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विश्व के संसाधन संकट से निपटने के लिए महासागरों के विभिन्न संसाधनों, जिनका उपयोग किया जा सकता है, का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
महासागरीय संसाधनों का मूल्यांकन: विश्व संसाधन संकट से निपटने के उपाय **1. खनिज संसाधन महासागर खनिज संसाधनों से भरपूर हैं, जैसे पोलिमेटलिक नोड्यूल्स और हाइड्रोथर्मल वेंट्स। हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) ने क्लेरियन-क्लिपरटन जोन में गहरे समुद्री खनन के लिए लाइसेंस जारी किए हैं, जोRead more
महासागरीय संसाधनों का मूल्यांकन: विश्व संसाधन संकट से निपटने के उपाय
**1. खनिज संसाधन
महासागर खनिज संसाधनों से भरपूर हैं, जैसे पोलिमेटलिक नोड्यूल्स और हाइड्रोथर्मल वेंट्स। हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (ISA) ने क्लेरियन-क्लिपरटन जोन में गहरे समुद्री खनन के लिए लाइसेंस जारी किए हैं, जो कोबाल्ट और निकल से भरपूर है। हालांकि, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता पर इसके नकारात्मक प्रभाव चिंता का विषय हैं।
**2. ऊर्जा संसाधन
महासागरों में तेल, प्राकृतिक गैस, और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे ज्वारीय, लहर और महासागर तापीय ऊर्जा उपलब्ध हैं। स्कॉटलैंड के तट पर फ्लोटिंग विंड फार्म्स और फ्रांस तथा दक्षिण कोरिया में ज्वारीय ऊर्जा परियोजनाएं इसके उदाहरण हैं। फिर भी, इन तकनीकों की उच्च लागत और पर्यावरणीय प्रभाव प्रमुख समस्याएँ हैं।
**3. जैविक संसाधन
मैरिन बायोडायवर्सिटी खाद्य और औषधीय संसाधन प्रदान करती है। हाल ही में, गहरे समुद्र की कोरल्स से प्राप्त एंटी-कैंसर दवाइयां वैज्ञानिक अनुसंधान का उदाहरण हैं। लेकिन, अत्यधिक मछली पकड़ना और आवासीय क्षति इन संसाधनों के संरक्षण को चुनौती देती है।
**4. नमकीन जल से ताजे पानी का निर्माण
नमकीन जल से ताजे पानी के निर्माण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग जल संकट को दूर कर सकता है। इज़राइल और सऊदी अरब में हाल ही में स्थापित जलवर्धन संयंत्र इसकी सफलता को दर्शाते हैं। लेकिन, उच्च ऊर्जा खपत और ब्राइन के निपटान का पर्यावरणीय प्रभाव चिंताजनक है।
इस प्रकार, महासागरीय संसाधनों की संभावनाओं के बावजूद, इनके उपयोग और संरक्षण में संतुलन बनाए रखना दीर्घकालिक स्थिरता के लिए आवश्यक है।
See lessमहासागरों में, ऊर्जा संसाधन तथा भारत तटीय क्षेत्र में उनकी संभावनाओं की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
1. महासागरों में ऊर्जा संसाधन: a. पेट्रोलियम और गैस: विवरण: महासागरों में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के विशाल संसाधन मौजूद हैं, जो समुद्र तल के नीचे ऑयल रिग्स और गैस की फील्ड्स में पाए जाते हैं। उदाहरण: खाड़ी युद्ध के दौरान, दक्षिणी अरबियन में इन संसाधनों का महत्व उजागर हुआ था। b. नवीकरणीय ऊर्जा: लRead more
1. महासागरों में ऊर्जा संसाधन:
a. पेट्रोलियम और गैस:
b. नवीकरणीय ऊर्जा:
c. थर्मल ऊर्जा:
2. भारत तटीय क्षेत्र में ऊर्जा संसाधनों की संभावनाएँ:
a. ऑफशोर पेट्रोलियम और गैस:
b. समुद्री पवन ऊर्जा:
c. लहर और ज्वार ऊर्जा:
3. चुनौतियाँ:
निष्कर्ष: महासागरों में ऊर्जा संसाधन, जैसे कि पेट्रोलियम, गैस, पवन, और थर्मल ऊर्जा, भारत के तटीय क्षेत्र में ऊर्जा सुरक्षा और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन संसाधनों के उपयोग से आर्थिक लाभ और ऊर्जा आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सकती है, हालांकि प्रौद्योगिकी और पर्यावरणीय चुनौतियाँ ध्यान में रखनी होंगी।
See lessउत्तरध्रुव सागर में तेल की खोज के क्या आर्थिक महत्व हैं और उसके संभव पर्यावरणीय परिणाम क्या होंगे ? (200 words) [UPSC 2015]
उत्तरध्रुव सागर (Arctic Ocean) में तेल की खोज का आर्थिक महत्व और पर्यावरणीय परिणाम दोनों ही महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। आर्थिक महत्व: ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता: आयात पर निर्भरता कम करना: उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में तेल की खोज से वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में योगदान हो सकता है, जिससे ऊर्जा आयात पर निर्भरता कम हRead more
उत्तरध्रुव सागर (Arctic Ocean) में तेल की खोज का आर्थिक महत्व और पर्यावरणीय परिणाम दोनों ही महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।
आर्थिक महत्व:
ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता:
आयात पर निर्भरता कम करना: उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में तेल की खोज से वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में योगदान हो सकता है, जिससे ऊर्जा आयात पर निर्भरता कम हो सकती है।
आर्थिक लाभ: तेल उत्पादन से राजस्व में वृद्धि हो सकती है और स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है। इससे नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं और क्षेत्रीय विकास में सहायता मिल सकती है।
वैश्विक ऊर्जा बाजार में प्रतिस्पर्धा:
तेल की कीमतें: उत्तरध्रुवीय तेल के अतिरिक्त संसाधनों से वैश्विक ऊर्जा बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, जिससे तेल की कीमतों में स्थिरता आ सकती है और बाजार में विविधता आ सकती है।
पर्यावरणीय परिणाम:
पर्यावरणीय प्रदूषण:
ऑयल स्पिल: तेल की खोज और खनन के दौरान होने वाले संभावित तेल रिसाव (ऑयल स्पिल) से समुद्री जीवन और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। तेल स्पिल से समुद्री जीवों की मृत्यु, तटीय क्षेत्रों की तबाही और पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो सकते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग:
मिथेन उत्सर्जन: आर्कटिक क्षेत्र में तेल और गैस खनन से मिथेन गैस का उत्सर्जन हो सकता है, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है और वैश्विक तापमान को बढ़ा सकती है।
पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव:
पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन: तेल की खोज से आर्कटिक क्षेत्र की जटिल पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन आ सकता है, जिसमें विभिन्न समुद्री प्रजातियाँ और वनस्पतियाँ शामिल हैं। इससे इन प्रजातियों की जीवनशैली और अस्तित्व पर खतरा पैदा हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन:
आर्कटिक बर्फ का पिघलना: तेल की खोज और संबंधित गतिविधियाँ आर्कटिक क्षेत्र की बर्फ की परत को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे बर्फ का पिघलना तेज हो सकता है और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिल सकता है।
See lessनिष्कर्ष:
उत्तरध्रुव सागर में तेल की खोज का आर्थिक महत्व अत्यधिक है, विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक लाभ के दृष्टिकोण से। हालांकि, इसके पर्यावरणीय परिणाम गंभीर हो सकते हैं, जिसमें प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, और पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन शामिल है। इसलिए, इस क्षेत्र में तेल की खोज के लिए संतुलित दृष्टिकोण और सख्त पर्यावरणीय नियमों की आवश्यकता है ताकि आर्थिक लाभ के साथ पर्यावरणीय सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके।
जलविद्युत दुनिया भर में निम्न कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत है, लेकिन भारत के कुल इलेक्ट्रिसिटी मिक्स में इसकी हिस्सेदारी बहुत कम बनी हुई है। चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
जलविद्युत, जोकि कम कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा का स्रोत है, दुनिया भर में ऊर्जा आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में, जलविद्युत का उत्पादन क्षमता लगभग 145 GW है, जो देश की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 12-13% है। हालांकि, भारत के कुल इलेक्ट्रिसिटी मिक्स में जलविद्युत की हिस्सेदारीRead more
जलविद्युत, जोकि कम कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा का स्रोत है, दुनिया भर में ऊर्जा आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में, जलविद्युत का उत्पादन क्षमता लगभग 145 GW है, जो देश की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 12-13% है। हालांकि, भारत के कुल इलेक्ट्रिसिटी मिक्स में जलविद्युत की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है।
इसकी वजहें कई हैं। जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण में बड़ी प्रारंभिक लागत, दीर्घकालिक निर्माण समय, और पर्यावरणीय चिंताएं प्रमुख बाधाएं हैं। इसके अलावा, बांधों के निर्माण से स्थानीय समुदायों का विस्थापन और पारिस्थितिकीय असंतुलन भी एक चुनौती है।
भारत के तेजी से बढ़ते ऊर्जा मांग को देखते हुए, सरकार सौर और पवन ऊर्जा जैसे अन्य नवीकरणीय स्रोतों पर अधिक ध्यान दे रही है, जिससे जलविद्युत की हिस्सेदारी सीमित रह गई है। इस स्थिति में सुधार के लिए छोटे जलविद्युत परियोजनाओं का विकास और बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता है।
See lessपेट्रोलियम रिफ़ाइनरियाँ आवश्यक रूप से कच्चा तेल उत्पादक क्षेत्रों के समीप अवस्थित नहीं हैं, विशेषकर अनेक विकासशील देशों में। इसके निहितार्थों को स्पष्ट कीजिए। (250 words) [UPSC 2017]
पेट्रोलियम रिफ़ाइनरियाँ अक्सर कच्चे तेल उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थित नहीं होतीं, विशेषकर विकासशील देशों में, और इसके कई महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं: स्थानांतरण के कारण: आर्थिक विचार: रिफ़ाइनरियाँ महंगी होती हैं और इनका निर्माण एवं संचालन बड़े आर्थिक निवेश की आवश्यकता होती है। विकासशील देशों में, रिफRead more
पेट्रोलियम रिफ़ाइनरियाँ अक्सर कच्चे तेल उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थित नहीं होतीं, विशेषकर विकासशील देशों में, और इसके कई महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं:
स्थानांतरण के कारण:
निहितार्थ:
इस प्रकार, पेट्रोलियम रिफ़ाइनरियों का कच्चे तेल उत्पादक क्षेत्रों से दूर होना आर्थिक, पर्यावरणीय और रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
See less"प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन विकास के लिए अभी भी अपरिहार्य है ।" विवेचना कीजिए । (150 words) [UPSC 2017]
कोयला खनन: विकास और पर्यावरणीय प्रभाव परिचय: कोयला खनन भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन इसके प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव भी हैं। इसके बावजूद, यह विकास के लिए अपरिहार्य बना हुआ है। कोयला खनन की अपरिहार्यता: ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका: "भारत की ऊर्जाRead more
कोयला खनन: विकास और पर्यावरणीय प्रभाव
परिचय: कोयला खनन भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन इसके प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव भी हैं। इसके बावजूद, यह विकास के लिए अपरिहार्य बना हुआ है।
कोयला खनन की अपरिहार्यता:
पर्यावरणीय प्रतिकूल प्रभाव:
निष्कर्ष: कोयला खनन विकास के लिए अपरिहार्य है क्योंकि यह ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, इसके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए “सतत खनन प्रथाएँ” और “वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों” पर जोर देना आवश्यक है।
See lessभारत आर्कटिक प्रदेश के संसाधनों में किस कारण गहन रुचि ले रहा है ? (150 words ) [UPSC 2018]
भारत की आर्कटिक प्रदेश के संसाधनों में रुचि परिचय: भारत की आर्कटिक प्रदेश में रुचि बढ़ रही है, जिसका कारण क्षेत्रीय संसाधनों और भू-राजनीतिक महत्व की खोज में निहित है। संसाधनों की खोज: खानिज और ऊर्जा संसाधन: आर्कटिक क्षेत्र में तेल और गैस के विशाल भंडार संभावित रूप से वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति को प्रभाविRead more
भारत की आर्कटिक प्रदेश के संसाधनों में रुचि
परिचय: भारत की आर्कटिक प्रदेश में रुचि बढ़ रही है, जिसका कारण क्षेत्रीय संसाधनों और भू-राजनीतिक महत्व की खोज में निहित है।
संसाधनों की खोज:
वैश्विक सहयोग:
निष्कर्ष: भारत की आर्कटिक प्रदेश में गहन रुचि ऊर्जा संसाधनों, समुद्री मार्गों, और वैश्विक सहयोग के अवसरों के कारण बढ़ रही है। यह रणनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
See lessबहुषात्विक ग्रंथिकाओं (पॉलिमेटेलिक नोड्यूल्स) के भौगोलिक वितरण का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए, उनके महत्व पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
बहुषात्विक ग्रंथिकाएँ या पॉलिमेटेलिक नोड्यूल्स जैसे संगठन विशेष जीवों के भौगोलिक वितरण का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। इनका महत्व जीवनकला, पर्यावरणीय संतुलन, और जैविक विविधता के लिए अत्यधिक है। ये ग्रंथिकाएँ विभिन्न स्थानों में पाए जाते हैं और उनका वितरण भूमि, जल, और हवा में विभिन्न प्रकार केRead more
बहुषात्विक ग्रंथिकाएँ या पॉलिमेटेलिक नोड्यूल्स जैसे संगठन विशेष जीवों के भौगोलिक वितरण का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। इनका महत्व जीवनकला, पर्यावरणीय संतुलन, और जैविक विविधता के लिए अत्यधिक है। ये ग्रंथिकाएँ विभिन्न स्थानों में पाए जाते हैं और उनका वितरण भूमि, जल, और हवा में विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय नियमितियों के आधार पर होता है। ये नोड्यूल्स भुगोलशास्त्र और पारिस्थितिकी विज्ञान में महत्वपूर्ण रोल निभाते हैं क्योंकि इनका वितरण इकोसिस्टम की सुरक्षितता और संतुलन के लिए आवश्यक होता है। इनके अवसादन के कारण जीवों के बीच अद्वितीय संबंध बनते हैं और इससे प्राकृतिक वातावरण का संतुलन बना रहता है।
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