“वर्तमान समय में स्वयं सहायता समूहों का उद्भव राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे परंतु निरंतर पीछे हटने का संकेत है।” विकासात्मक गतिविधियों में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का एवं भारत सरकार द्वारा स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करने ...
आयोगों का विलय: एक व्यापक मानव अधिकार आयोग के लाभ भारत में समाज के कमजोर वर्गों के लिए कई आयोगों की उपस्थिति, जैसे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, और राष्ट्रीय महिला आयोग, समस्याओं को हल करने के बजाय नए मुद्दे उत्पन्न कर सकती है। इन आयोगों की बहुलता, अतिव्यापी अधिकारिताRead more
आयोगों का विलय: एक व्यापक मानव अधिकार आयोग के लाभ
भारत में समाज के कमजोर वर्गों के लिए कई आयोगों की उपस्थिति, जैसे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, और राष्ट्रीय महिला आयोग, समस्याओं को हल करने के बजाय नए मुद्दे उत्पन्न कर सकती है। इन आयोगों की बहुलता, अतिव्यापी अधिकारिता, और प्रक्रियाओं के दोहरेपन के कारण निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं:
1. अतिव्यापी अधिकारिता: विभिन्न आयोगों के पास समान या ओवरलैपिंग अधिकार और जिम्मेदारियाँ होती हैं, जिससे दायित्व और कार्यप्रणाली में स्पष्टता की कमी होती है। इससे फैसले लेने और कार्यवाई करने में देरी हो सकती है।
2. प्रक्रियाओं का दोहरा होना: आयोगों की प्रक्रियाओं में कई बार अनावश्यक जटिलताएँ और अभिनवाधाएं होती हैं, जिससे सभी मुद्दों का समाधान करना कठिन हो जाता है। यह कार्यशीलता और प्रभावशीलता को प्रभावित करता है।
3. संसाधनों की बर्बादी: विभिन्न आयोगों के लिए अलग-अलग संसाधन, कर्मचारी, और वित्तीय प्रबंधन की आवश्यकता होती है। यह बर्बादी और असामंजस्य उत्पन्न कर सकता है।
विलय के लाभ:
1. संगठित दृष्टिकोण: एक व्यापक मानव अधिकार आयोग सभी कमजोर वर्गों के मामलों को एक ही छत्र के तहत देखेगा, जिससे संघटनात्मक दक्षता और समन्वय में सुधार होगा।
2. संसाधनों का बेहतर उपयोग: एक ही आयोग के तहत संसाधनों का केंद्रित उपयोग होगा, जिससे लागत में कमी और प्रभावशीलता में वृद्धि होगी।
3. समाधान की गति: समस्याओं और शिकायतों पर त्वरित और समग्र समाधान संभव होगा, क्योंकि निर्णय प्रक्रिया और कार्यप्रणाली में एकरूपता होगी।
4. नागरिकों के लिए सरलता: नागरिकों को एकल पते पर शिकायत करने की सुविधा मिलेगी, जिससे सुविधा और सपोर्ट में सुधार होगा।
उपसंहार: समाज के कमजोर वर्गों के लिए विभिन्न आयोगों का विलय एक व्यापक मानव अधिकार आयोग के तहत किया जाना आवश्यक हो सकता है। इससे संसाधनों की बचत, कार्यप्रणाली में सुधार, और समन्वय में वृद्धि हो सकती है, जिससे सामाजिक न्याय और अधिकारों की रक्षा में प्रभावशीलता में सुधार होगा।
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स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का उद्भव और उनका विकास, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे-धीरे पीछे हटने का संकेत देता है। SHGs ने विकास के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो कभी राज्य के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाती थीं। विकासात्मक गतिविधियों में SHGs कीRead more
स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का उद्भव और उनका विकास, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे-धीरे पीछे हटने का संकेत देता है। SHGs ने विकास के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो कभी राज्य के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाती थीं।
विकासात्मक गतिविधियों में SHGs की भूमिका:
आर्थिक सशक्तिकरण: SHGs ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, खासकर महिलाओं, को संगठित कर उन्हें लघु ऋण उपलब्ध कराकर छोटे व्यवसाय शुरू करने और कृषि गतिविधियों में निवेश करने के अवसर दिए हैं। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि हुई है बल्कि उनकी गरीबी भी कम हुई है।
सामाजिक सशक्तिकरण: SHGs ने सामाजिक समावेशन को बढ़ावा दिया है। महिलाएं संगठित होकर सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल हो रही हैं, जिससे उनकी सामाजिक स्थिति मजबूत हुई है और वे समुदाय की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं।
कौशल विकास और क्षमता निर्माण: SHGs सदस्यों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों से लाभान्वित कर रहे हैं। इससे उन्हें रोजगार के नए अवसर मिलते हैं और वे अपने आर्थिक संसाधनों का बेहतर प्रबंधन कर पाती हैं।
सरकारी योजनाओं तक पहुँच: SHGs ने ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा, और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर तक पहुँचाने में सहायक हैं।
SHGs को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार के उपाय:
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM): 2011 में शुरू हुआ NRLM, SHGs को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और बैंक ऋण तक पहुँच प्रदान करने के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के सतत साधन तैयार करना है।
दीनदयाल अंत्योदय योजना: इस योजना का उद्देश्य SHGs के माध्यम से गरीबी उन्मूलन है। यह योजना SHGs संघों को बढ़ावा देती है और उनके उत्पादों के विपणन, मूल्य संवर्धन और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए समर्थन प्रदान करती है।
SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SBLP): NABARD द्वारा 1992 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम, SHGs को बैंकों से जोड़कर उन्हें औपचारिक वित्तीय सेवाएँ, ऋण और बीमा उत्पाद प्रदान करता है।
प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम (STEP): इस योजना का उद्देश्य SHGs की महिलाओं को कौशल विकास और आय सृजन गतिविधियों में शामिल करना है।
निष्कर्ष:
See lessSHGs का उदय राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीरे-धीरे पीछे हटने का संकेत देता है, लेकिन SHGs ने राज्य के प्रयासों को पूरक बनाते हुए विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। SHGs और सरकारी पहलों के बीच की यह सहभागिता समावेशी और सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है।