उपयुक्त उदाहरण सहित 19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताओं की समीक्षा कीजिये। उनकी असफलता के कारण बताइए। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
ओआईसी (Organisation of Islamic Cooperation), जिसे इस्लामी सहयोग संगठन भी कहा जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसमें 57 सदस्य देशों की भागीदारी है, जो मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल देश हैं। यह संगठन विश्वभर में इस्लामी देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने, सांस्कृतिक और सामाजिक मसलों पर चर्चा करने, और आRead more
ओआईसी (Organisation of Islamic Cooperation), जिसे इस्लामी सहयोग संगठन भी कहा जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसमें 57 सदस्य देशों की भागीदारी है, जो मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल देश हैं। यह संगठन विश्वभर में इस्लामी देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने, सांस्कृतिक और सामाजिक मसलों पर चर्चा करने, और आर्थिक दृष्टि से एक दूसरे के सहयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से स्थापित हुआ था।
भारत का अतिथि-विशेष के रूप में आमंत्रण
भारत को 2019 में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) द्वारा ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में अतिथि-विशेष के रूप में आमंत्रित किया गया। यह एक महत्वपूर्ण भूराजकीय परिवर्तन था, जो भारत और इस्लामी देशों के बीच रिश्तों में एक नए दौर की शुरुआत का संकेत देता है।
ओआईसी का भारत के लिए महत्व
- भारत और इस्लामी दुनिया के बीच संबंधों का सुधार: ओआईसी सम्मेलन में भारत को आमंत्रित करना एक सकारात्मक संकेत है, जो भारत और मुस्लिम देशों के रिश्तों में सुधार की दिशा में एक कदम है। इससे यह भी पता चलता है कि भारत के साथ सहयोग बढ़ाने की दिशा में इस्लामी देशों के बीच एक नई सोच विकसित हो रही है।
- भारत की भूमिका और कूटनीतिक प्रभाव: भारत का ओआईसी में अतिथि-विशेष के रूप में भाग लेना, भारत की बढ़ती कूटनीतिक स्थिति और उसकी विदेश नीति की सफलता को दर्शाता है। भारत ने इस मंच पर अपनी उपस्थिति से यह संकेत दिया कि वह वैश्विक मामलों में एक सक्रिय भागीदार के रूप में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
- मुस्लिम देशों के साथ आर्थिक और सामाजिक सहयोग: भारत और मुस्लिम देशों के बीच मजबूत आर्थिक संबंध हैं। भारत मध्य पूर्व और अन्य मुस्लिम बहुल देशों के साथ व्यापार, ऊर्जा, और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने में रुचि रखता है। इस प्रकार, ओआईसी के मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व भारत के आर्थिक और कूटनीतिक लाभों को बढ़ाने का एक अवसर प्रदान करता है।
यूएई का भारत को आमंत्रित करने का कारण
- भूराजकीय रणनीति: संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने भारत को आमंत्रित करके अपनी भूराजकीय रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया। यूएई के लिए भारत एक प्रमुख व्यापारिक साझीदार है, और दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग के मजबूत संबंध हैं। इसके अलावा, भारत और यूएई के बीच रक्षा, आतंकवाद विरोधी सहयोग, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ रहे हैं।
- भारत के मुस्लिम समुदाय की उपस्थिति: यूएई में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी संख्या है, और भारत का मुस्लिम समुदाय भी महत्वपूर्ण है। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, भारत के साथ संबंधों को सुधारने की कोशिश यूएई के लिए फायदेमंद है।
- मध्यपूर्व में शांति और सुरक्षा का मुद्दा: भारत मध्यपूर्व और दक्षिण एशिया में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ओआईसी के मंच पर भारत का योगदान इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने में सहायक हो सकता है।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
- पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव: पाकिस्तान, ओआईसी का एक सदस्य होने के नाते, भारत के इस सम्मेलन में शामिल होने के खिलाफ था। पाकिस्तान का तर्क था कि भारत ने कश्मीर मामले में जो कदम उठाए हैं, उसके चलते भारत को ओआईसी में आमंत्रित नहीं किया जाना चाहिए था।
- ओआईसी का भारतीय दृष्टिकोण: ओआईसी के भारत के प्रति दृष्टिकोण में कई जटिलताएँ हैं, विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे के संदर्भ में। हालांकि भारत ने खुद को ओआईसी की आलोचना से बचाया है, फिर भी यह देखना जरूरी होगा कि भारत और ओआईसी के रिश्तों का भविष्य किस दिशा में जाता है।
निष्कर्ष
भारत का ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में अतिथि-विशेष के रूप में आमंत्रण, भारत और इस्लामी देशों के बीच कूटनीतिक और भूराजकीय संबंधों में एक सकारात्मक कदम है। यह भारत के अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक प्रयासों और उसके वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। इसके बावजूद, पाकिस्तान और कश्मीर मुद्दे के कारण कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनका समाधान भविष्य में देखा जाएगा।
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19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कई जनजातीय प्रतिरोध आंदोलन उठे थे। इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनजातियों की अपनी पारंपरिक आज़ादी और भूस्वामित्व की रक्षा करना था। हालांकि इन आंदोलनों की असफलता के कई कारण थे, लेकिन इनकी विशेषताएँ और संघर्ष भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थानRead more
19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कई जनजातीय प्रतिरोध आंदोलन उठे थे। इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनजातियों की अपनी पारंपरिक आज़ादी और भूस्वामित्व की रक्षा करना था। हालांकि इन आंदोलनों की असफलता के कई कारण थे, लेकिन इनकी विशेषताएँ और संघर्ष भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताएँ
असफलता के कारण
निष्कर्ष
19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध आंदोलनों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया, लेकिन इनकी असफलता के प्रमुख कारण थे संगठन की कमी, आर्थिक शोषण, और ब्रिटिश साम्राज्य की सैन्य ताकत। हालांकि, इन आंदोलनों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए आधार तैयार किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा दी।
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