सुभेद्य वर्गों के लिए क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन उनके बारे में जागरूकता के न होने और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं पर उनके सक्रिय तौर पर सम्मिलित न होने के कारण इतना प्रभावी नहीं होता है। ...
विकास योजना और बहु-स्तरी योजनाकरण परिचय: विकास योजना के नव-उदारी प्रतिमान के संदर्भ में, आशा की जाती है कि बहु-स्तरी योजनाकरण संक्रियाओं को लागत प्रभावी बना देगा और अनेक क्रियान्वयन रुकावटों को हटा देगा। लागत प्रभावी: नव-उदारी प्रतिमान में, जो की बाजार-निर्धारित नीतियों और निजी क्षेत्र की भागीदारी कRead more
विकास योजना और बहु-स्तरी योजनाकरण
परिचय:
विकास योजना के नव-उदारी प्रतिमान के संदर्भ में, आशा की जाती है कि बहु-स्तरी योजनाकरण संक्रियाओं को लागत प्रभावी बना देगा और अनेक क्रियान्वयन रुकावटों को हटा देगा।
लागत प्रभावी:
नव-उदारी प्रतिमान में, जो की बाजार-निर्धारित नीतियों और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बल देता है, बहु-स्तरी योजनाकरण से संसाधन विनियोजन की अनुकूलन करने में मदद मिल सकती है और परियोजना के क्रियान्वयन में लागत प्रभावी बना सकती है।
स्थानीय सहभागिता:
बहु-स्तरी योजनाकरण में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं की विस्तारित सहभागिता से, स्थानीय समस्याओं के लिए उपाय ढूंढने और संसाधनों के बेहतर उपयोग की सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।
क्रियान्वयन की अधिकता:
निर्णय शक्ति को स्थानीय स्तरों में सौंपकर, बहु-स्तरी योजनाकरण क्रियान्वयन की अधिकता में मदद कर सकता है, ब्यूरोक्रेटिक बाधाओं को कम करके और स्थानीय मुद्दों के त्वरित समाधान को सुनिश्चित करके।
हाल के उदाहरण:
नव-उदारी प्रतिमान के अंतर्गत, जैसे की भारत की स्मार्ट सिटीज मिशन और अमृत (अटल मिशन फॉर रिजुविनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन), बहु-स्तरी योजनाकरण को महत्व दिया जा रहा है जो शहरी बुनियादी संरचना को सुदृढ़ करने में मदद करता है, दिखाते हैं की यह उपाय क्रियान्वयन की अधिकता में सहायक है।
चुनौतियाँ और विचार:
बहु-स्तरी योजनाकरण के द्वारा आए लाभों को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्तरों के बीच समन्वय समस्याएं और स्थानीय स्तरों पर क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
समाप्ति रूप में, नव-उदारी विकास संदर्भ में, बहु-स्तरी योजनाकरण विकास संक्रियाओं को लागत प्रभावी बनाने और क्रियान्वयन रुकावटों को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस दृष्टिकोण को अपनाने से संसाधनों का अधिक उपयोग हो सकता है और स्थानीय आवश्यकताओं के साथ बेहतर संयोजन साधित किया जा सकता है, जिससे सतत विकास को प्रोत्साहित किया जा सकता ह।
सुभेद्य वर्गों के लिए क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन अक्सर सीमित प्रभावी होता है, और इसके पीछे जागरूकता की कमी और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं में सक्रिय भागीदारी की कमी एक महत्वपूर्ण कारण हैं। इस स्थिति की चर्चा निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: 1. जागरूकता की कमी:Read more
सुभेद्य वर्गों के लिए क्रियान्वित की जाने वाली कल्याण योजनाओं का निष्पादन अक्सर सीमित प्रभावी होता है, और इसके पीछे जागरूकता की कमी और नीति प्रक्रम की सभी अवस्थाओं में सक्रिय भागीदारी की कमी एक महत्वपूर्ण कारण हैं। इस स्थिति की चर्चा निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. जागरूकता की कमी:
सुभेद्य वर्गों के बीच कल्याण योजनाओं के प्रति जागरूकता की कमी एक प्रमुख बाधा है। इन वर्गों में अक्सर गरीब, साक्षरता की कमी वाले और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोग शामिल होते हैं, जिनके पास योजनाओं की जानकारी और उनके लाभों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती। इसके परिणामस्वरूप, ये वर्ग योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
2. नीति प्रक्रम में भागीदारी की कमी:
सुभेद्य वर्गों को नीति निर्माण और कार्यान्वयन के प्रक्रमों में उचित प्रतिनिधित्व और भागीदारी नहीं मिलती। यदि इन वर्गों को नीति निर्माण के दौरान शामिल नहीं किया जाता है, तो उनकी वास्तविक आवश्यकताओं और समस्याओं को ध्यान में नहीं रखा जाता, जिससे योजनाएं प्रभावी ढंग से लागू नहीं होती हैं।
3. प्रशासनिक समस्याएँ:
अक्सर, कल्याण योजनाओं के निष्पादन में प्रशासनिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे कि धन की कमी, भ्रष्टाचार, और कार्यान्वयन में ढिलाई। ये समस्याएँ योजनाओं की प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं और सुभेद्य वर्गों को लाभ पहुँचाने में बाधक बनती हैं।
4. प्रवर्तन की कमी:
योजना कार्यान्वयन के दौरान प्रवर्तन और निगरानी की कमी भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। यदि योजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन उचित ढंग से नहीं किया जाता, तो योजनाओं की गुणवत्ता और उनके लाभ पहुँचाने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
5. सांस्कृतिक और भाषाई अवरोध:
सुभेद्य वर्गों में सांस्कृतिक और भाषाई विविधता होती है, जिससे योजना के कार्यान्वयन में समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि योजनाएं स्थानीय सांस्कृतिक और भाषाई संदर्भ को ध्यान में नहीं रखती हैं, तो उनका प्रभाव सीमित होता है।
उपाय:
इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, कल्याण योजनाओं को सुभेद्य वर्गों के लिए अधिक सुलभ और समावेशी बनाने की आवश्यकता है। इसमें जागरूकता अभियानों का आयोजन, नीति निर्माण में भागीदारी, और प्रशासनिक सुधार शामिल हैं। साथ ही, स्थानीय समुदायों को योजनाओं के क्रियान्वयन में शामिल करना और प्रभावी निगरानी सुनिश्चित करना आवश्यक है।
इस प्रकार, सुभेद्य वर्गों के लिए कल्याण योजनाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए इन चुनौतियों को दूर करना और सुधारात्मक कदम उठाना आवश्यक है।
See less