विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम (एफ० सी० आर० ए०), 1976 के अधीन गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी वित्तीयन के नियंत्रक नियमों में हाल के परिवर्तनों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का उद्भव और उनका विकास, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे-धीरे पीछे हटने का संकेत देता है। SHGs ने विकास के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो कभी राज्य के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाती थीं। विकासात्मक गतिविधियों में SHGs कीRead more
स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का उद्भव और उनका विकास, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे-धीरे पीछे हटने का संकेत देता है। SHGs ने विकास के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो कभी राज्य के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाती थीं।
विकासात्मक गतिविधियों में SHGs की भूमिका:
आर्थिक सशक्तिकरण: SHGs ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, खासकर महिलाओं, को संगठित कर उन्हें लघु ऋण उपलब्ध कराकर छोटे व्यवसाय शुरू करने और कृषि गतिविधियों में निवेश करने के अवसर दिए हैं। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि हुई है बल्कि उनकी गरीबी भी कम हुई है।
सामाजिक सशक्तिकरण: SHGs ने सामाजिक समावेशन को बढ़ावा दिया है। महिलाएं संगठित होकर सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल हो रही हैं, जिससे उनकी सामाजिक स्थिति मजबूत हुई है और वे समुदाय की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं।
कौशल विकास और क्षमता निर्माण: SHGs सदस्यों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों से लाभान्वित कर रहे हैं। इससे उन्हें रोजगार के नए अवसर मिलते हैं और वे अपने आर्थिक संसाधनों का बेहतर प्रबंधन कर पाती हैं।
सरकारी योजनाओं तक पहुँच: SHGs ने ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा, और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर तक पहुँचाने में सहायक हैं।
SHGs को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार के उपाय:
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM): 2011 में शुरू हुआ NRLM, SHGs को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और बैंक ऋण तक पहुँच प्रदान करने के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के सतत साधन तैयार करना है।
दीनदयाल अंत्योदय योजना: इस योजना का उद्देश्य SHGs के माध्यम से गरीबी उन्मूलन है। यह योजना SHGs संघों को बढ़ावा देती है और उनके उत्पादों के विपणन, मूल्य संवर्धन और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए समर्थन प्रदान करती है।
SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SBLP): NABARD द्वारा 1992 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम, SHGs को बैंकों से जोड़कर उन्हें औपचारिक वित्तीय सेवाएँ, ऋण और बीमा उत्पाद प्रदान करता है।
प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम (STEP): इस योजना का उद्देश्य SHGs की महिलाओं को कौशल विकास और आय सृजन गतिविधियों में शामिल करना है।
निष्कर्ष:
SHGs का उदय राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे-धीरे पीछे हटने का संकेत देता है, लेकिन SHGs ने राज्य के प्रयासों को पूरक बनाते हुए विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। SHGs और सरकारी पहलों के बीच की यह सहभागिता समावेशी और सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम (एफ.सी.आर.ए.), 1976 के तहत गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के विदेशी वित्तीयन के नियंत्रक नियमों में हाल के परिवर्तनों ने महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। ये बदलाव, विशेष रूप से 2020 में किए गए संशोधनों और नए नियमों के माध्यम से, एनजीओ की कार्यप्रणाली और उनके विदेशी दानदाताओं केRead more
विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम (एफ.सी.आर.ए.), 1976 के तहत गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के विदेशी वित्तीयन के नियंत्रक नियमों में हाल के परिवर्तनों ने महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। ये बदलाव, विशेष रूप से 2020 में किए गए संशोधनों और नए नियमों के माध्यम से, एनजीओ की कार्यप्रणाली और उनके विदेशी दानदाताओं के साथ संबंधों पर प्रभाव डाल रहे हैं।
प्रमुख परिवर्तन और समालोचनात्मक परीक्षण:
विदेशी फंडिंग पर प्रतिबंध:
परिवर्तन: 2020 के संशोधन ने विदेशी फंडिंग पर सख्त नियम लागू किए हैं, जिनमें दानदाताओं की निगरानी और फंडिंग स्रोतों की जांच शामिल है।
समालोचनात्मक दृष्टिकोण: यह कदम एनजीओ की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकता है, और सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने की उनकी क्षमता पर असर डाल सकता है।
आधार लिंकिंग की अनिवार्यता:
परिवर्तन: एनजीओ को विदेशी फंड प्राप्त करने वाले बैंक खातों को आधार से जोड़ने की आवश्यकता है।
समालोचनात्मक दृष्टिकोण: यह प्रावधान गोपनीयता और नौकरशाही में देरी की समस्याएं पैदा कर सकता है, विशेषकर दूरदराज के क्षेत्रों में जहां आधार इंफ्रास्ट्रक्चर सीमित हो सकता है।
प्रशासनिक खर्चों पर सीमा:
परिवर्तन: विदेशी फंड्स के प्रशासनिक खर्चों पर एक सीमा निर्धारित की गई है।
समालोचनात्मक दृष्टिकोण: यह परिवर्तन एनजीओ की संचालनात्मक लचीलापन को सीमित कर सकता है और परियोजनाओं की निगरानी में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
बढ़ी हुई अनुपालन और रिपोर्टिंग:
परिवर्तन: अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अनुपालन और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारियाँ बढ़ाई गई हैं।
See lessसमालोचनात्मक दृष्टिकोण: जबकि यह कदम दान की निगरानी में मददगार हो सकता है, बढ़े हुए पेपरवर्क और अनुपालन के बोझ से एनजीओ की मूल गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
एफ.सी.आर.ए. के तहत हाल के परिवर्तनों का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और विदेशी फंडिंग के दुरुपयोग को रोकना है। हालांकि, ये परिवर्तनों ने एनजीओ की स्वायत्तता, गोपनीयता, और संचालनात्मक क्षमता पर चिंता जताई है। इन नियमों का संतुलन बनाना और एनजीओ की प्रभावशीलता को बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।