्य रूप से चार प्रमुख प्रकार का होता है:
विज्ञान और प्रौद्योगिकी द्वारा समाधान
कचरे की समस्या को समाधान देने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग आवश्यक है। निम्नलिखित उपायों से इस समस्या का निवारण किया जा सकता है:
1. कचरे का पुनर्चक्रण (Recycling) और पुनः उपयोग
2. जैविक अपशिष्ट (Biodegradable waste) का निपटान
3. इलेक्ट्रॉनिक कचरे का निपटान (E-waste Management)
4. आधुनिक कचरा प्रबंधन प्रणाली (Smart Waste Management)
5. नवाचार और विज्ञान आधारित नीतियाँ
निष्कर्ष
भारत में कचरे की समस्या एक गंभीर चुनौती बन चुकी है, और इसे सुलझाने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि हम तकनीकी समाधान जैसे कि कचरे का पुनर्चक्रण, इलेक्ट्रॉनिक कचरे का निपटान, और स्मार्ट वेस्ट मैनेजमेंट को सही तरीके से लागू करें तो हम इस समस्या से निजात पा सकते हैं। इसके साथ ही, सामाजिक जागरूकता और नीति निर्माण में सुधार करके हम कचरे के उत्पादन को भी कम कर सकते हैं।
See lessवर्तमान सरकार विभिन्न राज्यों में स्मार्ट शहर विकसित करने के लिये प्रयासरत है। स्मार्ट शहरों के बारे में आपकी क्या हैं? आदर्श स्मार्ट शहर के विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका की व्याख्या कीजिये। परिकल्पनाएँ [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
स्मार्ट शहर: भारत के शहरीकरण में नया दृष्टिकोण भारत में शहरीकरण की तीव्र गति को देखते हुए, वर्तमान सरकार ने स्मार्ट शहरों के निर्माण पर जोर दिया है। स्मार्ट शहरों की अवधारणा एक आधुनिक, टिकाऊ और तकनीकी दृष्टिकोण पर आधारित है, जो शहरों की जीवनशैली को बेहतर बनाने के साथ-साथ शहरी समस्याओं का हल भी प्रदाRead more
स्मार्ट शहर: भारत के शहरीकरण में नया दृष्टिकोण
भारत में शहरीकरण की तीव्र गति को देखते हुए, वर्तमान सरकार ने स्मार्ट शहरों के निर्माण पर जोर दिया है। स्मार्ट शहरों की अवधारणा एक आधुनिक, टिकाऊ और तकनीकी दृष्टिकोण पर आधारित है, जो शहरों की जीवनशैली को बेहतर बनाने के साथ-साथ शहरी समस्याओं का हल भी प्रदान करती है। स्मार्ट शहरों में सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और इन्फ्रास्ट्रक्चर का बेहतर उपयोग किया जाता है, जिससे नगरों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
स्मार्ट शहर की परिकल्पना
स्मार्ट शहरों का लक्ष्य केवल आधुनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं है, बल्कि यह स्मार्ट तकनीकों का उपयोग करके जीवन स्तर को बेहतर बनाना है। इसमें जन्म दर, मृत्यु दर, और आबादी के साथ पर्यावरणीय समावेशन का ध्यान रखा जाता है। स्मार्ट शहरों के विकास का उद्देश्य समग्र रूप से न्यायपूर्ण और समृद्ध शहरी जीवन के लिए एक ठोस आधार तैयार करना है।
मुख्य विशेषताएँ:
आदर्श स्मार्ट शहर के विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका
विज्ञान और प्रौद्योगिकी स्मार्ट शहरों के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। इन क्षेत्रों का उपयोग स्मार्ट शहरों के निर्माण के प्रत्येक पहलू को प्रभावी और दक्ष बनाने के लिए किया जा रहा है। नीचे दी गई कुछ प्रमुख भूमिका हैं, जिनमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी का योगदान देखा जा सकता है:
1. सूचना प्रौद्योगिकी और डेटा संग्रहण
उदाहरण: Bhopal और Surat जैसे स्मार्ट शहरों में नागरिक सेवाओं की डिलीवरी और बुनियादी ढांचे की निगरानी के लिए IoT (Internet of Things) का उपयोग किया जा रहा है।
2. स्मार्ट परिवहन
3. ऊर्जा प्रबंधन
उदाहरण: Delhi और Chandigarh में सौर ऊर्जा के उपयोग से न केवल प्रदूषण कम हो रहा है, बल्कि बिजली की आपूर्ति भी सुरक्षित और सस्ती हो रही है।
4. जल प्रबंधन और अपशिष्ट निपटान
उदाहरण: Pune और Chennai में जल पुनर्चक्रण प्रणाली का सफल प्रयोग किया जा रहा है।
5. स्मार्ट सुरक्षा
उदाहरण: Kochi और Hyderabad में स्मार्ट कैमरे और आपातकालीन सेवाओं का नेटवर्क नागरिकों की सुरक्षा को बढ़ावा दे रहा है।
निष्कर्ष
स्मार्ट शहरों का उद्देश्य केवल शहरीकरण की प्रक्रिया को बेहतर बनाना नहीं है, बल्कि यह एक समर्थ और पर्यावरणीय रूप से स्थिर शहरी जीवन को बढ़ावा देने की दिशा में एक कदम है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मदद से इन शहरों में ऊर्जा, जल, परिवहन, सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार किया जा सकता है।
See lessविद्युत खपत की बढ़ती माँग एवं लगातार घटते पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के कारण देश वर्तमान में विद्युत ऊर्जा की कमी से जूझ रहा है। इस विकट ऊर्जा खपत माँग को नियंत्रित करने के लिये वर्तमान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदत्त माध्यमों का विस्तार से वर्णन कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
विद्युत खपत की बढ़ती मांग और ऊर्जा संकट भारत में विद्युत खपत में लगातार वृद्धि हो रही है, और इस वृद्धि के साथ ही पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की कमी भी महसूस हो रही है। यह स्थिति विद्युत संकट को जन्म दे रही है, जिससे पूरे देश में आपूर्ति की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इस संकट को हल करने के लिए विज्ञान औरRead more
विद्युत खपत की बढ़ती मांग और ऊर्जा संकट
भारत में विद्युत खपत में लगातार वृद्धि हो रही है, और इस वृद्धि के साथ ही पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की कमी भी महसूस हो रही है। यह स्थिति विद्युत संकट को जन्म दे रही है, जिससे पूरे देश में आपूर्ति की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इस संकट को हल करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो ऊर्जा उत्पादन, वितरण और संरक्षण में कई नवाचारों को जन्म दे रही है।
1. विद्युत खपत की बढ़ती मांग
भारत में आर्थिक विकास और शहरीकरण के साथ-साथ विद्युत ऊर्जा की मांग भी बढ़ रही है। कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता हो रही है। साथ ही, बिजली संकट का मुख्य कारण यह भी है कि पारंपरिक ऊर्जा स्रोत जैसे कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में कमी आ रही है, जबकि इन स्रोतों पर निर्भरता अधिक है।
आवश्यकता:
2. विज्ञान और प्रौद्योगिकी द्वारा समाधान
वर्तमान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विद्युत संकट के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसके माध्यम से न केवल ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है, बल्कि ऊर्जा संरक्षण और विकेंद्रीकरण के माध्यम से आपूर्ति में भी सुधार किया जा सकता है।
1. नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy)
भारत ने सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जैव ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग बढ़ाया है। ये ऊर्जा स्रोत पारंपरिक स्रोतों से कहीं अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल हैं।
2. ऊर्जा दक्षता (Energy Efficiency)
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग ऊर्जा के प्रभावी उपयोग में किया जा रहा है। स्मार्ट ग्रिड, इलेक्ट्रिक वाहनों, और ऊर्जा दक्ष उपकरणों का उपयोग बढ़ने से विद्युत की खपत में कमी आ सकती है।
3. ऊर्जा भंडारण (Energy Storage)
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की प्रकृति के कारण उनकी निरंतरता पर निर्भर नहीं रह सकते हैं, जिससे ऊर्जा भंडारण तकनीक की आवश्यकता बढ़ी है। इस समस्या को हल करने के लिए बिजली स्टोरेज सिस्टम जैसे ब्याटरी बैंक और ग्रिड-scale बैटरी सिस्टम उपयोग में लाए जा रहे हैं।
4. जल विद्युत और परमाणु ऊर्जा (Hydroelectric and Nuclear Energy)
जल विद्युत ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा उत्पादन के स्थायी समाधान के रूप में देखे जा रहे हैं। इन दोनों से ऊर्जा का निरंतर उत्पादन किया जा सकता है।
3. स्मार्ट ग्रिड और डिजिटल समाधान
वर्तमान में डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ भी विद्युत खपत को नियंत्रित करने में मदद कर रही हैं। स्मार्ट मीटरिंग और उपभोक्ता डेटा विश्लेषण के माध्यम से बिजली खपत को मॉनीटर किया जा सकता है और अनावश्यक खपत को कम किया जा सकता है।
4. निष्कर्ष
विद्युत खपत की बढ़ती मांग और पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की कमी के कारण उत्पन्न संकट से निपटने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने कई महत्वपूर्ण समाधान प्रस्तुत किए हैं। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विस्तार, ऊर्जा दक्षता तकनीक, और ऊर्जा भंडारण प्रणाली के उपयोग से भारत अपने ऊर्जा संकट को हल कर सकता है। स्मार्ट ग्रिड और डिजिटल समाधान द्वारा बिजली वितरण और खपत को बेहतर किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा संकट को नियंत्रित किया जा सकेगा।
See lessभारत में नदियों का सुदृढ़ जाल होने के बाद भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जो जलापूर्ति और विशेष रूप से पेयजल की कमी से जूझ रहे हैं। इस समस्या के समाधान हेतु जल प्रबंधन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका की सोदाहरण विवेचना कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारत में जल संकट: भारत में नदियों का सुदृढ़ जाल होने के बावजूद जलापूर्ति और विशेष रूप से पेयजल की कमी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। यह समस्या समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्पन्न होती रहती है। विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या, और जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन इसके मुख्य कारण हैं। जल संकटRead more
भारत में जल संकट:
भारत में नदियों का सुदृढ़ जाल होने के बावजूद जलापूर्ति और विशेष रूप से पेयजल की कमी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। यह समस्या समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्पन्न होती रहती है। विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या, और जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन इसके मुख्य कारण हैं। जल संकट को हल करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
1. भारत में जल संकट का कारण
जलवायु परिवर्तन और वर्षा का अनिश्चित पैटर्न
भारत में जल संकट का एक प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है, जिसके चलते वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो रहा है। कुछ क्षेत्र अत्यधिक वर्षा से प्रभावित हैं, जबकि अन्य में सूखा और जलवायु की अनिश्चितता जल संकट को बढ़ा रही है।
जल का अत्यधिक दोहन
भारत में नदियाँ और जल स्रोत होते हुए भी जल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए जल का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है, जिसके कारण जलस्तर में कमी आ रही है।
2. विज्ञान और प्रौद्योगिकी का योगदान
जल पुनर्चक्रण (Water Recycling)
जल पुनर्चक्रण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें उपयोग किए गए जल को पुनः उपयोग योग्य बनाया जाता है। यह तकनीक जल संकट को दूर करने में मददगार हो सकती है।
वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting)
वर्षा जल संचयन एक पुरानी लेकिन प्रभावी तकनीक है, जो वर्षा के पानी को संचित कर पानी की कमी को दूर करने का प्रयास करती है।
जल प्रबंधन के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म
प्रौद्योगिकी का उपयोग जल प्रबंधन में किया जा रहा है। सेंसर्स, उपग्रह चित्रण और डेटा विश्लेषण के माध्यम से जल स्रोतों की निगरानी की जा रही है।
नदी जोड़ने की परियोजना (River Linking Project)
भारत में नदी जोड़ने की परियोजना को जल संकट के समाधान के रूप में देखा जा रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य विभिन्न नदियों के जल को जोड़कर जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल की आपूर्ति करना है।
3. जल संकट समाधान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रभावशीलता
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग भारत में जल संकट के समाधान के लिए निर्णायक भूमिका निभा सकता है। उपरोक्त तकनीकों से जल प्रबंधन को बेहतर बनाया जा सकता है, जल के उचित वितरण को सुनिश्चित किया जा सकता है और जल की बचत को बढ़ावा दिया जा सकता है।
4. निष्कर्ष
भारत में जल संकट को हल करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का महत्व बढ़ रहा है। जल पुनर्चक्रण, वर्षा जल संचयन, और नदी जोड़ने जैसी प्रौद्योगिकियाँ जल संकट से निपटने में सहायक हो सकती हैं। इन प्रयासों के साथ-साथ सरकार और समाज को भी जल का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए। इन तकनीकों का प्रभावी उपयोग भारत में जल संकट को हल करने में मदद कर सकता है, और भविष्य में जल की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।
See less"जब तक भारत में जनसंख्या वृद्धि अवरुद्ध नहीं की जाती, तब तक आर्थिक विकास को उसके सही रूप में नहीं देखा जा सकता।" इस कथन का परीक्षण कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारत में जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास: भारत में जनसंख्या वृद्धि का नियंत्रण न होने पर आर्थिक विकास को सही रूप में देखने के विचार पर विचार करते हुए यह स्पष्ट होता है कि जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास के बीच एक गहरा संबंध है। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें जनसंख्या वृद्धि के प्रभावों का अध्ययRead more
भारत में जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास:
भारत में जनसंख्या वृद्धि का नियंत्रण न होने पर आर्थिक विकास को सही रूप में देखने के विचार पर विचार करते हुए यह स्पष्ट होता है कि जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास के बीच एक गहरा संबंध है। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें जनसंख्या वृद्धि के प्रभावों का अध्ययन करना होगा और यह भी देखना होगा कि किस प्रकार यह विकास के प्रयासों को प्रभावित करता है।
1. जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव
आर्थिक संसाधनों पर दबाव
रोजगार की कमी और गरीबी
संरचनात्मक असमानताएँ
2. आर्थिक विकास में जनसंख्या वृद्धि की चुनौती
संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता
पर्यावरणीय प्रभाव
3. आर्थिक विकास के अन्य पहलु
जनसंख्या नियंत्रण से विकास को गति मिल सकती है
अच्छी नीति और रणनीतियों से विकास संभव
4. निष्कर्ष
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जब तक भारत में जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण नहीं पाया जाता, तब तक आर्थिक विकास के प्रयासों में पूर्ण सफलता प्राप्त करना मुश्किल होगा। हालांकि, यह भी सच है कि अगर सही नीतियाँ और उपाय लागू किए जाएं, तो यह चुनौती अवसर में बदल सकती है। जनसंख्या नियंत्रण, शिक्षा, स्वास्थ्य, और तकनीकी सुधारों के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
भारत के संदर्भ में अगर जनसंख्या नियंत्रण और समग्र विकास नीतियों को ठीक से लागू किया जाए, तो यह भारत को अगले स्तर तक ले जा सकता है।
See lessभारतीय आर्थिक नियोजन की मुख्य उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारत में आर्थिक नियोजन की शुरुआत 1951 में योजना आयोग के गठन से हुई थी। इसके तहत पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश की समग्र आर्थिक वृद्धि, औद्योगिकीकरण, कृषि सुधार, और सामाजिक विकास के लक्ष्य निर्धारित किए गए। यहां हम भारतीय आर्थिक नियोजन की प्रमुख उपलब्धियों का मूल्यांकन करेंगे। 1. आर्थिक वृद्धि औरRead more
भारत में आर्थिक नियोजन की शुरुआत 1951 में योजना आयोग के गठन से हुई थी। इसके तहत पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश की समग्र आर्थिक वृद्धि, औद्योगिकीकरण, कृषि सुधार, और सामाजिक विकास के लक्ष्य निर्धारित किए गए। यहां हम भारतीय आर्थिक नियोजन की प्रमुख उपलब्धियों का मूल्यांकन करेंगे।
1. आर्थिक वृद्धि और औद्योगिकीकरण
2. कृषि उत्पादन में वृद्धि
3. निर्माण और बुनियादी ढांचे का विकास
4. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार
5. आधिकारिक वित्तीय क्षेत्र में सुधार
6. सामाजिक न्याय और समानता के उपाय
आलोचनात्मक मूल्यांकन
हालाँकि भारतीय आर्थिक नियोजन की कई सकारात्मक उपलब्धियाँ हैं, लेकिन इस प्रणाली की कुछ सीमाएँ और चुनौतियाँ भी हैं:
निष्कर्ष
भारतीय आर्थिक नियोजन ने कई सकारात्मक उपलब्धियाँ हासिल की हैं, जैसे औद्योगिकीकरण, कृषि सुधार, और बुनियादी ढांचे में सुधार। हालांकि, असमानता, भ्रष्टाचार, और संरचनात्मक सुधारों की कमी जैसी चुनौतियों का समाधान अभी भी बाकी है। इन समस्याओं को सुलझाने के लिए आगे के नियोजन में नीतियों के और अधिक समावेशी और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है।
See lessभारतीय अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका की व्याख्या कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो वैश्विक व्यापार के नियमों को निर्धारित करती है और देशों के बीच व्यापारिक विवादों का समाधान करती है। भारत के संदर्भ में, WTO का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि यह भारत को वैश्विक व्यापार व्यRead more
भारतीय अर्थव्यवस्था में विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका
विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो वैश्विक व्यापार के नियमों को निर्धारित करती है और देशों के बीच व्यापारिक विवादों का समाधान करती है। भारत के संदर्भ में, WTO का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि यह भारत को वैश्विक व्यापार व्यवस्था में एक प्रमुख खिलाड़ी बनाने के साथ-साथ देश की आर्थिक नीतियों पर भी प्रभाव डालता है।
WTO के प्रमुख उद्देश्य
WTO के उद्देश्य हैं:
WTO और भारतीय अर्थव्यवस्था
1. भारतीय निर्यात को बढ़ावा
2. व्यापार में सुधार और नीतियों में बदलाव
3. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका
4. व्यापारिक विवादों का समाधान
5. विकासशील देशों को मदद
WTO के आलोचनात्मक दृष्टिकोण
निष्कर्ष
WTO भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था है, जिसने निर्यात को बढ़ावा देने, व्यापारिक विवादों के समाधान और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका को मजबूत किया है। हालांकि, इसके आलोचनात्मक दृष्टिकोण भी हैं, जिन्हें सुधारने की आवश्यकता है, ताकि विकासशील देशों को भी समान रूप से लाभ मिल सके। भारतीय अर्थव्यवस्था में WTO की भूमिका समय के साथ विकसित होती जा रही है, और इसके प्रभाव को समझना भविष्य में भारत के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण को आकार देने में मदद करेगा।
See lessभारत में 'खाद्य सुरक्षा' की आवश्यकता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारत में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि देश की अधिकांश आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास करती है और भूख, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याओं का सामना करती है। खाद्य सुरक्षा का मतलब है कि हर व्यक्ति को पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य सामग्री प्राप्त हो, ताRead more
भारत में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि देश की अधिकांश आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास करती है और भूख, कुपोषण और खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याओं का सामना करती है। खाद्य सुरक्षा का मतलब है कि हर व्यक्ति को पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य सामग्री प्राप्त हो, ताकि वे स्वस्थ जीवन जी सकें।
खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता के कारण
खाद्य सुरक्षा के लिए किए गए प्रयास
खाद्य सुरक्षा की आलोचना
निष्कर्ष
भारत में खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए केवल वितरण प्रणाली पर ध्यान देना पर्याप्त नहीं है। इसके साथ-साथ पोषण गुणवत्ता, उचित योजना और भ्रष्टाचार पर कड़ी नज़र रखने की भी आवश्यकता है। खाद्य सुरक्षा से जुड़ी नीति की आलोचना के बावजूद, यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाए तो यह देश के कुपोषण और भूख से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
See less"बहुत अधिक राजनैतिक दल भारतीय राजनीति के लिये अभिशाप हैं।" इस तथ्य को बिहार के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारतीय राजनीति में विभिन्न राजनीतिक दलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिलती है, लेकिन बहुत अधिक दलों का अस्तित्व कभी-कभी राजनीतिक प्रणाली को जटिल और अराजक बना सकता है। बिहार राज्य में यह स्थिति और अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जहाँ कई राजनीतिक दलों की मौजूदगी और गठबंधनRead more
भारतीय राजनीति में विभिन्न राजनीतिक दलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिलती है, लेकिन बहुत अधिक दलों का अस्तित्व कभी-कभी राजनीतिक प्रणाली को जटिल और अराजक बना सकता है। बिहार राज्य में यह स्थिति और अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जहाँ कई राजनीतिक दलों की मौजूदगी और गठबंधन की राजनीति ने विकास की गति को प्रभावित किया है।
बिहार में राजनीतिक दलों की संख्या और उनका प्रभाव
बिहार में छोटे दलों के कारण उठने वाली समस्याएँ
क्या अधिक दल भारत के लिए अभिशाप हैं?
निष्कर्ष
बिहार के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि बहुत अधिक राजनीतिक दलों का अस्तित्व कभी-कभी राज्य की राजनीति के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, यह भी सच है कि छोटे दलों के साथ गठबंधन ने बिहार में विभिन्न वर्गों को अपनी आवाज़ उठाने का अवसर प्रदान किया है। इसलिए, यह आवश्यक है कि राजनीतिक दलों के बीच समझौते और सामंजस्य बनाए रखे जाएं, ताकि राज्य का विकास बिना किसी अवरोध के हो सके।
See less"भारतीय शासन में न्यायिक सक्रियता एक नवीन धारणा है।" विवेचना कीजिये तथा न्यायिक सक्रियता के पक्ष और विपक्ष में दिये गए मुख्य तर्कों को स्पष्ट कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारतीय शासन में न्यायिक सक्रियता: भारतीय संविधान में न्यायपालिका को स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार दिया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शासन के सभी अंग संविधान और कानून के अनुसार कार्य करें। न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) एक ऐसी अवधारणा है जिसमें न्यायपालिका, केवल मुकदमों के निपRead more
भारतीय शासन में न्यायिक सक्रियता:
भारतीय संविधान में न्यायपालिका को स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार दिया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शासन के सभी अंग संविधान और कानून के अनुसार कार्य करें। न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) एक ऐसी अवधारणा है जिसमें न्यायपालिका, केवल मुकदमों के निपटारे तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा भी करती है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसमें न्यायिक संस्थाएँ समाज में व्याप्त असमानताओं और अन्याय को दूर करने के लिए सक्रिय रूप से कदम उठाती हैं।
न्यायिक सक्रियता की उत्पत्ति
भारत में न्यायिक सक्रियता का आरंभ 1970 के दशक के अंत में हुआ, विशेष रूप से जब सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं (Public Interest Litigation – PIL) को स्वीकार करना शुरू किया। इसने आम नागरिकों को यह अधिकार दिया कि वे न्यायपालिका से उन मुद्दों पर न्याय की अपील कर सकते हैं जो समाज में व्यापक प्रभाव डालते हैं, जैसे कि पर्यावरण संरक्षण, भ्रष्टाचार, महिला अधिकार आदि।
उदाहरण:
न्यायिक सक्रियता के पक्ष में तर्क
न्यायिक सक्रियता के विपक्ष में तर्क
निष्कर्ष
न्यायिक सक्रियता भारतीय संविधान के तहत न्यायपालिका के अधिकारों और कर्तव्यों को पूरा करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, न्यायपालिका की भूमिका को अत्यधिक सक्रिय और जनहित में रखना सकारात्मक हो सकता है, परंतु इसे सीमित करने की आवश्यकता भी है ताकि यह अन्य सरकारी अंगों के अधिकारों का उल्लंघन न करे। यह जरूरी है कि न्यायपालिका अपनी भूमिका को संवैधानिक सीमाओं में रहते हुए निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से निभाए।
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