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भारत में राज्य की राजनीति में राज्यपाल की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये, विशेष रूप से बिहार के संदर्भ में। क्या वह केवल एक कठपुतली है? [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारत में राज्यपाल की भूमिका: भारत में राज्यपाल की भूमिका संविधानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन इस भूमिका का प्रभाव और कार्यक्षेत्र कई बार विवादास्पद रहा है। राज्यपाल, भारतीय संविधान के अनुसार, राज्य के प्रमुख होते हैं, जो केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालाँकि, राज्यपाल की शक्तियाँ और कारRead more
भारत में राज्यपाल की भूमिका:
भारत में राज्यपाल की भूमिका संविधानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन इस भूमिका का प्रभाव और कार्यक्षेत्र कई बार विवादास्पद रहा है। राज्यपाल, भारतीय संविधान के अनुसार, राज्य के प्रमुख होते हैं, जो केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालाँकि, राज्यपाल की शक्तियाँ और कार्यक्षेत्र राज्य सरकारों के साथ किस हद तक तालमेल रखते हैं, यह एक जटिल मुद्दा है। विशेष रूप से बिहार के संदर्भ में राज्यपाल की भूमिका पर विचार करते हुए यह सवाल उठता है कि क्या राज्यपाल केवल एक “कठपुतली” की तरह काम करता है, या उसकी अपनी एक निर्णायक भूमिका है।
1. राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका
भारतीय संविधान के तहत, राज्यपाल को राज्य का शासक और केंद्र का प्रतिनिधि माना जाता है। राज्यपाल के पास निम्नलिखित प्रमुख शक्तियाँ होती हैं:
हालाँकि, राज्यपाल के पास संवैधानिक रूप से इन शक्तियों का प्रयोग करने की पूरी स्वतंत्रता नहीं होती है। राज्यपाल का कार्य काफी हद तक केंद्रीय सरकार के निर्देशों और राजनीति से प्रभावित होता है।
2. बिहार के संदर्भ में राज्यपाल की भूमिका
बिहार में राज्यपाल की भूमिका ने कई बार विवादों को जन्म दिया है। पिछले कुछ वर्षों में बिहार के राज्यपालों ने राज्य सरकार के साथ कई बार तनावपूर्ण संबंध बनाए। उदाहरण के लिए, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके मंत्रिमंडल के खिलाफ राज्यपाल द्वारा उठाए गए कदमों ने यह सवाल खड़ा किया कि राज्यपाल क्या सच में अपनी संवैधानिक भूमिका निभा रहे हैं, या फिर उन्हें केंद्र सरकार के दबाव में काम करने को मजबूर किया जा रहा है।
3. क्या राज्यपाल केवल एक कठपुतली हैं?
राज्यपाल की भूमिका को लेकर यह विचार कभी-कभी उठता है कि वह केवल केंद्र सरकार के आदेशों का पालन करते हैं और उनकी अपनी कोई स्वतंत्र भूमिका नहीं होती। हालांकि, यह भी सच है कि राज्यपाल के पास कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार होता है, लेकिन उनकी कार्यशैली आमतौर पर केंद्र सरकार की इच्छाओं से प्रभावित होती है।
4. निष्कर्ष
राज्यपाल की भूमिका की आलोचना कई बार इसलिए होती है, क्योंकि वह अक्सर केंद्र सरकार के पक्ष में काम करते हैं और राज्य सरकार के अधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं। बिहार जैसे राज्यों में जहां राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक मतभेद होते हैं, वहाँ राज्यपाल की भूमिका और भी विवादास्पद हो जाती है।
See less"भारतीय संविधान अपनी प्रस्तावना में भारत को एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है।" इस घोषणा को क्रियान्वित करने के लिये कौन-से संवैधानिक उपबंध दिये गए हैं? [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में यह घोषणा की गई है कि भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है। यह प्रस्तावना भारतीय संविधान का मार्गदर्शक सिद्धांत है, जो हमारे देश के मुख्य उद्देश्यों और नीति निर्धारण की दिशा को स्पष्ट करती है। इस घोषणा को वास्तविकता में बदलने के लिए भारतीय संविधान मेRead more
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में यह घोषणा की गई है कि भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है। यह प्रस्तावना भारतीय संविधान का मार्गदर्शक सिद्धांत है, जो हमारे देश के मुख्य उद्देश्यों और नीति निर्धारण की दिशा को स्पष्ट करती है। इस घोषणा को वास्तविकता में बदलने के लिए भारतीय संविधान में कुछ महत्वपूर्ण उपबंध दिए गए हैं, जो समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों को लागू करने का कार्य करते हैं।
1. समाजवाद
समाजवाद का अर्थ है समाज में समता और न्याय का होना, जिसमें प्रत्येक नागरिक को समान अवसर और संसाधनों का लाभ मिल सके। भारतीय संविधान में समाजवादी सिद्धांत को लागू करने के लिए कई उपबंध दिए गए हैं:
2. धर्मनिरपेक्षता
धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि राज्य सभी धर्मों से स्वतंत्र रहेगा और सभी धर्मों के अनुयायियों को समान सम्मान मिलेगा। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता को स्थापित करने के लिए निम्नलिखित उपबंध हैं:
3. लोकतंत्र
लोकतंत्र का अर्थ है कि सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है और सत्ता का सर्वोच्च अधिकार जनता के पास होता है। भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक सिद्धांत को लागू करने के लिए कई उपबंध हैं:
निष्कर्ष
भारतीय संविधान अपनी प्रस्तावना में किए गए समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतांत्रिक गणराज्य के सिद्धांतों को लागू करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है। संविधान के इन उपबंधों के माध्यम से भारतीय राज्य अपने नागरिकों को समान अवसर, धार्मिक स्वतंत्रता, और लोकतांत्रिक भागीदारी का अधिकार सुनिश्चित करता है। भारतीय संविधान ने इन सिद्धांतों को अपनाकर हमारे समाज को समृद्ध और न्यायपूर्ण बनाने के लिए मजबूत कानूनी ढांचा तैयार किया है, जो आज भी भारतीय समाज की प्रगति में सहायक है।
See lessभूराजकीय गतिशीलता में सांकेतिक परिवर्तन के रूप में ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिये भारत को अतिथि-विशेष के रूप में यूएई के निमंत्रण का विवेचन कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
ओआईसी (Organisation of Islamic Cooperation), जिसे इस्लामी सहयोग संगठन भी कहा जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसमें 57 सदस्य देशों की भागीदारी है, जो मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल देश हैं। यह संगठन विश्वभर में इस्लामी देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने, सांस्कृतिक और सामाजिक मसलों पर चर्चा करने, और आRead more
ओआईसी (Organisation of Islamic Cooperation), जिसे इस्लामी सहयोग संगठन भी कहा जाता है, एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसमें 57 सदस्य देशों की भागीदारी है, जो मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल देश हैं। यह संगठन विश्वभर में इस्लामी देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने, सांस्कृतिक और सामाजिक मसलों पर चर्चा करने, और आर्थिक दृष्टि से एक दूसरे के सहयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से स्थापित हुआ था।
भारत का अतिथि-विशेष के रूप में आमंत्रण
भारत को 2019 में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) द्वारा ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में अतिथि-विशेष के रूप में आमंत्रित किया गया। यह एक महत्वपूर्ण भूराजकीय परिवर्तन था, जो भारत और इस्लामी देशों के बीच रिश्तों में एक नए दौर की शुरुआत का संकेत देता है।
ओआईसी का भारत के लिए महत्व
यूएई का भारत को आमंत्रित करने का कारण
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
निष्कर्ष
भारत का ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में अतिथि-विशेष के रूप में आमंत्रण, भारत और इस्लामी देशों के बीच कूटनीतिक और भूराजकीय संबंधों में एक सकारात्मक कदम है। यह भारत के अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक प्रयासों और उसके वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। इसके बावजूद, पाकिस्तान और कश्मीर मुद्दे के कारण कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनका समाधान भविष्य में देखा जाएगा।
See lessदो राष्ट्रों के बीच लोगों के मुक्त आवागमन का जहाँ तक सवाल है. भारत ने नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार नीति क्यों अपनाया है? समझाइए। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
भारत ने नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार नीति (Open Door Policy) क्यों अपनाई, इसका कारण है दोनों देशों के साथ ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक संबंधों का मजबूत होना। इस नीति का उद्देश्य इन देशों के साथ पारस्परिक सहयोग, आर्थिक वृद्धि और क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देना है। नेपाल और भूटान के साथ मुक्तRead more
भारत ने नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार नीति (Open Door Policy) क्यों अपनाई, इसका कारण है दोनों देशों के साथ ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक संबंधों का मजबूत होना। इस नीति का उद्देश्य इन देशों के साथ पारस्परिक सहयोग, आर्थिक वृद्धि और क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देना है।
नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार नीति का उद्देश्य
1. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध
नेपाल और भूटान, भारत के लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देश हैं। इन देशों के बीच जातीय, धार्मिक और सांस्कृतिक समानताएँ हैं, जो पारंपरिक तौर पर भारत के साथ गहरे रिश्तों में तब्दील हुई हैं। भारत ने इन देशों के साथ इस नीति को अपनाकर अपने सांस्कृतिक और सामरिक संबंधों को और भी मजबूत किया है।
2. आर्थिक सहयोग
मुक्त द्वार नीति के तहत भारत ने दोनों देशों के बीच व्यापार, पर्यटन और अन्य आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया है। इसका मुख्य उद्देश्य नेपाल और भूटान के लोगों को भारत में रहने, काम करने और व्यापार करने का अवसर देना है, जिससे इन देशों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। उदाहरण के तौर पर, नेपाल और भूटान से भारत आने-जाने में कोई विशेष प्रतिबंध नहीं होते, जो व्यापार के लिए लाभकारी है।
3. सुरक्षा और क्षेत्रीय समन्वय
भारत के लिए, नेपाल और भूटान दोनों ही सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। इन देशों की भौगोलिक स्थिति भारत के सुरक्षा हितों से जुड़ी हुई है। चीन का बढ़ता प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बीच, भारत ने नेपाल और भूटान के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने के लिए मुक्त आवागमन की नीति अपनाई है, ताकि किसी भी प्रकार के संकट में इन देशों से सहयोग प्राप्त किया जा सके।
4. नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी
भारत की “नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी” के तहत, इन देशों के साथ मुक्त आवागमन और सहयोग को बढ़ावा देने का उद्देश्य दक्षिण एशिया में भारत की नेतृत्व क्षमता को स्थापित करना है। यह नीति विशेष रूप से भारत को क्षेत्रीय संतुलन और सहयोग में अहम भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है। नेपाल और भूटान के लिए भी, यह नीति आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता की ओर बढ़ने का एक जरिया बनती है।
नेपाल और भूटान के लिए लाभ
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
हालाँकि, मुक्त आवागमन की नीति कई अवसरों के साथ साथ कुछ चुनौतियाँ भी पेश करती है। विशेष रूप से सुरक्षा मामलों में, इस नीति का दुरुपयोग हो सकता है, जैसे कि अवैध प्रवास या आतंकवाद का खतरा। इसलिए इस नीति को संतुलित तरीके से लागू करना महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
भारत ने नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार नीति अपनाकर न केवल इन देशों के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा दिया, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा को भी सुदृढ़ किया। यह नीति दोनों देशों और भारत के लिए लाभकारी साबित हो रही है, हालांकि इसे सतर्कता और संतुलन के साथ लागू करना जरूरी है।
See lessसंयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क के अनुसार सुखदायिता के समर्थक प्रमुख सूचकों की समीक्षात्मक आलोचना कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क (UNSDSN) के अनुसार, 2019 की रिपोर्ट "Beyond Income, Beyond Averages, Beyond Today" ने विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है आय, औसत और वर्तमान स्थिति के परे जाकर टिकाऊ विकास के नए दृष्टिकोणों की आवश्यकता। इस रिपोर्ट का उद्देश्य यह था कि यह कRead more
संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क (UNSDSN) के अनुसार, 2019 की रिपोर्ट “Beyond Income, Beyond Averages, Beyond Today” ने विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है आय, औसत और वर्तमान स्थिति के परे जाकर टिकाऊ विकास के नए दृष्टिकोणों की आवश्यकता। इस रिपोर्ट का उद्देश्य यह था कि यह केवल आर्थिक प्रगति नहीं, बल्कि पर्यावरणीय, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का भी समाधान प्रदान करने की दिशा में काम करे।
प्रमुख सूचकों की आलोचनात्मक समीक्षा
रिपोर्ट में जिन प्रमुख सूचकों का उल्लेख किया गया, उनमें “आय”, “औसत”, और “वर्तमान स्थिति” की सीमाओं को पहचानने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। उदाहरण के तौर पर, यदि केवल आय को मापा जाता है तो यह सामाजिक असमानताओं और अन्य गैर-आर्थिक पहलुओं को नजरअंदाज कर सकता है। रिपोर्ट ने यह भी बताया कि दुनिया में 10% लोग अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं, और महामारी के कारण कुछ क्षेत्रों में प्रगति रुक गई है।
आय सूचकांक की सीमाएँ
आय सूचकांक केवल आर्थिक स्वास्थ्य का संकेतक हो सकता है, लेकिन यह शोषण, असमानता और पर्यावरणीय संकटों को नजरअंदाज करता है। यह ध्यान में रखना जरूरी है कि आय का वृद्धि सामाजिक विकास के लिए पर्याप्त नहीं है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और समानता जैसे तत्वों पर भी ध्यान देना आवश्यक है।
औसत और समानता
औसत पर आधारित सूचकांक से कभी-कभी यह छिप जाता है कि असमानताएँ गहरी होती हैं, जैसे कि कुछ देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा, और संसाधनों की असमान उपलब्धता। रिपोर्ट के अनुसार, कई देशों में संसाधनों की कमी के कारण टिकाऊ विकास की प्रक्रिया बाधित हो रही है।
रिपोर्ट की आलोचना
इस रिपोर्ट का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह रिपोर्ट अधिकतर केवल आंकड़ों और सिद्धांतों पर आधारित है, और इसे व्यवहारिक रूप में लागू करने में चुनौतियाँ हैं। उदाहरण के लिए, सस्टेनेबल विकास के लिए पूंजी निवेश की बात की गई है, लेकिन गरीब देशों के पास इसका वित्तीय संसाधन नहीं होता। यही कारण है कि सुधार और कार्यान्वयन के बीच एक बड़ा अंतर बना रहता है।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क की रिपोर्ट ने कई आवश्यक पहलुओं की पहचान की है, लेकिन इन बदलावों को लागू करने के लिए अधिक सटीक, व्यवहारिक और स्थानीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। आर्थिक असमानता, पर्यावरणीय संकट और सामाजिक समस्याओं का समाधान एक समग्र और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से ही संभव होगा।
See lessचाबहार बंदरगाह से होने वाले भारत के नये आयात-निर्यात मार्ग के प्रमोचन से अफगानिस्तान और भारत के बीच व्यापार प्रोत्साहन की संभावनाओं की विवेचना कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
चाबहार बंदरगाह से भारत और अफगानिस्तान के व्यापार की संभावनाएँ चाबहार बंदरगाह, जो ईरान में स्थित है, भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण मार्ग साबित हो सकता है। यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों तक पहुँचने का एक वैकल्पिक और सीधा मार्ग प्रदान करतRead more
चाबहार बंदरगाह से भारत और अफगानिस्तान के व्यापार की संभावनाएँ
चाबहार बंदरगाह, जो ईरान में स्थित है, भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण मार्ग साबित हो सकता है। यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों तक पहुँचने का एक वैकल्पिक और सीधा मार्ग प्रदान करता है, जो पाकिस्तान के बंद मार्गों से स्वतंत्र है।
चाबहार बंदरगाह की विशेषताएँ
अफगानिस्तान और भारत के बीच व्यापार में वृद्धि
व्यापार की संभावनाएँ और लाभ
चाबहार की सफलता में चुनौतियाँ
हालाँकि, चाबहार बंदरगाह के माध्यम से व्यापार बढ़ाने के अनेक अवसर हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी हैं:
निष्कर्ष
चाबहार बंदरगाह से भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा मिलेगा, और भारत को मध्य एशिया तक पहुँचने का एक महत्वपूर्ण मार्ग मिलेगा। इसके साथ ही, भारत और अफगानिस्तान के बीच वस्त्र, कृषि उत्पादों, खनिज और अन्य व्यापारिक गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं। हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंध, राजनीतिक दबाव, और इंफ्रास्ट्रक्चर की चुनौतियाँ इस व्यापार को प्रभावित कर सकती हैं। फिर भी, चाबहार परियोजना भारत और अफगानिस्तान दोनों के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, और यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाता है, तो यह दोनों देशों की आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान कर सकता है।
See lessयूएनडीपी ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट, 2019 का प्रमुख विषय क्या है? विश्लेषण किस प्रकार आय, औसत और वर्तमान स्थिति के आगे चला जाता है? आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
यूएनडीपी (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) की ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट, 2019 का प्रमुख विषय था – "Beyond income, beyond averages, beyond today: Inequalities in human development in the 21st century." इसका उद्देश्य दुनिया भर में मानव विकास की वर्तमान स्थिति और उसमें मौजूद असमानताओं पर प्रकाश डालना थाRead more
यूएनडीपी (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) की ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट, 2019 का प्रमुख विषय था – “Beyond income, beyond averages, beyond today: Inequalities in human development in the 21st century.” इसका उद्देश्य दुनिया भर में मानव विकास की वर्तमान स्थिति और उसमें मौजूद असमानताओं पर प्रकाश डालना था। इस रिपोर्ट में मुख्य रूप से आय, औसत और वर्तमान स्थिति से परे जाकर मानव विकास के गहरे पहलुओं को समझने की कोशिश की गई है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
आय, औसत और वर्तमान स्थिति के आगे बढ़ने का विश्लेषण
आलोचनात्मक समीक्षा
निष्कर्ष
यूएनडीपी ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट, 2019 ने मानव विकास की परिभाषा को विस्तृत किया है और यह दर्शाया कि आर्थिक आय, औसत जीवन प्रत्याशा और वर्तमान स्थिति से परे जाकर एक अधिक समग्र और वास्तविक विकास को समझना जरूरी है। रिपोर्ट में वैश्विक असमानताओं की आलोचना की गई और बौद्धिक रूप से इस मुद्दे पर आगे बढ़ने की आवश्यकता पर बल दिया गया। हालांकि, यह रिपोर्ट सामाजिक और राजनीतिक असमानताओं के संदर्भ में और भी अधिक गहराई से विश्लेषण कर सकती थी।
See lessमौर्य कला तथा भवन निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये तथा बौद्ध धर्म के साथ उनके संबंध पर भी प्रकाश डालिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
मौर्य साम्राज्य (322-185 ई.पू.) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण काल था, जो कला और स्थापत्य के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदानों के लिए जाना जाता है। इस काल में भारतीय कला और वास्तुकला में बड़े बदलाव आए, जो विशेष रूप से सम्राट अशोक के शासनकाल में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। मौर्य कला का गहरा संबRead more
मौर्य साम्राज्य (322-185 ई.पू.) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण काल था, जो कला और स्थापत्य के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदानों के लिए जाना जाता है। इस काल में भारतीय कला और वास्तुकला में बड़े बदलाव आए, जो विशेष रूप से सम्राट अशोक के शासनकाल में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। मौर्य कला का गहरा संबंध बौद्ध धर्म से था, क्योंकि सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया था और इसके प्रचार-प्रसार के लिए कला का उपयोग किया था।
मौर्य कला की विशेषताएँ
भवन निर्माण कला की विशेषताएँ
मौर्य काल के भवन निर्माण कला में कुछ प्रमुख विशेषताएँ थीं:
बौद्ध धर्म और मौर्य कला का संबंध
निष्कर्ष
मौर्य कला और भवन निर्माण कला ने भारतीय संस्कृति और स्थापत्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सम्राट अशोक के समय में बौद्ध धर्म का प्रचार और उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति कला के माध्यम से की गई, जिसमें स्तूप, शिलालेख और अशोक स्तंभ प्रमुख थे। इन सभी ने भारतीय कला की धारा को एक नई दिशा दी और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को फैलाने में मदद की। मौर्य कला न केवल स्थापत्य और मूर्तिकला में, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक प्रचार में भी एक मील का पत्थर साबित हुई।
See lessउपयुक्त उदाहरण सहित 19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताओं की समीक्षा कीजिये। उनकी असफलता के कारण बताइए। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कई जनजातीय प्रतिरोध आंदोलन उठे थे। इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनजातियों की अपनी पारंपरिक आज़ादी और भूस्वामित्व की रक्षा करना था। हालांकि इन आंदोलनों की असफलता के कई कारण थे, लेकिन इनकी विशेषताएँ और संघर्ष भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थानRead more
19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कई जनजातीय प्रतिरोध आंदोलन उठे थे। इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनजातियों की अपनी पारंपरिक आज़ादी और भूस्वामित्व की रक्षा करना था। हालांकि इन आंदोलनों की असफलता के कई कारण थे, लेकिन इनकी विशेषताएँ और संघर्ष भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताएँ
असफलता के कारण
निष्कर्ष
19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध आंदोलनों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया, लेकिन इनकी असफलता के प्रमुख कारण थे संगठन की कमी, आर्थिक शोषण, और ब्रिटिश साम्राज्य की सैन्य ताकत। हालांकि, इन आंदोलनों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए आधार तैयार किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा दी।
See less19वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्र पारयिता पारंगत के क्या कारण थे? बिहार के विशेष संदर्भ में इंडेंचर पद्धति के आलोक में विवेचना कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
समुद्र पारयिता पारंगत का अर्थ है उन लोगों का विदेश यात्रा करना जो एक समय में गुलामी की स्थिति में होते थे। ब्रिटिशकालीन भारत में, विशेष रूप से 19वीं सदी में, समुद्र पारयिता पारंगत की प्रथा ने विभिन्न कारणों से प्रमुखता प्राप्त की, विशेष रूप से बिहार जैसे क्षेत्रों में इंडेंचर पद्धति (Indenture SysteRead more
समुद्र पारयिता पारंगत का अर्थ है उन लोगों का विदेश यात्रा करना जो एक समय में गुलामी की स्थिति में होते थे। ब्रिटिशकालीन भारत में, विशेष रूप से 19वीं सदी में, समुद्र पारयिता पारंगत की प्रथा ने विभिन्न कारणों से प्रमुखता प्राप्त की, विशेष रूप से बिहार जैसे क्षेत्रों में इंडेंचर पद्धति (Indenture System) के माध्यम से।
इंडेंचर पद्धति: बिहार के संदर्भ में
समुद्र पारयिता पारंगत के अन्य कारण
समुद्र पारयिता के प्रभाव
निष्कर्ष
19वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्र पारयिता पारंगत की प्रथा ने न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक कारणों से भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बिहार जैसे क्षेत्रों में यह प्रथा विशेष रूप से स्पष्ट थी, जहां से अधिक संख्या में मजदूरों का विदेशों में भेजा जाना हुआ। इस प्रक्रिया ने लोगों को बेहतर अवसरों की तलाश में प्रेरित किया, लेकिन साथ ही यह कई मानवाधिकारों के हनन की भी वजह बनी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में यह एक निर्णायक मोड़ के रूप में सामने आया, जिससे देशवासियों को अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिली।
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